खालिस्तानी, आंतकवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग... ऐसे किसानों को बदनाम करती रही बीजेपी!

खालिस्तानी, आंतकवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग... ऐसे किसानों को बदनाम करती रही बीजेपी!

NEWSMAN DESK

तकरीबन एक साल बाद सड़कों पर बैठे हुए आखिरकार किसानों की मांगों के आगे केंद्र सरकार को झुकना पड़ा। इस मामले का लेकर सबसे बड़ी जिद पाले बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार सुबह तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला ले लिया है। संसद के इसी शीतकालीन सत्र में तीनों कृषि कानूनों को निरस्त कर दिया जाएगा। इस कानून को लाने की मंशा और अब निरस्त करने के फैसलों के बीच देश की कॉरपोरेट पसंद राजनीति इस बीच झूलती नजर आई है।

सरकार ने इस दौरान अपने फैसले पर अड़े रहने के लिए किसानों पर बर्बर अत्याचार करने के साथ ही आम लोगों के सामने किसानों की छवि धूमिल करने और यहां तक कि उन्हें आतंकवादी बताने से भी गुरेज नहीं किया। सरकार के कई मंत्री और सेलिब्रिटी समर्थक इस दौरान खुलेआम किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए बयानबाजियां करते रहे। अब जबकि देशभर में लोकेप्रियता खोती बीजेपी को राज्यों में सरकार बचाना मुश्किल हो रहा है और आजाद भारत के इतिहास में पहली मर्तबा गृहमंत्री को बूथ स्तर पर आकर चुनाव प्रचार की बागडोर संभालनी पड़ रही है, तब सरकार के इस यूटर्न को आसानी से समझा जा सकता है।

अखिलेश यादव ने तो यह तक कह दिया कि सरकार ने वोट के लिए कृषि आंदोलनों को खत्म कर दिया है। चुनाव से पहले वो माफी मांगने आ गए हैं। प्रियंका गांधी ने भी सरकार पर जमकर हमला बोला है। सरकार के प्रवक्ता भी टीवी चैनलों पर इस दौरान बैकफुट पर नजर आ रहे थे।

सरकार के बैकफुट पर जाने से अजीब हास्यास्पद स्थिति बनी हुई है। गोदी मीडिया में बैठे हुए उसके समर्थक माोदी के इस फैसले से खासे नाराज नजर आ रहे हैं। लंबे समय तक सोशल मीडिया पर सरकार समर्थित पोस्ट के बाद अब टाइम्स नाउ हिंदी के सरकार समर्थक पत्रकार सुशांत सिंहा तो मोदी के इस फैसले पर बिफर ही पड़े। उन्होंने अपने शो में कहा ऐसे तो कल को कश्मीर वाले आंदोलन करने लगेंगे तो क्या सरकार धारा 370 को वापस ले लेगी।

फिर उन्होंने आश्चर्य जताते हुए कहा- 'एक साल में क्या-क्या नहीं हुआ और मोदी ने ये फैसला ले लिया! आज प्रश्न किसी और से नहीं है। आपने खुद कहा कि कुछ किसानों को कानून समझ नहीं आए, तो आप सिर्फ कुछ किसानों के सामने झुक गए। आने देश को संकट में डाल दिया।' यही स्थिति कई अन्य पत्रकारों भी थी। पहली दफा गोदी मीडिया के पत्रकार नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए नजर आए।

पिछले एक साल में जिस तरह से सरकार अपने समर्थकों के बीच यह विश्वास बनाने में कामयाब रही थी कि ये आंदोदन किसानों का नहीं है, अचानक सरकार के फैसले से उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब उनका स्टैंड इस मसले पर क्या होना चाहिए। पूर्व में भी किसान आंदोलन को बदनाम करने की पुरजोर कोशिशे हुई हैं। यहां हमने देश की चुनिंदा हस्तियों के पूर्व में किसान आंदोलन को लेकर दिए गए बयान दिए हैं। ये कुछेक हैं, लेकिन आप ढूंढेगे तो आपको ऐसे हजारों लोगों के बयान मिल जाएंगे, जिन्होंने अपने ही किसानों को आंतकवादी घोषित करने की कोशिशें की।

 

 

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