ओमिक्रोन के 'महाविस्फोट' से बैक फुट पर फिल्म इंडस्ट्री, लटकने लगे प्रोजेक्ट्स!

ओमिक्रोन के 'महाविस्फोट' से बैक फुट पर फिल्म इंडस्ट्री, लटकने लगे प्रोजेक्ट्स!

NEWSMAN DESK

हाल ही में एक निजी लैब का शख्स मेरे दोस्त का सैंपल लेने आया। दोस्त ने उससे उत्सुकतावश पूछा कि तुम कितने सैंपल रोज ले रहो हो? उस शख्स का जवाब था- '24-25 सैंपल हम रोज ले रहे हैं, जिनमें 20 पॉजिटिव आ रहे हैं।' ये आज का सच है। कोरोना ने व्यापक तौर पर भारत में विभिन्न आर्थिक मोर्चों को तकरीबन तबाह कर दिया है।

रियल इस्टेट, पब्लिशिंग, सिनेमा उद्योग, टेक्सटाइल, ऑटोमोबाइल, हॉस्पिटैलिटी एंड टूरिज्म, परफॉर्मिंग आर्ट्स ऐसे कुछ सेक्टर रहे, जिनमें त्रासद स्तर की बर्बादी देखने को मिल रही है। हालांकि, कुछ सेक्टर इस दौरान दोगुनी रफ्तार से दौड़े भी हैं। मसलन फार्मा और आईटी सेक्टर ने बढ़िया चांदी काटी है। अब जबकि भारत एक बार फिर से ओमिक्रोन के महाविस्फोट की चपेट में फंस चुका है, तब इन उद्योगों पर संकट के बादल दोबारा मंडराने लगे हैं। खासकर सिनेमा उद्योग को ओमिक्रोन ने प्रत्यक्ष तौर पर बड़ा नुकसान पहुंचा दिया है, जिसकी भरपाई होने में वक्त लगने जा रहा है।

भारत की फिल्म, टेलीविजन और ऑनलाइन वीडियो सेवा तकरीबन 93 हजार करोड़ रुपये का राजस्व पैदा करती है। ये देश के मीडिया एंड एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के आधे से थोड़ा ज्यादा राजस्व है। फिल्म एवं टेलीविजन इंडस्ट्री भारत में 8.5 लाख रोजगार पैदा करती है, जिसमें केवल आपके चहेते स्टार्स ही नहीं बल्कि उनके आगे-पीछे दौड़कर सामान्य घरों से आकर उन्हें स्टार बनाने वाले हजारों तकनीशियन और क्रू मेंबर भी हैं। ये इंडस्ट्री पर पड़ने वाला केवल प्रत्यक्ष प्रभाव है। साल 2024 तक सिनेमा उद्योग से तकरीबन 11 लाख रोजगार सृजित होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन कोरोना की तीसरी लहर से शायद ये रोजगार अब उस रफ्तार से पैदा नहीं हो पाएंगे।

सिनेमा उद्योग टूरिज्म को भी ग्रोथ देता है। सिनेमा के कारोबार का असर देशभर में फैले डिस्टब्यूटर्स और लाइन प्रोडक्शन में लगे लोगों पर भी पड़ता है, तो स्थानीय स्तर पर अल्प समय के लिए पैदा होने वाला रोजगार भी प्रभावित हो रहा है। भारत के कई इलाके केवल शूटिंग के लिए ही मशहूर हैं और यहां शूटिंग नहीं होती, तब रोजगार का संकट सामने होता है। राजस्थान, महाराष्ट, गुजरात, एमपी, तेलंगाना ऐसी जगहें हैं, जहां बड़े पैमाने पर फिल्म शूट्स चलते रहते हैं।   

एक के बाद एक बड़ी फिल्मों की रिलीज टल गई है। प्रोड्यूसर्स ने अपनी फिल्मों पर दांव लगाने के बजाय, रिलीज डेट को ही आगे खिसका दिया है। ये असर पूरी भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पर देखने को मिल रहा है।  पैन इंडिया सक्सेस का स्वाद चख चुके 'बाहुबली' फेम एसएस राजामौली को अपनी बहुप्रतीक्षित फिल्म 'RRR' की रिलीज डेट को टालना पड़ा है। फिल्म इसी हफ्ते रिलीज होने जा रही थी। 'RRR' के जरिए तेलुगु सिनेमा के दो ताकतवर स्टार्स एक साथ पर्दे पर आ रहे हैं।

इससे पहले कोरोना के चलते कन्नड़ सिनेमा में अपनी अलग पहचान बना चुके अनूप भंड़ारी की पैन इंडिया फिल्म 'विक्रांत रोना' की रिलीज डेट भी बदलनी पड़ी थी। फिल्म अब 24 फरवरी को रिलीज हो रही है, लेकिन इसके पैन इंडिया रिलीज की तैयारी किए बैठे निर्माता अब स्थितियां देखकर ही शायद बाजार में उतरें। इस फिल्म के जरिए 'मक्खी' से हिंदी पट्टी में मशहूर हुए किच्छा सुदीप एक बार फिर से दर्शकों के बीच नए फ्लेवर के सिनेमा के साथ लौट रहे हैं। ये फिल्म साल 2019 के अंत में फ्लोर पर चली गई थी और मेकर्स इसकी ग्रैंड रिलीज की तैयारियों में हैं। किच्छा के फिल्म जगत में 25 साल पूरे होने पर फिल्म का टाइटल लोगो बुर्ज खलीफा पर लॉन्च किया गया था। इसी से इस फिल्म को लेकर मेकर्स की प्लानिंग का अंदाजा लगाया जा सकता है। बीते दिनों तेजी से प्रोजेक्ट्स पर काम शुरू हुआ था, लेकिन अब फिर से रफ्तार कुछ थमी है। मुंबई में ओमिक्रोन संक्रमितों में आए उछाल ने स्थितियों को पेचीदा बना दिया है।

ऐसे ही बॉलीवुड में भी शाहिद कपूर की 'जर्सी' और शाहरुख खान की बहुप्रतीक्षित फिल्म 'पठान' की रिलीज डेट आगे सरक गई है। आलिया भट्ट की ही 'गंगूबाई काठियाबाड़ी' भी बनकर तैयार है, लेकिन कोरोना हर दफा गेम बदल दे रहा है। कोरोना की चपेट में तकनीशियनों से लेकर एक्टर्स तक आ गए हैं, जिससे फ्लोर पर जाने वाले प्रोजेक्ट्स पर भी असर पड़ने लगा है।

लंबे समय से लोगों के हाथों में काम नहीं है और जब लगने लगा था कि अब इंडस्ट्री रफ्तार पकड़ेगी, ऐन तभी बड़े प्रोजेक्ट्स की रिलीज डेट सरकने लगी है। ओमिक्रोन और भारत सरकार की व्यवस्थाओं ने ऐसा माहौल बनाया है कि फिल्ममेकर्स बैकफुट पर जाने लगे हैं। फिल्म जगत को केवल कोरोना ही नहीं बर्बाद कर रहा है, बल्कि कई दफा तो सरकारों की ओर से इस तरह के काम दिखते हैं। फिल्म इंडस्ट्री के लिए भारत के सूचना एवं प्रसाारण मंत्रालय की ओर से जारी की गई नई गाइडलाइन इतनी खतरनाक हैं कि फिल्ममेकर्स या तो कहानी से समझौता कर रहे हैं, या फिर वो प्रोजेक्ट्स ही छोड़ दे रहे हैं।   

आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहे उद्योगों को ठीक से रेगुलेट करने के लिए सरकार पिछले दो सालों में भी कोई ठोस व्यवस्था नहीं बना सकी है और ना ही महामारी को लेकर कोई ''अर्ली वार्निंग सिस्टम'' ही डेवलप हो पाया है, जिससे चरमराते उद्योगों को संभाला जा सके। शूटिंग के लिहाज से एक बड़ी बाधा अलग-अलग शहरों में लगे नाइट कर्फ्यू की भी है, जिसे लेकर व्यावहारिक सवाल उठने लगे हैं। दिन में जब नेताओं की भारी भरकम रैलियों को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है, तब रात को किस लॉजिक से सरकार महामारी की रोकथाम के लिए सड़कों पर सन्नाटा बिछा दे रही है, इसे समझने में भारत के हजारों नागरिक अब तक असफल हैं।

ओमिक्रोन के महाविस्फोट को नजरअंदाज कर जिस अंदाज में खुद भारत के प्रधानमंत्री और उनके नेताओं की फौज बिना मास्क मंच पर नजर आ रहे हैं, तब सरकार इसे लेकर कितनी सतर्क है और कैसा संदेश दे रही है, यह पानी की तरह साफ है। दूसरी ओर कोरोना के चलते लगने वाली पाबंदियों ने फिल्ममेकर्स को उहापोह की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। ओमिक्रोन की दहशत फिल्म, टीवी और वेब शोज की शूटिंग पर भी दिख रही है। 'महारानी 2' की शूटिंग अभी चल रही है। मेकर्स इसे जल्दी शूट कर लेना चाहते हैं, लेकिन उन्हें भी नहीं पता ये तेजी कितने दिनों तक काम आ सकेगी। रमेश सिप्पी भी इस साल वेब की दुनिया में गोते लगाने के लिए लौट रहे हैं। वो तीन वेब सीरीज पर काम कर रहे हैं। साल 2022 में उनका शेड्यूल बेहद टाइट है, लेकिन साल की शुरुआत ही ओमिक्रोन से जिंदगियों पर ब्रेक लगने की खबरों से हुई है। 

मशहूर फिल्ममेकर्स और सिनेमा के ओल्ड गार्ड कहे जाने वाले तिग्मांशू धूलिया भी अपनी एक नई वेबसीरीज को लेकर जल्द फ्लोर पर जाने की तैयारी में हैं। साल 2022 में उनका लाइनअप काफी लंबा-चौड़ा है और ऐसे में कोरोना अगर एक-दो महीने भी चीजों को प्रभावित करता है, तब इसका असर उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट्स पर भी पड़ेगा। तिग्मांशू धूलिया अपनी नई वेब सीरीज के साथ जल्द फ्लोर पर जाने के लिए तैयार हैं, जबकि प्रतीक गांधी और पॉउली डैम अभिनीत 'सिक्स सस्पेक्ट' के पोस्ट प्रोडक्शन का काम इन दिनों तेजी से चल रहा है।

ये कोई पहला मौका नहीं है, जबकि ऐसा हुआ हो। पिछले तीन सालों में ऐसी कई फिल्मों की रिलीज डेट टलती रही है, जिसका खामियाजा मेकर्स को उठााना पड़ा है। हाल ही में '83' को लेकर भी बाजार स्तब्ध है। इस मल्टीस्टारर फिल्म ने टिकट खिड़की पर अपनी लागत भी नहीं वसूली है। बेहतरीन फिल्म और लंबी चौड़ी स्टारकास्ट के बावजूद भी फिल्म टिकटघर पर करिश्मा पैदा नहीं कर सकी, जबकि इसे लेकर बाजार में शानदार बज तैयार था।

एक्सपर्ट इसके पीछे सिनेमाघरों में '83' से पहले बैक टु बैक दो बड़ी रिलीज को नुकसान की वजह तो मान रहे हैं, लेकिन वो ओमिक्रोन के बढ़ते रिस्क की ओर भी इशारा कर रहे हैं। फिल्म जब तक सिनेमाघरों में पहुंची, मुंबई और दिल्ली के सर्किट से ओमिक्रोन के केसेज में बढ़ोतरी की खबरें आने लगी थी। बहरहाल, कोरोना सिनेमा जगत को गहरे आर्थिक घाव देने लगा है, जिससे उबरने में सरकार की ओर से फिलहाल तो कोई ठोस योजना दिख नहीं रही है। इसके उलट बॉयकॉट बॉलीवुड का शोर जरूर चुनाव नजदीक आते ही चारों ओर तेज होने लगा है... और इधर फिल्ममेकर्स की एक पूरी पीढ़ी इसी उम्मीद है कि कि वायरस अब इंडस्ट्री से ध्यान हटाए तो देश की इकोनॉमी में वो अपना योगदान दे सकें।   

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