सिर्फ धूमकेतु! इसके सिवाय लेखक अपने बारे में कुछ भी नहीं बताना चाहता। वो शायद भारत की महान परंपरा का निर्वहन करते हुए दुनिया के सामने सिवाय 'घोस्ट राइटर' के और किसी रूप में नहीं पहचाना जाना चाहता। किस्से पढ़िए, यही धूमकेतु की पहचान है..
मौसम इस कदर नाराज हुआ था कि वक्त से पहले पड़ी बर्फ ने पहाड़ों पर उगी भांग को जला दिया था। देश में आर्यन खान जेल से बाहर आ चुका था, लेकिन मीडिया अभी भी हाई और स्टोंड था। इधर हमारा नायक अभी अभी पहाड़ से उतरा था। पकड़े जाने पर जेल पुलिस का डर तो उसके मन में था लेकिन गिल्ट जैसी कोई चीज दिल में नहीं थी। खैर हमारे नायक का आर्यन खान से कोई लेना-देना नहीं है। ...और सच तो यह है कि वह इस सारे तमाशे के बारे में कुछ जानता भी नहीं है।
खैर, पहाड़ पर इस नौजवान ने भांग के कुछ बीज बोए थे और अब फसल के वक्त बर्फ ने उसका कम से कम तीन गुना नुकसान किया था। एक अच्छे मौसम में तीन मजदूरों को तीन दिन साथ में लेकर माल निकालने का मोटा-मोटा खर्च 7550 रुपए साथ बैठ हमारे नायक ने जोड़ा। अपनी भी मजदूरी जोड़ने की बात पर हमारे नायक को हैरत तो बहुत हुई लेकिन उसने फौरन 1800 रुपए जोड़कर कुल खर्च 9550 रुपए बता दिया।
आमतौर पर देश का किसान खेती की अपनी लागत में अपनी मजदूरी नहीं जोड़ता। जोड़ देने पर उसे हैरत होती है कि फसल का दाम और कम हो गया है। अक्सर पूरा परिवार ही खेती के काम में किसी न किसी तरह लगता ही है, इस बात को अर्थशास्त्र की तरह जान लेने पर फसल का दाम और कम हो जाता है। खैर न इस किस्से का अर्थशास्त्र से कोई लेना-देना है न ही देश के किसानों से।
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हुआ तो ऐसा भी था कि हमारे नायक के हाथों पर देवता की कृपा थी कि सबसे मोटा गोला उसी की मेहनत से निकला था। फिर भी, अच्छे और बुरे दोनों मौसमों में हमारे नायक ने अपने माल की कीमत पर कोई घटी-बढ़ौतरी नहीं की। जब एक दूसरे किरदार ने हमारे नायक का माल हाथ में लेकर वजन का अनुमान 10 तोला बताया तो एक टीस लिए हमारे नायक ने 12 होने की दुवा करने के निवेदन के से भाव से कम से कम 12 के हिसाब से एक ट्रिप पर महज 6050 रुपए की बचत कबूल कर दिल मसूजा। उसका दिल चूर-चूर होने से बचा था तो सिर्फ इसलिए कि शहरी बाजार के भाव उसे नहीं मालूम थे।
हमारे नायक की दिन भर की मेहनत आपके पसीने छुड़ा सकती है। तेज बर्फ से टूट चुके पेड़ों पर अपनी पहली दावेदारी के पहाड़ी कानून को निभाते हुए पिछले 15 साल में 150 रुपए वाला प्लास्टिक का जूता डाले जंगल-जंगल घूमते, हमारे नायक ने अपने कंधों को नीला होने तक घर बनाने के लिए लकड़ियां ढोई हैं। हमारे नायक की उम्र अभी तकरीबन 23 है। वजन उठाते हुए अगर आप हमारे नायक को देख लें तो बरबस जॉन हैनरी को याद कर बैठेंगे। आपके कानों में उसका हथौड़ा गूंजता सुनाई देगा। खैर हमारा नायक जॉन हैनरी को नहीं जानता है।
हमारा नायक हरि नहीं, लेकिन उसकी मेहनत की कथा का कोई अंत भी नहीं है! वैसे हमारे नायक के पिता की नजरों में अब और उनके जमाने की मेहनत में बहुत फर्क आ चुका है। अब के बच्चों में उस बात की कमी उन्हें नजर आती है।
देवताओं के कृपा वाले हाथ में चिपका, हिपोक्रेट नजरिए के शिकार हरे पौधे का रस जम कर काला हो गया था और ठंड ने उसे कठोर कर दिया था। लेकिन खुद के वरदानी हाथ से तैयार किए एक गोले को दो उंगलियों के बीच से नोच कर निकले एक छोटे से टुकड़े को कुछ देर तक मसलने से आई गर्मी ने उसे नर्म कर दिया। राई के दानों से भी छोटे टुकड़े होने में फिर तो देर न लगी। देखते ही देखते छोटे छोटे कण एक कागज पर छितरा गए और आग की एक हल्की सी तपिस ने माहौल में एक तरंग को सुलगा दिया।
हमारा नायक खाना खाकर रोजमर्रा का सा भाव लिए चला गया। उसे अपने पहाड़ी खेतों में ट्रैक्टर चलाना था और ऐसे ही कामों को गिनते गिनाते जाते जाते उसने गुड नाइट कहा।
इस कहानी के आधार पर नीचे लिखे सवालों के जवाब देने की कोशिश करें। खंड 'डी' को छोड़कर सभी सवाल अनिवार्य हैं:-
ए. गणित के सवाल
- 1. अच्छे मौसम में हमारे नायक की कुल फसल कितने रुपए की हुई?
- 2. एक तोले का भाव बताएं
- 3. एक मजदूर की एक दिन की मजदूरी भी बता सकें तो बताएं।
बी. समाज विज्ञान के सवाल
- 1. किसान क्यों अपनी मजदूरी नहीं जोड़ता है
- 2. मजदूरी जोड़ने पर दाम कम क्यों हो जाता है
- 3. हमारे नायक के लिए मांग आपूर्ति का नियम क्यों लागू नहीं हो पा रहा।
सी. सामान्य ज्ञान के सवाल
- 1. अपने इलाके का मोटा मोटी दाम बताएं।
- 2. अपने इलाके की मजदूरी बताएं।
- 3. क्या आप जॉन हैनरी को जानते हैं? नहीं तो पता करें.
डी. आउट ऑफ स्लेबस सवाल
- 1. आर्यन खान को जमानत मिलने में इतनी देर क्यों हुई?
- 2. कौन-कौन टीवी चैनल, अखबार अभी भी हाई और स्टोंड हैं? लिस्ट बनाएं। दरवाजे पर टांग दें.
- 3. ठंड से माल कठोर हो जाता है। क्या सर्दियां इरादों को भी कठोर करती है?
- 4. मजदूरी और महंगाई में क्या तेजी से बढ़ा है। अगर आप खुश हैं तो क्यों?
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