हाल ही में एक खबर ने पत्रकार बिरादरी को बेहद परेशान किया। खबर थी कि पत्रकार नवीन कुमार कोरोना से संक्रमित हो गये हैं और उनकी हालत खराब है। इस खबर ने नवीन कुमार के जानने वालों को तो चिंता में डाल ही दिया था, साथ ही उनकी पत्रकारिता को पसंद करने वाले पाठक-दर्शक भी उनकी सेहत को लेकर मायूस थे। इसके बाद खुद नवीन कुमार ने एक वीडियो डालकर लोगों को हैरत में डाल दिया था, जिसमें वह सिस्टम की खामियों पर बात करते-करते रुंआसे हो गये थे। इस वीडियो में नवीन काफी बीमार नजर आ रहे थे, जिसने इस जनपक्षधर पत्रकार को लेकर लोगों की चिंताएं बढ़ा दी थी। अब राहत की खबर यह आ रही है कि नवीन कुमार की हालत में सुधार हो रहा है।
इस बीच उनका इलाज कर रहे डॉक्टर की सोशल मीडिया पोस्ट वायरल हो गई है। 'जब मुझे जिंदगी और कोरोना दोनों को चुनना पड़ा!' शीर्षक से लिखी गई इस पोस्ट में कई दिलचस्प तथ्य निकलकर सामने आते हैं, साथ ही यह पोस्ट भारत में आम मरीजों की स्थिति को बताने के लिये भी कारगर है। ये पोस्ट इस मायने में भी खासी दिलचस्प है कि कैसे एक डॉक्टर पर जनपक्षधर पत्रकार को बचाने की जिम्मेदारी आ गई थी और उसने अपनी जान की परवाह किये बगैर अपने दोस्त को जिंदगी देना ज्यादा जरूरी समझा।
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डॉ. सोनू कुमार भारद्वाज ने अपनी पोस्ट में लिखा- 'यह जो तस्वीर में गंभीर रूप से बीमार एक व्यक्ति दिख रहा है, वह कोई और नहीं बल्कि आर्टिकल 19 वाले पत्रकार नवीन कुमार हैं और यह कोई अस्पताल नहीं है, ना ही बहुत बड़ा घर है। यह एक कमरे का मेरा हॉस्टल है, जिसमें खिड़की से सटी हुई आपको ड्रिप की बॉटल दिख जाएगी और बगल में बेड के सहारे ऑक्सीजन को तिरछा कर लगाया हुआ पाइप दिख जाएगा। पत्रकार नवीन कुमार मेरे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनियर भी हैं और दोस्तों में भी शामिल हैं। बंगाल से आने के बाद 19 तारीख को इन्होंने कोरोना का टेस्ट करवाया था। संयोग से टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई थी, लेकिन उनकी तबीयत इतनी ज्यादा खराब थी कि मुझे लग रहा था कुछ ना कुछ तो दिक्कत जरूर है!'
इस पोस्ट में डॉ. सोनू आगे लिखते हैं- '27 अप्रैल को मुझे नवीन कुमार का कॉल आया कि मेरा ऑक्सीजन लेवल तेजी से गिर रहा है। "बचा सको तो बचा लो"! मैंने उनके कई दोस्तों को कॉल किया, उनके साथ काम करने वाली एक दोस्त उनको लेकर लगभग 8:00 बजे लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में आई। नवीन की कॉल के बाद मैं बहुत बेचैन था। मैं लगातार कॉलेज परिसर में घूम रहा था। मैंने सीएमओ से बहुत दफा रिक्वेस्ट की कि एक बेड उपलब्ध करवा दिया जाए, लेकिन कोई भी बेड खाली नहीं था। सीएमओ ने कहा हम देख तो लेंगे, लेकिन हमारे पास बेड नहीं है! ऑक्सीजन का लेवल एकदम गिरता जा रहा था और साथ ही सीने में जकड़न बढ़ती जा रही थी। अस्पताल की इमरजेंसी में एक थोड़ा कम बीमार व्यक्ति था, जो कि उस वक्त टॉयलेट जा रहा था। मैंने उससे कहा कि वो जब तक वॉशरूम से लौट रहा है, तब तक 20- 25 मिनट के लिए ऑक्सीजन दे दे। उस शख्स ने साफ मना कर दिया। शायद उसे भी डर रहा होगा कि कहीं ऑक्सीजन ना मिले तब उसका क्या होगा! बाहर बहुत सारे मरीज आ रहे थे। कई अन्य अस्पतालों में भी हम लोग इस दौरान बात कर चुके थे। बेड मिलने की कहीं भी कोई संभावनाएं नहीं थी। सब जगह मरीजों का तांता लगा हुआ था। अब मेरे पास दो ही विकल्प बाकी थे, जिंदगी और कोरोना... दोनों को चुनना या फिर एक को छोड़ देना। मैंने कोरोना के साथ जिंदगी को चुना और नवीन सर को अपने रूम पर ले गया, लेकिन हमारे पास अब भी ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं थी।'
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डॉ. सोनू ने कोरोना संक्रमण और अपने आराम की परवाह किये बगैर नवीन कुमार को अपने हॉस्टल के रूम में शिफ्ट कर दिया। वो आगे लिखते हैं- 'दवाइयां तो मैंने सभी ले ली थी और इलाज शुरू भी कर दिया था, लेकिन ऑक्सीजन की कमी के कारण मन बहुत बेचैन हो रहा था। कई जगह हम इस दौरान ऑक्सीजन की उम्मीद में कॉल कर चुके थे। अंतत: रात के तकरीबन 11 बजे यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी ने ऑक्सीजन भिजवाई। इसके बाद आम आदमी पार्टी के दुर्गेश पाठक ने ने भी ऑक्सीजन भिजवा दी। ऑक्सीजन देने के बाद कुछ स्टेबिलिटी आई और करीब 94-96 के बीच ऑक्सीजन मेंटेन हो गया। हमारी मुश्किलें यहां खत्म नहीं हुई थी। सुबह होते होते, लगभग पहला वाला सिलेंडर खत्म हो गया था और दूसरा शुरू कर दिया था।'
बता दें कि यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बीवी इन दिनों कोरोना मरीजों को बड़े पैमाने पर मदद पहुंचा रहे हैं और महामारी के बीच जब सरकार असफल नजर आ रही है तब वो एक तबके के लिये बड़े हीरो बनकर उभरे हैं। डॉ. सोनू आगे लिखते हैं- 'मुझे डर था कि रात तक दूसरा ऑक्सीजन सिलेंडर भी खत्म हो जाएगा। शाम को एचआरसीटी और ब्लड जांच करवाने के लिए हम लोग बाहर निकले। लाल पैथ और यहां तक कि सरल डायग्नोस्टिक सेंटर कहीं भी डी डाइमर सीआरपी इत्यादि के लिए रिएजेंट नहीं थे। इस बीच नवीन कुमार के ऑक्सीजन का स्तर लगातार गिरता जा रहा था। दिल्ली में भटकने के बाद आखिरकार सरल डायग्नोस्टिक नोएडा में एचआरसीटी तथा सीबीसी एल एफ टी केएफटी के लिए समय मिला। नोएडा जाकर सरल डायग्नोस्टिक में जैसे ही जांच करवाकर रात को हम लोग वापस आये, डायग्नोस्टिक सेंटर से मैसेज आया अपना ईमेल आईडी भेजिए! नवीन सर ने तुरंत कहा लिख कर कर भेज दो 'ekthanavin@gmail.com'! मैं यह सुनकर घबरा गया। मेरी असली चिंता उस रात के लिये आक्सीजन की थी।' ये वो दौर था, जब दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी के चलते कई मरीज तेजी से जान गवां रहे थे।
डॉ. सोनू ने आगे अपनी पोस्ट में एक बार फिर से श्रीनिवास का जिक्र किया है, जिन्होंने दोबारा टाइम पर ऑक्सीजन सप्लाई कर दी। डॉ. सोनू ने लिखा- 'फिर से एक बार फरिश्ते श्रीनिवास को कॉल की गई और उन्होंने दोबारा 11:00 बजे के आस-पास ऑक्सीजन भेज दी। दूसरी रात भी किसी तरह गुजर गई। अब पहले के मुकाबले हालात काफी अच्छे लग रहे थे, लेकिन अगली सुबह इतनी तेज खांसी शुरू हो गई कि ऑक्सीजन फल्कचुएट करने लगा। हम नीवन की लगातार बिगड़ती स्थिति को देखकर डर गये। इस बीच लगातार हम अस्पतालों में बेड की ढूंढबीन में भी लगे रहे, लेकिन कहीं बेड उपलब्ध नहीं हो पा रहा था और खांसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। जब-जब ऑक्सीजन लेवल ऊपर-नीचे होता, मेरी दिल की धड़कनें भी ऊपर-नीचे होने शुरू हो जाती। हमेशा डर लगा रहता था कि पता नहीं कब क्या हो जाए। शाम होते-होते एचआरसीटी की भी रिपोर्ट आ गई और साथ में ब्लड रिपोर्ट भी हमारे सामने थी। स्कोरिंग जरूरत से ज्यादा थी, लेकिन मरीज की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी।'
इस पोस्ट में आगे डॉ. सोनू ने लिखा- 'मेरे पास एक ही रूम और समें भी एक ही बेड है, तो ऐसे में हम दोनों को ही एक साथ सोना पड़ता था। मैंने जिंदगी के साथ कोरोना चुना था और इसमें मुझे कोई दिक्कत भी नहीं थी। हालांकि मैं कुछ महीने पहले ही पॉजिटिव हो चुका था। नवीन का टीएलसी अट्ठारह हजार से ज्यादा था। इतना ही नहीं तापमान भी ज्यादा था और साथ ही ऑक्सीजन का गिरता हुआ स्तर बता रहा था कि नवीन सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री इन्फेक्शन में जा चुका है। इस बीच मीडिया में नवीन का एक वीडियो वायरल हो चुका था। मीडिया में तमाम तरह की खबरें आने लगी थी। शाम तक नवीन के कई दोस्तों की ओर उनके लिये फोर्टिस ओखला व लोकनायक अस्पताल के जनरल वॉर्ड में बेड तक का आश्वासन मुझे मिला। अब हम दोनों को यह चुनना था कि फोर्टिस जाना है या फिर लोकनायक। मैं सरकारी मेडिकल कॉलेज का छात्र रहा हूं तो मैंने लोकनायक में इलाज करवाने की सलाह दी। इससे एक दिन पहले ही मैक्स में ऑक्सीजन की कमी के वजह से कई लोगों की डेथ हो चुकी थी। गंगाराम अस्पताल में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति थी, जहां मरीज ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ चुके थे। मैं ऑक्सीजन की कमी वाले अस्पताल का रिस्क बिल्कुल भी नहीं ले सकता था, लिहाजा मैं नवीन को लेकर लोकनायक अस्पताल पहुंचा।'
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'नवीन को जैसे ही हाई फलोरेट मास्क लगा उनका ऑक्सीजन लेवल बढ़ गया। नवीन पर स्टॉफ के लोगों ने ध्यान देना कम कर दिया। किसी तरह से मैंने नवीन का आरबीएस चेक करवाया, जिसमें पता चला कि आरबीएस 376 है। फिर भी मुझे एक इंसुलिन लगवाने में 3 घंटे का समय लग गया। अस्पताल का स्टॉफ मरीजों के अत्यधिक दबाव से थक कर चूर था। लोकनायक अस्पताल के डॉक्टर इतने थके हुए थे कि नवीन को देखना तक उन्हें मुनासिब नहीं लगा। सबको लग रहा था कि यह एकदम नॉर्मल पेशेंट है। अंत में मुझे न चाहते हुए भी लड़ना पड़ा, उसके बाद नवीन को इंसुलिन का इंजेक्शन दिया गया और सामान्य वार्ड में रेफर कर दिया गया। अब जाकर मुझे थोड़ा सुकून मिला। मुझे उम्मीद थी कि अब ऐसी कंडीशन नहीं आएगी, लेकिन जो डर था वही हो रहा था। सुबह मेरी उनसे बात हुई तो उन्होंने कहा कि सोनू मैं अब यहां से ठीक हो कर ही निकलूंगा। कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन इन बातों से इतर नवीन का केस sepsis (घाव का सड़ना) की तरफ बढ़ रहा था, जिसकी वजह से मुझे डर था कि कहीं नवीन को सेप्टीसीमिया न हो जाए। मैंने कई डॉक्टरों से बात करने की कोशिश की और उसकी स्थिति के बारे में बताना चाहा, लेकिन अस्पताल के जनरल वॉर्ड में केवल कोरोना संक्रमण का ही इलाज चल रहा था। लोकनायक अपने आप में बड़ा अस्पताल है। वहां के डॉक्टर अपने तरीके से इलाज कर रहे थे। कोरोना के अलावा बाकी अन्य पैरामीटर नहीं देखे जा रहे थे। इसके अगले दिन मुझे डॉक्टर वीपी वार्ष्णेय का फोन आया और उन्होंने कहा 'तुम नवीन को जल्दी से जल्दी क्रिटिकल केयर यूनिट में डलवाओ और रेमडेसीविर का इंतजाम करो, अन्यथा कुछ नहीं होने वाला है।' उनकी मदद से मैं और उनके दोस्त वार्ड में पीपीई कीट पहन कर पहुंचे। वहां जाकर मैंने नवीन की हालत देखी तो मेरी आंखों में आंसू आ गए। नवीन का ऑक्सीजन लेवल 68 के आस—पास आ चुका था। अस्पताल के डॉक्टर केवल सुबह और शाम उन्हें चेक कर रहे थे, जबकि स्थिति भयावह होती जा रही थी।'
''नवीन ने बताया कि उसके सीने में इतना तेज दर्द होता है कि लगता है, जान निकल जाएगी। मेरी सुनकर ही हालत खराब हो गई थी। नवीन की मित्र तो बुरी तरह से टूट चुकी थी। वो फोन पर रोने लगी। मैंने नवीन के कई मित्रों को मदद के लिये फोन किया। वापस डॉक्टर वीपी वार्ष्णेय को कॉल किया और उन्होंने कहा- 'मैं आईसीयू में भर्ती करवा दूंगा, लेकिन तुम रेमडेसीविर की व्यवस्था करो। जितनी जल्दी हो सके अब मुझे रेमडेसीविर की व्यवस्था करनी थी। मैंने पत्रकार संदीप चौधरी से बात की और उन्होंने कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला से दरख्वास्त की। सुरजेवाला ने द्वारिका में दो रेमडेसीविर की व्यवस्था कर भी दी। उस रात मैं द्वारका पहुंचा और एमआरपी रेट पर दो रेमडेसीविर खरीद कर लौट आया।'' ये वो दौर था जब रेमडेसीविर की कालाबाजारी दिल्ली में जोरों पर थी और आम लोगों की पहुंच से ये दवा बाहर होती चली जा रही थी।
''रात के 11:30 बज चुके थे और नवीन को सीसीयू में शिफ्ट किया जा रहा था। मैं किसी तरह दौड़ते-भागते उनके पास पहुंचा। मैंने उन्हें रेमडेसवीर थमाते हुए कहा- 'सर जैसे ही पहुंचे इसे लगवा लीजिएगा, यह रेमडेसीविर है।' सीसीयू के अंदर जाने के बाद, इलाज का तरीका अलग है। वहां उन्हें बहुत देर तक रेमडेसीविर नहीं लगाया गया और डॉक्टर्स ने अपने ढंग से नये सिरे से जांच शुरू कर दी। क्या करना है ? क्या नहीं करना है? इस बीच नवीन की टीएलसी 18000 से घटकर 15000 तक गिर चुकी थी। हालांकि, सिटी स्कोर 23 हो चुका था। अस्पताल में तीमारदार के तौर पर मेरा ही फोन नंबर लिखा गया था, लिहाजा जब भी अस्पताल से फोन आता मैं भतर तक सिहर उठता। मीडिया में इस बीच कई तरह की खबरें तैर रही थी, जबकि स्थितियां इसके बिल्कुल उलट थी। अगले दिन से जबरन रेमडेसीवर लगना शुरू हुई, तब जाकर नवीन की हालात में बहुत तेजी से सुधार होने लगा। इसके बाद नवीन को प्लाज्मा भी दिया गया। इसके बाद भी जब-जब दोबारा आरटी-पीसीआर टेस्ट होता तो रिपोर्ट पॉजिटिव ही आती। अक्सर इस तरह की गलतियां हो जाती हैं।'
अपनी पोस्ट के अंत में डॉ. सोनू एक खुशुनुमा खबर देते हुए लिखते हैं- ''हर रात डर लगा रहता था। जब तक नवीन का मैसेज नहीं आता था, मैं रात में सो नहीं पाता था। नींद काफूर हो चुकी थी। धीरे-धीरे ही सही अब अच्छी खबरें आने लगी थी। इसके बाद कभी भी एलएफटी, केएफटी या फिर किसी अन्य जांच मसलन आईएनआर में कोई दिक्कत नहीं आई, केवल लंग्स का संक्रमण ठीक नहीं हो रहा था। लंग्स की प्रॉब्लम बढ़ती चली जा रही थी। रेमडेसीविर और प्लाज्मा ने उन्हें उबरने में बहुत राहत दी। आज नवीन बेहद स्वस्थ हैं और आराम से बात भी कर रहे हैं। उनके अंदर कॉन्फिडेंस आ गया है कि 'हां मैं बच सकता हूं'। शुरुआत में उन्होंने खुद भी हिम्मत छोड़ दी थी। पत्रकार रोहित सरदाना की मौत की खबर पर उन्होंने कहा था- 'कहीं मैं भी हार्टअटैक से ना मर जाऊं। वो बहुत ज्यादा तनाव ज्यादा लेते थे। जैसे ही उन्होंने अपने सीटी स्कोर को देखा, तो मुझे डांटते हुए कहा- 'सोनू यह सब बता क्यों नहीं रहे हो मुझे।' मैंने कहा- 'बता देता तो आपको बहुत बड़ी दिक्कत हो जाती, लेकिन अब आप सही हैं, तो इसे देख सकते हैं।' नवीन का यह संघर्ष बहुत बड़ा था। अंत में मुझे केवल और केवल नवीन की जिंदगी मिली। आज तक, अभी तक मुझमें कोरोना के कोई लक्षण नजर नहीं आए। सबको यह एक कहानीभर ही नजर आएगी, लेकिन मैंने इस जिंदगी को जिया है। जो यह कह रहे हैं कि रेमडेसीविर काम नहीं करती, उनके लिए बता देना चाहता हूं कि यहां पर सभी गंभीर मरीजों को इलाज के दौरान रेमडेसीविर ही दिया जा रहा है और इसका रिस्पांस बेहद अच्छा है। कुछ रातें व दिन एक बुरे सपने की तरह हैं, लेकिन जिन फरिश्तों की वजह से उन्हें मदद मिली, उनको मेरा कोटि-कोटि सलाम!'
डॉ. सोनू का ये पोस्ट केवल एक मरीज और डॉक्टर के बीच रिश्तों को ही बयां नहीं करता है, बल्कि दोस्ती और उससे भी बढ़कर चुनौतियों की ओर इशारा करता है। नवीन कुमार की जिंदगी को बचाने के लिये अकेले डॉ. सोनू ही नहीं जूझते रहे, बल्कि कई हाई प्रोफाइल लोग इस मरीज के साथ खड़े थे। इतनी चुनौतियां तब थी जबकि नवीन कुमार के पास एक ऐसा डॉक्टर दोस्त था, जो हर जगह मौजूद था और उनके इलाज को करीब से देख रहा था। ऐसे में अंदेशा लगाइये कि सामान्य मरीज की क्या स्थितियां रही होंगी! रेमडेसीविर और डॉक्टरों से सवाल न कर पाने की हैसियत वाले कितने ही मरीज भगवान भरोसे ही इस दुनिया को अब तक अलविदा कह चुके हैं।
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