सुमित मिश्रा की यात्रा बीएचयू से शुरू हुई और अब मुंबई पहुंच गई है। वो कला के पारखी भी हैं और खुद एक कलाकार हैं। कैनवस पर उनके स्ट्रोक्स की अपनी दुनिया है, अपने रंग हैं। कैनवस पर रंगों के अलावा वो फिल्मों का निर्देशन इन दिनों कर रहे हैं। 'हिलांश' में वो अपने कॉलम 'आज रंग है' के जरिये पाठको को कला की 'महीन' और खूबसूरत दुनिया तक ले चलेंगे।
“Although I studied, I have never been taught painting… because I possess in my psychological makeup a peculiarity that resents any outside interference…,” (Sher-Gil wrote for an article in The Hindu in 1936.)
एक संवेदनशील व्यक्तित्व जीवन को कला और प्रेम से सुगंधित करता है। शरीर और चेतना के बीच एक गहरा सद्भाव और सामंजस्य बनाता है। प्रेम से प्रेरणा लेकर कला की रचना करना सबसे अनूठा प्रयोग है। इसमें निजी संवेदना और अवचेतन भाव की महत्वपूर्ण भूमिका है, जो रंग और आकार के द्वारा चित्रकार के चित्र में दिख जाती है। और यही वजह है कि अमृता शेरगिल के चित्र में उनके व्यक्तित्व जैसा ही अनूठापन है।
अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी 1913 में बुडापेस्ट (हंगरी) में हुआ था। संवेदनशील स्वाभाव की अमृता का कला, संगीत व अभिनय में बचपन से ही लगाव था। २०वीं सदी की इस प्रतिभावान कलाकार को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने 1976 और 1979 में भारत के नौ सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में शामिल किया है। सिख पिता उमराव सिंह शेरगिल और हंगरी मूल की ओपेरा गायिका मां मेरी एंटोनी गोट्समन की यह संतान 8 वर्ष की आयु में पियानो और वायलिन बजाने के साथ-साथ कैनवस पर भी हाथ आजमाने लगी थी।
अमृता शेरगिल के चित्र जितने कम समय में चर्चा में आए, उतनी ही सुर्ख़ियों में उनके उन्मुक्त प्रेम सम्बन्ध भी चर्चा रहे। एक से अधिक प्रेम सम्बन्ध! अपने पुरुष मित्रों को लेकर अमृता पर कई आरोप भी लगे, लेकिन जब मैं अमृता के जीवन और कला का सम्मिलित रूप से संवेदनात्मक अध्ययन करता हूं, तो मेरा भावनात्मक नज़रिया यही कहता है कि एक से अधिक प्रेम सम्बन्ध का किसी व्यक्ति विशेष के तथाकथित चरित्र से कोई सरोकार नहीं है। भावनात्मक रिक्तता और अधिक संवेदनशील होने की वजह से प्रेम को लेकर एक खोज या भटकाव बहुत लाज़मी है।
शेर गिल के चित्रों में प्रयोग किये गए रंग और भाव को देख कर उनके इस अवचेतन रिक्तता और उस पर सामाजिकता का एक आवरण चढ़ाने की एक कोशिस का पता चलता है। उन्होंने जो परम्परागत चित्र बनाये हैं, उसमें विषय और भाव में विविधता है। चटक और देशी रंग के प्रयोग के बावजूद उदासी की एक हल्की और गंभीर परत है, जो उनके अंतर्मन से सहज रूप में कैनवस पर आ गई, जबकि आत्मचित्र में अपनी उस गंभीरता को सुनियोजित ढंग से छुपाने के लिए अधिकता का प्रयोग किया गया है।
बेशक अमृता शेरगिल आकर्षक तो थीं, लेकिन उतनी खूबसूरत नहीं थीं, जितना उन्होंने खुद को अपने चित्रों में दिखाया है। इसके पीछे का मनोविज्ञान खुद की असलियत को छुपाना, ज्यादा से ज्यादा प्रशंसक बनाना है, जिससे कि भीड़ में खुद को छुपाया जा सके।
अमृता के आकर्षक व्यक्तित्व को याद करते हुए लेखक खुशवंत सिंह टिप्पणी करते हैं - "मैं अमृता शेरगिल के व्यक्तित्व का वर्णन करने में सक्षम नहीं हूं। मेरी उनसे सिर्फ दो मुलाकात हुई, लेकिन ये दोनों मुलाकातें मेरी स्मृति में अंकित है। एक कलाकार के रूप में प्रसिद्धि, उनकी सुंदरता, उनका ग्लैमर ही वजह है कि आज भी अमृता मेरी स्मृति में शामिल हैं। उनके अनगिनत प्रेमी थे, पंडित नेहरू भी उनके प्रशंसकों में से एक थे।" अमृता शेर गिल के चित्रों पर तो काफी बात की जा चुकी है, मैं उस से हट कर उनके आकर्षण और उनके सनकीपन के कुछ प्रसंग बांटना चाहूंगा, जो खुशवंत सिंह से भी सम्बंधित है।
अमृता से खुशवंत सिंह की पहली मुलाकात ही बहुत रोचक है। एक दोपहर जब खुशवंत सिंह अपने घर पहुंचते हैं, तो उनका सामना महंगे फ्रांसीसी इत्र की खुशबू से होता है। नौकर से पूछने पर पता चलता है कि कोई मेमसाहब उनसे मिलने आयी हैं। खुशवंत सिंह असमंजस में थे कि बिना बुलाये या बिना बताये कौन महिला उनसे मिलने आयी है? तभी एक आकर्षक महिला साड़ी पहने उनके सामने आती है, जिसमें गजब का चुम्बकीय आकर्षण था, जो किसी भी पुरुष को आकर्षित कर सकता था। खुशवंत साहब भी कोई अपवाद नहीं थे। उस आकर्षक महिला को देख कर खुशवंत सिंह ने पूछा कि क्या आप अमृता शेर गिल हो? और अमृता ने हां में सर हिलाया। फिर बिना कुछ पूछे अमृता खुद वहां आने की वजह बताने लगी। वह प्लंबर, धोबी, बढ़ई, रसोइया, आदि के बारे में जानना चाहती थी।
बात खत्म करने के बाद अमृता ने कमरे में चारों ओर देखा, जहां कुछ अजीब से चित्र टंगे हुए थे। खुशवंत साहब ने कुछ चित्रों की ओर इशारा किया और कहा कि ये मेरी पत्नी के द्वारा बनाये गए हैं, वो एक शौकिया चित्रकार हैं। अमृता ने उन चित्रों पर नज़र डाली और उनका मजाक उड़ाते हुए, वहां से चलीं गयी।
कुछ इस तरह हुई थी अमृता शेर गिल और खुशवंत सिंह की पहली मुलाकात, लेकिन दूसरी मुलाकात थोड़ी ज्यादा रोचक थी। कुछ हफ्ते बाद खुशवंत दम्पति और उनके सात महीने के बच्चे से अमृता शेर गिल की मुलाकात एक पार्टी में हुई। छोटा बच्चा सभी को प्यारा लगता है। इस वजह से वहां खुशवंत साहब का बच्चा आकर्षण का केंद्र बना हुआ था और सभी उसकी तारीफ कर रहे थे। तभी अमृता ने अपने बीयर मग की गहराई में खोये हुए, बच्चे को कुछ देर तक देखा और टिप्पणी की "कितना बदसूरत सा लड़का है, किसका बच्चा है ये"। अमृता की यह बात सभी को अजीब लगी, अमृता के जाने के बाद श्रीमती सिंह ने कहा की इस बददिमाग औरत को कभी अपने घर नहीं बुलाऊंगी।
बात यहीं ख़त्म नहीं हुई, जब अमृता को पता चला की श्रीमती खुशवंत सिंह ने क्या कहा था, तो अमृता ने लोगों को बताया कि मैं उस महिला को सबक सिखाने के लिए उसके पति को बहकाऊंगी। जब खुशवंत सिंह को अमृता की इस टिपण्णी के बारे में पता चला तो खुशवंत सिंह बेसब्री से उस बदले का इंतज़ार करने लगे।
विवाद ने मृत्यु के बाद भी अमृता शेर गिल का साथ नहीं छोड़ा। 5 दिसंबर 1941 को इस शानदार कलाकर की मृत्यु हो गयी, लेकिन इस मृत्यु को लेकर भी संशय बना रहा। कुछ लोग इसे किसी बीमारी की वजह से हुई एक स्वाभाविक मौत मानते हैं, जबकि अमृता की मां इसे एक सुनियोजित हत्या मानती है और उनकी हत्या का आरोपी अमृता के पति जो उनका चचेरा भाई भी था, उसे मानती हैं।
डॉ. रघुबीर सिंह जो खुशवंत सिंह के परिवार के डॉक्टर थे और अमृता को जीवित देखने वाले अंतिम व्यक्ति थे, उनसे विवरण मिलता है कि अमृता को पेरिटोनिटिस था। गलत तरीके से गर्भपात होने के कारण अधिक खून बहने की वजह से अमृता की मृत्यु हुई थी। मृत्य की वजह कुछ भी हो, लेकिन अमृता शेर गिल का मात्र 28 वर्ष की आयु में चले जाना कला जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी। जिस तरह से पाश्चात्य तकनीक और भारतीय विषय वस्तु को लेकर प्रायोगिक काम अमृता शेरगिल कर रहीं थी, उस तकनीक के और ज्यादा स्थापित होने पर भारतीय चित्रकला में एक विशेष शैली बन सकती थी। उनके जाने से एक नयी शैली का अंत हो गया।
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