कोलम्बस की हड्डियों का सफर और दो मुल्कों का दावा!

डी/35कोलम्बस की हड्डियों का सफर और दो मुल्कों का दावा!

अशोक पांडे

अशोक पांडे साहब सोशल मीडिया पर बड़े चुटीले अंदाज में लिखते हैं और बेहद रोचक किस्से भी सरका देते हैं. किस्से इतने नायाब कि सहेजने की जरूरत महसूस होने लगे. हमारी कोशिश रहेगी हम हिलांश पर उनके किस्सों को बटोर कर ला सकें. उनके किस्सों की सीरीज को हिलांश डी/35 के नाम से ही छापेगा, जो हिमालय के फुटहिल्स पर 'अशोक दा' के घर का पता है.

क्रिस्टोफर कोलम्बस का नाम दुनिया के इतिहास में सबसे बड़े जहाजी के रूप में स्थापित है। वर्ष 1492 और 1504 के दौरान चार महान यात्राएं कर चुकने के बाद जब वह वापस स्पेन लौटा उसकी आयु 53 वर्ष की हो चुकी थी और वह काफी बीमार था। उसकी आंखें कमजोर हो गयी थीं और उसे गठिया का रोग लग चुका था। स्पेन के वायादोलीद और सेवीले कस्बों के बीच आवाजाही करते हुए उसने अपने जीवन के अगले अठारह महीने इस उम्मीद में गुजारे कि उसके संरक्षक राजा फ़र्डीनांड और रानी ईसाबेला से उसे वह धन और आधिकारिक सम्मान मिलेगा, यात्राओं से पहले जिनका वायदा किया गया था।

इस दौरान ईसाबेला की मौत भी हो गयी। 1505 में उसकी राजा के साथ एक संक्षिप्त मुलाक़ात हुई भी लेकिन फ़र्डीनांड ने किसी तरह का आश्वासन नहीं दिया। इसके बाद से राजदरबार में कोलम्बस के मामले की पैरवी उसके बड़े बेटे दिएगो के जिम्मे रह गयी जो राजकीय गारद में नौकरी किया करता था।

20 मई 1506 को कोलम्बस की मौत हो गयी। मृत्यु के वक्त उसकी बगल में उसके दोनों बेटों दिएगो और हेरनान्दो के अलावा उसका भाई और कुछ पुराने जहाजी साथी थे। पादरी ने प्रार्थना की और मरने से पहले कोलम्बस ने फुसफुसा कर अपने आप को ईश्वर के हाथों में सौंप देने की बात बोली।

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वायादोलीद में उसका अंतिम संस्कार कर उसे सेवीले के सांता मारिया दे लास कुएवास चर्च में दफनाया गया। अपने जीते जी कोलम्बस ने कहा था कि मौत के बाद उसे उस नए संसार में दफनाये जाने की इच्छा है जिसे उसने खोजा था। अपने जीवनकाल में क्रिस्टोफर कोलम्बस को कभी पता नहीं चल सका था कि उसने एक नए संसार की खोज की थी। उसने सोचा था कि उसने एशिया के कुछ अजनाने हिस्सों को खोजा था। अलबत्ता जब उसकी मृत्यु हुई तो उसके परिवार ने पाया कि समूचे वृहत्तर अमेरिका में उसके कद के व्यक्ति को दफनाये जाने लायक एक भी चर्च नहीं था।

कोई तीस साल बाद स्पेन के राजदरबार ने कोलम्बस की पुत्रवधू मारिया को इस बात की इजाजत दे दी कि वह अपने ससुर और अपने पति दीएगो के अवशेषों को कैरिबियन में अवस्थित सान्तो डोमिंगो, जो अब डोमिनिकन रिपब्लिक का हिस्सा है, के चर्च में ले जाकर दफनाए। तो अब सान्तो डोमिंगो कोलम्बस और उसके बेटे के शरीरों की आरामगाह बना।

समय बीतने के साथ स्पेनिश साम्राज्य के लिए सान्तो डोमिंगो की महत्ता कमतर होती गयी और 1795 में हुई एक शान्ति-संधि के बाद उसने सान्तो डोमिंगो सहित समूचे हिस्पानियोला को फ्रांसीसी साम्राज्य को सौंप दिया। इस तरह सान्तो डोमिंगो पर स्पेन का कब्जा ख़त्म हुआ और फ्रांसीसी शासन शुरू हो गया।

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कोलम्बस को तब तक स्पेन के राष्ट्रीय गौरव का दर्जा मिल चुका था और उसके शासकों को लगा कि फ्रांसीसी सत्ता उसकी कब्र को हानि पहुंचाने की कोशिश कर सकती है। कोलम्बस के शरीर के अवशेषों को फिर से बाहर निकाला गया और उन्हें क्यूबा की राजधानी हवाना के एक कब्रिस्तान में दफ़न किया गया।

कोई सौ वर्षों बाद साल 1898 में स्पेनिश-अमेरिकी युद्ध हुआ जिसमें क्यूबा के हाथों स्पेन की पराजय हुई। इस ऐतिहासिक घटना के बाद बेचारे क्रिस्टोफर कोलम्बस की कब्र एक बार फिर से खोदी गयी। इस दफा उसकी देह के अवशेषों को पानी के जहाज के माध्यम से हवाना से स्पेन भेजा गया। स्पेन में उसे फिर से सेविले के उसी चर्च में दफनाया गया जहां उसे 1506 में जगह मिली थी।

पिछले कई वर्षों से स्पेन और डोमिनिकन रिपब्लिक के बीच इस दावे को लेकर वाद-विवाद चलता रहा है कि क्रिस्टोफर कोलम्बस की असली कब्र उनके देश में है। स्पेन का मानना है कि उसे सेविले में दफनाया गया है, जबकि डोमिनिकन रिपब्लिक का तर्क है कि उसकी अस्थियां सान्तो डोमिंगो के एक लाइटहाउस में महफूज हैं। उसका कहना है कि कोलम्बस के अवशेष कभी सान्तो डोमिंगो से बाहर गए ही नहीं। उसके मुताबिक़ क्यूबा और फिर वहां से सेविले भेजी गयी देह कोलम्बस के बेटे डिएगो की थी। इसके पीछे 1877 की एक घटना को उद्धृत किया जाता रहा है जिसके मुताबिक़ जब यह माना जा रहा था कि कोलम्बस हवाना में दफ़न था, उसके अवशेषों से भरा एक बड़ा बक्सा डोमिनिकन रिपब्लिक के चर्च में खुदाई कर रहे मजदूरों को मिला था. इस बक्से में 13 बड़ी और 28 छोटी हड्डियां थीं और उसके ढक्कन पर क्रिस्टोफर कोलम्बस का नाम खुदा हुआ था।

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2003 में स्पेन की सरकार ने इन डोमिनिकन दावों को समाप्त करने की गरज से एक बार फिर से सेविले के कब्रिस्तान से क्रिस्टोफर कोलम्बस के अवशेषों को बाहर निकाला और उन्हें डीएनए टेस्ट के लिए भेजा। साथ ही कोलम्बस के दोनों बेटों के अवशेष भी इसी उद्देश्य से बाहर निकाले गए। लम्बे शोध के बाद वैज्ञानिकों ने दावे के साथ कहा कि वे इस बात पर 95% निश्चित थे कि वे अवशेष क्रिस्टोफर कोलम्बस के ही थे। डोमिनिकन रिपब्लिक की सरकार ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और कहा कि वह मृतात्मा को परेशान नहीं करना चाहती। इसका यह मतलब नहीं कि डोमिनिकन सरकार झूठी है। चूंकि कोलम्बस के शरीर को कई बार यहां से वहां ले जाया गया, इस बात की भरपूर संभावना है कि दोनों ही देशों में उसके अवशेष बचे हुए हों।

जो भी हो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि क्रिस्टोफर कोलम्बस ने मरने के बाद भी यात्रा करना नहीं छोड़ा। उसकी मृत देह ने एक महाद्वीप से दूसरे के बीच जितना सफ़र किया उतना एक सामान्य यात्री अपने पूरे जीवनकाल में नहीं कर सकता।

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