उत्तराखंड में पिछले दिनों उच्च हिमालयी बसावट रैणी गांव के लोग और बाहरी राज्यों के मजदूर जिस दौरान पहाड़ों से आये सैकडों टन मलबे के समंदर में गुम हुये अपने लोगों को खोज ही रहे थे, तब राज्य के दो घरों में खासी हलचल मची हुई थी। इनमें पहला घर था पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का, जिनके राज्य में 'ताबड़तोड़ विकास' के खोखले दावों के बीच ही पार्टी ने विदाई कर दी थी। ..और दूसरा घर ऐसे अनाम सांसद का था, जिसे राज्य की बहुसंख्य जनता भी बस नामभर के लिये ही जानती थी, वो थे तीरथ सिंह रावत। तीरथ ने भाग्य से वो 'जादुई कुर्सी' छू ली थी, जिसकी आस में उनसे ज्यादा आशावान उनके ही पार्टी कलीग्स थे।
पार्टी ने रातों-रात एक ऐसे गुमनाम से सांसद को मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर बिठा दिया था, जिसके पास ना तैयारियां करने का वक्त था और ना 'बोलने' का सलीका। बावजूद इसके कि वो लंबे समय से राजनीतिक जीवन में हैं, इस बोलने के सलीके ने ऐसा बवाल पैदा किया कि ये गुमनाम चेहरा अब पूरे देश में पहचाना जाने लगा था। वजह बनी महिलाओं को लेकर की गई एक बेहद संकीर्ण टिप्पणी। ये तीरथ की पहली पहचान भी बनी। तीरथ सिंह रावत अपने राजनीतिक करियर में मिली इस नेमत से इस कदर नरेन्द्र मोदी के शुक्रगुजार हुए कि सार्वजनिक तौर पर उन्होंने इसका नजराना पेश करते हुए मोदी की तुलना हिंदू देवता राम तक से कर दी। वो एक के बाद एक बेसिर-पैर के बयानों के जरिये अपनी 'बुद्धिमता' का परिचय देने में मशगूल हो गये। सत्ता के गलियारों में तो यह भी चर्चा रही कि फजीहत के इस खेल को उस खिलाड़ी ने नेशनल मीडिया में बड़ा कर दिया, जिसे पटकनी देकर तीरथ ने 'भाग्य' से इस 'जादुई कुर्सी' को पकड़ा था।
प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की कार्रवाई शुरू हुई तो पहले तीरथ सिंह रावत देहरादून पहुंचे और फिर उनके पीछे-पीछे पहुंचे उनके मुट्ठीभर करीबी लोग। इनमें शामिल थे राज्य के कुछ पत्रकार, सरकार और शासन के बीच तालमेल की 'गोटियां' बिछाने वाले खिलाड़ी और वो अघोषित सलाहकार जो हर सरकार में आपको बताएंगे कि 'यही सबसे बेहतर है!' खैर, मुख्यमंत्री ने आते ही सबसे पहले जो बड़ा काम अपनी छवि बनाने के क्रम में किया, वो था हरिद्वार कुंभ में आ रहे लोगों पर हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा करवाना!
ये हैरतनाक बात थी कि तब देश के ही एक दूसरे हिस्से महाराष्ट्र में कोरोना की दूसरी लहर तेजी से रफ्तार पकड़ रही थी, ठीक उसी वक्त बतौर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत की प्राथमिकताओं में 'भव्य और दिव्य' कुंभ की 'सनक' ने उनकी दूरदर्शिता को भी उजागर कर दिया था। कुंभ की कीमत आज राज्य तो चुका ही रहा है, देश के कई हिस्सों में कोरोना विस्फोट में इस आयोजन ने अपनी भूमिका अदा कर दी है। तीरथ ही नहीं इस देशव्यापी संकट के दौरान उनके सलाहकार कितने काम के साबित हुये हैं, इसका आंकलन भी शुरुआती महीनों में ही हो गया है।
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उत्तराखंड के इस नये मुख्यमंत्री ने आते ही राज्य के नागरिकों के लिये भले ही कुछ खास करिश्मा ना किया हो, लेकिन अपनी अति लापरवाही और अदूरदर्शी फैसलों से राज्य को जरूर आफत में डाल दिया है। भारत में कोरोना महामारी जैसे-जैसे अपने पीक की ओर बढ़ रही है, दिल्ली से दूर पहाड़ों पर भी सन्नाटा पसरने लगा है। पहाड़ों के अलग-अलग हिस्सों से आ रही मौत की खबरों ने यहां जनजीवन को बुरी तरह से हिलाकर रख दिया है। राज्य के पहाड़ी इलाकों में किस कदर खौफ पसर रहा है, इसकी बानगी हाल ही में उस वक्त देखने को मिली जब पौड़ी जिले के खिर्सू ब्लॉक में एक महिला का शव घंटों गांव के रास्ते पर लावारिस हालत में पड़ा रहा, लेकिन उस महिला के शव को उठाने कोई आगे नहीं आया। तीरथ सरकार का स्वास्थ्य महकमा उस गांव में जरूर पहुंचा, लेकिन वो भी मौके पर पीपीई किट फेंककर भाग गया। ये बेहद असंवेदनशील मामला था।
बीमार महिला की रास्ते पर ही मौत हो गई, लेकिन कोरोना के डर से कोई उसके पास नहीं आया। बुजुर्ग महिला के पति ने एंबुलेंस को फोन किया। एंबुलेंस गांव के बाहर मुख्य सड़क तक आई भी, लेकिन घर तक नहीं पहुंची। ना ही किसी ने महिला की हालत देखने की जहमत उठाई। देखते ही देखते महिला की फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई और तब कहीं जाकर प्रशासन हरकत में आया। ये मुख्यमंत्री की अदूरदर्शी सोच और कमजोर सलाहकारों का ही कारनामा है कि आज प्रदेश में तेजी से कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या बढ़ी है। इसमें सबसे ज्यादा चिंताजनक स्थिति पहाड़ों की है, जहां अस्पताल बड़े पैमाने पर डॉक्टर्स और अन्य पैरामेडिकल स्टॉफ की कमियों से जूझ रहे हैं। कोरोना जैसी बीमारी में जब मरीज को नजदीक ही अस्पताल चाहिये, ऐसे में राज्य के नागरिक रेफर होना, जैसा कि उनकी नियति बन चुकी है, इस दफा अफोर्ड नहीं कर सकते।
राज्य में स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले तीन हफ्तों के दौरान मृतकों की तादाद में 22 गुना से ज्यादा इजाफा हुआ है, जबकि संक्रमितों की संख्या करीब सात गुना बढ़ी है। मुख्यमंत्री को जब कोविड की तैयारियों और महामारी से निपटने के लिये वॉर रूम बनाने के लिये जूझना था, तब मुख्यमंत्री की चिंता महामारी से लापरवाह श्रद्धालुओं पर 'पुष्प वर्षा' थी। तीरथ सरकार कोरोना को लेकर कितनी गंभीर है, इसका तकाजा इसी बात से हो जाता है कि चारधाम यात्रा में शामिल होने के लिये साधु संत हरिद्वार और ऋषिकेश से निकलकर जोशीमठ तक पहुंच गये हैं।
बुधवार शाम जोशीमठ में उस वक्त अफरा तफरी का माहौल बन गया, जब विष्णु प्रयाग से एक दुकानदार ने जोशीमठ की ओर बढ़ रही साधुओं की टोली के बारे में सूचना भिजवाई। आखिर कैसे साधु अलग-अलग बैरियर्स को पार कर पहाड़ी कस्बों तक पहुंच गये? रास्ते में ऋषिकेश से लेकर कर्णप्रयाग और उसके बाद चमोली तक की किसी पुलिस चौकी ने यह जांचने की जहमत क्यों नहीं उठाई कि साधुओं की कोरोना जांच हुई भी है या नहीं! साधु किसकी अनुमति से राज्य के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक पहुंच गये, वो भी तब जब कुछ रोज पहले ही तमाम साधु कुंभ में शिरकत रहे थे? इतनी गंभीर चूक के लिये सरकार क्या करेगी, इसका तो पता नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि राज्य को खुद मुख्यमंत्री ने बड़े संकट की ओर जरूर बढ़ा दिया है।
अकेले बुधवार को ही 24 घंटे के अंदर राज्य में रिकॉर्ड 7783 नए संक्रमित मिले हैं। 127 लोगों ने पिछले 24 घंटों में दम तोड़ दिया है और एक्टिव केस की संख्या 59,526 हो गई है। ऐसा कोई जिला इस वक्त राज्य में नहीं है जहां संक्रमण न फैला हो। राज्य के हरिद्वार जिले में 599, नैनीताल में 956, ऊधमसिंह नगर में 1043, पौड़ी में 263, टिहरी में 504, रुद्रप्रयाग में 143, पिथौरागढ़ में 225, उत्तरकाशी में 240, अल्मोड़ा में 271, चमोली में 283, बागेश्वर में 240 और चंपावत में 245 संक्रमित पिछले 24 घंटों में ही मिल चुके हैं। अब तक कुल 3142 मरीजों की मौत का आंकड़ा सरकारी फाइलों में दर्ज हो चुका है। प्रदेश के 13 जिलों में 314 कंटेनमेंट जोन बन चुके हैं, जिससे नागरिक एक तरह से कैद हो गये हैं। प्रदेश में पहले से ही चौपट हो चुके पर्यटन की कमर तोड़ने में भी नये मुखिया के फैसलों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोरोना की पहली लहर में पहाड़ काफी हद तक सुरक्षित रह गये थे, लेकिन इस दफा कहानी भयावह होती जा रही है।
राज्य के मुखिया ने न केवल पहाड़ों को कोरोना के मुंह में धकलने में तेजी दिखलाई, बल्कि कुंभ जैसे उत्सव ने देहारदून, ऋषिकेश, हरिद्वार और रुड़की जैसे शहरों में कोहराम मचा दिया है। हाल ही में रुड़की में ही पांच मरीजों की मौत सिर्फ इसलिये हो गई क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल सकी! तीरथ ने जब सत्ता संभाली थी, तब अगर वो अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देते तो शायद ऐसी स्थिति को उत्पन्न होने से पहले ही टाला जा सकता था। तीरथ सरकार कहती रही कि कुंभ में कोविड की नेगेटिव रिपोर्ट के बाद ही लोगों को आने दिया जा रहा है, जो कि सरासर कोरा झूठ था। अब भी बाहरी राज्यों से पहाड़ों की ओर आ रहे लोगों के लिये किसी तरह की बंदिशें जमीन पर नहीं दिखाई दे रही हैं, जिसका सीधा सा मतलब है कि वायरस कब का पहाड़ों के दूरस्थ गांवों तक दस्तक दे चुका है।
राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति यह है कि सूबे के इकलौते एम्स में बुधवार को उस वक्त अफरातफरी मच गई जब मरीजों की ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो गई। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ऋषिकेश में तकनीशियनों के हाथ-पांव फूल गये। जांच की गई तो पता चला की सप्लाई के दौरान प्रेशर की समस्या उत्पन्न हो गई है। इसके बाद अस्पताल में भर्ती करीब 50 मरीजों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट किया गया। राज्य सरकार अस्पतालों की व्यवस्थाओं और बैकअप को लेकर कितनी संजीदा है, इसका भी आज नागरिकों को अंदेशा हो गया है। राज्य में जिस तेजी से सक्रमण फैला है, वो तीरथ सरकार की शुरुआती लापरवाहियों का नतीजा है। कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं वाले इस छोटे से पहाड़ी राज्य की सीमाओं पर जब चौकसी और जांच बढ़ जानी चाहिये थी, तब तीरथ सिंह रावत लोगों को कुंभ में आने का न्यौता दे रहे थे। इस आयातित आपदा के लिये तीरथ सरकार देशभर के अखबारों में मोटा पैसा खर्च कर विज्ञापन छपवा कर 'कुंभ' को सुरक्षित और 'कोरोना फ्री' घोषित करने पर आमादा थी।
यह स्थिति तब है जबकि इस छोटे से राज्य के पास अपने कई विभागों को देने के लिये पैसे नहीं हैं। यहां तक कि कर्मियों को तनख्वाह तक समय पर सरकार नहीं दे पा रही है, लेकिन भला 'शोबाजी' की होड़ में इस राज्य का मुखिया कैसे अपने समकक्षों से पीछे रह सकता था! नतीजतन गाजे-बाजे से महामारी को राज्य में बड़े पैमाने पर फैलने दिया गया। ये न्यौता बाकायदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मिलकर दिया जा रहा था, जो खुद आज भारत को महामारी के मुंह में धकेलने के लिये सबसे ज्यादा आलोचनाएं झेल रहे हैं। भारत से बाहर भी मोदी के फैसलों पर जब सवाल उठ रहे हैं, तब ऐसे प्रधानमंत्री के विजन का भी आंकलन जनता कर रही है।
हां, राज्य में कोविड के संक्रमण की रोकथाम के लिए शिक्षकों सहित विभिन्न विभागों के कर्मचारियों को जरूर इस दौरान 'कोरोना वॉरियर' का दर्जा दिया गया है। मानो अब 'वॉरियर्स' के पास तो कोरोना फटकने से भी कांपेगा! इस तमगे से इतर कर्मचारी घबराये हुए हैं। सरकार ने जितनी जल्दी कर्मियों को कोरोना वॉरियर्स घोषित करने में दिखाई है, उसकी आधी जल्दी भी यदि इन कर्मियों के वैक्सीनेशन की दिखाई होती तब शायद ये उनका असल सम्मान होता।
राजकीय शिक्षक संघ के प्रांतीय महामंत्री डॉ.सोहन माजिला ने एक अखबार को दिये बयान में कहा है- 'सरकार ने शिक्षकों को कोरोना वॉरियर तो घोषित कर दिया, लेकिन प्रदेश में 45 साल से कम आयु वर्ग के शिक्षकों को अब तक वैक्सीन तक नहीं लगाई गई है। वैक्सीनेशन सेंटरों में शिक्षकों को पीपीई किट एवं अन्य सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं करवाई जा रही हैं।' ऐसे में सवाल जरूर उठ रहे हैं कि क्या कोरोना वॉरियर्स के तमगे के भरोसे ही सरकार अपने फ्रंटलाइन वर्कर्स की सुरक्षा कर रही है!
राज्य सरकार का एक और कारनामा देखिये। अब जबकि पहाड़ों पर सक्रमण पूरी तरह से दस्तक दे चुका है, तब भी सरकार अंतर राज्यीय परिवहन पर रोक लगाने पर केवल अभी मंथन ही कर रही है। ऐसा लग रहा है जैसे राज्य सरकार एक कमजोर मुख्यमंत्री के नेतृत्व में एक के बाद एक मूर्खतापूर्ण फैसलों के दम पर कोरोना से लड़ाई लड़ रही है। ऐसे में पहाड़ों पर संक्रमित लोगों की स्थिति बिगड़ती है तो हालात विकराल रूप ले सकते हैं। एक चिंता यह भी है कि मरीज अगर मैदानी इलाकों के अस्पतालों तक पहुंचने में कामयाब भी हो जाते हैं, तब भी पहले से दबाव झेल रहे मैदानी जिलों के अस्पताल आखिर कितना काम कर सकेंगे!
हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एक महिला गांव में आवाज लगाकर बाहरी जगहों से आये लोगों से क्वारंटीन होने की गुहार लगा रही है। इस वीडियो में ग्रामीण महिला कहती नजर आ रही हैं कि 'देश (भारत के बाकी हिस्सों) में रेल से ऑक्सीजन की ढुलाई हो रही है और अगर यहां बीमारी फैल गई, तो हम कहां जाएंगे!" ये जायज सवाल है, जिसे उत्तराखंड के दूरस्थ इलाकों का ग्रामीण तो समझ रहा है, लेकिन शायद सरकार को इसकी परवाह नहीं है।
राज्य में लंबे समय तक पत्रकारिता कर चुके और मौजूदा दौर में राजनीति में सक्रिय युवा मोहित डिमरी कहते हैं कि सूबे के पहाड़ी इलाकों में जिस तरह की स्वास्थ्य सेवाएं हैं, उन्हें देखकर स्थितियां चिंताजनक ही ज्यादा हैं। मोहित कहते हैं- ''रुद्रप्रयाग में मौजूद शंकराचार्य कोविड अस्पताल में गंभीर मरीजों का उपचार ही नहीं हो पा रहा है और स्थिति यह है कि इस अस्पताल में एनेस्थीसिओलॉजिस्ट न होने से आईसीयू किसी काम का नहीं है। इस अस्पताल में साधारण लक्षणों वाले मरीजों को ही उपचार मिल पा रहा है। मैं रोज तकरीबन 4 से 5 फोन रिसीव कर रहा हूं, जिसमें कोई ना कोई मदद मांग रहा होता है। यहां से गंभीर बीमारी वाले मरीजों को श्रीनगर रेफर किया जा रहा है और वहां से भी उन्हें आगे रेफर कर दिया जा रहा है। इस बीच कई मरीज समय पर उपचार न मिलने से ही रास्ते में दम तोड़ दे रहे हैं।"
मोहित से जब मैंने उनके इलाकों में बाहर से आ रहे लोगों को लेकर जानना चाहा तो उन्होंने कहा- "शहरों में लोगों को अस्पताल नहीं मिल पा रहे हैं और वो भागकर अपनी जगहों पर इलाज की उम्मीद में आ रहे हैं।" मोहित इस स्थिति को राज्य के लिये 'दुर्भाग्यपूर्ण' बताते हुये कहते हैं कि 'पहाड़ एक बड़े सकंट की ओर बढ़ रहा है और चुने हुये प्रतिनिधि क्षेत्र से नदारद हो गये हैं।' इधर, कोरोना के खिलाफ जब सरकार बहुत दिनों तक भी कोई प्रभावी निर्णय नहीं ले सकी तो पौड़ी शहर के व्यापारियों ने खुद ही दुकानों को सुबह 12 बजे तक खोलने का निर्णय लिया। ये व्यापारियों की ओर से लिया गया निर्णय था, जिसका पालन पूरी ईमानदारी से किया जा रहा है।
ये अजीब बात है कि नागरिक अपने-अपने स्तरों पर बचाव के तरीकों को अपना रहे हैं, लेकिन सरकार की लापरवाही ने उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा है। मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद तीरथ सिंह रावत अगर स्थितियों को समय रहते भांप जाते तो राज्य मुश्किलों के भंवर में फंसने से बच जाता। बहरहाल, पहाड़ों के लिये अगले 15 दिन बेहद सतर्क रहकर चलने वाले हैं। मुख्यमंत्री बदलने के खेल और नये मुखिया की अदूरदर्शिता ने जो संकट पैदा किया है, अब राज्य के निवासियों के सामने उससे मिलकर लड़ने के अलावा और कोई विकल्प मौजूद नहीं है। राज्य के शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में मरीजों का अत्यधिक दबाव है, तो दूसरी ओर पहाड़ी हिस्सों में डॉक्टर्स की कमी इस खतरे को कई गुना बढ़ा रही है। ऐसे में राज्य के सामने महामारी से जूझने का अभूतपूर्व संकंट खड़ा हो गया है, जिससे पार पाना फिलहाल तो बेहद कठिन होने जा रहा है।
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