कोरोना महामारी के बीच जिस तेजी से सरकार अपने ही निर्णयों को पलट रही है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि अब भी कई मामलों को लेकर सरकार और शोधकर्ताओं के बीच ही गफलत की स्थिति ज्यादा है। मीडिया में आ रही अलग-अलग रिपोर्ट्स को देखें तो यह गफलत कई स्तर पर नजर आती है। हाल ही में कोरोना वैक्सीन की कमी के बीच टीकाकरण पर बनाई गई राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) ने कई सिफारिशें कर नई बहस को जन्म दे दिया है। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा दो टीकों के बीच बढ़ी समयावधि को लेकर हो रही है। लोगों के बीच में इस तरह की बातें भी अब आम होने लगी हैं कि सरकार ने ऐसा टीकों की कमी के चलते किया है।
केंद्र सरकार ने अपने हालिया निर्णय में कहा कि अगर किसी को कोरोना संक्रमण हुआ है, तब ठीक होने के 6 महीने बाद वह शख्स वैक्सीन की डोज ले सकता है। हालांकि, इससे पहले एक्सपर्ट्स की तरफ से कहा गया था कि कोविड से रिकवर होने के 6 से 8 हफ्तों के बीच वैक्सीन ली जा सकती है। ये कोई अकेला मामला नहीं है, जब सरकार ने अपने ही पूर्व के निर्णय को बदल कर रख दिया। ऐसे ही कोविशील्ड वैक्सीन की दो डोज के बीच का गैप भी 6 से 8 हफ्ते से बढ़ाकर हाल ही में 12 से 16 हफ्ते कर दिया गया है। सरकार की ओर से इसके पीछे वजह राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकर समूह (एनटीएजीआई) की सिफारिश को बताया गया है, लेकिन यह लोगों के गले नहीं उतर रहा है। लोग ऐसी भी आशंका जता रहे हैं कि सरकार ने ऐसा निर्णय शायद भारत में वैक्सीन की कमी के चलते लिया हो। इस बीच कुछ रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया कि सरकार ने ब्रिटेन के आधार पर यह फैसला लिया। हालांकि, ब्रिटेन ने कोविशील्ड के टीके की दूसरी डोज का समय 12 से घटाकर अपने नागरिकों के लिये 8 सप्ताह कर दिया है। ऐसे में सवाल उठने लाजमी हैं कि एक ही वैक्सीन के लिए दो मुल्कों के इंसानों पर आखिर अलग-अलग नियम कैसे थोपे जा सकते हैं।
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केन्द्र सरकार जिस तरह से भारत में कोरोना महामारी की दूसरी वेब के दौरान लड़खड़ाई है, उसने कई लोगों की जान को खतरे में डाल दिया है। केंद्र सरकार की लापरवाही को लेकर अब कई तरह के तथ्य सामने आ चुके हैं, जिनमें पीएम और होम मिनिस्टर की चुनावी रैलियों के साथ ही कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजन को अनुमति देने पर भी मोदी सरकार की पूरी दुनियाभर में आलोचना हो रही है। हाल ही में झारखंड के मुख्यमंत्री ने तो सार्वजनिक तौर पर पीएम से काम की बात करने को लेकर तंज तक कस दिया था, जो केन्द्र सरकार और खासकर पीएम की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
वैज्ञानिक सलाहकार फोरम के अध्यक्ष ने दिया इस्तीफा
सरकार की ये गफलत केवल वैक्सीनेशन को लेकर ही नजर नहीं आती, बल्कि वैज्ञानिकों के साथ भी नजर आ रही है। कोरोना वायरस के विभिन्न वैरिएंट का पता लगाने के लिए बने वैज्ञानिक सलाहकारों के सरकारी फ़ोरम इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टिया (INSACOG) के अध्यक्ष पद से वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर शाहिद जमील ने इस्तीफ़ा दे दिया है। डॉक्टर जमील ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से अपने इस्तीफ़े की पुष्टि की है। हालांकि, उनके इस्तीफे की वजह साफ नहीं हो सकी है। अपने इस्तीफे पर उन्होंने कहा कहा- 'मैं कारण बताने के लिए बाध्य नहीं हूं।' हालांकि, डॉक्टर जमील ने रॉयटर्स से यह कहा है कि विभिन्न प्राधिकरण उस तरह से उन साक्ष्यों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने अपनी नीति तय की हुई है।
गौरतलब है कि डॉक्टर जमील ने हाल ही में न्यूयॉर्क टाइम्स अखबार में एक लेख लिखकर भारत में कोविड-19 के मैनेजमेंट को लेकर सख़्त टिप्पणियां की थी। उन्होंने कम टेस्टिंग, टीकाकरण की धीमी रफ़्तार, वैक्सीन की कमी जैसे मसलों पर अपने लेख में सवाल उठाए थे। इतना ही नहीं उन्होंने भारत में एक बड़े हेल्थकेयर वर्कफोर्स की जरूरत भी बताई थी। अपने लेख में उन्होंने लिखा- 'भारत में मेरे वैज्ञानिक साथी इन सभी तरीकों के लिए समर्थन करते हैं, लेकिन उन्हें साक्ष्य आधारित नीति निर्माण के लिए अड़ियल प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। 30 अप्रैल को 800 भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री से अपील की थी कि डेटा उन्हें मिलना चाहिए ताकि शोध, भविष्यवाणी और वायरस को रोकने में मदद मिल सके।' अब ऐसे वक्त में जबकि कोरोना महामारी के खिलाफ भारत का हेल्थकेयर सिस्टम लड़खड़ाते हुए जूझ रहा है, डॉ. जमील का इस्तीफा कई सवाल खड़े करता है।
तो क्या बेकार है कोरोना मरीजों के लिये प्लाज्मा थैरेपी?
गफलत केवल कोरोना से निपट रहे वैज्ञानिकों और सरकार के बीच ही नहीं है, बल्कि और भी कई जगह है, जिससे सिवाय भ्रम की स्थिति के और कुछ साफ नहीं हो पा रहा। अब कोरोना मरीजों को दी जा रही प्लाज्मा थैरेपी को क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल से हटा दिया गया है। AIIMS और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की नेशनल टास्क फोर्स और हेल्थ मिनिस्ट्री की जॉइंट मॉनिटरिंग ग्रुप ने शनिवार को इसका ऐलान करते हुए रिवाइज्ड क्लिनिकल गाइडेंस जारी कर दी हैं।
ICMR ने माना कि दुनियाभर में मरीजों के इलाज के आंकड़े प्लाज्मा थैरेपी के कारगर होने को साबित नहीं करते। खास बात यह है कि सितंबर 2020 में ICMR ने अपनी स्टडी में कहा था कि प्लाज्मा थैरेपी कोरोना के इलाज में मददगार नहीं है। इसके बावजूद, उन्हें इसे भारत के क्लीनिकल प्रोटोकॉल से हटाने का फैसला लेने में 8 महीने लग गए।
ऐसे में तब सवाल तो उठेगा ही कि अब तक क्यों प्लाज्मा डोनर्स ढूंढने में तीमारदारों से लेकर अस्पतालों तक की फजीहत करवाई जा रही थी? इस सवाल का बेहतर जवाब लाला रामदेव की 'कोरोनिल' को टीवी पर मुस्कुराते हुए प्रचारित करने वाले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ही ज्यादा बेहत्तर बता सकते हैं। वैसे भी वो भारत के गरीब भूखे-नंगों को 'डार्क चॉकलेट' खाकर कोरोना से लड़ने का गुरुमंत्र तो दे ही चुके हैं।
खैर, जब उनकी पार्टी के सांसद खुलकर गोमूत्र पीकर कोरोना संक्रमण से लड़ने के दावे ठोक रहे हों, तब क्या कुछ नहीं हो सकता! हेल्थ फैसिलिटीज बढ़ाने में देश की सरकार कितना आगे बढ़ी है, इसके आंकड़े हम फिर कभी देख लेंगे, लेकिन 'गो कोरोना' से 'गोमूत्र' तक आने में जरूर नेताओं ने एक साल से भी कम का वक्त लिया है। 'ताली-थाली' बजवाकर कोरोना की जंग लड़ने वाले अवैज्ञानिक पीएम की अगुवाई में गफलत की और क्या-क्या स्थितियां इस वक्त देश में होंगी, इसका हम केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं।
देश में कोरोना की अभी कई और लहर मचा सकती हैं कोहराम
भारत में बढ़ते कोरोना संक्रमण के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन का दावा है कि भारत में कोरोना संक्रमण की अभी और कई नई लहरें आ सकती हैं। उन्होंने कहा कि महामारी के लिए अगले 6 से 18 महीने में किए गए प्रयास काफी अहम होंगे संक्रमण काल में वायरस में होने वाले बदलाव और नए वैरिएंट्स के खिलाफ वैक्सीन की प्रभावी क्षमता जैसी कई चीजों पर भी यह निर्भर करेगा कि आगे भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना की स्थिति क्या रहेगी।
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अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ को दिए इंटरव्यू में डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने देश में कोरोना की वर्तमान स्थिति और वैक्सीनेशन को लेकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि भारत में मिला वायरस का B1.617 वैरिएंट कोरोना के ओरिजिनल स्ट्रेन के मुकाबले दोगुना ज्यादा संक्रामक है। अब तो यह वैरिएंट भी दो अलग-अलग स्ट्रेन में बंट गया है। इनके म्यूटेशन में बदलाव दिख रहा है। हालांकि, यह कितना गंभीर या खतरनाक है, इसके रिजल्ट का इंतजार हम सभी को है। उन्होंने कहा कि भारत में मौजूद वैक्सीन नए वैरिएंट और उसके म्यूटेंट के खिलाफ भी कारगर है। उन्होंने आगे बताया कि वैक्सीन लेना बहुत जरूरी है। हो सकता है वैक्सीनेशन के बाद भी लोग संक्रमित हों, लेकिन कंप्लीट वैक्सीनेशन के बाद एक बड़ी आबादी को गंभीर खतरे से बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि भारत समेत कई देशों में मौतों के आंकड़े कम आंके गए हैं। भारत में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत करने की जरूरत है। खासकर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तरों पर इसे ठीक करना ज्यादा बेहतर होगा।
इस बीच DRDO लेकर आया 'राहत की डोज'
DRDO की एंटी कोरोना ड्रग 2-DG का 10 हजार डोज का पहला बैच सोमवार को इमरजेंसी यूज के लिए रिलीज कर दिया गया। अब इस दवा को मरीजों को दिया जा सकता है। ये दवा एक पाउडर के रूप में है। दवा को सबसे पहले दिल्ली के DRDO कोविड अस्पताल में भर्ती मरीजों को दिया जाएगा। कहा जा रहा है कि कोरोना के इलाज में 2-DG भारत में कोरोना मरीजों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। DRDO ने इस दवा को लेकर 2 दावे किए हैं और वो दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं। DRDO का कहना है इस दवा से मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी, दूसरा मरीजों को ठीक होने में 2-3 दिन का वक्त कम लगेगा। इससे अस्पतालों पर भी दबाव कुछ कम हो सकेगा। देशभर में इस वक्त ऑक्सीजन और हॉस्पिटल में बेड की कमी का सामना मरीजों को करना पड़ रहा है। ऐसे में ये दवा इन दोनों ही समस्याओं से निपटने में गेमचेंजर साबित हो सकती है।
बहरहाल, महामारी के बीच गफलत और बार-बार बदलते निर्णयों को देखकर तो यही लग रहा है कि अभी आगे और भी कई ऐसे चौंंकाने वाले फैसले सरकार की ओर से देखने को मिल सकते हैं। भविष्य में जब कोरोना महामारी निपटेगी और इस दौर पर एक्सपर्ट किताबें लिख रहे होंगे, तभी शायद इस दौर की गफलत भी कुछ साफ हो और इस दौर की कहानियां सामने आ सकें।
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