विकास के मामले में भारत भले ही चीन से मीलों पिछड़ा हुआ नजर आता हो, लेकिन इंटरनेट स्वतंत्रता को लेकर भारत अपने पड़ोसी चीन से कदमताल कर रहा है। चीन में सरकार जब चाहे विरोध को कुचलने के लिए इंटरनेट पर पाबंदी लगा देती है और इस मामले में भारत की सरकारें भी चीन से ताल मिलाती हुई नजर आती हैं। फ्रीडम हाउस की हालिया रिपोर्ट 'फ्रीडम ऑफ द नेट' में दुनियाभर के कई देशों में इंटरनेट की स्वतंत्रता को लेकर पड़ताल की गई है। इस रिपोर्ट में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर के भारत सरकार के साथ टकराव का भी उल्लेख किया गया है। फ्रीडम हाउस की रिपाेर्ट के अनुसार, लगातार 11वें वर्ष दुनियाभर में इंटरनेट स्वतंत्रता कम हुई है। रिपोर्ट में नए आईटी नियमों और मनमाने ढंग से इंटरनेट पर पाबंदी सहित डिजिटल रेगुलेशन को लेकर मोदी सरकार की आलोचना की है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना से निपटने को लेकर भारत सरकार की आलोचना संबंधी ट्वीट्स को प्लेटफॉर्म से हटाने के लिए सरकार ने ट्विटर पर दबाव डाला था। सरकार ने सत्तारूढ़ पार्टी और इसके नेताओं द्वारा शेयर किए जा रहे ट्वीट को मैनिपुलेटेड मीडिया टैग लगाने को लेकर ट्विटर को निशाना बनाया गया। इतना ही नहीं इसमें ट्विटर के विकल्प के तौर पर माइक्रोब्लॉगिंग साइट ‘कू’ का रुख करने का भी जिक्र है। गौरतलब है कि ट्विटर और सरकार के बीच टकराव के बाद कई सारे मंत्रियों समेत दक्षिणपंथ के समर्थक सेलेब्स ने तक 'कू' का रुख किया था और इसे प्रमोट करने में भी दिलचस्पी दिखाई थी। हालांकि, आम भारतीयों पर 'कू' का जादू नहीं चल सका।
रिपोर्ट में विस्तृत रूप से ग्लोबल रूझान का उल्लेख किया गया है, जिसके तहत सरकारें यूजर्स के लिए अधिक व्यापक अधिकार हासिल करने, उत्पीड़न, चरमपंथ और धोखाधड़ी जैसे हानिकारक ऑनलाइन प्रभावों को कम करने के नाम पर टेक कंपनियों पर सरकारी और राजनीतिक पाबंदियां लगा रही हैं।
बता दें कि फ्रीडम ऑफ द नेट रिपोर्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मानवाधिकारों के स्टेटस का वार्षिक विश्लेषण करती है। इस रिपोर्ट के 11वें संस्करण के तहत जून 2020 से मई 2021 के बीच 70 देशों में 88 फीसदी वैश्विक इंटरनेट यूजर्स को शामिल किया गया है। रिपोर्ट में अब तक के सबसे खराब स्थिति का विवरण देते हुए कहा गया है- 'अगर सरकार के पास सेंसर करने, सर्विलांस, लोगों को नियंत्रित करने की क्षमता है तो इससे व्यापक स्तर पर राजनीतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल सकता है, लोकतांत्रिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंच सकता है और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी और हाशिए पर मौजूद आबादी का दमन हो सकता है।’
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किसान आंदोलन का भी जिक्र
रिपोर्ट में किसान आंदोलन के दौरान ट्विटर और केंद्र सरकार के बीच के टकराव का भी उल्लेख है। केंद्र सरकार के तीन विवादित कृषि कानूनों के विरोध में इस साल जनवरी और फरवरी में किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में कई बार इंटरनेट सेवा बाधित की गई। इस दौरान भारत सरकार के खिलाफ पत्रकारों और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के पोस्ट को हटाए जाने के बारे में कहने पर ट्विटर ने नए आईटी नियमों का पालन करने को लेकर अपने मूल फैसले को पलट दिया। परिणामस्वरूप ट्विटर को पुलिस जांच, कर्मचारियों पर आरोप जैसे उत्पीड़न का सामना करना पड़ा।
भारत और इंटरनेट पाबंदी
रिपोर्ट में ‘फ्री एक्सप्रेशन इन डेंजर’ शीर्षक के तहत कहा गया है कि भारत उन लगभग 20 देशों में शामिल है, जहां इस साल समाज के एक निश्चित वर्ग के लिए इंटरनेट सेवा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। रिपोर्ट में कहा गया, दिल्ली में एक बार में इंटरनेट पाबंदी से पांच करोड़ से ज्यादा मोबाइल सब्सक्राइबर प्रभावित हुए।
रिपोर्ट में 2020 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनाव के दौरान बड़ी संख्या में चीनी मोबाइल ऐप्स पर पाबंदी का जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया कि इससे पता चलता है कि किस तरह भूराजनीतिक तनाव अभिव्यक्ति की आजादी और सूचना तक पहुंच को नष्ट कर सकता है।
नए आईटी नियमों से समस्याएं
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के नए सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 रिपोर्ट की कवरेज अवधि के दौरान सबसे व्यापक पहल में से एक है। रिपोर्ट में कहा गया कि इन नए नियमों के तहत शिकायत निवारण तंत्र, एआई-आधारित मॉडरेशन टूल्स की तैनाती, मुख्य अनुपालन अधिकारी सहित तीन स्थानीय अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान है। रिपोर्ट के मुताबिक, नए आईटी नियमों में देश की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरनाक कंटेंट पर प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है, हालांकि इसे स्पष्ट तरीके से परिभाषित नहीं किया गया है।
चीन में बुरा हाल, अमेरिकी भी बेहाल
फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन इंटरनेट पाबंदी के मामले में सबसे बुरी स्थिति में है। चीन में ऑनलाइन असहमति के लिए जेल की सजा का प्रावधान है। अमेरिका में लगातार पांचवें साल इंटरनेट स्वतंत्रता में गिरावट आई है। रिपोर्ट कहती है कि 45 देशों में एनएसओ ग्रुप के पेगासस, फिन फिशर, सेलेब्राइट और सर्किल्स जैसे स्पाईवेयर के इस्तेमाल का संदेह है।
फ्रीडम हाउस की ये हालिया रिपोर्ट नागरिक अधिकारों को कुचलने की एक बानगी भर है। आप इस रिपोर्ट का विस्तृत अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि कैसे सरकारें अपने-अपने देशों में नागरिकों की इंटरनेट स्वतंत्रता को कुचलने में जरा भी देर नहीं लगाती हैं। सुरक्षा के नाम पर इंटरनेट स्वतंत्रता के हनन के मामले में भारत की स्थिति दयनीय दिखती है।
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