जून के महीने में जब तालिबान चारों तरफ से अफगानिस्तान की राजधानी काबुल की तरफ बढ़ रहा था और सैकड़ों लोग लड़ाई में मारे जा रहे थे, तब भारत के 38 वर्षीय फोटो-पत्रकार दानिश सिद्दीकी ने फैसला किया कि वह अफगानिस्तान जाएंगे। उन्होंने अपने बॉस से कहा था, "अगर हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?” 11 जुलाई को सिद्दीकी कंधार स्थित अफगान स्पेशल फोर्सेस के अड्डे पर पहुंचे जहां से उन्हें एक यूनिट के साथ जोड़ दिया गया। यह विशेष कमांडो दल तालिबान का सफाया करने के मकसद से भेजा गया था।
अब अफगानिस्तान में सेना और तालिबान के बीच युद्ध कवरेज के दौरान पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत को लेकर रॉयटर्स ने एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। दानिश रॉयटर्स के लिए ही काम कर रहे थे। इस रिपोर्ट में उस दौरान हुई घटनाओं का सिलसिलेवार विवरण, संपदाकीय फैसले, मूल्यांकन कमियां और हिंसा को लेकर कई जानकारी दी गई हैं। ‘फाइनल असाइनमेंट’ नाम से जारी की गई रिपोर्ट में सैटेलाइट कम्युनिकेशन के जरिये दानिश सिद्दीकी के आखिरी समय को बयां करने की कोशिश की गई है। हालांकि, किन परिस्थितियों के कारण भारतीय फोटोग्राफर की मृत्यु हुई, यह अभी भी अज्ञात है।
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गौरतलब है कि बीते दिनों 16 जुलाई को दानिश की कंधार शहर के स्पिन बोल्डक इलाके में अफगान सैनिकों और तालिबान के बीच संघर्ष को कवर करने के दौरान मौत हो गई थी। दानिश सिद्दीकी अफगानी सेना के साथ ही इस इलाके में रिपोर्टिंग कर रहे थे। अब जो रिपोर्ट जारी की गई है उसमें चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक अफगानी सेना अपने दो कंमाडो के साथ सिद्दीकी को पीछे छोड़कर आगे निकल गई थी।
एक कमांडर और चार गवाहों ने बताया है कि अफगानी सेना को गलती से ये लगा था कि वे पीछे हटने वाले दल में शामिल थे। रॉयटर्स ने इसके लिए जल्दबाजी में पीछे हटने के फैसले को जिम्मेदार ठहराया है। सिद्दीकी उस समय रॉकेट के छर्रे लगने की वजह से घायल हो गए थे और इलाज के लिए एक स्थानीय मस्जिद में शरण ली थी। रिपोर्ट में एक अफगान अफसर मेजर-जनरल हैबतुल्लाह अलीजई के हवाले से बताया गया है कि पीछे छूट जाने के बाद भारतीय पत्रकार की हत्या हुई थी।
रिपोर्ट में सिद्दीकी द्वारा अपने असाइनमेंट को पूरा करने में शामिल जोखिमों, कंपनी के भीतर सिद्दीकी के सहयोगियों और अन्य कर्मचारियों के बीच की प्रतिक्रिया, उनके नियोक्ता द्वारा निभाई गई भूमिका और उनके लिए सुरक्षा की गारंटी देने में आई कमी को लेकर भी रॉयटर्स ने लिखा है। स्टीफन ग्रे, शार्लोट ग्रीनफील्ड, देवज्योत घोषाल, अलास्डैर पाल और रीडे लेविंसन ने इस रिपोर्ट को तैयार किया है। इसमें कहा गया है कि इनमें से किसी भी लेखक की निर्णय लेने की प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं थी, जिसके चलते सिद्दीकी स्पिन बोल्डक में अफगान सेना के साथ होकर रिपोर्टिंग पर गए थे।
13 अगस्त को सिद्दीकी ने विद्रोहियों से घिरे एक पुलिसकर्मी को बचाने के सफल मिशन को कवर किया। अभियान पूरा होने के बाद जब वह लौट रहे थे तो उनके वाहन रॉकेट से ग्रेनेड दागे गएं उस हमले का सिद्दीकी ने वीडियो भी बनाया। वे तस्वीरें और वीडियो रॉयटर्स एजेंसी को भेजे गए। बाद में उन्होंने ट्विटर पर भी लड़ाई के बारे में जानकारी दी। सिद्दीकी के एक दोस्त ने वॉट्सऐप पर लिखा, "होली मदर ऑफ गॉड. यह तो पागलपन है।” कई युद्धों, हिंसक भीड़ और शरणार्थी संकटों को कवर कर चुके सिद्दीकी ने अपने दोस्त को भरोसा दिलाया कि उन्होंने खतरे का पूरा जायजा ले लिया है।
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रिपोर्ट में इस तरह के खतरनाक स्थानों पर पत्रकारों को भेजने को लेकर संपादकीय प्रबंधन पर सवाल उठाया गया है और कहा गया है कि इस तरह के कार्यों की निगरानी के लिए स्वीकृत पद खाली पड़ा हुआ है, क्योंकि एजेंसी के पूर्णकालिक वैश्विक सुरक्षा सलाहकार साल 2020 में सेवानिवृत्त हो गए थे। मालूम हो कि पहले एक रिपोर्ट आई थी कि तालिबान द्वारा दानिश सिद्दीकी के शव को क्षत-विक्षत किया गया था, उन पर कई गोलियों के घाव और टायर के निशान थे। रॉयटर्स ने यह भी कहा है कि अफगान सुरक्षा अधिकारियों और भारत सरकार के अधिकारियों द्वारा समाचार एजेंसी को भी यही बताया गया है, लेकिन तालिबान ने इसका खंडन किया है। तालिबान ने दावा किया है कि उनके लड़ाकों को तमाम चोटों के साथ ही सिद्दीकी का शव मिला था।
इस बीच एक ब्रिटिश बैलिस्टिक विशेषज्ञ ने रॉयटर्स को बताया कि विश्लेषण से यह स्पष्ट हो गया था कि ‘उनकी मौत के बाद भी उन्हें कई बार गोली मारी गई थी।’ उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि ‘सिद्दीकी को अफगान कमांडो के साथ भेजने के फैसले में दक्षिण एशिया के संपादकों को शामिल नहीं किया गया था और स्पिन बोल्डक मिशन को लेकर कोई नोटिस नहीं मिला था।’
रिपोर्ट में अफगानिस्तान से सिद्दीकी द्वारा अपने प्रियजनों को भेजे गए मैसेजेस का भी उल्लेख किया गया था, जहां वे यह कहते हुए दिख रहे हैं कि वे ठीक हैं और किसी खतरनाक काम में शामिल नहीं होंगे।इससे पहले न्यूयॉर्क टाइम्स ने कई भारतीय एवं अफगान अधिकारियों के हवाले से बताया था कि फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी का शव जब प्राप्त हुआ था तो वह पहचाने जाने लायक नहीं रह गया था।
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रिपोर्ट में कहा गया, ‘सिद्दीकी उस वक्त जिंदा थे, जब तालिबान ने उन्हें पकड़ा. तालिबान ने सिद्दीकी की पहचान की पुष्टि की और फिर उन्हें और उनके साथ के लोगों को भी मार डाला। कमांडर और उनकी टीम के बाकी सदस्यों की मौत हो गई, क्योंकि उन्होंने सिद्दीकी को बचाने की कोशिश की थी।’ दानिश सिद्दीकी के साथ काम कर चुके फोटो जर्नलिस्ट उनके पिछले दो सालों की पेशेवर यात्रा को याद करते हुए बताते हैं कि दानिश अपने काम को लेकर काफी हद तक जुनूनी थे। हाल ही में कोरोना के दौरान दानिश ने कई शानदार फोटो फीचर्स के जरिए दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचा था।
अफगानिस्तान में हत्या के बाद दानिश के शव को 18 जुलाई की शाम दिल्ली लाया गया और जामिया मिलिया इस्लामिया के कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्दे खाक किया गया था। दानिश ने जामिया मिलिया इस्लामिया से ही पत्रकारिता की डिग्री हासिल की थी। वे 2010 में रॉयटर्स से जुड़े थे, लेकिन दिल्ली के पत्रकारों से वो साल 2018 में संपर्क में आए। साल 2010 के बाद से रॉयटर्स फोटो पत्रकार के तौर सिद्दीकी ने अफगानिस्तान और इराक में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थियों के संकट, हांगकांग में लोकतंत्र समर्थकों का विरोध और नेपाल भूकंप को कवर किया था.
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