महेंद्र जंतु विज्ञान से परास्नातक हैं और विज्ञान पत्रकारिता में डिप्लोमा ले चुके हैं। महेन्द्र विज्ञान की जादुई दुनिया के किस्से, कथा, रिपोर्ट नेचर बाॅक्स सीरीज के जरिए हिलांश के पाठकों के लिए लेकर हाजिर होते रहेंगे। वर्तमान में पिथौरागढ में ‘आरंभ’ की विभिन्न गतिविधियों में भी वो सक्रिय हैं।
हाल ही के कुछ समय पहले राजस्थान में बिजली गिरने से 19 लोगों की मौत की खबर आई थी, जिसने इस घटना की ओर पूरे भारत का ध्यान अपनी तरफ खींचा था। भारत में आपदा के कई रूप है, मसलन बाढ़, चक्रवात आदि जो बड़ी संख्या में मनुष्यों की मौत का कारण बनते हैं, लेकिन आपदा की इस श्रेणी में अब बिजली गिरने को भी बड़े नुकसान के तौर पर आंकने का वक्त सामने आ गया है। पिछले कुछ वर्षों में बिजली गिरने की घटनाएं तेजी से बढ़ी है। एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अकेले साल 2020-21 के दौरान ही बिजली गिरने और उसकी चपेट में आने से 1697 लोगों की मौत हो चुकी है। ये अपनेआप में एक चौंकाने वाला आंकड़ा है।
देशभर में जिस संख्या में ये मौतें हुई हैं, इससे बिजली गिरना किसी आपदा से कम नहीं माना जा सकता है। ऐसे में जरुरी हो जाता है कि बिजली गिरने की घटनाओं का राज्य वार विश्लेषण किया जाए और इसके कारणों की ठीक से पड़ताल हो सके।
300 फीसदी बढ़ी घटनाएं
लाइटनिंग रेसीलीएंट इंडिया कैंपेन की इस रिपोर्ट ने बेहद गंभीर आंकड़े सामने रखे हैं। रिपोर्ट देश के 37 राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के आंकड़े सामने रखती है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल के मुकाबले बिजली गिरने की घटनाओं में इस साल 33 फीसदी तक की बढ़ोतरी हुई है। कुछ राज्यों (पंजाब, बिहार, हरियाणा, पुडुचेरी, हिमाचल प्रदेश, बंगाल) में तो ये बढ़ोतरी 100 से 300 फीसदी तक हुई है। अनेक ऐसे राज्य (कर्नाटका, असम, केरल, मेघालय) हैं, जिनमें 12-74 फीसदी तक बिजली गिरने की घटनाओं में गिरावट देखने को मिली है। रिपोर्ट के अनुसार इस वर्ष 1.8 करोड़ से अधिक दफा बिजली गिरने की घटनाएं भारत में हुई हैं।
टॉप पर उड़ीसा, मौतों के मामले में यूपी नंबर वन
सबसे अधिक बिजली गिरने की घटनाओं के मामले में उड़ीसा शीर्ष स्थान पर है। इसके बाद मध्य प्रदेश फिर छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखण्ड का नंबर आता है। इस तथ्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां सबसे अधिक बिजली गिरी है, वहां सबसे अधिक मौतें भी हुई होंगी, लेकिन मामला ऐसा है नहीं। रिपोर्ट के अनुसार मौतों के मामलों में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर है, जहां 238 मौतें हुई हैं। हालांकि, यह राज्य वज्रपात के मामले में शीर्ष पांच राज्यों में भी शामिल नहीं है। इसके बाद मध्य प्रदेश (228) और उड़ीसा (156) का नंबर आता है।
पहली बार वज्रपात की घटनाओं के आधार पर भारत का मानचित्र तैयार हुआ है, जिसमें हर राज्य को इन घटनाओं के आधार पर चिन्हित किया गया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। पहले यह आम धारणा थी कि पूरे भारत में एक ख़ास मौसम के दौरान ही बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं। इस रिपोर्ट ने इस धारणा को तोडा है। इतना ही नहीं इससे यह भी पता चला है कि हर राज्य में मौसम और क्षेत्र विशेष के अनुरूप बिजली गिरने की घटनाएं घटती-बढ़ती रहती हैं। हर राज्य में बिजली गिरने की घटना अलग-अलग महीने में चरम पर रही। आंध्र प्रदेश में यह घटनाएं अप्रैल, मई, जून और अक्टूबर में ज्यादा होती हैं, जबकि बाकी वर्ष यह घटनाएं बेहद कम होती हैं। असम का मार्च का महीना सबसे अधिक बिजली गिरने की घटनाओं का साक्षी बनता है, बाकी महीने शान्ति बनी रहती है। ऐसे ही उड़ीसा में भी चार मुख्य महीने हैं, जिनमें बिजली गिरने की अधिक घटनाएं होती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में पिछले वर्ष बिजली गिरने की 1,15,302 घटनाएं हुई हैं और बिजली गिरने के मामले में यह 26 राज्यों में 19 वें पायदान पर है। हालांकि, मौतों के मामले में उत्तराखंड शीर्ष 16 राज्यों में शामिल है। यहां पिछले वर्ष 24 मौतें हुई हैं। उत्तराखंड में बिजली गिरने की घटनाओं में 79% तक वृद्धि हुई है, जो कि बेहद चिंता का विषय है। सबसे ज्यादा बिजली गिरने की घटना दिसंबर, जनवरी, फरवरी, मई और अक्टूबर को छोड़कर अन्य महीनों में हुई है।
इस सब के बीच एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या पूरे भारत में कोई ऐसे समुदाय या समूह है, जो बिजली गिरने की घटना से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं? क्या ऐसे संवेदनशील क्षेत्र हैं, जहां अधिक बिजली गिरती है? असल में ऐसे क्षेत्र हैं, जिन्हें चिन्हित कर, इससे पड़े प्रभावों का विश्लेषण कर, मौतों की परिस्थितियों के आधार पर सबसे अधिक प्रभावित और खतरा झेल रहे समुदाय के रूप में ढूंढा किया गया है। बड़े ही आश्चर्यजनक तरीके से यह क्षेत्र भारत का जनजातीय क्षेत्र है, जो झारखण्ड,उड़ीसा, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल व अन्य राज्यों के इलाके हैं। बिजली गिरने से करीबन 60-70% मौतें जनजातीय जनों की हुई हैं।
अधिक सघन मैपिंग से इनके टिन के झोपड़ों में रहने व आजीविका के साधनों के कारण, कमाने के तरीकों से खतरों में पड़ जाने पर अधिक प्रकाश डाला जा सकेगा। मानसून आने से पहले व शुरुआती मानसून के दौरान किसान खेतों में व बगीचों में अधिक संख्या व समय के लिए व्यस्त होते हैं। इसी दौरान वे सबसे अधिक खतरे की जद में आ जाते हैं। खेतों बगीचों में काम करते हुए बिजली गिरने से तमाम मौतें हुई हैं।
सितम्बर व साल के अंतिम महीनों में सबसे ज्यादा मौतें झोपड़ों में बिजली गिरने से व पेड़ के नीचे (71%) खड़े रहने के कारण हुई हैं। मरने वालों की बात करें तो कुल का 66% पुरुष थे, जबकि 34% महिलाएं बिजली गिरने से मारी गईं। वहीं मरने वालों में 68% जनजातीय थे व 32% गैर-जनजातीय थे। मरने वाले 96% ग्रामीण क्षेत्र में मरे, जबकि केवल 4% शहरी क्षेत्र में मरे। 62% वयस्कों की तुलना में 38% बच्चों की मौत हुई। आजीविका के आधार पर मौतों का वर्गीकरण किया जाए तो 77% लोग कृषि आधारित कार्य करते थे व 23% अन्य तरह के कार्य। ये आंकड़े इतना बताने के लिये काफी हैं कि खेती में संलग्न ग्रामीण जनजातीय लोग सबसे ज्यादा इस आपदा के कारण मौत की गोद में समा रहे हैं।
इन मौतों के आंकड़ों को कम करने के दिशा में सरकारें क्या काम कर रही हैं, ये तो वही जानती हैं। कैंपेन के अनुसार इस साल मौतों की संख्या में गिरावट आयी है, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश और नागालैंड में 60 फीसदी तक मौतों में कमी आयी है। अगले वर्ष इसे 1200 से नीचे लाने का लक्ष्य भी रखा गया है।
अभी तो एक बड़ी जरुरत अधिक सघन रूप से आंकड़े जुटाने की भी है, ताकि वास्तविक आंकड़ों के आधार पर मॉनीटरिंग की जा सके। ऐसा होने पर मौतों का आंकड़ा निश्चित रूप से बड़ी उछाल मारेगा। प्राकृतिक घटनाओं से बचाव तो सबसे ज्यादा पूर्वानुमान पर टिका हुआ है, आखिर तकनीकी रूप से कितना सटीक अनुमान लगाया जाता है, इस पर बहुत कुछ निर्भर करता है। फिर आती है बारी इस जानकारी को आमजन के बीच पहुंचाने की। अगर पूर्वानुमान व आगामी घटना की चेतावनी पहले ही सही तरह से लोगों तक पंहुचा दी जाए, तो शायद प्राकृतिक आपदा से काफी हद तक लड़ा जा सकेगा।
चक्रवात का पूर्वानुमान लगाने में मिली कामयाबी
पूर्वानुमानों में सटीकता और लोगों तक प्रभावशाली रूप में खतरे की चेतावनी पहुंचाने में सुधारों ने भारतीय तटीय राज्यों में चक्रवातों से होने वाली मौतों का आंकड़ा बेहद कम करने में सफलता पायी है। इससे सीखने की जरूरत है।
12 फीसदी बढ़ जाएंगी बिजली गिरने की घटनाएं
ऐसे में बिजली से होने वाली मौतों से बचने के उपायों को लेकर जागरूक किया जाना बेहद जरुरी बन जाता है जब 71% मौतें बिजली गिरने के दौरान पेड़ के नीचे खड़े होने से हुई हों। वैश्विक स्तर पर किये गए शोध दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन से जैसे-जैसे औसत तापमान में वृद्धि होगी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ जाएंगी। 1% वैश्विक तापमान की वृद्धि पर बिजली गिरने की घटनाएं 12% तक बढ़ेंगी।
यह तथ्य आने वाले समय में बिजली गिरने को अधिक गंभीरता से न लेने का कोई बहाना नहीं छोड़ता। अब समय है, जब भारत के पास बिजली गिरने की समस्या से निपटने के लिये एक सटीक राष्ट्रीय प्रणाली (जो प्रभावी रूप से क्षेत्रीय समस्याओं व खासियतों का संज्ञान भी ले) की, जिससे मौतों में कमी लायी जा सके। खासकर जनजातीय किसानों व मजदूरों की बेवजह मौतों को टाला जा सके।
(लाइटनिंग रेसीलीएंट इंडिया कैंपेन अनेक संस्थानों से मिलकर बनी एक पहल है जिसका लक्ष्य भारत में बिजली गिरने से होने वाली मौतों का आंकड़ा शून्य तक लाना है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले संस्थानों और ISRO के आंकड़ों से मिलकर बनी यह दूसरी रिपोर्ट है, पहली रिपोर्ट 2019-20 में जारी की गयी थी।)
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