फिल्मी पांडा कोई शख्स नहीं, बल्कि लेखक का किरदार भर है, जो अक्सर उम्दा सिनेमा को ग्रहण करने के बाद जिंदा हो उठता है। नतीजतन कुछ किस्से या समीक्षा की शक्ल में चीजें हासिल होती हैं।
बासू चटर्जी की ‘चितचोर’ देखकर फारिग हुआ हूं। ये आठवीं दफा था, जब मैंने घूम फिरकर ‘चितचोर’ प्ले की और सोफे पर पसर कर लेट गया। ज़रीना वहाब, अमोल पालेकर, एके हंगल, दीना पाठक और तब का बेहद पॉपुलर बाल कलाकार राजू श्रेष्ठ इस फिल्म में ‘दीपू’ के किरदार में है। महफिल सज चुकी है.. लिहाजा आगे बढ़ा जाए।
फ़िल्म बैकड्रॉप पर एक प्यारी सी धुन से शुरू होकर पोस्ट ऑफिस के सीन से ओपनिंग लेती है। यहां गीता ज़रीना ‘वहाब’ के लिए रिश्ता आया है, वाया चिट्ठी। गीता मैट्रिक पास है। संतूर बज रहा है। एक गीली सुबह खुशदिल हवाओं संग ट्रेन हॉर्न बजाते हुए हांफकर थम रही है। रेलवे स्टेशन सुनसान ज्यादा है। फिल्म के नायक विनोद ‘अमोल पालेकर’ की एंट्री होती है। पीताम्बर चौधरी ‘एके हंगल’ के इशारों पर तांगा उस ओर चल दिया जहां विनोद के ठहरने की व्यवस्था हुई है। चौधरी की एक ही बेटी है गीता। चौधरी हेडमास्टर है और विनोद एक इंजीनियर। मेल मुलाकात और कांटा डालने का खेल शुरू। दर्शक अब विनोद और गीता की सादगी के बीच हेडमास्टर की शिकन दूर होने की उम्मीद में कहानी से बंधने लगता है। ये वही फ़िल्म है जिसका गाना ‘गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा’ बेहद पॉपुलर हुआ और आज भी खूब सुना जाता है।
फ़िल्म में इस गाने से पहले कई मज़ेदार सीक्वेंस हैं। मसलन हेडमास्टर के घर पर आए इंजीनियर को हेडमास्टर की पत्नी ‘दीना पाठक’ अपनी बेटी गीता से शादी के लिए पटाने की जुगत में है। वो अपने संभावित दामाद को चारा डालने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उसके सामने एक से बढ़कर एक कई डिशेज परोसी जाती हैं, वो घर में लगी हर पेंटिंग को विनोद को दिखाकर झूठ बोलती है कि सब गीता ने बनाई हैं। सब समझ रहे हैं कि झूठ पकड़ा जा रहा है, लेकिन हेडमास्टर की बीवी की सादगी भरे झूठ को कोई उजागर नहीं करना चाहता। हेडमास्टर झेंप में मुस्कुरा रहे हैं, बीवी आँखें तरेर रही है। अब तो ऐसी फिल्में ही नहीं लिखी जा रही... एकदम तबियत हरी हो जाती है चितचोर को देखकर। मूल कहानी ‘चित्ताचकोर’ को सुबोध घोष ने बांग्ला में लिखा था।
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खैर, इंजीनियर गाने का शौकीन है। वो गीता के इश्क़ में पड़ गया। ‘राम के चीले’ पर दोनों की तकदीर लिखी जा रही है। तब भारत की आबादी 55 करोड़ थी, जिसका फ़िल्म में जिक्र भी है। ‘चितचोर’ तब के भारत की फ़िल्म है, जहां हीरोइन शादी से पहले आत्मनिर्भरता का डग भरती नजर आती है। वो पहले मैट्रिक पास कर लेना चाहती है। लड़कियों के आत्मविश्वास का सामाजिक पैमाना, तब शायद मैट्रिक पास करना रहा हो। ये उस दौर का भारत है, जब रेलवे स्टेशन पर ट्रेन आने पर अनाउंसमेंट के बजाय घंटा बजता था।
हेडमास्टर और उसकी बीवी खुश हैं। मन ही मन दामाद स्वीकार कर लिया गया है। इंजीनियर गा रहा है, गीता सीख रही हैं। ‘जब दीप जले...आना, जब साँझ ढले...आना’। होंठों के ऊपर मुंडेर सरीखी मूंछों को लेकर इंजिनियर विनोद प्यार की कथा बांच रहा है। सितार, संतूर, तबला बज रहा है। जब दीप जले... आना के साथ ही विनोद और गीता की प्रेम कहानी आगे बढ़ रही है।
बेहद खूबसूरत दिख रही नायिका यौवन के इस पल को यूं ही नहीं गंवाना चाहती। नायिका अपने दिल की बात दीपू को बता रही है। शादी के सपने बुन रही है। यहीं फिल्म में ट्विस्ट आता है। आगे दो गाने और हैं। एक गाना पिकनिक के दौरान का जहां विनोद का मेकअप लेंस से छुप नहीं पाता। उनके चेहरे पर कई जगह मेकअप की एक मोटी परत नजर आती है। इसके लिए मेकअप दादा के नंबर काट लीजिए। फिल्म में ट्विस्ट आने का वक्त करीब आ चुका है। दर्शक नहीं चाहता कि ये ट्विस्ट गीता और विनोद को जुदा करे, लेकिन ट्विस्ट को आना है, सो वो आता है।
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एक और चिट्ठी आई है, जिसमें गीता की बहन ने इंजीनियर के आने का ज़िक्र किया है! वही इंजीनियर जिसका रिश्ता गीता से करवाना है, जिसके लिए पकवान बनते रहे और ग़लतफ़हमी में वो विनोद को परोस दिए गए। विनोद बोले तो ओवरसियर, जिसका बॉस असल में इंजीनियर है। हेडमास्टर ख़त पढ़ कर अवाक् है और चाची सच सुनकर। एक झटके में चाची का मूड पलट गया। इधर विनोद के बॉस को भी गीता पसंद है, लेकिन चूँकि हीरो विनोद है तो हीरोइन गीता को तो अंत में उसी के पास जाना होगा! हां ऐसा ही होता है, लेकिन कहानी के अंत तक पहुंचने से पहले भी बहुत कुछ मज़ेदार है। मसलन दीना की अदाकारी, गीता का प्रेम और विनोद की सादगी संग चैधरी की शिकन। विरह के कुछेक सीन। बॉस की झिझक और चाची की उम्मीद।
दीना की अदाकारी का ही कमाल है कि उनके चेहरे पर चट से गुस्से के भाव और चट से प्यार के भाव सहजता से आ जाते हैं। वो ‘गोलमाल’ वाली मां की तरह ही मज़ेदार है, लेकिन ज़रा अलग। एके हंगल ‘नरम गरम’ वाले चाचा जी ही हैं...सहज और सरल। जरीना खूबसूरत दिख रही हैं और अमोल ट्रेज़री के भोले बाबू। होंठों के ऊपर पतली मुंडेर सी मूंछे लिए हुए बह रहे हैं, किरदार के साथ। दीप जला रहे हैं। साल 2020 के जून महीने में इस प्यार फिल्म का निर्देशन करने वाले बासू चटर्जी का निधन हो गया था। फिल्म के गाने भी कमाल हैं। अमोल और जरीना को देखना सुखद है। तो ऐसा है कि देख डालिए फिर चितचोर’! डीडी नेशनल की यादें ही ताजा हो जाएंगी और कुछ नहीं तो...? और जब आप इस फिल्म को देख लेंगे तो जरूर गुनगुनाएंगे ‘इसी खुशी को ढूंढ रहे थे, यही आज तक नहीं मिली’।
हरी ओम ओवर एंड आउट!
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