अशोक कुमार ने शर्ट के बटन लगाए और कहा- 'होमी जिसने आज तक चींटी भी नहीं मारी, तुम्हारा खून कर देगा!'

अशोक कुमार ने शर्ट के बटन लगाए और कहा- 'होमी जिसने आज तक चींटी भी नहीं मारी, तुम्हारा खून कर देगा!'

फिल्मी पांडा

फिल्मी पांडा कोई शख्स नहीं, बल्कि लेखक का किरदार भर है, जो अक्सर उम्दा सिनेमा को ग्रहण करने के बाद जिंदा हो उठता है। नतीजतन कुछ किस्से या समीक्षा की शक्ल में चीजें हासिल होती हैं।

70 एमएम में आज की कहानी है खट्टा-मीठा। अंग्रेजी में बोले तो 'स्वीट एंड सॉर'। फिल्म 1977 में आई थी, जिसे बासू चटर्जी ने निर्देशित किया था। कहने भर को फिल्म के हीरो ऋतिक के पप्पा राकेश रोशन थे और तब राकेश का गंजा चांद नहीं बल्कि लहराते घने बाल थे। वो हंसते थे तो आपको ऋतिक याद आएंगे। खैर, वो किरदार भर हैं जैसे बाकी किरदार। बस फ़िल्म में अपने बाकी भाई-बहनों से से जरा ज्यादा फुटेज रोशन के हिस्से आई हैं।

खट्टा-मीठा की असल कहानी होमी मिस्त्री (अशोक कुमार) और नर्गिस सेठना (पर्ल पदमसी) के इर्द गिर्द घूमती है। एक अधेड़ पारसी फोरमैन होमी (जो छवि आपको अशोक कुमार की याद है...बुड्ढे वाली) अकेले अपने चार बच्चों को पाल रहा है। होमी की पत्नी नहीं है और तीनों लड़के निकम्मे हैं। एक छोटा बेटा भी है टीलू (मास्टर राजू) जो स्कूल पढता है। होमी की ही तरह नर्गिस के भी तीन बच्चे हैं। एक मोटी बेटी फ्रेनी (प्रीती गांगुली) जिसकी शादी नहीं हो रही और दो बेटे।

इन्हीं में एक बेटा है फ़िरोज़ सेठना (राकेश रोशन) जो अमीर बाप की बेटी ज़रीन  (बिंदिया गोस्वामी)से इश्क करता है। ज़रीन भी बदले में फ़िरोज़ से प्यार करती है। इस कहानी को जोड़ने का काम करता है सोली (डेविड अब्राहम) भाई। सोली भी होमी की फैक्ट्री में काम करता है और पूरी फिल्म में रिश्ते जोड़ने या मैसेज पहुंचाते हुए ही नजर आता है। यूं समझ लीजिए कि एक सीन से फिल्म को दूसरे सीन तक ले जाने में जैसे किरदार जमीन तैयार करते हैं, वही रोल सोली भाई का भी है। सोली भाई की पत्नी भी है...जो गिने-चुने चार सीन में नजर आती है।

खैर, होमी एक दरियादिल बाप है और निहायत ही गऊ आदमी है, जो अपने बच्चों की जरूरतें पूरी करने के लिए उम्र के इस पड़ाव में भी खुशदिल से काम कर रहा है। इस बीच सोली, होमी के दिमाग में नर्गिस से शादी करने का ख्याल पलवाता है और उधर सोली की पत्नी नर्गिस के मन में। होमी कहता है- 'ये क्या हो रहा है सोली भाई...मेरी साठ साल उम्र है ..चार लड़के हैं ..मिसेज सेठना के तीन बच्चे हैं...दारा (देवन वर्मा) की शादी करवाओ न मेरे पीछे क्यों पड़े हो?' सोली कहता है- 'शादी आज थोड़े करनी है। न पसंद आए तो मत करना। देखो होमला तुम्हारी शादी से मेरा निजी फायदा नहीं, सेठना हमारा दोस्त था। तुम्हारे चार बच्चे हैं...उसके तीन। बेवा औरत है। बच्चों को बाप मिल जाएगा और तुम्हारे बच्चों को मां!'

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आधी से ज्यादा उम्र गुजार चुके होमी के लिए कठिन फैसला है, लेकिन सोली उसे नर्गिस से मिलने के लिए मना लेता है। नर्गिस भी होमी से मिलने के लिए ज़रा ना नुकुर के बाद मान जाती है। मिलने का दिन करीब आता है। दोनों घबराए हुए हैं। बच्चों को भनक न लगे लिहाज़ा मामला गुप्-चुप वाला है। होमी और नर्गिस की ये मुलाकात सोली के घर पर फिक्स होती है। नर्गिस और होमी दोनों घबराए हुए हैं। होमी अपने बेटे की टाई बांधे नर्गिस से मिलने सोली के घर पहुंचता है। वो इंतजार कर रहा है... इतने में नर्गिस भी अपने बच्चों को घर से बाहर भेजते हुए हांफते-दौड़ते अपने नये होने वाले पति से मिलने पहुंचती है। वो किसी जवान हो रही लड़की सरीखी कांपते हाथों से चाय का प्याला होमी की ओर सरका देती है। दोनों अपना-अपना कुनबा खोलकर एक-दूसरे के सामने रखते हैं और मुस्कुराते हैं। ये हामी भरने की मुस्कराहट है।

नर्गिस सोली की पड़ोसन है। रिश्ता पक्का हो जाता है और अब बच्चों को मनाने की बारी है। बच्चे भी ना नुकुर के बाद अपने नये मां-बाप का रिश्ता स्वीकार कर लेते हैं। शादी होती है और सब एक घर में आ पहुंचते हैं। दोनों के बच्चों को ये नहीं पता होता कि बाप या मां संग भाई-बहन भी मिलेंगे। दोनों के बच्चों में नोंक-झोंक चालू हो गई है...एडजस्टमेंट का लोचा शुरू हो चुका है और कहानी नए मोड़ पर आ गई है। ऐसे मोड़ पर जहां दर्शकों को गुदगुदाने के लिये एक के बाद एक सीन पर्दे पर गिरते चले जाते हैं। कोई किसी को भाव नहीं दे रहा। फिल्म गुदगुदाते हुए आगे सरक रही है और अब पलटी का वक़्त करीब आता है।

इधर 35 पार चल रहे दारा की मां उसे शादी के लायक नहीं मानती और लगातार रिश्ते ठुकरा रही है। दारा परेशान है। वो अपने दिल की बात सोली को बताता है। (ये सीन होमी की शादी से पहले हो चुका होता है...मैंने अपनी सहूलियत के लिए अब लिखा। लेखकीय तरंग का मसला है।) दारा सोली को कहता है- 'मेरी मम्मी मेरी बात मानती ही नहीं। सोली भाई मेरे लिए कोई भी लड़की ढूंढ दो...कैसी भी लड़की ढूंढ दो!' सोली भाई दारा से पूछता है 'कोई ऐब है...तू सिगरेट पीता है।' दारा जवाब देता है 'नहीं'...'हाँ लेकिन मैं झूठ बोलता हूँ!'

इधर होमी और नर्गिस के बच्चों में नोंक-झोंक चल रही है। मोटी बेटी के साथ ये ट्रेजडी यह है कि कोई लौंडा शादी के लिये हां ही न कहे! मोटी बेटी फ्रेनी का दिल बैठा जा रहा है। बेटी को दुखी देख होमी, दारा के सामने फ्रेनी से शादी का प्रस्ताव रखता है और इस दफा दारा अपनी मां को मना लेता है। इस बीच फ़िरोज़-ज़रीन की प्रेम कहानी भी चल रही है। मोटी फ्रेनी का ब्याह होता है और पूरा परिवार करीब आ जाता है। अब सब बिंदास चल ही रहा होता है कि तभी एक बार फिर फिल्म पलटी मारती है और ज़रीन का बाप फ़िरोज़ की गुंडों से धुलाई करवा देता है। दर्शक एक अजीब रोमांच से भर उठते हैं! यहां हीरो की ओर से बदले का रोमांच दर्शक पाल रहे होते हैं, लेकिन बासू चटर्जी की फिल्में अरनोल्ड वाली तो नहीं हो सकती ना!

लिहाजा अब होमी के छोटे से घर में ज़रीन भी अपने पैसे वाले बाप का घर छोड़ रहने के लिए पहुंच जाती है। ज़रीन का बाप अपने दोस्त से कहकर उसकी कम्पनी से फोरमैन होमी, जिसे वो जानता तक नहीं को निकलवा देता है। घर भी किराया न देने के चलते खाली करवाया जाता है। घर छूटता है तो सारे निकम्मे बेटे काम-धंधे पर लग जाते हैं। एंडिंग के लिए बहुत कुछ है, मोटा माटी यहां बता ही दिया है। कुल मिलाकर मजेदार फिल्म है। राजेश रोशन का संगीत है। 'तन्हाई-तन्हाई-तन्हाई' सीन के मूड के हिसाब से अलग-अलग इंस्ट्रूमेंट पर कई जगह बैकग्राउंड स्कोर में सुनाई देता है। बाद में इसी धुन को 'कोयला' में भी इस्तेमाल किया गया। अशोक कुमार 'रेलगाड़ी-रेलगाड़ी' टाइप ही बूढ़े हैं।

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कई सीन ऐसे हैं जिन्हें देखकर आपको फिल्म से प्यार हो जाएगा। मसलन अशोक कुमार का ज़रीन के बाप को धमकाने का सीन! हैं, अशोक कुमार के पास शक्तिमान की आत्मा कहां से आ गई! लेखक ने डाली भाई, लेखक ने... फोरमैन होमी कंपनी के सेठ जो कि जरीन का बाप है के दफ्तर में डरते-डरते घुसता है... शर्ट का बटन लगाता है। सामने से सेठ कहता है- 'तुम्हारे पास दो मिनट हैं।' होमी घबराते हुए कहता है- 'मुझे भी आपसे सिर्फ दो ही मिनट चाहिए' ..और फिर होमी बरस पड़ता है- 'आपने मेरे बच्चों (फ़िरोज़-ज़रीन) को परेशान करने की कोशिश की तो होमी मिस्त्री जिसने आज तक चींटी भी नहीं मारी आपका खून कर देगा और आपकी लाश की तरफ मुड़कर भी नहीं देखेगा!'  ये सीन गजब का बन पड़ा है। ऐसे और भी सीन हैं...जैसे शादी के बाद होमी का नर्गिस के घर शिफ्ट होने का पूरा सीन। दारा के कई सीन। मोटी फ्रेनी के सीन और भी बहुत से सीन। फिल्म दर्शक को खुशनुमा तरंग में लाकर छोड़ देती है।

'खट्टा-मीठा' के गाने गुलजार ने लिखे हैं। रेडियो पर आपने कई दफा सुना होगा 'थोडा है थोड़े की जरुरत है' वो इसी फिल्म का गाना है। इसके अलावा देवन वर्मा के हिस्से भी गाना आया है-'मम्मी तू कब सास बनेगी।' काम कैसा था? सब फिट थे...अपने-अपने किरदार में...यहां तक कि 15 सेकेंड के रोल में नजर आनेवाला पुलिस इन्स्पेक्टर और बिना संवाद पीछे चल रहे हवलदार भी। तो मेरी राय यह है इस अवसाद भरे दौर में इस फिल्म को पहली फुर्सत में देखिए। अवसाद थोड़ा कम होगा और परिवार के साथ आप कुछ वक्त गुजार सकेंगे, जहां होमी और नर्गिस का परिवार आपको जॉय राइड पर ले चलेगा। हां, एक बात और फिल्म निर्माण में तब टाटा और गोदरेज परिवार ने भी मदद की थी, ये मुझे स्पेशल थैंक्स वाली पट्टी में दिखा। फिल्म यूट्यूब पर मौजूद है।

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