गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
पिछले दिनों खबरें आई कि मशहूर फाइव स्टार होटल चेन एशियन होटल्स (वेस्ट) ने मुंबई के हयात रीजेंसी होटल को बंद करने का फैसला लिया है। होटल ने 7 जून 2021 को जारी किए नोटिस में साफ कर दिया कि उसके पास कर्मचारियों को सैलरी देने के लिए पैसे नही है, जिसके चलते अगले आदेश तक होटल की सभी सेवाएं अस्थायी रूप से स्थगित कर दी गई। साल 2020-21 के नौ महीनों में होटल ग्रुप को 109 करोड़ रुपये का घाटा हुआ, जिसके चलते हयात रीजेंसी को बंद करना पड़ा। इससे एक झटके में हयात रीजेंसी में कार्यरत 150 से ज्यादा कर्मचारियों की नौकरी चली गई है। ये हाल उस ग्रुप का था जिसका सालाना टर्नओवर करोड़ों में था।
अब इस खबर के बरक्स उन छोटे नये व्यवसाइयों के बारे में सोचिये, जिन्होंने हाल ही में बैंकों से लोन लेकर इस उद्योग में अपनी शुरुआत भर ही की थी। ऐसे कई व्यवसायी उत्तराखंड में कर्ज के भंवर में फंस गये हैं, जहां से निकलने का उन्हें फिलहाल तो कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। उत्तराखंड की बात हम यहां खासतौर पर इसलिये भी कर रहे हैं, क्योंकि पिछले कुछ सालों में पर्यटन उद्योग में निवेश राज्य सरकार की प्राथमिकता में रहा है। सरकार ने न केवल लोगों को पर्यटन उद्योग से जुड़ने के लिये लोक-लुभावन योजनाओं की शुरुआत की थी, बल्कि रोजगार पैदा करने में नाकाम रही राज्य सरकार को यही अपनी जिम्मेदारियों से बचने का सबसे आसान तरीका भी नजर आया था।
हालांकि, अब स्थिति यह है कि खुशहाली का वादा करने वाला टूरिज्म सेक्टर ही इस उद्यम में पैसा लगाने वाले व्यवसाइयों को गहरे जख्म दे रहा है। राज्य में कुल 4657 रजिस्टर्ड होम स्टे हैं। अब जबकि कारोबार ही नहीं चल रहा रहा तब इनके हालात इतने खराब हो गये हैं कि छोटे होटल व्यवसायी कर्ज के जाल में धंस गये और बड़े व्यापारियों को बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। इधर सरकार की ओर से अभी तक इस उद्योग को हुये नुकसान की भरपाई के लिये कोई घोषणा भी नहीं की गई है।
पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड सरकार ने राज्य में टूरिज्म सेक्टर को मजबूत करने के उद्देश्य से कई योजनाओं की शुरुआत की थी। इनमें होम स्टे सबसे प्रमुख योजना थी। सरकार ने सूबे में ही रोजगार के साधन पैदा करने के लिये लोगों को होम स्टे बनवाने के लिये प्रेरित किया था, जिसके लिये कई किस्म के लोन ऑफर किये गये थे। कई युवाओं ने सरकार की इन स्कीम्स के तहत राज्य के दूरस्थ इलाकों में होम स्टे शुरु भी किये, लेकिन पिछले एक साल में दो दफा लगे लंबे लॉकडाउन और यात्रियों पर तरह-तरह की बंदिशों ने होम स्टे पर ताले लगवा दिये। लॉकडाउन के चलते न केवल इन छोटे व्यवसाइयों के सामने नये आर्थिक संकट खड़े हुये, बल्कि बैंक की किश्तें निकालना भी भारी पड़ गया है।
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'नॉर्मल टाइम' में प्रोत्साहन, मुश्किल घड़ी में मंझधार में छोड़ा
आपदाओं के अलावा कोई दूसरी बात जो उत्तराखंड को पहचान दिलवाती है, वह है यहां का पर्यटन उद्योग। पिछले कुछ सालों में राज्य के पर्यटन व्यवसाय में लोगों को इन्वेस्ट करने के लिये सरकारों ने खूब लोक-लुभावन नारे दिये, लेकिन कोरोना महामारी ने बाकी के उद्योगों की ही तरह राज्य में पर्यटन व्यवसाय को भी गहरा धक्का लगाया है। पर्यटन उद्योग को लेकर सरकार कितनी संजीदगी से काम कर रही थी, इसकी बानगी पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के उस भव्य इंवेट से ही हो जाती है, जो उन्होंने पिछले साल अपने गृहक्षेत्र सतपुली जैसी 'अलोकप्रिय' जगह पर आयोजित किया था।
उमसभरी घाटी, जहां टूरिज्म की संभावनाओं के लिये दूर-दूर तक कुछ भी नजर नहीं आता, पूर्व मुख्यमंत्री ने वहां नयारघाटी फेस्टिवल का आयोजन कर लोगों में तरक्की की भयानक उम्मीदें जगा दी थी, लेकिन अब यह सब धराशाही हो गई हैं। नयारघाटी फेस्टिवल ने आस-पास होम स्टे के कारोबार में लोगों की दिलचस्पी को काफी बढ़ा दिया था, लेकिन आज इन व्यवसाइयों से बात करें तो मायूसी ही ज्यादा नजर आती है।
खोखले हैं सरकार के दावे
उत्तराखंड सरकार ने राज्य के बाशिंदों को पर्यटन व्यवसाय में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया तो दिल्ली में अपनी कॉरपोरेट की नौकरी छोड़कर, सतपुली से महज 50 किलोमीटर दूर पौड़ी मुख्यालय से सटे क्यार्क गांव में दीपक नौटियाल ने साल 2019 में अपने पैतृक घर को होम स्टे में तब्दील कर दिया। दीपक ने इसके साथ ही पास में ही जमीन खरीदकर होम स्टे के कारोबार को बढ़ाने के लिये बैंक से लोन भी लिया, लेकिन पिछले दो सालों में मुनाफा तो दूर इस व्यवसाय से उनकी बैंक की किश्तें निकलना भी मुश्किल हो रहा है।
भारी भरकम निवेश के बावजूद वो मुनाफे के इंतजार में ही वह अपने काम को बढ़ा रहे हैं। दीपक सरकार की लोक लुभावन योजनाओं की कलई खोलकर रख देने वाली सच्चाइयों से रूबरू करवाते हैं। वो कहते हैं उत्तराखंड़ पर्यटन मंत्रालय ने पंडित दीन दयाल गृह आवास (होम स्टे) योजना को विज्ञापनों में खूब शोर शराबे से शुरू किया, लेकिन यह योजना अपने ही वादे पूरे नहीं कर पा रही।
इस योजना की घोषणा करते हुये सरकार ने व्यवसाइयों से वादा किया था कि वह शिविरों का आयोजन कर बैंक लोन संबंधी दिक्कतों को दूर करेगी, लेकिन ऐसा कोई शिविर कभी उनके आस-पास भी लगा, इसकी जानकारी भी उन्हें या अन्य कारोबारियों को नहीं है। इस होम स्टे योजना के तहत मैदानी क्षेत्रों में 25 फीसदी या साढ़े सात लाख रुपये और पर्वतीय क्षेत्रों में 33 फीसदी या 10 लाख रुपये तक की छूट का प्रावधान किया गया था। इसके साथ ही ब्याज में पहले 5 सालों तक मैदानी क्षेत्रों में एक लाख प्रति वर्ष और पर्वतीय क्षेत्रों में डेढ़ लाख प्रति वर्ष छूट की बात की गई थी, लेकिन इसका लाभ उन्हें अब तक नहीं मिल सका है।
इस योजना को शुरू करते वक्त यह भी कहा गया था कि सरकार एक इलाके में छह से अधिक होम स्टे के पंजीकृत होने पर इलाके को कल्स्टर के तौर पर डेवलप करते हुये बिजली, पानी, सड़क और पार्क जैसी सुविधाएं देगी, लेकिन धरातल पर ऐसा कहीं भी नहीं हो सका है। दीपक कहते हैं सरकार की बेरुखी से तो लोग लड़ भी लें, लेकिन कोरोना ने छोटे व्यवसाइयों की कमर तोड़ दी है। वो कहते हैं कि सरकार को पर्यटन उद्योग को संजीवनी देने के लिये कर्ज माफी समेत अन्य बिलों में रियायत के बारे में सोचना चाहिये।
5000 होम स्टे खोलने के लक्ष्य को झटका
टूरिज्म उत्तराखंड की आय में राजस्व का बड़ा स्त्रोत है, लेकिन अब राज्य के लिये इस स्त्रोत को पैदा करने वाले ही बुरी स्थितियों में पंहुच गये हैं। राज्य में लंबे समय से हो रहे पलायन को रोकने के लिये टूरिज्म सरकार को सबसे कारगर तरीका लगा और इसके लिये मौजूदा भाजपा सरकार ने 5000 होम स्टे खेलने का लक्ष्य रखा था। तेजी से सूबे के दूरस्थ इलाकों तक में होम स्टे के निर्माण में तेजी भी देखने को मिल रही थी, लेकिन कोरोना महामारी ने इस स्पीड पर न केवल ब्रेक लगा दिये, बल्कि लोगों को कभी ना भूलने वाले आर्थिक झटके भी दे दिये हैं। राज्य की जीडीपी में सर्विस सेक्टर का बड़ा योगदान है, लेकिन महामारी के चलते यह भी गड़बड़ा गया है।
हमारे लिये अलग नीतियां क्यों?
रुद्रप्रयाग जिले में चोपता के करीब होम स्टे शुरू करने वाले युवा व्यवसायी अंशुल भट्ट सूबे में कोरोना काल के दौरान टूरिज्म सेक्टर की एक अलग समस्या से रूबरू करवाते हैं। अंशुल के मुताबिक सूबे में पर्यटन की एसओपी छोटे कारोबारियों और कॉरपोरेट में भेदभाव करने वाली हैं। अंशुल कहते हैं कि एक ओर राज्य सरकार का पर्यटन विभाग सूबे में लॉन्ग स्टे और वर्क-स्टेशन को बढ़ावा देने के लिये रोज अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर प्रचार कर रहा है और दूसरी ओर जब कोई पर्यटक पूरे कागजों और जांच रिपोर्ट के साथ स्टे के लिये पहुंच रहा है, तब उसे स्थानीय प्रशासन रास्ते से ही वापस भेज दे रहा है।
हाल ही में अंशुल ने ऑनलाइन काफी मशक्कत के बाद एक गेस्ट को लॉन्ग स्टे के लिये तैयार किया। ये पर्यटक जब सारी औपचारिकताएं पूरी कर रुद्रप्रयाग पहुंचा, तो वहां स्थानीय प्रशासन ने उसे रोक लिया और करीब तीन घंटे परेशान करने के बाद पर्यटक को वापस लौटने के लिये कह दिया गया। अंशुल बताते हैं कि इसके उलट जॉस्टल जैसे कॉरपोरेट हॉस्टल चेन धडल्ले से बुकिंग ले रही है। वो सवालिया अंदाज में कहते हैं- 'ऐसा लग रहा है कि सरकार के सारे कायदे छोटे व्यावपारियों को ध्वस्त करने के लिये ही बने हैं, जबकि कॉरपोरेट पर यह सब लागू नहीं होता है।' अंशुल लगातार छोटे कारोबारियों को हो रही दिक्कतों को लेकर सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, लेकिन यहां भी नतीजे पूरे हिन्दुस्तान की ही तरह हैं। ना सरकार को इस बात से कोई चिंता है, ना प्रशासन को कारोबारियों के नुकसान की फिक्र।
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होटल इंडस्ट्री की मांगें
होटल एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष संदीप साहनी के मुताबिक पिछले साल छोटे-छोटे रिलीफ सरकार की ओर से जरूर मिले थे, लेकिन इस साल सरकार की ओर से पर्यटन उद्योग को कोई रियायत नहीं मिली है। सैनी बताते हैं कि सूबे के 30 से 40 फीसदी लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर पर्यटन उद्योग से जुड़े हुये हैं और उनकी आर्थिकी को बड़ी चोट लगी है। वो कहते हैं कि पिछले साल सरकार ने तीन महीने बिजली बिल चार्ज माफ किये थे, लोन की किश्त आगे बढ़ी थी और कर्मचारियो के प्रोविडेंट फंड में सरकार की ओर से मदद की गई थी, लेकिन इस साल अब तक सरकार की ओर से ऐसी कोई रियायत अब तक नहीं दी गई है। एसोसिएशन ने राज्य सरकार से प्रॉपर्टी टैक्स, लाईसेन्स फीस, बिजली और पानी बिल में राहत और केंद्र सरकार से लोन रीपेमेंट के स्टिमुलस पैकेज की मांग की है। वो कहते हैं कि सरकार ने इस वक्त अगर पर्यटन उद्योग का हाथ नहीं थामा, तो स्थितियां मुंबई में बंद हुये हयात रीजेंसी की ही तरह हो सकती हैं।
इस बार भी डांवाडोल है चारधाम यात्रा
उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा पर रोक लगाई है और धीरे-धीरे स्थानीय लोगों को ही कुछ शर्तों के साथ दर्शन की इजाजत मिली है। उत्तराखंड में मई माह से चारधाम यात्रा की शुरूआत होती है। इसके लिये यात्रारूट पर तमाम व्यापारियों ने तैयारी भी शुरू कर दी थी, लेकिन चारधाम के सुचारू रूप से चलने की उम्मीदें इस साल भी ना के बराबर ही है। हाल ही में सीएम तीरथ सिंह रावत ने कहा कि कोविड संक्रमण के चलते यात्रा की मंजूरी नहीं दे सकते। लिहाजा, इस बार यात्रा को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया जा रहा है। सरकार के इस फैसले से व्यापारी परेशान हैं। इधर यात्रा बंद होने के चलते कई गाड़ी मालिकों ने भी अपने परमिट सरेंडर कर दिये हैं। कुल मिलकार देखें तो पूरे उत्तराखंड में एक बड़े तबके के सामने आर्थिक संकट भयानक तौर पर गहरा गया है।
एक ही दिन में तीन लाख की ऑनलाइन बुकिंग हुई कैंसिल
पहले से ही करोड़ों रूपयों के घाटे में चल रहे गढ़वाल मंडल विकास निगम को भी इस बार चारधाम यात्रा से बहुत उम्मीद थी। चारधाम यात्रा से पहले फरवरी और मार्च में ही यात्रा रूट पर पड़ने वाले उसके सैकड़ों गेस्ट हाउसों को दस करोड़ रूपयों की एडवांस बुकिंग मिल चुकी थी। इससे चार महीने से तनख्वाह से महरूम कर्मचारियों के चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी, लेकिन सरकार के निर्णय से अब जीएमवीएन के कर्मचारी भी मुश्किल में फंस गये हैं।
जीएमवीएन के एमडी आशीष चैहान बताते हैं कि अभी तीन करोड़ में से सिर्फ सात लाख के करीब बुकिंग कैंसिल हुई है। उम्मीद है कि पर्यटक बुकिंग कैंसिल कराने की बजाय बुकिंग आगे के लिए शिफ्ट करवाने की सोचेंगे। उन्हें उम्मीद है कोरोना की स्थिति सुधरते ही, पर्यटक वापस लौट आएंगे। इसीलिए जीएमवीएन अब भी कैंसिल से अधिक जोर बुकिंग को आगे बढ़ाने पर लगा रहा है।
कोविड केयर सेंटर से बड़ा नुकसान
पर्यटक आवास गृहों के कोविड केयर सेंटर बनने से भी बड़ा नुकसान हो रहा है। नैनीताल में केएमवीएन के सूखाताल और तल्लीताल सरकारी टूरिस्ट रेस्ट हाउस का अधिग्रहण हो गया है। यहां कोविड केयर सेंटर बनाए जा रहे हैं। पिछली बार भी कोरोना के समय में टीआरएच को केविड केयर सेंटर में तब्दील किया गया था। नैनीताल के साथ मोहान में दो टीआरएच कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं। जीएमवीएन के ऋषिकेश में भरत भूमि और मुनिकीरेती में कोविड सेंटर बनाया गया है।
पिछले साल जहां उत्तराखंड में कोविड संक्रमण काबू में रहा, वहीं इस बार ये बेकाबू हो गया। राज्य में कोविड सूनामी का कारण विशेषज्ञ कुंभ में कोविड गाइडलाइन की लगातार उड़ी धज्जियों को मानते हैं। कई ऐसा भी मानते हैं कि सरकार अगर पहले अगर कुंभ में देशभर के लोगों को बिना जांच किये न आने देती तो आज राज्य में चारधाम यात्रा रोकने का निर्णय न लेना पड़ता
तनाव में निवेशक
मसूरी के पास यमनो़त्री रूट पर जितेंद्र रावत का रेस्टोरेंट और होम स्टे है। जितेंद्र बताते हैं कि वो पहले पूना में एक होटल में बतौर शेफ कार्यरत थे, लेकिन पिछले साल आये कोविड लॉकडाउन में उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद उन्होंने वापस लौटकर अपना व्यवसाय शुरू किया। इसके लिये उन्हें बैंक से लोन लेना पड़ा और कुछ अपनी जमा पूंजी लगाई, लेकिन अब यात्रा ही बंद हो गई है। इस फैसले से उनका परिवार गहरे तनाव में आ गया है। ऐसे ही रूद्रप्रयाग में केदारनाथ रोड पर होम स्टे चलाने वाले जगदीश सेमवाल बताते हैं कि उन्होंने पूरे होम स्टे की मरम्मत यह सोच कर करवाई थी कि इस बार सब ठीक रहेगा, लेकिन बैंक से लोन लेने के बाद अब समझ नहीं आ रहा कि किस्त कहां से भरी जाएगी।
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राहत पैकेज नहीं मिला, तो बर्बाद हो जाएंगे लोग
उत्तराखंड में एसडीसी थिंक टैंक के संस्थापक अनूप नौटियाल बताते हैं कि सरकार ने कुंभ के दौरान जो भी एसओपी जारी की, वो महज कागजों तक रही। हाल ही में यह भी पता चला है कि फर्जी आरटी पीसीआर रिपोर्ट को लेकर लाखों लोग कुंभ में शामिल हुये। अनूप कहते हैं कि जमीनी स्तर पर अगर सख्ती से नियमों का पालन होता तो स्थिति इतनी न बिगड़ती। उनका कहना है कि अब सरकार को तुरंत बिना देरी के पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिये राहत पैकेज जारी करना चाहिये। इसमें बिजली के बिल और अन्य जरूरी व्यय को प्रारंभिक तौर पर माफ किया जाना चाहिये। वो कहते हैं कि राज्य के युवाओं ने होम स्टे बैंक से लोन लेकर बनाये है, लेकिन पिछले दो साल से उनका व्यवसाय बिल्कुल ठप्प पड़ा हुआ है। ऐसे में उनकी स्थिति सरकार को समझनी चाहिये।
उत्तराखंड में हर साल डेढ़ करोड़ टूरिस्ट आते रहे हैं। जिसमे लगभग 65 लाख धार्मिक यात्री होता है। पिछली बार के यानी 2019 के आंकड़े देखें तो, राज्य में केवल चारधाम यात्रा के दौरान ही करीब 2000 करोड़ का कारोबार होता था, लेकिन कोरोना काल में एक भी रुपये का कारोबार नहीं हुआ है। इसके अलावा सरकार को न वैट मिला है और न ही अन्य राजस्व प्राप्त हुए हैं।
देश में 60,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्जा
होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (HAI) के मुताबिक, सभी कैटेगरी के होटलों में लगभग जीरो रेवेन्यू दर्ज किया गया है। एसोसिएशन का प्राथमिक डेटा दिखाता है कि 40 फीसदी से ज्यादा होटल बंद हो चुके हैं और करीब 70 फीसदी बंद होने की कगार पर हैं। फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टॉरेंट एसोसिएशन्स ऑफ इंडिया (FHRAI) का कहना है कि इंडस्ट्री में 9 करोड़ नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है। FHRAI ने कहा है कि पहली वेव में करीब 50 फीसदी नौकरियां चली गई थीं, जबकि दूसरी वेव में स्थिति और खराब हुई है और 70 फीसदी नौकरियां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अब तक जा चुकी हैं। FHRAI की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 में भारतीय होटल उद्योग का कुल रेवेन्यू 1.82 लाख करोड़ था। 2021 में होटल उद्योग का लगभग 75% रेवेन्यू खत्म हो गया है, जो कि करीब 1.3 लाख करोड़ होता है। होटल इंडस्ट्री पर बकाया कुल 60,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्जा है।
बहरहाल केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों को पर्यटन उद्योग को राहत देने के लिये ठोस जमीनी घोषणाएं और उन पर सख्ती से अमल करने की जरूरत है। व्यापार चौपट होने से इस उद्योग से जुड़े हुये हजारों परिवार बर्बादी की कगार पर पहुंच गये हैं, जहां उनके पास फिलवक्त सिवाय असीम तनाव के दूर-दूर तक कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है।
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