रिज़वान रहमान दिल्ली बेस्ड रिसर्चर और जर्नलिस्ट हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया से समाजशास्त्र में एमए किया है. वह मूलत: राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर लिखते हैं. फिलहाल स्वतंत्र रूप से लेखन में लगे हैं.
दुबले-पतले कद काठी का वह लड़का खोया-खोया सा रहता था, कुछ-कुछ अनअप्रोचेबल जैसा. लेकिन दरअसल वह खुद झुकी-झुकी नज़रें लिए किनारा काट कर चलता। शहर के बड़े-बड़े मोटरकार और कंक्रीट की इमारतों के बीच एक कस्बाई नौजवान की हालत 'पानी बीच मीन प्यासी' से अलग नहीं होती. वह घुलता है, घुलते-घुलते।
इरफान ने जब दिल्ली आकर एनएसडी में दाखिला लिया तो उसे मेन्स हॉस्टल के सबसे आखिर वाला कमरा दिया गया जहां तक पहुंचने के लिए एक बाथरुम को पार कर जाना होता. बिल्कुल कोने में एक छोटा सा कमरा। हालांकि यह इरफान की खुद की पसंद थी। एक्टर विपिन शर्मा बताते हैं, "मैं अब भी इरफान को उस कमरे में विजुअलाइज करता हूं जहां वह बीड़ी पीता रहता था। उस कमरे को पसंद करने की वजह यह भी रही हो कि शायद उसे अपनी एक दुनिया चाहिए थी, जिसके साथ वह खुद को जान सके।"
इरफान के क्लास में देश के अलग-अलग हिस्से से आए अपने तरीके के कुल 18 प्रतिभावान स्टूडेंट्स थे। ये सभी एक दूसरे के साथ घंटों-घंटा गुजारा करते. मंडी हाउस में चाय की टपरी पर अड्डेबाजी होती। वे रात के 2 बजे पराठा खाने निकल पड़ते। बहसबाजी, किसी नाटक का रिहर्सल, एक दूसरे को टोकना-बताना, इनके रात-दिन में घुला होता था। उनमें से दो जिससे उसकी करीबी दोस्ती हुई, बड़े शहरों से थी. मिता वशिष्ठ चंडीगढ़ से और सुतपा सिकदर दिल्ली से थीं।
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इरफान के बारे में बताते हुए मीता कहती हैं, "हमने शुरुआत में उसे नोटिस नहीं किया था। वह घुंघराले बालों वाला एक दुबला-पतला सा लड़का था। उसकी आँखों के नीचे गड्ढे थे, लेकिन उसके पास एक अविश्वसनीय मुस्कराहट थी। शर्मीली लेकिन शैतानी से भरी हुई। और उसकी आवाज! मुझे टेक्सचर वाली आवाज़ पसंद है। वह गहरी नहीं थी, लेकिन बैंजो की तरह टंकार वाली आवाज थी।"
मीता उस वक़्त का एक किस्सा याद करती हैं जब वे पहले साल में थे, "एक दिन हम सुबह-सुबह क्लास में झगड़ने आ गए। और झगड़ क्यों हो रहे थे, दोनों में से किसी को पता नहीं था। हां, इतना याद है, शायद उसने कुछ कहा था या मैंने कुछ कहा था। पर हम एक-दूसरे से मार-पिटाई कर रहे थे और पूरी क्लास हमें छुड़ाने में लगी थी।"
एनएसडी में इरफान के टीचर रहे राम गोपाल बजाज जिन्हें सब प्यार से बज्जो भाई कहते हैं, बताते हैं, "इरफान सब से सहमा हुआ था। मुझे उसके दुबला होने, उसकी उभरी हुई आँखों और गुस्से में एक संबंध दिखता था। फिर भी सहमा हुआ रहता कि कुछ नहीं कह सकता. शायद क्लास में सुतपा को छोड़कर इरफान की कोई दोस्त नहीं था। दरअसल वह अकेला-अकेला रहता था, इसीलिए मैंने उस पर ध्यान दिया, लेकिन उसके अंदर एक जेंटलनेस था जिसे वह अपने साथ लेकर चलता।"
हालांकि इरफान की एक पहचान बनी, वह सब में अलग दिखाई पड़ा। उसकी अपनी नज़र में बाहर घूमना, टपरी में चाय पीना, देर रात तक बातचीत और बहस में उलझने को वक़्त की बर्बादी समझता था। उसमें सीखने की ललक और भूख थी। वह मुमकिन हद तक इस बेताबी में रहता कि सबकुछ जितना जल्दी हो सके सोख ले ताकि साथियों से बराबरी कर सके।
तिग्मांशू धूलिया और इरफान पहली बार फिल्मों में अपनी-अपनी दिलचस्पी की वजह से करीब आए थे। तिग्मांशू को फिल्म डायरेक्शन में जाना था, जिसके लिए वह एनएसडी ट्रेनिंग को इंडस्ट्री में कदम रखने के तौर पर ले रहे थे और इरफान फिल्मों में एक्टिंग करना चाहते थे। इस क्रम में वे रॉबर्ट डी नीरो और अल पचिनो जैसे एक्टर्स और मार्टिन स्कॉर्सेस जैसे डायरेक्टर्स के कामों को देखने और उस पर बातचीत करने में बहुत समय बिताने लगे। तब दुनिया भर की बेहतरीन फिल्म और उनके मेकर्स पर भी बातें होतीं, जैसे रेनर वर्नर फासबिंदर।
तिग्मांशू बताते हैं, "मैंने समय के साथ इरफान में ग्रोथ देखा है। जयपुर जैसे छोटे शहर से आने की वजह से उसके पास फिलोसोफी और आईडियाज को लेकर बहुत एक्सपोजर नहीं था, लेकिन वह वर्ल्ड सिनेमा को देखने, पढ़ने और उस पर सोचने में इतना डूब गया कि बहुत तेजी से उभरा। मेरे कई दोस्त हैं, लेकिन इरफान में हुआ ग्रोथ उल्लेखनीय है।"
इस पर सुतापा कहती हैं, "वह किताबों में खोया रहता। उसके हाथ में हमेशा एक नाटक की स्क्रिप्ट होती थी। मुझे कोई और क्लासमेट याद नहीं जिसने इतनी सारी स्क्रिप्ट और किताबें पढ़ी हो।"
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इरफान के क्लासमेट्स में नसीरुद्दीन शाह को लेकर उसका जुनून, अच्छी-खासी चर्चा का मौजूं हुआ करता था। 1980-90 के दशक में, एनएसडी में उन यंग स्टूडेंट्स के कुछ रोल मॉडल हुआ करते थे। खासकर वे जो स्वतंत्र रूप से काम करते हुए पैरलेल सिनेमा मूवमेंट को आगे लेकर जा रहे थे। नसीर निश्चित रूप से शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल और ओम पुरी के साथ उन्हीं रोल मॉडल में से एक थे।
मीता वशिष्ठ कहती हैं, 'हम सभी उसे इसके बारे में चिढ़ाते. हम उसे कहते, "अरे यार इरफान, नसीर को छोड दो। प्लीज, इरफान, नसीर को भूल जाओ. लेकिन वह था कि किसी भी तरह से एक्ट निभाना चाहता था, जिस तरह से नसीर चाहते थे। हम अक्सर नसीर को उसके परफॉर्मेंस में देखते।
सालों बाद इरफान ने ईमानदार से नसीरुद्दीन शाह के सामने कबूल कर लिया कि वह किस इंतिहा तक अपने सीनियर यानी नसीर की एक्टिंग से प्रेरित था। इस पर नसीर कहते हैं, "लेकिन कभी उसने नसीरुद्दीन शाह बनने की कोशिश नहीं की, और अपनी खुद की पहचान की खोज की।" नसीर आगे बताते चलते हैं, "उसने मुझसे कहा, मेरी माँ आपको भला-बुरा कहती थी। तो मैंने पूछा, क्यों यार? तो उसने कहा, मेरी मां कहती थी, "तुम उस नसीरुद्दीन शाह की नकल कर रहे हो, वह तो पहुंच गया, और तुम कहां हो?”
नसीर फिर कहते हैं, "और जब आखिरकार उसने वह पा लिया जो वह चाहता था, तो मैंने कहा, यार, आपनी अम्मी को मेरा सलाम कहना और उन्हें बताना कि मैं इतना बुरा एग्जामपल भी नहीं था !"
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