महेंद्र जंतु विज्ञान से परास्नातक हैं और विज्ञान पत्रकारिता में डिप्लोमा ले चुके हैं। महेन्द्र विज्ञान की जादुई दुनिया के किस्से, कथा, रिपोर्ट नेचर बाॅक्स सीरीज के जरिए हिलांश के पाठकों के लिए लेकर हाजिर होते रहेंगे। वर्तमान में पिथौरागढ में ‘आरंभ’ की विभिन्न गतिविधियों में भी वो सक्रिय हैं।
बीमारियों से भरी हुई हमारी ये दुनिया 2019 से अब तक कोरोना के कहर से जूझ रही है। कुछ देशों में हालात सुधरें हैं, तो एक बड़ी संख्या ऐसे देशों की भी है जो अब भी पूरी तरह से महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई में जुटे हुए हैं। खासकर तीसरी दुनिया के गरीब देश, जहां की सरकारों की कमजोर नीतियां और कोविड के खिलाफ अपनी आबादी को बचाने की प्रतिबद्धता कम ही नजर आती है, उन जगहों पर हालात बेकाबू हैं। इससे न केवल कई मुल्कों की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है, बल्कि दुनिया की एक बड़ी आबादी भयानक आर्थिक संकटों से गुजर रही है। कोविड-19 का कहर अपनी शुरुआत से ही मौतों व रहस्यों का कारण बनता आया है। इस बीच एक बहस इस बात पर भी छिड़ी हुई है कि कोरोना महामारी चीन के भीतर एक लैब की लापरवाह हरकत के चलते दुनियाभर में फैली है! ऐसा है तब सोचिये कि ये कितनी गंभीर चूक है। अनायस ही लाखों लोगों की जिंदगी खत्म हो गई, कई लोग तबाह हो गये। कई सवाल भी उठ रहे हैं.. मसलन, इतने खतरनाक वायरस को लेकर लैब लापरवाह कैसे हो गई? क्या ऐसी और भी खतरनाक लैब्स मौजूद हैं? इस रिपोर्ट में आज इसी पर चर्चा कर रहे है...
चीन के वुहान प्रांत में जब सबसे पहले कोविड की मौजूदगी पाई गई, तब इसे लेकर दुनिया बेखबर थी। बहुत बाद में जब दुनियाभर में फैलकर कोविड-19 ने अपना कहर बरपाना शुरू किया, तब पश्चिमी मुल्कों की सरकारों ने काम करना शुरू किया। भारत जैसे पिछड़े हुए देश जहां अस्पतालों की बुरी स्थिति है, बहुत देर बाद खतरे की गंभीरता को जान सके। कोरोना महामारी के दौरान जितनी बुरी अव्यवस्थाएं भारत में देखने को मिली, उतनी ही बुरी व्यवस्थाएं पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और अफ्रीकी देशों में भी देखने को मिली।
इन मुल्कों की हालत पस्त है और कायदे से यदि न्यायालयों में मामले पहुंचने लगे तो, महामारी के अपराधी भाग खड़ें हों। भारत मुल्क जहां की सरकार सिवाय ताकतवर होने का दंभ भरने के अपने नागरिकों की बेहत्तरी के लिये कोरोना महामारी के दौरान कुछ नहीं कर सकी, न्यूजीलैंड, मॉरीशस, तंजानिया और सिंगापुर जैसे मुल्कों ने बेहतरी से कोविड प्रबंधन किया। इसके उलट भारत, ब्राजील, यूएसए और पेरू जैसे मुल्क हांफते हुये दिखे। जिस वक्त पर नागरिक सड़कों पर दम तोड़ रहे थे, इन मुल्कों की टॉप लीडरशिप बेपरवाह नजर आई है।
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खैर, वायरस को लेकर अब भी संशय की स्थितियां हैं। इस वक्त जब भारत खुद तीसरी वेव से निपटने की तैयारियों में है, तब वैज्ञानिकों ने इस वायरस को समझने के लिए इसकी उत्पत्ति के कारण जानने की कोशिश की है। इस कोशिश के दौरान वैज्ञानिकों की दुनिया दो भागों में बटीं हुई दिखी। एक पक्ष का मानना था कि यह वायरस वुहान के पशु बाज़ार से मनुष्यों में आया है (पशुओं से उत्पत्ति), जबकि दूसरे के मुताबिक़ यह चीन की प्रयोगशाला से सुरक्षा में बड़ी चूक या दुर्घटना के कारण लीक होकर बाहर फैला है। इसे लैब लीक थ्योरी कहते हैं। दोनों पक्षों के पास अपने तर्क हैं, जिनका जवाब शायद निष्पक्ष समिति द्वारा शोध के बाद ही दुनिया को मिल सके।
कहां होता है वायरस पर शोध
हालांकि, इस पूरे मामले में वुहान वायरोलॉजी संस्थान का नाम बड़ा चर्चित रहा है। कहा जा रहा है कि यहां पहले से ही कोरोना पर शोध चल रहा था। यह बात यथार्थ के ज्यादा करीब नजर आती है। विश्व भर में जानलेवा वायरस व सूक्ष्मजीवियों पर इस तरह के जोखिम भरे शोध होते रहते हैं। इस तरह के शोध ख़ास तरह की BSL4 (Biosafety level 4) प्रयोगशालाओं में ही किये जाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक BSL4 वो लैब होती हैं, जो उन जीवों (जीवाणु, विषाणु) पर शोध करते हैं, जो जोखिम की श्रेणी 4 में आते हैं। ये जीव वो बीमारियां फैलाते हैं, जो आसानी से एक मनुष्य या जानवर से दूसरे में जा सकते हैं। इस तरह की बीमारियों को रोकने का कोई तरीका या इलाज उपलब्ध नहीं है। BSL4 लैब्स इस तरह के शोधों के लिए ख़ास तरह से बनाई जाती हैं।
वुहान के वायरोलॉजी संस्थान में इस तरह की BSL4 लैब है, जहां कोरोना पर शोध चल रहा था। अब यह तो आने वाले समय में ही पता चल पाएगा कि असल में ये वायरस लैब से निकला या नहीं, लेकिन कोरोना ने इस तरह की लैब्स से जुड़े खतरे और सुरक्षा मानकों के निर्धारण व पालन की ओर वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं के साथ ही नीति निर्माताओं का भी ध्यान आकर्षित किया है।
कितनी है दुनियाभर मौजूदगी
अमेरिका स्थित न्यूक्लियर थ्रेट इनिशिएटिव (NTI) संस्थान के द्वारा हाल ही में डॉ. फिलिप्पा लेंट्ज़ोस और डॉ. ग्रेगोरी ने डी. कोब्लेंटज के मार्गदर्शन में तैयार एक रिपोर्ट प्रकाशित है, जिसमें विश्व भर की BSL4 लैब सम्बन्धी जानकारियां हैं। BSL4 लैब कितने सुरक्षित हैं, मानकों का कितना पालन करते हैं व इनकी पारदर्शिता पर यह रिपोर्ट काफी चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखती है। विश्व भर में फैली लैब्स में बायोसेफ्टी और बायोसिक्योरिटी के नियम मौजूद हैं पर अधिकतर जगहों में इनका पालन नहीं होता है। इन लैब्स में होने वाले शोधों के गलत इस्तेमाल के खिलाफ 90% से अधिक देशों में (जहां लैब हैं) में कोई नीति ही मौजूद नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में विश्वभर में 59 लैब्स हैं (निर्मित हो रही भी शामिल)। इनमें से 42 लैब्स पिछले एक दशक में ही अस्तित्व में आयी हैं या आ रही हैं।
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23 देशों में फैली है लैब्स
मतलब साफ है कि इन लैब्स की भूमिका बढ़ रही है और इनसे उपज रहा खतरा भी मानवता की ओर बढ़ने लगा है। ये लैब्स 23 देशों में फैली हुई हैं, जिसमें यूरोप के पास 25, एशिया के पास 13, अफ्रीका के पास 3 और उत्तर अमेरिका के पास ऐसी 14 लैब्स हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 59 में से 46 लैब्स शहरों के बीचोंबीच हैं। इसका सीधा सा मतलब लैब में अनहोनी होने पर महामारी फैलने का खतरा कई प्रतिशत ज्यादा है।
NTI द्वारा विकसित ग्लोबल हेल्थ सिक्योरिटी इंडेक्स (GHSI) के मुताबिक केवल एक चौथाई लैब ही बायोसेफ्टी और बायोसिक्योरिटी के मानकों पर अच्छा प्रदर्शन करते हैं। बायोसेफ्टी (वैज्ञानिकों व लैब के कर्मचारियों के बचाव) की तैयारियों के मामले में केवल 27% लैब ही उच्च प्रदर्शन करती हैं। 50% मध्यम और 23% निम्न प्रदर्शन करती हैं।
बायोरिस्क प्रबंधन प्रणाली बनी, अपनाई ही नहीं गई
बायोसिक्योरिटी (शोध का गलत इस्तेमाल रोकना) के मामले में भी कुछ ऐसा ही हाल है। यहां 23% उच्च, 36% मध्यम व 41% निम्न प्रदर्शन करते हैं। 2019 में इन लैबों में कार्य सिद्धांतों को स्थापित करने व जोखिम के सही प्रबंधन के लिए बायोरिस्क प्रबंधन प्रणाली (ISO 35001) विकसित की गयी, ताकि ये लैब्स अधिक सुरक्षित हो सकें। हालांकि, विश्व की किसी भी लैब ने अभी तक इस प्रणाली को नहीं अपनाया है। इस प्रणाली से लैब्स को बायोरिस्क प्रबंधन नीति बनाने, खतरों को पहचानकर उनका आंकलन करने, समय-समय पर निरीक्षण व ऑडिट करने, दुर्घटना के दौरान योजना बनाने व क्रियान्वयन करने के साथ ही लैब में कार्यरत लोगों के कर्तव्य व जिम्मेदारी तय करने में मदद मिल सकती थी।
शोध का गलत इस्तेमाल रोकने के लिये नहीं बनी है नीति
इन लैब्स में चल रहे शोध का गलत इस्तेमाल (डुअल यूज़) होने से रोकने के लिये 23 देशों में से 20 के पास अपनी कोई नीति ही नहीं है, जिससे ये शोध मानवता के लिए खतरा बन जाने की पूरी सम्भावना रखते है। ये रिपोर्ट जितनी चौंकाती है उससे भी ज्यादा डराती है। जिस तरह पिछले एक दशक में जिस गति से BSL4 लैब्स की संख्या बढ़ी है, यह चिंता बढ़ाने वाली है। खासकर कोरोना के बाद, दुनिया की स्थिति को देखकर डरना जरूरी भी है। इन लैब्स का शहरी क्षेत्रों में बिना किसी गंभीर सुरक्षा प्रणाली के संचालन होना कोरोना जैसी तमाम महामारियों को जन्म दे सकता है।
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रिपोर्ट्स और एक्सपर्ट्स की मानें तब इस वक्त दुनियाभर में मौजूद ऐसी लैब्स का और वहां काम करने वालों की सुरक्षा के लिए तत्काल सारे देशों को ISO 35001 मानक अपनाने की जरूरत है। इसके साथ ही सभी देशों को यह जिम्मेदारी भी लेनी होगी कि समय-समय पर वह अपनी लैब्स का जोखिम आंकलन कर रहे हैं।
UN Security Council Resolution 1540 व जैविक हथियार सम्मलेन (1972) के अंतर्गत लैब्स की सालाना रिपोर्ट सबके सामने पेश करने को लेकर दुनिया के हर मुल्क को अंतराष्ट्रीय कानूनों का पालन करना होगा, ताकि देशों के बीच विश्वसनीयता बनी रहे। राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर पर ऐसे ढांचों का विकास किया जाना जरूरी है, जो इस तरह की लैब्स की सही कार्यप्रणाली तय कर सकें। भविष्य की संभावित महामारियों, म्यूटेट होते जीवों पर निरंतर शोध और खोज मानवता की सुरक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, लेकिन लैब्स का सुरक्षित होना शोध व मनुष्यों के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है। इस ओर शोधकर्ताओं के साथ ही नीति निर्माताओं को भी ध्यान देना होगा। खैर, फिलवक्त भारत में अभी हम इस ख्याल से भी कोसों दूर चलकर बेपरवाह तीसरी लहर को न्यौता देना शुरू कर चुके हैं।
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