मशहूर दक्षिणपंथी पत्रकार रोहित सरदाना का कोरोना के चलते इंतकाल हो गया है। खबरों की मानें तो रोहित कोविड सक्रंमित थे। हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में उनकी मौत की वजह हार्ट अटैक बताई जा रही है, लेकिन उनके पूर्व सहयोगी रहे मशहूर दक्षिणपंथी पत्रकार सुधीर चौधरी का ट्वीट रोहित के कोविड संक्रमित होने की पुष्टि कर रहा है। रोहित चंद घंटों पहले तक ट्विटर के जरिये लोगों को इलाज पहुंचाने में मदद करते हुए नजर आ रहे थे। दुखद बात यह है कि रोहित अपने शोज और सोशल मीडिया लाइव पर जिस तरह के भारत की पैरवी जोर-शोर से करते रहे, वहीं नफरत अब उनकी मौत पर भी दिख रही है।
रोहित की मौत की खबर से जहां उनके साथी पत्रकारों में शोक की लहर है, वहीं दूसरी ओर एक बड़ा तबका जो कि रोहित सरदाना से वैचारिक भिन्नता रखता है, उनके आकस्मिक इंतकाल पर बेहद असंवेदनशीलता का परिचय दे रहा है। भारत में पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से शुचिता और संवेदनशीलता का पतन देखने को मिला है। खुद रोहित सरदाना जिस तरह के भारत निर्माण में जुटे हुए थे, उसके परिणाम अब खुद उनकी मौत के वक्त नजर आ रहे हैं, जो कि बतौर मुल्क भारत के लिये चिंता की बात है। सोशल मीडिया पर रोहित की मौत के बाद प्रतिक्रिया की झड़ी लग गई है। एक तबका उनके 'हिंदू पत्रकारिता' पर आंसू बहा रहा है, तो दूसरा तबका मरहूम पत्रकार की पुरानी रिपोर्ट्स को साझा कर असंवेदनशील होने का परिचय दे रहा है। ये बात ठीक है कि रोहित ने सरकार का पक्ष लेना ही चुना, लेकिन यह भी सच है कि महामारी का शिकार हुये पत्रकार को बचाया नहीं जा सका है।
विरोधियों की मौत पर 'खुशी' का इजहार करने का जो ट्रेंड भारत में पिछले कुछ सालों में देखने को मिला है, वो निरंतर असंवेदनशीलता की ओर बढ़ता ही जा रहा है। इसकी बानगी रोहित सरदाना की मौत के वक्त भी नजर आ रही है। ट्विटर पर पत्रकार के समर्थक जहां रोहित की मौत पर उनकी कंपनी 'आज तक' के खबर न दिखाने की निंदा कर रहे हैं, वहीं उनके विरोधी ऐसे वक्त में बेहद गैरजिम्मेदाराना रवैया पेश कर रहे हैं और उनकी पिछली रिपोर्ट्स और एक समुदाय को लेकर उनकी अनैतिक टिप्पणियों को सोशल मीडिया पर प्रसारित कर रहे हैं। इस पर कई संवेदनशील लोगों ने चिंता जाहिर करते हुए, इसे बतौर नागरिक गलत करार दिया है।
हालांकि, खुद रोहित की पत्रकारिता विवादास्पद ही ज्यादा रही है और जब तक वो बतौर पत्रकार टीवी पर नजर आते रहे उन्होंने सरकार का 'माउथ पीस' बनना ही खुद के लिये चुना। ऐसा शायद उनके अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से पुराने रिश्तों के चलते रहा हो, लेकिन बतौर पत्रकार उन्होंने अपनी जिम्मेदारियों के बजाय अपनी विचारधारा को ही टीवी के जरिये पोसने का काम किया।
रोहित की पत्रकारिता के चलते कई नागरिकों के लिये मुश्किल भी हुई होगी, इसमें भी कोई दोराय नहीं है। खासकर पिछले साल जब वो अपने सोशल मीडिया पर महामारी को गंभीरता से लेने के बजाय जमातियों की 'हंटिंग' में मशगूल थे, उनकी खासी आलोचना भी हुई थी। इसके अलावा सीएए-एनआरसी मूवमेंट के दौरान शाहीन बाग में बैठे मुस्लिम आंदोलनकारियों के प्रति जिस ढंग से रोहित ने गैरजिम्मेदार रिर्पोटिंग को बढ़ावा दिया था, उसने भारतीय पत्रकारिता को गर्त में ही धकेलने का काम ज्यादा किया था।
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रोहित की पत्रकारिता पर नजर डालें तो वो न केवल पिछले कुछ समय में देश में चल रहे जनांदोलनों का सार्वजनिक तौर पर मखौल उड़ाते हुए नजर आ रहे थे, बल्कि कई दफा सोशल मीडिया लाइव के दौरान एक खास समुदाय के प्रति उनकी नफरत भी साफ तौर पर नजर आती थी। एक वीडियो जो उनकी मौत के बाद सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, उसमें वो एक मुस्लिम शख्स को 'पतली गली' पकड़कर निकलने की बात कहते हुए सुनाई दे रहे हैं।
बहरहाल, जब 'आज तक' ने तो अपने स्टार एंकर की मौत पर अपने दर्शकों को सूचना देने के बजाय, एग्जिट पोल दिखाना ज्यादा जरूरी समझा है, तब रोहित सरदाना की मौत पर दुख जाहिर करते हुए एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा- ''आज तक के एंकर रोहित सरदाना के निधन की ख़बर से स्तब्ध हूँ। कभी मिला नहीं लेकिन टीवी पर देख कर ही अंदाज़ा होता रहा कि शारीरिक रुप से फ़िट नौजवान हैं। मैं अभी भी सोच रहा हूँ कि इतने फ़िट इंसान के साथ ऐसी स्थिति क्यों आई। डॉक्टरों ने किस स्तर पर क्या दवा दी? उनके बुख़ार या अन्य लक्षणों पर किस तरह से मॉनिटर किया गया ? मेरा मन नहीं मान रहा। मैं नहीं कहना चाहूँगा कि लापरवाही हुई होगी। मगर कुछ चूक हो सकती है। यह सवाल मैं केवल रोहित के लिए नहीं कर रहा हूँ, मैं अब भी इस सवाल से जूझ रहा हूँ कि घरेलू स्तर पर डॉक्टर लोग क्या इलाज कर रहे हैं, जिससे मरीज़ इतनी बड़ी संख्या में अस्पताल जा रहे हैं और वहाँ भी स्थिति बिगड़ रही है।'
रवीश आगे अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में भारत में कोरोना महामारी की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुये लिखते हैं- 'कई जगहों से डाक्टरों के बनाए व्हाट्स एप फार्वर्ड आ जा रहे हैं। जिनमें कई दवाओं के नाम होते हैं। मैं डाक्टर नहीं हूँ। लेकिन कोविड से गुज़रते हुए जो ख़ुद अनुभव किया है कि उससे लगता है कि डाक्टर सही समय पर ज़रूरी दवा नहीं दे रहे हैं। व्हाट्एस फार्वर्ड और कई डॉक्टरों की पर्ची देख कर एक अंदाज़ा होता है कि सही दवा तो लिखी ही नहीं गई है। इसलिए मैंने एक कमांड सेंटर बनाने का सुझाव दिया था जहां देश भर से रैंडम प्रेसक्रिप्शन और मरीज़ के बुख़ार के डिटेल को लेकर अध्ययन किया जाता और अगर इस दौरान कोई चूक हो रही है तो उसे ठीक किया जाता। मैं रोहित के निधन से स्तब्धता के बीच इन सवालों से अपना ध्यान नहीं हटा पा रहा हूँ। बात भरोसे के डाक्टर की नहीं है और न नहीं डाक्टर के अच्छे बुरे की है। बात है इस सवाल का जवाब खोजने की कि क्यों इतनी बड़ी संख्या में मरीज़ों को अस्पताल जाने की नौबत आ रही है?'
रवीश अपनी पोस्ट में आगे रोहित के निधन पर सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं की ओर ध्यान दिलाकर लिखते हैं- 'कई लोग लिख रहे हैं कि आज तक ने रोहित सरदाना के निधन की ख़बर की पट्टी तुरंत नहीं चलाई। मेरे ख़्याल से इस विषय को महत्व नहीं देना चाहिए। आप सोचिए जिस न्यूज़ रूम में यह ख़बर पहुँची होगी, बम की तरह धमाका हुआ होगा। उनके सहयोगी साथी सबके होश उड़ गए होंगे। सबके हाथ-पांव काँप रहे होंगे। आप बस यही कल्पना कर लीजिए तो बात समझ आ जाएगी। दूसरा, यह भी मुमकिन है कि रोहित के परिवार में कई बुजुर्ग हों। उन्हें सूचना अपने समय के हिसाब से दी जानी है। अगर आप उसे न्यूज़ चैनल के ज़रिए ब्रेक कर देंगे तो उनके परिवार पर क्या गुज़रेगी। तो कई बार ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं। इसके अलावा और कोई बात हो तो वहाँ न्यूज़ रूम में खड़े उनके सहयोगी सच का सामना कर रही रहे होंगे। बात भले बाहर न आए, उनकी आँखों के सामने से तो गुज़र ही रही होगी।'
रवीश यहीं नहीं रुके, बल्कि उन्होंने आगे लिखा- 'आगे ख़बर बहुत दुखद है। कोविड के दौरान कई पत्रकारों की जान चली गई। सूचना प्रसारण मंत्रालय उन पत्रकारों के बारे में कभी ट्विट नहीं करता। आप बताइये कि कितने पत्रकार देश भर में मर गए, सूचना प्रसारण मंत्री ने उन्हें लेकर कुछ कहा। उन्हें हर वक़्त प्रधानमंत्री की छवि चमकाने से फ़ुरसत नहीं है। इस देश में एक ही काम है। लोग मर जाएँ लेकिन मोदी जी की छवि चमकती रहे। आप लोग भी अपने घर में मोदी जी के बीस बीस फ़ोटो लगा लें। रोज़ साफ़ करते रहें ताकि उनका फ़ोटो चमकता रहे। उसे ट्वीट कीजिए ताकि उन्हें कुछ सुकून हो सके कि मेरी छवि घर घर में चमकाई जा रही है। आम लोगों की भी जान चली गई । प्रभावशाली लोगों को अस्पताल नहीं मिला। आक्सीजन नहीं मिला। वेंटिलेटर बेड नहीं मिला। आप मानें या न मानें इस सरकार ने सबको फँसा दिया है। आप इनकी चुनावी जीत की घंटी गले में बांध कर घूमते रहिए। कमेंट बाक्स में आकर मुझे गाली देते रहिए लेकिन इससे सच नहीं बदल जाता है। लिखने पर केस कर देने और पुलिस भेज देने की नौबत इसलिए आ रही है कि सच भयावह रुप ले चुका है। जो लोग इस तरह की कार्रवाई के साथ हैं वो इंसानियत के साथ नहीं हैं।'
रवीश आगे लिखते हैं- 'इस देश को झूठ से बचाइये। ख़ुद को झूठ से बचाइये। जब तक आप झूठ से बाहर नहीं आएँगे लोगों की जान नहीं बचा पाएँगे। अब देर से भी देर हो चुकी है। धर्म हमेशा राजनीति का सत्यानाश कर देता है और उससे बने राजनीतिक समाज का भी। ऐसे राजनीतिक धार्मिक समाज में तर्क और तथ्य को समझने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इसलिए व्हाट्एस ग्रुप में रिश्तेदार अब भी सरकार का बचाव कर रहे हैं। जबकि उन्हें सवाल करना चाहिए था। अगर वे समर्थक होकर दबाव बनाते तो सरकार कुछ करने के लिए मजबूर होती।'
सरकार की आलोचना करते हुये उन्होंने इसी पोस्ट में आगे लिखा- 'अब भी सरकार की तरफ़ से फोटोबाज़ी हो रही है। अगर उससे किसी की जान बच जाती है तो मुझे बता दीजिए। जान नहीं बची। आँकड़ों को छिपा लीजिए। मत छापिए। मत छपने दीजिए। बहुत बहादुरी का काम है। बधाई। आप सबको डरा देते हैं और सब आपसे डर जाते हैं। कितनी अच्छी खूबी है सरकार की। घर- घर में लोगों की जान गई है वो जानते हैं कि कब कौन और कैसे मरा है।'
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रोहित सरदाना को श्रद्धांजलि देते हुये रवीश ने भारत सरकार से रोहित के परिवार को पाँच करोड़ का चेक देने की मांग भी की है, जो कि कई लोगों को गले नहीं उतर रही है। रोहित ना तो कोई मजदूर थे, ना उनके सामने काम का ही संकट रहा। वो मोटी तनख्वाह पाने वाले उच्च मध्यमवर्गीय भारत का हिस्सा थे और ऐसे में पांच करोड़ रुपये की मांग एक पत्रकार के लिये करना, लोगों के गले नहीं उतर रहा है। क्या रवीश कोविड से जूझ रहे बाकी भारतीयों के लिये भी इसी राशि की मांग करेंगे या फिर ये महज एक स्टंट भर था! अगर स्टंट नहीं था, तब ये मांग और मुआवजा हर उस नागरिक के लिये मांगा जाना चाहिये जो गुजर चुका या फिर गुजरने की दहलीज पर जूझ रहा है। ये मुआवजा उस नागरिक के लिये भी मांगा जाए, जिनके हाथों से काम छिन चुका है और वो जीते जी भुखमरी की कगार पर पहुंच गये हैं।
खैर, रवीश कुमार ने अपनी पोस्ट के अंत में एक नोट भी पाठकों के लिए छोड़ा है, जिसमें वो लिखते हैं- 'जो लोग रोहित के निधन पर अनाप-शनाप कहीं भी लिख रहे हैं उन्हें याद रखना चाहिए कि फ़र्ज़ इंसान होने का है। और यह फ़र्ज़ किसी शर्त पर आधारित नहीं है। तो इंसान बनिए। अभी भाषा में मानवता और इंसानियत लाइये। इतनी सी बात अगर नहीं समझ सकते तो अफ़सोस। विनम्र बनिए। इससे बड़ा कुछ नहीं है। किसी को पता नहीं है कि कौन किससे बिछड़ जाए। सारे झगड़े और हिसाब-किताब फ़िज़ूल के हैं इस वक़्त।' बहरहाल 'आज तक' ने अपना स्टार एंकर खोया है, लेकिन 'उग्र हिंदुत्व' ने अपना अघोषित प्रवक्ता।
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