भारत के पत्रकारों के लिये शुक्रवार का दिन दु:खद खबर लेकर आया था। खासकर उन लोगों के लिये जो दानिश सिद्दीकी के काम से वाकिफ थे या फिर उनके साथ काम कर चुके थे। खबर आई कि अफगानिस्तान के कंधार में तालिबानियों और सिक्योरिटी फोर्सेस की मुठभेड़ के दौरान भारतीय फोटो जर्नलिस्ट दानिश सिद्दीकी की मौत हो गई। वे न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के लिए काम कर रहे थे। दानिश की मौत से जहां भारत की पत्रकार बिरादरी गमगीन थी, वहीं एक बड़ा तबका ऐसा भी था जिसने ठीक इसी वक्त नफरत उगलना शुरू कर दिया।
युद्ध क्षेत्र में रिपोर्टिंग के दौरान हुई दानिश की शहादत को सिर्फ इस वजह से धुंधलाया जा रहा था, क्योंकि वो उस धर्म में पैदा हुये थे जो पिछले लंबे वक्त से भारत में हिंदू कट्टरवाद के निशाने पर रहा है। पिछले कुछ सालों में इस तबके ने जिस ढंग से अपनी हर नाकामी के लिये मुस्लिमों पर निशाना साधने की आदत पाल ली है, वो दानिश की मौत पर भी दिखी। दानिश की मौत की खबर के बाद जब भारतीय अपने जर्नलिस्ट के बारे में जानकारियां जुटा रहे थे, ठीक उसी वक्त एक 'वेल टाइप्ड संदेश' तेजी से वायरल होने लगा।
इस संदेश में दानिश की शहादत का मजाक उड़ाने के लिये उनकी उन रिपोर्ट्स का जिक्र एक खास तरह का नैरेटिव सेट करने के उद्देश्य से तथ्यहीन ढंग से किया गया, जिसमें उन्होंने कोविड के दौरान श्मसान में जलती चिताओं की तस्वीरें कैद की थी। ये उस भारत के लिये दु:खद था, जिसने नफरत के विचार से हमेशा दूरी बनाई है। ये उस नये भारत की कहानी है, जो पिछले कुछ सालों में एक खास समुदाय को लेकर नफरत में लिपटा हुआ नजर आता है।
Those who distributed laddoos after Gandhi ji’s death are the same people rejoicing the killing of #DanishSiddique by the Taliban.
— Rachit Seth (@rachitseth) July 17, 2021
व्हाट्सऐप पर जो मैसेज वायरल हुआ, उसका शीर्षक है- 'रॉयटर्स का फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी जेहादी था।' ये असल में उस पोसी हुई घृणा का नतीजा है, जिसको बचाये रखने के लिये एक खास किस्म में ये संदेश डिजाइन किये जाते हैं।
इस संदेश में आगे कई और तथ्यहीन बातों को प्रचारित करते हुये लिखा गया- 'तालिबान ने उसको घुटनों के बल बिठाया और उसकी पीठ में गोली मारकर हत्या कर दी गई। दानिश सिद्दीकी जीवनभर हिंदुओं को फासिस्ट बताता रहा, लेकिन हिंदुओं ने कभी उसे परेशान नहीं किया। जब दानिश का सामना असली फासिस्टों से हुआ तो दो दिन में ही मार दिए गए! अब लिब्रान्डू कह रहे हैं कि दानिश के फोटो वायरल मत करो..ये ठीक नहीं होता। रियली? तब फिर दानिश ने क्या किया था? कोरोना काल में श्मसान में जलती चिताओं की फोटो वायरल कर रहा था, क्या वो ठीक था?' असल में कुंठा यहीं आकर अपना आकार लेती है और इस संदेश को फैलाने का असल मकसद भी निकल कर सामने आ जाता है। बतौर पत्रकार दानिश ही अकेले ऐसे शख्स नहीं थे, जिन्होंने श्मसान में लाशों के ढ़ेर को अपने कैमरे में कैद कर दुनिया को कोरोना की असली भयावहता से रूबरू करवाया था। असल में समस्या छिपाने से छवि बच सकती है, समस्या हल नहीं हो जाती।
Had enough. Blocking every idiot who’s come to my timeline to celebrate #DanishSiddique ‘s death.
— Kadambini Sharma (@SharmaKadambini) July 16, 2021
You are monsters. No better than those who killed him.
इस संदेश में आगे लिखा गया- 'ड्रोन से श्मशान में जलती चिताओं की ऐसी तस्वीरें पब्लिश की, जिन्हें विदेशी मीडिया ने खूब भुनाया तथा भारत की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई। तब किसी लिबरल ने दानिश को क्यों नहीं रोका था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है? और हां, कोरोना ने तो सभी को मारा था न, लेकिन दानिश ने कब्रिस्तान में दफनाते लोगों की तस्वीरें नहीं दिखाई सिर्फ श्मशान में जलती चिताओं की दिखाई, आखिर क्यों? शमशान भी उसने यूपी के सेलेक्ट किये था, किसी गैर बीजेपी शासित राज्य के नहीं, आखिर क्यों?' यहीं असल में वो गिरह खुल जाती है, जिसमें संदेश भेजने वाला अपनी मूर्खता का परिचय खुलेआम देता है, वो अपनी विचारधारा को भी ठीक से छिपा नहीं पाता। जाहिर सी बात है यह संदेश उस राजनीतिक दल के समर्थक फैला रहे थे, जिनकी सरकारें कोरोना के दौरान नागरिकों को बेहत्तर इलाज देने में चूक गई।
Thank you for your brave work #DanishSiddique
— Zeba Warsi (@Zebaism) July 16, 2021
The hateful bigots are rattled by your truth-telling.
Your stellar journalism will continue to inspire generations to come.
#NewProfilePic pic.twitter.com/QVLCVsvEuB
इस संदेश में आगे लिखा गया- 'दानिश ने CAA विरोधी दंगों के दौरान सेलेक्ट करके ऐसी तस्वीरें पब्लिश की, जिससे हिंदू क्रूर दिखें। बोर्ड लटकाकर हिंदुओं की दुकान व मकानों को आग लगाने वाली तस्वीरें ये नहीं दिखा सका था! कुंभ में भीड़ की तस्वीरों को कोरोना स्प्रीडर बताकर दिखा रहा था, लेकिन जब तब्लीगी जमात के कोरोना जिहादी घूम-घूम कर संक्रमण फैला रहे थे, उन तस्वीरों को दानिश नहीं दिखा सका था। दानिश कुंभ की भीड़ तो दिखा रहा था लेकिन ईद पर कोरोना नियमों का उल्लंघन करने वाली भीड़ की तस्वीरें वह नहीं दिखा सका था। दानिश कुंभ की तस्वीरें तो दिखा रहा था, लेकिन किसान आंदोलन की आड़ में कोरोना नियमों का उल्लंघन करती भीड़ को वह नहीं दिखा सका था।' इस पूरे तथ्यहीन संदेश में एक के बात एक उन मुद्दों या घटनाओं पर खीझ निकाली गई थी, जिससे भाजपा सार्वजनिक मंच पर असहज नजर आती है। जाहिर सी बात है एक खास किस्म का नैरेटिव इस संदेश के जरिये सेट किया गया था, जिसे सोशल मीडिया के जरिये उन करोड़ों लोगों तक पहुंचा दिया गया, जो एक खास राजनीतिक मकसद के लिये लगातार तराशे जा रहे हैं। एक ऐसी भीड़ जो तथ्यों की जांच की परवाह नहीं करती और ऐसे संदेशों को वायरल करने में आगे रहती है, जो सिर्फ उनके हिंदू तुष्टीकरण को पूरा करते हैं।
इस संदेश के अंत में आह्वान करते हुये लिखा गया- 'हिंदू धर्म विधर्मियों को जवाब देना सिखाता है, उनकी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को बेनकाब करना व खिलाफत करना सिखाता है। अब हिंदू इतना मूर्ख नहीं है कि किसी एजेंडाधारी व राष्ट्रविरोधी की मौत पर औपचारिकता निभाते हुए उसे महान बताए बल्कि अब हिंदू सच के साथ तनकर खड़ा होता है।'
संदेश के इस हिस्से में वो झूठ गर्व के साथ परोसा गया, जो तथ्यों और यथार्थ के आस-पास भी नहीं है। ये संदेश उस खीझ का नतीजा था, जिसमें दानिश की तस्वीरों ने सरकारी तंत्र की बखिया उधेड़ी थी। वो अपना काम कर रहे थे, लेकिन बजाय कि युद्ध क्षेत्र में शहीद हुये अपने सबसे दमदार जर्नलिस्ट को अंतिम सलाम भेजने के 'कट्टर हिंदूवादी' उसी मानसिकता का परिचय देते रहे, जिसका निशाना दानिश चंद घंटों पहले बने थे। ये भारत के भीतर उसी मानसिकता की झलक थी, जिससे अफगानिस्तान जूझ रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि यहां हिंदू कट्टरवाद के नुमाइंदे अपनी सनक के हिसाब से दुनिया को गढ़ना चाहते हैं और वहां मुस्लिम।
A Delhi Police personnel paying tributes by saluting Indian Photojournalist and a Pulitzer-winniner Danish Siddiqui at a prayer meeting, organized by the Press Club of India (@PCITweets) in New Delhi.
— Momin Ali (@mominali00) July 17, 2021
PC: @ANINDYAtimes pic.twitter.com/UeQeFT7NhT
असल में 2018 में दानिश उस टीम का हिस्सा थे, जिसे पुलित्जर अवॉर्ड मिला था। पत्रकारिता जगत में पुलित्जर का वही महत्व है, जैसा सिनेमा में एकेडमी अवॉर्ड्स का महत्व। दानिश के काम को आप करीब से देखेंगे तो वो म्यामांर से लेकर उत्तराखंड आपदा और कोरोना के पीक के दौरान श्मसान घाटों से लेकर अफगानिस्तान में अमरीकी फौजौं की वापसी के बाद उपजे तनाव तक को उकेरे हुये था। रिपोर्ट्स के मुताबिक स्पिन बोल्डक जिले में तालिबानी लड़ाकों और अफगान फौज के बीच चल रहे संघर्ष को दानिश कवर कर रहे थे। अफगानिस्तान की स्पेशल फोर्सेस जब एक रेस्क्यू मिशन पर थी, तब दानिश उनके साथ मौजूद थे। इसी दौरान उनकी मौत की सूचना ने भारत समेत दुनिशयाभर में काम के लिहाज से एक बार फिर से इस इलाके की भयावहता को सामने लाकर रख दिया है।
We already know why no condolences by Modi for #DanishSiddique
— Sakshi Joshi (@sakshijoshii) July 17, 2021
But do we also know why no condemnation by @narendramodi for #Taliban ?
सीनियर फोटो जर्नलिस्ट विजय पांडे जो कि दानिश के साथ कई मौकों को साझा कर चुके हैं, वो दानिश को याद करते हुये कहते हैं- 'वो हम सबमें अलग था। मुझे याद है दिल्ली दंगों के दौरान कैसे पत्रकारों के एक ग्रुप को पुलिसकर्मियों ने मौके से निकल जाने को कहा था। वहां स्थितियां बेकाबू हो रही थी और दोनों ओर से भीड़ एक-दूसरे की ओर बढ़ रही थी। हमें सुरक्षित जगह पर निकलने के लिये कह दिया गया, लेकिन दानिश इस बीच मॉब के बीच पहुंच गये और उन्होंने दंगों को भीड़ के भीतर से ही कवर किया। एक ऐसे वर्कफ्रंट पर जहां अदम्य साहस की दरकार होती है और आप मुश्किल परिस्थितियों में अपनी जिम्मेदारियों को निभा रहे होते हैं, दानिश इस मामले में हमेशा अव्वल रहे। उनकी छोटी सी यात्रा, बहुत बड़ी हो गई है। उन्होंने अपने शानदार काम को बाकी लोगों के लिये प्रेरणा देने के लिये पीछे छोड़ दिया है। भारत ने एक साहसी और संवेदनशील पत्रकार को खो दिया है। जो लोग दानिश के बारे में तथ्यहीन बातें कर रहे हैं, वो यह नहीं जानते कि वो भारत के एक साहसी बेटे की शहादत का अपमान कर रहे हैं, जिसने हमेशा जर्नलिज्म के आदर्शों को ऊंचा रखा और पत्रकारिता के जोखिम को चुना।'
Our PM sent a letter to a TV anchor who’s mother passed away but no words for a #Pullitzer winner photojournalist who was killed doing his duty? #DanishSiddique
— Sayema (@_sayema) July 17, 2021
Why Sir?
दुनियाभर में दानिश को अलग-अलग मीडिया संगठनों और पत्रकारों ने अपने-अपने ढंग से याद करते हुये श्रद्धान्जलि दी है। भारत की राजधानी दिल्ली समेत देशभर के कई हिस्सों में पत्रकारों ने शोकसभाओं का आयोजन कर अपने बहादुर साथी को अंतिम सलाम भेजा है।
Condolence meet for #DanishSiddique by @mumbaipressclub & @BNPA_Mumbai https://t.co/gnIKTd43qU
— Press Club of India (@PCITweets) July 17, 2021
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