(भाग - 4) मौसम को करवट बदलते देख हम सही वक्त पर नंदा देवी के मंदिर से अपने रात के ठिकाने पर वापस लौट आए थे। 'शाम के…
रुक-रुक कर मुनस्यारी में उस रोज देर रात तक बारिश होती रही। आंख खुली तो भुरभुरी ठंड महसूस होने लगी थी। पहाड़ नहाधोकर चमक…
(भाग-7) उस रात हमारा पड़ाव सीमा, असीम शांति से भरा हुआ था। सुपिन के किनारे इस छोटी सी बसावट में दो बड़े भवन सरकारी…
(भाग-3) अभी हमें लंबा रास्ता तय करना था। वीरान पहाड़ों पर कहीं दूर तक भी जिंदगी नजर नहीं आ रही थी। हम तीनों चुपचाप अपनी…
(भाग-5) मोरी घाटी से सांकरी की ओर बढ़ते हुये नदी अब काफी पीछे छूट चुकी थी और एक नई दुनिया का द्वार खुल रहा था। पहाड़ों का…
(भाग -1) जब सड़कें नहीं थी, विकास के नाम का ताना-बना नहीं बुना गया था... यात्राएं व दूरियां दोनों पैदल नापी जाती थी। इन यात्राओं…