नये आईटी रूल्स को लेकर आये दिन कुछ न कुछ खबरें सुनने को मिल ही जाती हैं। एक ओर सरकार और ट्विटर के बीच कोल्ड वॉर चल रहा है, दूसरी ओर आईटी नियमों के खिलाफ भारत के बड़े मीडिया हाउस आखिरकार कोर्ट पहुंच गये हैं। डिजिटल न्यूज में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली परंपरागत अखबार और टेलीविजन मीडिया की कंपनियों ने 2021 के नए आईटी नियमों को गैर कानूनी और असंवैधानिक करार देते हुए अब इसे कोर्ट में चुनौती दी है। मीडिया हाउसेज का कहना है कि नए नियम प्रेस की स्वतंत्रता के लिये घातक हैं। देर से ही सही भारत के बड़े मीडिया हाउसेज के नये आईटी रूल्स के खिलाफ कोर्ट पहुंचने से एक बात तो साफ है कि अब यह लड़ाई लंबी चलने जा रही है।
डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) ने मद्रास हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर करते हुए इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स, 2021 को संविधान विरोधी, अवैध और संविधान के अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19(1) क और अनुच्छेद 19(1) छ का उल्लंघन करनेवाला घोषित करने की मांग की है। बता दें कि डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन में एनडीटीवी, इंडियन एक्सप्रेस, टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडिया टुडे, अमर उजाला, दैनिक भास्कर और दैनिक जागरण जैसे घराने शामिल हैं।
याचिका में कहा गया है कि नए नियम देश में न्यूज मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी और उसकी स्वतंत्रता, जिसे देश की सर्वोच्च अदालत ने अपने एक के बाद एक कई फैसलों में बरकरार रखा है, पर अंकुश लगाने का दरवाजा खोलते हैं। कार्यपालिका को प्रकाशकों को सूचना दिए बगैर ही किसी न्यूज कंटेंट को हटाने का आपातकालीन अधिकार देने वाले नए आईटी नियमों को लगभग इन्हीं आधारों पर पूर्व में कुछ डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म ने चुनौती दी है।
डीएनपीए की याचिका पर अदालत ने प्रासंगिक सरकारी एजेंसियों को नोटिस जारी कर दिया है। इस याचिका में बगैर किसी गोलमोल के यह कहा गया है कि नए आईटी कानून ने ऐसी इकाइयों के आचरण को भी कानून के तहत में लाने की कोशिश की है, जो इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2000 के दायरे से भी बाहर हैं। डीएनपीए की याचिका में कहा गया है कि इसने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव का ध्यान इन नए आईटी नियमों की पूरी तरह से अवैधता और असंवैधानिकता की ओर आकर्षित करने की कोशिश की, मगर इसका कोई फायदा नहीं हुआ। सरकार कुछ भी सुनने के लिए राजी नहीं दिखती।
डीएनपीए के सदस्यों ने कहा है कि सरकार ने अंशधारकों से मशविरा किए बगैर ही नए मीडिया नियमों के अनुपालन की अधिसूचना जारी कर दी। डीएनपीए ने यह दलील दी है कि प्रेस काउंसिल एक्ट, केबल टीवी नेटवर्क एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड और अन्य मौजूदा कानून मीडिया का नियमन करने के लिए पर्याप्त हैं। इसके अलावा ऐसे नियमों की कोई कमी नहीं है, जिसके तहत वर्तमान में मीडिया को आपराधिक मानहानि से लेकर आपराधिक धाराएं लगाने वाली एफआईआर तक के द्वारा जवाबदेह ठहराया जाता है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने परंपरागत मीडिया की मौजूदा व्यवस्था के तहत पर्याप्त तरीके से विनियमित होने के दावे को खारिज कर दिया। सरकार ने डीएनपीए को लिखा कि उनके डिजिटल मंचों को डिजिटल समर्पित न्यूज संस्थानों की ही भांति नए नियमों का पालन करना होगा। मीडिया घराने जब मोदी सरकार को समझाने में नाकाम हो गये तब डीएनपीए के सदस्यों ने मद्रास हाईकोर्ट में गुहार लगाने का फैसला किया।
अपनी टांग ऊपर रखकर लड़ाई लड़ रहा डीएनपीए
डीएनपीए ने अपनी रिट याचिका में कहा है कि परंपरागत मीडिया, जिसने आजादी के बाद के दशकों में विनियामक आदर्शों और मानकों का निर्माण किया है, उसकी तुलना नए और डिजिटल की पैदाइश वाले न्यूज संस्थानों से नहीं की जा सकती है! यह अपने आप में बड़ा कुतर्क है। अनुच्छेद 19 (1) के तहत जिस अभिव्यक्ति की आजादी की गारंटी दी गई है, वह दो न्यूज प्लेटफॉर्मों के बीच अंतर नहीं करता है। यह ठीक वैसी ही बात है जैसे गांव का जमींदार यह कहे कि मेरे लिये अलग से नियम होना चाहिये, जो कि हास्यास्पद है।
बहरहाल अब तक नये आईटी कानूनों को लेकर चुप्पी साधे बैठे भारत के बड़े मीडिया घराने मानों माइक टेस्ट कर रहे हों और अब जबकि टेस्टिंग पूरी हो गई है, तब उन्होंने गुहार लगा ही दी। इस मामले में कोर्ट का क्या फैसला आता, यह जरूर दिलचस्प रहने वाला है।
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