दीप भट्ट सिनेमा को जीते हैं! जवानी के दिनों में मायानगरी मुंबई की गलियों में भटकते हुए दीप ने सिनेमा की कई शख्सियत का सानिध्य हासिल किया। फिर पहाड़ों पर चले आए और हिन्दुस्तान अखबार का दामन पकड़ा और फिर वो भी इस मस्तमौला आदमी ने छोड़ दिया। अब हिलांश पर सिनेमा के किस्से बिखेर रहे हैं।
राजेश खन्ना को याद करता हूं तो उनके साथ मुंबई के खार में उनसे हुई वह मुलाकात याद हो आती है, जहां नैनीताल के एक मित्र की अधकचरी हरकत से माहौल बेहद तल्ख हो उठा था। दरअसल उस मित्र के आग्रह पर ही मैं राजेश खन्ना से मिलने उनके ऑफिस में गया था। मैं अमर उजाला में उप संपादक हुआ करता था और मेरे लिये वो दिन बेहद फकीरी के थे। पर मन की उमंग के क्या कहने। मन हमेशा सातवें आसमान में उड़ा करता था। लगता था मुंबई का कोई भी अभिनेता हो, उससे हम टक्कर ले सकते हैं।
उन दिनों में एमआईडीसी ईस्ट में भारतीय पैकेजिंग संस्थान के एक हॉस्टल में मैं डेरा डाले रहता था। उस रोज मित्र के आग्रह पर मैंने राजेश खन्ना के दफ्तर में फोन किया तो दूसरी तरफ से किसी पूरन नाम के लड़के की आवाज सुनाई दी। आवाज से लगा यह बंदा तो पहाड़ का होना चाहिए। मैंने उससे पूछा तो उसने बताया कि वह नेपाल का रहने वाला है।
बहरहाल उसने यह कहते हुए मशविरा दिया कि आप लोग पत्रकार हैं, तो साहब के सेक्रेटरी ज्ञान सिंह से दफ्तर में आकर अपाॅइंटमेंट ले लें। साहब तो दो बजे दफ्तर में आते हैं। मेरी आदत है कि मुझे जहां भी पहुंचना होता है, वहां समय से कम से कम आधा एक घंटा पहले पहुंचता हूं। हमने लाल बत्ती पर एक व्यक्ति से काका के दफ्तर का पता लिया और पहुंच गए उस ठिकाने पर जहां एक दौर का सुपरस्टार का ठिकाना था। जब हमने वहां पहुंचकर दफ्तर के बाहर बैठे हुये दरबान से पूछा, तो उसने बड़ी बेबाकी से उत्तर में कहा यहां किसी राजेश खन्ना-वन्ना का ऑफिस नहीं है। हमारे आगे कोई दूसरा चारा भी नहीं था। हम दोबारा लालबत्ती पर पहुंचे और जिस व्यक्ति से पता पूछा था, उसे घटनाक्रम बताया तो उसने कहा दरअसल ऑफिस वही है, आप अंदर वाले वॉचमैन से बात करेंगे तो आपको पता चल जाएगा।
हम पसीने से लथपथ दोबारा उसी जगह पहुंचे और सीधे अंदर का रुख किया और वॉचमैन से पूछा तो उसने कहा कि आप लिफ्ट से चौथे माले पर जाईए। साहब का ऑफिस वही है। खैर हम लिफ्ट से चौथे माले पर पहुंचे तो देहरी पर ठिठक कर खड़े हो गए। सामने सफेद पाजामे और कुर्ते में एक पठाननुमा शख्सियत नजर आई। चेहरे पर झूलती हुई दाढ़ी, जो सीने को छू रही थी। ठुड्डी पर हाथ लगाए वह व्यक्ति एकटक हमारी ओर देखता रहा। लगा वो सोच रहा हो कि ये बगैर बुलाए अयाचित से मेहमान कहां से उसके ऑफिस में आ टपके! मुझे कहीं से भी यह आकृति राजेश खन्ना की नहीं लगी। मुझे लगा कोई पंजाबी बंदा है। हो सकता है यही राजेश खन्ना का मैनेजर हो।
मैंने साथी से कहा चलो अंदर चलें। ज्यों-ज्यों आकृति के नजदीक पहुंचा और आंखों में झांका तो मैं पहचान गया कि यह तो राजेश खन्ना ही हैं। मैंने तपाक से कहा राजेश जी नमस्कार। उन्होंने अपने टेढ़े से अंदाज में नमस्कार का जवाब दिया और टेबल पर टेक लगाकर खड़े रहे। मैं भी टेबल के दूसरे सिरे पर टेक लगाकर खड़ा हो गया। उमस भरी दुुपहरी ने हम दोनों को कुछ निढाल सा कर दिया था।
सो मैंने राजेश से कहा कि अगर कहीं बैठ जाएं तो अच्छे से बातचीत हो सकती है। राजेश ने अपने टेढ़े से पंजाबी अंदाज में कहा कि नहीं जी बातें तो खड़े-खड़े ही होंगी जी। खैर मैंने अपने कंधे में टंगे बैग से टेप रिकार्डर निकालने के लिए हाथ डाला ही था कि मेरे साथी ने तपाक से प्रतिक्रिया दी- 'छोड़ ना चौकीदारों से क्या मिलना, हमें तो राजेश खन्ना ने बुलाया है।' जाहिर है उसके भावलोक में जो राजेश खन्ना बैठा था उस राजेश खन्ना से तो इस शख्स का कोई मेल नहीं था, पर दोस्त इतनी तल्ख टिप्पणी करेगा इसका मुझे भी अहसास नहीं था। इतना सुनना था कि राजेश का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया, लेकिन उन्होंने तुरंत अपने आप को संयत करते हुए कहा- 'मैंने आपको नहीं बुलाया। मेरे यहां स्टाफ रजिस्टर में अपॉइंटमेंट और उसका समय दर्ज करता है। मैंने आपको नहीं बुलाया।'
जाहिर है उनका कहना ठीक था। मैंने मित्र को रोकते हुए कहा कि राजेश जी आपने हमको नहीं बुलाया यह बात सच है पर हम आपके कर्मचारी के कहने पर आपके दफ्तर में अपॉइंटमेंट लेने आए थे, आपसे मिलने नहीं। आपके कर्मचारी ने हमें बताया था कि साहब ऑफिस में दो बजे आते हैं। इतना सुनना था कि राजेश फिर आपे से बाहर हो गए और बोले- 'मेरा दफ्तर है मैं जब आऊं।' इस दफा मैंने भी तपाक से कहा- 'आपका दफ्तर है आप मुंह अंधेरे चले आइए।' उनकी इस गर्वोक्ति भरी टिप्पणी से मैं भी आवेश में आ गया था। मैंने उनसे कहा कि मैं सुपर स्टार राजेश खन्ना से नहीं बल्कि 'अमर प्रेम' के आनंद से मिलने आया था।
मुझे मालूम था कि एक्टर अपने किरदार से छोटा होता है, पर इतना छोटा होता है, यह मैंने अपने जीवन में पहली बार देखा। मैंने उन्हें उनके 'अमर प्रेम' के एक डायलॉग- 'जिन्दगी का शेयर घाटे में खरीदने का क्या मजा है, डॅाक्टर इसे तुम नहीं समझोगे' की याद दिलाई और बताया कि मैं उनके दोनों पसंदीदा डायरेक्टर शक्ति सामंत और हृषिकेश मुखर्जी का अच्छा मित्र हूं। इतना सुनना था कि राजेश एकदम सामान्य हो गए और उन्होंने विनम्रता से कहा कि अब उनकी मुझसे मिलने में दिलचस्पी है।
मेरी ट्रिक असर दिखा चुकी थी। राजेश खन्ना ने कहा कि जब हम दोनों उनके ऑफिस की देहरी पर खड़े थे, तो हमने देखा होगा कि वह ठुड्डी पर हाथ लगाए किसी उधेड़बुन में खड़े हैं। राजेश ने बताया कि वह 15 दिन के लिए कहीं बाहर जाने की उधेड़बुन में थे कि इतने में हम दोनों अचानक उनकी देहरी पर प्रकट से हुए।
उन्होंने कहा दीप आप मुझे शाम चार बजे फोन करिए, मैं अगर बाहर नहीं गया तो मैं आपको बातचीत के लिए बुला लूंगा। वह शाम चार बजे फोन करने की बात बार-बार कहते रहे और ऑफिस के बाहर तक छोड़ने आए। मैंने उनसे कहा कि इस बार तो उनसे मिलना नहीं हो पाएगा। फिर कभी मुलाकात करेंगे। साथ ही कहा कि यह 'आपकी कसम' वाला गेट-अप क्यों बना रखा है! अपने आपको दुरुस्त करें। इतना कहकर हम बाहर चले आए। बाहर आकर मैंने अपने मित्र को खासी डांट लगाई और कहा कि एक इतने बड़े अभिनेता के साथ क्या इस तरह का व्यवहार किया जाता है। उसका वही चिर-परिचित जवाब था कि उसने राजेश को पहचाना ही नहीं।
राजेश के साथ इस घटना के दो साल बाद यानी वर्ष 2005 में भवाली में 'जाना' फिल्म की शूटिंग के पैकअप के बाद मुलाकात हुई और बेहद मुहब्बत भरे अंदाज में जिस ढंग से उन्होंने मेरे सवालों के जवाब दिए और मुझे प्यार से बांहों में भींचा उन क्षणों को मैं आज तक नहीं भूला। आज काका संसार में नहीं हैं पर बाद में मुंबई यात्रा के दौरान मैंने जाने-माने संगीतकार खय्याम और नामचीन अभिनेत्री नंदा के भाई जयप्रकाश कर्नाटकी से उनकी दरियादिली के किस्से भी सुने। ये किस्से ऐसे थे जो राजेश खन्ना के व्यक्तित्व के गहरे मानवीय पहलुओं को खोलते थे। काका के ऐसे-ऐसे किस्से हैं, जिन्हें शुरू कर दिया जाए तो खत्म होते-होते ही कई दिन गुजर जाएं।
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