गुजरात विधानसभा ने एक अप्रैल को गुरुवार के दिन यूपी और एमपी की राह पर चलते हुए 'इश्क' पर पहरा बिठा दिया है। गुजरात विधानसभा ने उस विधेयक को पारित कर दिया है, जिसमें विवाह के बाद कपटपूर्ण तरीके या फिर जबरन धर्मांतरण कराने के मामले में दस साल तक की कैद की सजा काटनी पड़ सकती है। इस विधेयक के माध्यम से 2003 के एक कानून को संशोधित किया गया है, जिसमें बलपूर्वक या प्रलोभन देकर धर्मांतरण करने पर सजा का प्रावधान किया गया है। इससे पहले भाजपा शाषित प्रदेशों एमपी और यूपी की सरकार भी इश्क पर कमोबेश ऐसे ही पहरे कानून के जरिए बिठा चुकी है। यूपी और एमपी में कई संगठनों ने इस कानून की निंदा करते हुए इसके दुरुपयोग की आशंका भी जाहिर की है।
बीते फरवरी महीने में ही गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने गोधरा में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था कि उनकी सरकार विधानसभा में लव जिहाद के खिलाफ कानून लाना चाहती है, ताकि हिंदू लड़कियों का अपहरण और धर्मांतरण रोका जा सके। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने धर्मांतरण को रोकने के लिए अपने राज्यों में ऐसा कानून लागू किया है। 'द वायर' की एक रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के नेता इसे लव जिहाद या शादी के माध्यम से हिंदू महिलाओं का धर्म परिवर्तन करने का षड्यंत्र बताते हैं।
गुजरात सरकार के अनुसार, गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2021 में उस उभरते चलन को रोकने का प्रावधान है, जिसमें महिलाओं को धर्मांतरण कराने की मंशा से शादी के लिए फुसलाया जाता है। गुजरात विधानसभा में जिस वक्त ये कानून लागू हो रहा था, उस वक्त कांग्रेस और विपक्ष के ही कुछ अन्य सदस्यों ने इस विधेयक के खिलाफ मतदान किया। अब जबरन धर्मांतरण के मामलों में अपराधी को सात से पांच साल तक की कैद की सजा सुनाई जा सकती है, जबकि दो लाख रुपये तक का जुर्माना भी लग सकता है।
इतना ही नहीं नए कानून के मुताबिक यदि धर्मांतरण के मामले में पीड़ित नाबालिग, महिला, दलित या आदिवासी हो, तब ऐसी दशा में दोषी को चार से सात साल तक की सजा सुनाई जा सकती है, जबकि ऐसे मामलों में तीन लाख रुपये तक के जुर्माना की सजा भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त नए विधेयक के मुताबिक कोई संगठन कानून का उल्लंघन करता है तो प्रभारी व्यक्ति को न्यूनतम तीन वर्ष और अधिकतम दस वर्ष तक की कैद की सजा दी जा सकती है। सदन ने दिनभर चर्चा के बाद विधेयक को मंजूरी भी दे दी है।
'लव जिहाद' पर कानून बनाने के मामले में सबसे पहले यूपी में योगी सरकार ने तेजी दिखाई थी। पिछले साल नवंबर में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020’ को मंजूरी दी थी। इस अध्यादेश के तहत शादी के लिए छल-कपट, प्रलोभन या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन कराए जाने पर अधिकतम 10 साल के कारावास और जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बनने से पहले भी 'लव जिहाद' जैसे मुद्दों पर विवादित बयान देने के मामले में अव्वल रहे हैं। पूर्व की कई रैलियों में योगी ने इस मसले पर जोर-शोर से बातें भी रखी हैं।
हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने केरल में कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून नहीं लाने पर राज्य के दोनों प्रतिद्वंद्वी मोर्चों पर जमकर हमला बोला। अलप्पुझा जिले के हरिपाद में बीजेपी की रैली को संबेाधित करते हुए उन्होंने माकपा नीत सत्तारूढ़ लोकतांत्रिक वाम मोर्चे (LDF) और कांग्रेस नीत विपक्षी संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (UDF) पर निशाना साधते हुए कहा कि दोनों मोर्चों के नेता उनकी सरकार द्वारा लाए कानून के अनुरूप ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून को लागू करने में कोई रुचि नहीं रखते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्ष 2009 में केरल उच्च न्यायालय ने लव जिहाद के खिलाफ टिप्पणी की थी लेकिन, राज्य सरकार ने अब तक इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया। बता दें कि योगी आदित्यनाथ केरल में छह अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी का प्रचार करने पहुंचे हैं।
यूपी के बाद 'लव जिहाद' जैसे मसले को लपकने में एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तेजी दिखाई और उनकी सरकार ने बाकायदा कानून में संसोधन कर ऐसे मामलों में सजा का प्रावधान रखा। इसी साल जनवरी में जब भारत और दुनिया के देश कोरोना महामारी से बचाव के जलए वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, ठीक उसी बीच जनवरी में मध्य प्रदेश सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 प्रदेश में लागू किया। इसमें धमकी, लालच, जबरदस्ती अथवा धोखा देकर शादी के लिए धर्मांतरण कराने पर कठोर दंड का प्रावधान किया गया है। इस कानून के जरिये शादी तथा किसी अन्य कपटपूर्ण तरीके से किए गए धर्मांतरण के मामले में अधिकतम 10 साल की कैद एवं 50 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
इसके अलावा दिसंबर में भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में भी जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या शादी के लिए धर्मांतरण के खिलाफ कानून को लागू किया था। इसका उल्लंघन करने के लिए सात साल तक की सजा का प्रावधान है। बहरहाल उप्र और हिमाचल प्रदेश के कानूनों में इस बात का उल्लेख नहीं है कि जब धर्म परिवर्तन के मकसद से की गई शादी को अमान्य करार दिया जाएगा, उस दशा में पीड़ित महिला और उसके बच्चों के अधिकारों का क्या होगा? मप्र के कानून में सेक्शन 9 के तहत प्रावधान किया गया है कि ऐसी सूरत में महिला को गुज़ारा भत्ता मांगने और पाने का अधिकार होगा।
इन कानूनों के मुताबिक अब यदि कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे जिला मजिस्ट्रेट की अदालत में दो महीने पहले आवेदन करना होगा। यह अवधि स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 में केवल एक महीने है। इसके बाद पुलिस धर्म परिवर्तन के वास्तविक कारण और मकसद की जांच करेगी। इसके अलावा आवेदक को धर्मपरिवर्तन के 60 दिन के भीतर मजिस्ट्रेट को एक अलग से हलफनामा देना होगा, जिसके बाद मजिस्ट्रेट आपत्ति दर्ज करने के लिए 21 दिन का नोटिस जारी करेंगे। इसके बाद ही कोई शख्स अब धर्म परिवर्तन कर सकेगा।
इधर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे पर नजर मारें तो इन कानूनों पर सवाल उठने लगते हैं। भारत में भी दुनिया की तरह लोगों के अपनी पसंद से शादी करने के मामले बढ़े हैं। वक्त के साथ अंतरजातीय विवाह के मामले बढ़े हैं, लेकिन अंतरधार्मिक विवाह के मामले में यह स्थिति नहीं है। सर्वे के मुताबिक 2.5 फीसदी युगल ने अपने धर्म से बाहर शादी की है, जबकि 13 फीसदी युगल ने अंतरजातीय विवाह किया। इनमें 1.6 फीसदी हिंदू पुरुषों ने दूसरे धर्म की महिलाओं से शादी की जबकि 4.6 फीसदी मुस्लिम पुरुषों ने दूसरे धर्म की महिलाओं से शादी कर अपनी जिंदगी की नई शुरुआत की है। इसके इतर 15.8 फीसदी ईसाई पुरषों ने दूसरे धर्म की महिलाओं से विवाह किया है।
वक्त के साथ इन कानूनों का क्या हासिल होगा, ये तो हम फिलवक्त भविश्य की गर्त में है, लेकिन इन कानूनों पर व्यापक बहस जरूर शुरू हो गई है।
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