गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
पिछले एक हफ्ते में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक ही मसले को लेकर अपने दो रूप दिखाए हैं। पहला अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में ही मोदी ने हिमालय के अतिसंवेदनशील हिस्से में मौजूद हिंदू आस्था के प्रतीक ज्योर्तिलिंग केदारनाथ की अपनी लाव-लश्कर और ताम-झाम वाली पांचवी यात्रा की और दूसरा ग्लासगो में संपन्न हुए COP-26 समिट में पर्यावरण को बचाने के लिए भारी-भरकम दावे। एक ओर मोदी दुनिया के नेताओं के सामने पर्यावरण को लेकर संवेदनशील दिख रहे थे और दूसरी ओर वो अपने ही देश के भीतर धरती के अति-संवेदनशील हिस्से में बेपरवाह नजर आए। बेपरवाह इस लिहाज से कि उनके कार्यकाल में पहाड़ों पर पर्यावरण मंत्रालय के नियमों को सबसे ज्यादा ताक पर रखकर सवंदेनशील इलाकों में भी निर्माण चल रहा है!
ये सब एक हफ्ते के भीतर हुआ। केदारनाथ में अपनी पांचवी यात्रा के बावजूद, शायद ही वो अब भी केदारघाटी की 'सेंसेटिव इकॉलोजी' को लेकर सोच पाने में समर्थ हैं। इस इलाके में लगातार हेली कंपनियों के खिलाफ शिकायतें मिल रही हैं। इसके अलावा घाटी में बढ़ी पर्यटकों की आवक से हिमालय के बेस तक कचरे का ढ़ेर भी पहुंच रहा है। मोदी की यात्राओं से लोगों का जो रेला केदारनाथ में उमड़ा है, वो बेतरतीब और भयावह है। कम से कम हिमालय की सेहत के लिए तो ये रेला ठीक नहीं कहा जा सकता है। मोदी की यात्राओं के बाद केदारनाथ पहुंचने वालें लोगों की संख्या में रिकॉर्ड इजाफा हुआ है, जो स्थानीय 'इकॉनमी' को तो मजबूत कर रहा है, लेकिन लंबे समय में 'इनवायरमेंट' की सेहत को लेकर भंयकर परिणाम भी लेकर आ सकता है।
ग्लासगो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठसक से कहते हैं- 'जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से कोई भी अछूता नहीं है। विकसित देश हों या फिर प्राकृतिक संसाधनों से धनी देश, सभी के लिए ये बहुत बड़ा खतरा है।' हालांकि, दूसरी ओर भारत के भीतर वो इसे लेकर बेपरवाह दिखते हैं। एक हफ्ते के भीतर वो पर्यावरण को लेकर अपने दो रूपों में नजर आते हैं, जो उनके ग्लासगो में किए गए दावों पर शक पैदा करता है। हाल ही में वो अपनी पांचवी केदार यात्रा पर शाही अंदाज में उत्तराखंड पहुंचे। ये ऐसा राज्य है जहां पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया जा रहा है। संवेदनशील हिमालय में बेतरतीब निर्माण ने आपदाओं की आवृत्ति को को बढ़ा दिया है।
दूसरी ओर बेहिसाब उच्च हिमालय इलाकों तक पहुंच रहे पर्यटकों के प्रबंधन को लेकर भी सरकार की ओर से कोई प्लानिंग नजर नहीं आती है। नतीजतन केदारनाथ मंदिर के परिसर से एक शख्स का वीडियो नजर आता है, जिसमें वो 'मल्टी शॉट' पटाखे का डिब्बा सिर पर लिए हुए नाच रहा है और एक के बाद एक रॉकेट हवा में जाकर फटता चला जाता है। ये वो विसुअल्स हैं जो परेशान करते हैं। दीपावली पर केदारनाथ पहुंचने वाला हर शख्स यदि यूं ही दस पटाखे भी वहां हर साल फोड़ने लगा, तब आप इस त्रासदी की कल्पना कीजिए।
2041 तक 457.63 टन प्लास्टिक कचरा प्रतिदिन के स्तर पर होगा राज्य
उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी इलाके प्लास्टिक कचरे से भर रहे हैं। हालात यह हैं कि कई पहाड़ी शहरों में प्रॉपर ट्रंचिंग ग्राऊंड तक नहीं और शहरों के आस-पास ही खुले में कूड़े के ढ़ेर लग रहे हैं। इसके अलावा पर्यटक अपने साथ ऐसी जगहों तक कचरा ले जा रहे हैं, जहां वह सालों तक पड़ा रहेगा। उत्तराखंड में रोजाना खतरनाक प्लास्टिक कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है। वर्ष 2041 तक यह करीब 457.63 टन प्रतिदिन के खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा। उत्तराखंड पर्यावरण और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के सर्वे में ये चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई थी। धार्मिक पर्यटन के कारण भी हिमालयी क्षेत्र में प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है। हिमालयी क्षेत्र का पर्यावरण बचाने के लिए जरूरी है कि हिमालय पर प्लास्टिक के पहाड़ नहीं बनने दिए जाएं।
मोदी ने केदारनाथ को बनाया ब्रांड
केदारनाथ में आपदा से पहले साल 2012 के मुकाबले साल 2019 में पहुंचने वालों की संख्या दोगुनी थी। जून 2013 की आपदा के बाद केदारनाथ में भयावह सन्नाटा पसर गया था। इसके अगले साल केदारनाथ में कुल 40,832 लोग पहुंचे थे, लेकिन पीएम मोदी के दौरों के बाद इस इलाके की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई। नतीजतन, साल 2019 में केदारनाथ ने अपने इतिहास की सबसे बड़ी भीड़ दर्ज की। इस साल तकरीबन दस लाख लोग मंदिर पहुंचे थे। लोगों के मन से साल 2013 की वो डरावनी तस्वीरें गायब हो गई थी। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी पहली बार 3 मई 2017 को केदारनाथ पहुंचे थे। इस साल पूरे यात्राकाल में तकरीबन 4,71,235 लोग मंदिर पहुंचे।
ये वो दौर था जब मंदिर का निर्माण कार्य किया जा रहा था। बड़े पैमाने पर भारी भरकम मशीनों को केदारनाथ पहुंचाया गया था। इलाके की तबाही के ऊपर नई केदारपुरी का निर्माण किया जा रहा था और इसके लिए केंद्र सरकार ने अपने खजाने को खोल दिया था। कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में केदारघाटी में पुननिर्माण की कहानियां बांची जा रही थी, उस दौर में कर्नल मोदी के अहम सैनिक होते थे। वो दीगर बात है कि कर्नल की महत्वकांक्षाओं को वो अमलीजामा नहीं पहना सके, लिहाजा कर्नल ने भी पाला बदल लिया। आज कर्नल केदारघाटी के पुननिर्माण को ही अपनी उपलब्धि बनाकर सत्ता को पाने का जरिया बनाकर बैठ गए हैं।
इसके बाद पीएम मोदी इसी साल 20 अक्टूबर को फिर से केदारनाथ पहुंचे थे। उस दौरान उन्होंने केदारनाथ पुनर्निर्माण के लिए 700 करोड़ रुपये की पांच बड़ी परियोजनाओं का शिलान्यास किया था। केदारघाटी में पैसा बरस रहा था। लाखों-करोड़ों के काम, जगह-जगह से उधड़े हुए पहाड़ पर चल रहे थे और सामने तबाही के जख्म अब भी नजर आ रहे थे। इसके बाद मोदी 7 नवंबर 2018 को तीसरी बार केदारनाथ पहुंचे और फिर वो चौथी बार 18 मई 2019 को पहुंचे। सैकड़ों दफा हेलिकॉप्टर सिर्फ उनके आगमन की तैयारियों के लिए मंडराते रहे। हेलिकॉप्टर का जिक्र इसलिए भी कर रहा हूं, क्योंकि ये भी घाटी में नई मुसीबत लेकर आए हैं।
Prayed at the Kedarnath Temple. Har Har Mahadev! pic.twitter.com/ox7LMCZmfi
— Narendra Modi (@narendramodi) May 18, 2019
हेलिकॉप्टर जो मुसीबत लाए!
उच्च हिमालयी क्षेत्र में रह रहे वन्य जीवों पर हेलिकॉप्टर की धमक का बुरा असर पड़ा है। हाल ही में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग ने घाटी में सेवाएं दे रही हेली कंपनियों से जवाब तलब किया है। आरोप है कि कंपनियां भारतीय वन्य जीव संस्थान के मानकों और एनजीटी के नियमों का पालन नहीं कर रही हैं। केदारघाटी से धाम के लिए हेलीकॉप्टर निर्धारित 600 मीटर की ऊंचाई पर भी नहीं उड़ रहे हैं। साथ ही हेली कंपनियां प्रतिदिन का शटल, साउंड व ऊंचाई का रिकाॅर्ड केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग को नहीं भेज रही हैं। आरोप है कि गुप्तकाशी, शेरसी और बडासू हेलीपैड से केदारनाथ के लिए उड़ान भर रहे हेलीकॉप्टर नदी तल से 150 से 250 मीटर की ऊंचाई पर ही उड़ रहे हैं, जबकि उन्हें 600 मीटर की हाइट पर उड़ना है। हेलीकॉप्टरों की उड़ान की यह ऊंचाई केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के भीमबली में स्थापित मॉनीटरिंग स्टेशन में बाकायदा रिकाॅर्ड हो रही है।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग गोपेश्वर अमित कंवर ने मीडिया को दिए अपने एक बयान में कहा है कि हेलीकॉप्टर की तेज आवाज से अति संवेदनशील क्षेत्र में प्रवास करने वाले दुर्लभ वन्य जीवों, वनस्पतियों को नुकसान पहुंच रहा है। साथ ही लोगों को भी परेशानी हो रही है। वर्ष 2013-2014 में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग ने यात्राकाल में केदारघाटी के गुप्तकाशी, फाटा, बडासू, शेरसी, सोनप्रयाग, गौरीकुंड से लेकर केदारनाथ हेलीपैड तक हेलीकॉप्टर की ध्वनि व ऊंचाई का अध्ययन किया था।
रिपोर्ट के अनुसार केदारनाथ हेलीपैड पर हेलीकाप्टर की न्यूनतम ध्वनि 92 डेसीबल व अधिकतम 108 डेसीबल मापी गई थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि हेलीकॉप्टर सेंचुरी एरिया में उड़ान भरते हुए नियमों का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं। लेकिन सात वर्ष बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। हालांकि, ये जवाब-तलब उस घटना के बाद किया गया है जब केदारनाथ के विधायक मनोज रावत के साथ हेली कंपनी के प्रबंधक की झड़प की खबरें भी आई हैं।
पीएम के हाव-भाव शाही!
केदारघाटी की इस पांचवी यात्रा के बावजूद प्रधानमंत्री की ओर से ऐसा कोई बयान नहीं आया जो इस इलाके की संवेदनशीलता का ख्याल रखने का भाव पैदा करती हो। उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया कि केदारघाटी पहुंचने वाले लोग प्रकृति से संयम बरतें। इसके उलट उन्होंने आकर्षक तस्वीरों और वीडियोज के लिए जरूर लोगों को प्रेरित किया, जिसका नतीजा वो शख्स भी है जो पटाखे की जलती पेटी सिर पर रखकर मदमस्त वहां नाचता हुआ दिख रहा है। निसंदेह मोदी की यात्राएं केदारनाथ की ब्रांडिग कर रही है, वहां की लोकल इकॉनमी को मजबूत कर रही है, लेकिन इसके नकारात्मक पहलू कई ज्यादा घातक हैं। उच्च हिमालय के संवेदनशील हिस्सों में पहुंच रही भीड़ न केवल हिमालय की इकॉलजी के लिए सही है, बल्कि इसका असर उत्तराखंड़ के एक बड़े हिस्से पर पड़ रहा है।
Speaking at Kedarnath. Watch. https://t.co/QtCLIbRZy7
— Narendra Modi (@narendramodi) November 5, 2021
इन यात्राओं के चलते आम भारतीय बड़े पैमाने पर केदारनाथ पहुंचे हैं, लेकिन इस भीड़ को थामने का प्रबंधन ही ठीक से विकसित नहीं हो सका है। हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो इसकी तस्दीक करता है! बड़े पैमाने पर केदारघाटी पहुंच रहे पर्यटक अपने साथ 'प्लास्टिक कचरा' भी ग्लेशियर और नदियों के नजदीक ले जा रहे हैं। मोदी की पांच यात्राओं के बावजूद केदारघाटी की इकोलॉजी को लेकर पीएम की चिंताएं नजर नहीं आती, बल्कि ऐसा लगता है कि उन्होंने हिमालय की गोद में बने मंदिर को भी अपने 'हिंदू वोटर्स' को साधने का जरिया बना लिया है। कभी वो सारे काम-धाम छोड़कर केदारनाथ में गुफा के भीतर ध्यान मुद्रा में तस्वीरें खिंचवाते हैं, तो कभी मंदिर प्रांगण से अपने भाषण कार्यक्रमों को लाइव देशभर में प्रसारित करवाते हैं।
मोदी केदारघाटी आकर वो सब कुछ करते हैं, जो उनकी राजनीति को लाभ पहुंचाता हैं, लेकिन इसके एवज में वो यहां की इकॉलजी पर दांव खेल रहे होते हैं। ये दांव भी उस वक्त खेला जा रहा है, जब हमारा आपदा प्रबंधन मामूली सी आपदा में ही पस्त नजर आता है। यहां तक कि मोदी ने साल 2013 में आपदा के बाद अपनी उस यात्रा का तक जिक्र किया, जिसके बाद उनके झूठे रेस्क्यू की कहानियों पर कांग्रेस हमलावर हो गई थी, लेकिन यहां उन्हें एक दफा भी हिमालय की संवेदनशीलता का ख्याल नहीं आया। उन्होंने केदार के चौक को भी अपना 'चुनावी मंच' बना लिया। बहरहाल, मोदी केदारनाथ को अपनी राजनीति के लिए ही सही 'ब्रांड' में तब्दील तो कर रहे हैं, लेकिन इस उमड़ते रेले की कीमत कल पहाड़ चुकाने जा रहा है।
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