फिल्मी पांडा कोई शख्स नहीं, बल्कि लेखक का किरदार भर है, जो अक्सर उम्दा सिनेमा को ग्रहण करने के बाद जिंदा हो उठता है। नतीजतन कुछ किस्से या समीक्षा की शक्ल में चीजें हासिल होती हैं।
वीरा देसााई रोड को छोड़ते हुए जब मैं लोटस ग्रैंड्यूर के आठवें माले की ओर बढ़ रहा था, तब तक मुझे अपनी पिछली यात्राओं के चलते सिनेमा की दीन-दुनिया की बहुत ज्यादा खबरें नहीं थी। यात्राओं के दौरान खबरों को पीछे छोड़ देने में ही भलाई है, हां मैं खबरों से पूरी तरह कटने की बात नहीं कर रहा हूं। इसी लोटस ग्रैंड्यूर के आठवें माले पर असल में रिलायंस एंटरटेनमेंट का दफ्तर है। मैं जब वहां दाखिल हुआ तो रिसेप्शन पर ही कबीर खान की आने वाली फिल्म 83 का कटआउट लगा हुआ था।
रिलायंस एंटरटेनमेंट ने 83 को प्रोड्यूस किया है। मैं भीतर दाखिल हुआ तो सबकुछ किसी कॉरपोरेट ऑफिस के जैसा ही था। काम में मशगूल टीम। उस रोज मैं कुछ ही घंटों में अपनी मीटिंग खत्म कर लौट आया। ये पहला मौका था जब मैं रिलायंस एंटरटेनमेंट के दफ्तर पहुंचा था। सब कुछ सामान्य था, लेकिन अगले ही दिन पूरी दुनिया पलटी हुई थी। उस दफ्तर का हर शख्स मुझे किसी बड़े इवेंट से पहले उपजने वाले तनाव को ओढ़े हुए महसूस हुआ।
मुझे जिस शख्स से मिलना था, उससे मैंने आखिरकार पूछ ही लिया कि ये माजरा क्या है। उस शख्स ने मुझसे कहा- 'कल 83 का प्रीमियर है। वो होता है न जब ऑफिस में सब तनाव में हों तो आपको भी टेंशन हो ही जाती है।' वो शख्स सीधे तौर पर इस प्रोजेक्ट से तो नहीं जुड़ा था, लेकिन उस छत के नीचे था, जहां पोस्ट कोविड हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े उत्सव के आयोजन की तैयारी जोरों-शोरों से चल रही थी। '83' का उत्सव, जो एक दफा फिर से हिन्दुस्तान को अपने आगोश में लेने जा रहा है।
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22 दिसंबर को मुंबई में फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी गई, जहां कुछ मुट्ठी भर महत्वपूर्ण लोग कबीर खान के जादू का गवाह बने। 83 सिर्फ एक फिल्मभर नहीं, भारत के गर्व की गाथा है। उन पलों की गाथा है, जिसके कुछ टूटे-फूटे हिस्से ही हमने सुने हैं। ड्रेसिंग रूम के किस्से, टीम इंडिया की तैयारी, उम्मीदें, खौफ और अंत में जीत से पहले वाली उस जीत की कहानी, जब सबने यह मान लिया था कि अब बोरिया-बिस्तर पैक कर निकलने का वक्त आ गया है। ठीक उसी क्षण एक जादुई कप्तान आगे आता है और सबकुछ बदलकर रख देता है। भारत वर्ल्ड कप के फाइनल में है। पूरी कहानी हिन्दुस्तान जानता है, लेकिन इस कहानी के बनने के क्षणों से गुजरना ही कबीर खान की फिल्म '83' है।
फिल्म कई जगह आपको भावुक कर जाती है। खासकर, जीत के पल। उन्हें असीम मिश्रा ने इतनी खूबसूरती से कैद किया है कि आपकी आंखें डबडबा जाती हैं। उनका कैमरा जब कप्तान के साथ चलता है, तो ऐसा लगता है जैसे आप स्टेडियम के अंदर दाखिल हो रहे हों। आप टीम के साथ हार रहे होते हैं और टीम के साथ ही जीतते हैं। पर्दे पर भले ही टीम इंडिया के किरदारों में रंगे हुए कलाकार वर्ल्ड कप उठा रहे होते हैं, लेकिन उसके वजन का अहसास आपको हो रहा होता है।
हिंदी सिनेमा के तीन दिग्गजों ने उन ऐतिहासिक पलों को फिल्म के स्क्रीनप्ले में ढाला है, जिनके जितना काम करने के सपने न्यूकमर देखते हैं। वसान बाला, कबीर खान और संजय पूरण सिंह चौहान ने इस फिल्म का स्क्रीनप्ले लिखा है।
पूरी फिल्म अपने सब्जेक्ट के इर्द-गिर्द बेहद कसावट से लिखी हुई स्क्रिप्ट की धुरी पर ही घूमती है और अंत तक आपको स्क्रीन पर नजरें टिकाए रखने को बाध्य करती है। नितिन बैद ने उतनी ही खूबसूरती से फिल्म की एडिटिंग का जिम्मा उठाया है। जूलियस पैकेम का स्कोर रोमांचित करता हुआ कथा को आगे ले जाता है।
अब सबसे महत्वपूर्ण उन किरदारों की बात, जिन्हें पर्दे पर एक्टर्स ने जिंदा कर दिया। रणवीर सिंह असली मायनों में इस सदी के सुपरस्टार हैं। उन्होंने जिस ढंग से कपिल देव के किरदार को अडॉप्ट किया है वो कमाल है। ये फिल्म रणवीर को शोहरत की नई बुलंदियों पर ले जाने वाली है। पूरी फिल्म में उनका अभिनय बांधता है और उनकी एक्टिंग के शेड्स नजर आते हैं। दीपिका पादुकोण की भूमिका छोटी सी है, लेकिन दिलचस्प है।
पंकज त्रिपाठी को देखकर आप असली पीआर मान सिंह को कुछ देर के लिए भूल जाते हैं। सुनील गावस्कर के किरदार में ताहिर भसीन, श्रीकांत की भूमिका में जीवा और यशपाल की भूमिका में जतिन शर्मा का काम दिलचस्प है। चिराग पाटिल, शाकिब सलीम, दिनकर शर्मा, निशांत दहिया, हार्डी संधू, शाहिल खट्टर, एमी वृक, आदिनाथ कोठारे, धैर्या करवा और आर बद्री अपने-अपने किरदार में जंचते हैं। एक्टर्स की मेहनत साफ तौर पर स्क्रीन पर नजर आती है। मैच के सीक्वेंस इतने शानदार हैं कि, यकीन करना मुश्किल होता है कि कोई प्रोफेशनल क्रिकेटर्स नहीं बल्कि एक्टर्स खेल रहे हैं।
भारत में फिल्म की ग्रैंड रिलीज की लगभग सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। फिल्म का प्रमोशन जोरों-शोरों से चल रहा है और खुद कपिल देव एक इंटरव्यू के दौरान भावुक हो जाते हैं। ऐसा दर्शकों के साथ भी होने जा रहा है। फिल्म को ओवरसीज में भी बड़ी रिलीज मिली है। 23 दिसंबर को फिल्म को दुनियाभर के 80 देशों में 1512 स्क्रींस पर पांच भाषाओं में रिलीज किया गया है। आईमैक के चेयरमैन शिबाशीश सरकार का कहना है कि इस फिल्म के कॉन्सेप्ट पर सबसे पहले 2013 में चचा हुई थी और फिर 2016 से इस फिल्म की मेंकिग पर काम शुरू हुआ। आखिरकार एक लंबे इंतजार के बाद अब '83' दर्शकों के लिए तैयार है।
83 न केवल बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड ध्वस्त करने जा रही है, बल्कि लंबे समय तक बॉलीवुड फिल्मों के दीवानों के लिए याद रहने वाली फिल्मों की सूची में भी शामिल होने जा रही है। 24 दिसंबर को भारत का हिंदी सिनेमा पोस्ट कोविड दौर की सबसे बड़ी रिलीज का गवाह बनने जा रहा है, जिसका खुमार अभी से पूरी इंडस्टी पर तारी है। फिल्म की चर्चाएं और रिस्पॉन्स शानदार आ रहा है, जिससे प्रोड्यूसर्स की बांछे जरूर खिल गई होंगी।
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