ऐसे समय में जब पाठकों का भरोसा लगातार मीडिया से उठ रहा है और ये सवाल कि ‘जनता के सवालों और मुद्दों के लिए जगह की कहां बची है!’, हमने अपना श्रम ‘हिलांश’ को दिया है। मीडिया जिस दौर में 90 फीसदी नियंत्रित राजनीतिक खबरें परोस रहा है या फिर बचे हुए हिस्से में सिनेमा के नाम पर मसाला खबरों और क्रिकेट का कब्जा है, ‘हिलांश’ ने एक नये किस्म का विकल्प देने की कोशिश की है। ‘हिलांश’ की ताकत इसके लेखक हैं, जिन्होंने जनता के मुद्दों को तवज्जो बख्शी है। हमने एक पहल की है। ‘पहल’ से याद आया कि इसी नाम से एक प्रतिष्ठित पत्रिका बंद हो गई है। हिंदी का जलवा ही कुछ ऐसा है कि ‘ठेलमठेल’ चालू रहती है।
‘हिलांश’ को अलग-अलग हिस्सों में तैयार होने में तकरीबन दो महीने का वक्त लगा है। ‘हिलांश’ के भविष्य की दिशा इसके पाठक तय करेंगे... पाठकों से हमारा मतलब उस भीड़ से नहीं है, जिसने शोध को बेमानी मान लिया है या फिर विज्ञान से पहले उन्होंने धर्म की लाठियां भांज रखी हैं, हमारा मकसद उन पाठकों तक पहुंचना है, जिनके लिए मुल्क के मसलात कुछ और भी हैं। मसलन एक नदी की यात्रा, हिमालय में खोये हुए एक आदमी के जिंदा लौट आने की गाथा, कश्मीर में पुलिस के खुलासे, मीडिया में मचे तमाशे और चुटीले किस्सों की जिसे दरकार हो, हम उस पाठक की तलाश में हैं... हमने इंटरनेट पर बिखरी 20 अलग-अलग डॉक्यूमेंट्री, शाॅर्ट फिल्म के लिए भी गुंजाइश बिठाई है, ताकि आपको भटकना न पड़े। हमने अपनी ओर से पूरी ईमानदारी बरती है कि हम पाठकों को मायूस न करें। हमने आपको हिलांश का ट्रेलर दिखा दिया है, इसकी फिल्म कैसी बनेगी ये इसके शुभचिंतकों, सलाहकारों और पाठकों के हाथ में हैं। सीमित हाथों की बंदिशें अलग से हैं, लिहाजा हम आपके लेख आमंत्रित कर रहे हैं... आप सिनेमा से लेकर राउल कास्त्रो तक के किस्सों को यहां ला सकते हैं... हमें पाब्लो नेरुदा से भी कोई गुरेज नहीं और ना ही पहाड़ों पर भटकते उन घुमक्कड़ों से जिनके पास एक डिजिटल आई भी है। शुक्रिया...
- गौरव नौड़ियाल