दुनियाभर में फिलवक्त चर्चाओं का केंद्र बने हुए अफगानिस्तान में तालिबान के उभार के साथ ही उम्मीदें कैसे दम तोड़ रही हैं, इसका अंदाजा हाल ही के कई घटनाक्रमों में देखने को मिला है। काबुल में 17 अगस्त को अपने पहले आधिकारिक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान ने दावा किया था कि वे इस्लामिक कानून के दायरे में ही महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करेंगे, लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है। तालिबान की मौजूदा कार्रवाई बता रही है कि वो सिर्फ दुनिया के सामने अपनी उदार छवि दिखाने के लिए ही कई बयान जारी कर रहा है, जबकि असल में वो अफगान नागरिकों, खासकर महिलाओं की 'आजादी के पंख' कुतरने पर आमादा है।
हाल ही में तालिबान के मुख्य प्रवक्ता जबिहुल्लाह मुजाहिद ने कहा था कि इस्लाम के ढांचे के भीतर महिलाओं को काम करने और पढ़ने की मंजूरी दी जाएगी और समाज में उनकी भूमिका सक्रिय रहेगी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। हाल ही में एक अफगान महिला पत्रकार को उनके दफ्तर से वापस लौटा दिया गया और उन्हें दोबारा काम पर न लौटने की हिदायत दी गई।
इस महिला पत्रकार का नाम शबनम खान दवरान है और वो पिछले छह सालों से अफगानिस्तान में पत्रकारिता कर रही हैं। शबनम अफगानिस्तान के सरकारी न्यूज चैनल 'रेडियो टेलीविजन अफगानिस्तान पश्तो' (आरटीए पश्तो) में बतौर टीवी प्रेजेंटर काम कर रही थी और तालिबान की पहली प्रेस कांफ्रेस के बाद उत्साहित होकर अगले दिन अपने दफ्तर काम करने के सिलसिले में पहुंची थी, जहां से उन्हें यह कहकर लौटा दिया गया कि वो अब आगे आरटीए में काम नहीं कर सकती हैं। 'हिलांश' से बातचीत में शबनम ने 18 अगस्त को हुए घटनाक्रम के साथ ही कई अन्य मसलों को लेकर भी बात की है।
शबनम ने हमें बताया- 'तालिबान की प्रेस कांफ्रेस के अगले दिन जब मैं सुबह अपने दफ्तर की ओर जा रही थी तो मुझे रास्ते में ही रोक लिया गया। मुझसे पूछा गया कि मैं कहां जा रही हूं! मैंने उन्हें बताया कि मैं आरटीए में प्रेजेंटर हूं और अपने दफ्तर जा रही हूं। उन्होंने मुझसे घर लौट जाने के लिए कहा। मैंने जब उनसे कहा कि ये मेरी जॉब है, तो यह सुनकर वहां मौजूद एक शख्स मुझ पर चीख पड़ा। उसने मुझसे कहा कि अब निजाम बदल गया है और मुझे अंदर जाने की इजाजत नहीं है। ये भयावह पल था। मैंने उनसे पूछा कि मुझे जाने की अनुमति क्यों नहीं है... ! इसपर उस शख्स ने सिर्फ इतना कहा कि अब निजाम बदल गया है और लड़कियों का काम करना अलाउड नहीं है। मैंने उनसे जब कहा कि बाकी जगहों मसलन टोलो न्यूज में तो महिलाएं काम कर रही हैं, फिर आरटीए में मेरे लिए जॉब करना क्यों अलाउड नहीं है? इस पर उस शख्स ने मुझ पर लगभग चीखते हुए कहा कि उसे मुझसे कोई बहस नहीं करनी है और मुझे वापस लौट जाना चाहिए! मैंने उस शख्स को अपनी आईडी भी दिखाई, लेकिन इसका उस पर कोई असर नहीं हुआ और मुझे वहां से लौट जाने पर मजबूर कर दिया गया। ठीक उसी वक्त आरटीए के मेरे पुरुष सहयोगियों को दफ्तर जाने दिया जा रहा था। मैं हैरान थी और उसी वक्त साथ में मायूस भी थी। मेरा छह साल का करियर सिर्फ इसलिए खत्म हो रहा था, क्योंकि मैं एक महिला थी। ये सब उस वक्त हो रहा था जब मेरे देश में उथल-पुथल मची हुई थी और बतौर पत्रकार ये मेरे लिए काम पर जाने का सबसे महत्वपूर्ण वक्त था। उन्होंने मुझसे साफ कह दिया था कि आज के बाद मुझे वहां जाने की इजाजत नहीं है। मैं हैरान हूं कि तालिबान के किस रूप पर यकीन करूं... उस रूप पर जब वो दुनिया के सामने महिलाओं की आजादी को लेकर उदारता का झूठ बेच रहे थे या फिर उस रूप पर जब मुझे घर लौट जाने के लिए कह दिया गया। मुझे नहीं मालूम हमारे साथ क्या होने जा रहा है।'
This is the stark reality of women rights "within Islamic law". Meet @shabnamdawran, TV presenter turned away by Taliban as she tried to work today. Despite wearing a hijab & carrying correct ID, she was told: "The regime has changed. You are not allowed in here. Go home". pic.twitter.com/y1imIAM6Yp
— Ash Alexander-Cooper OBE (@ashalexcooper) August 18, 2021
शबनम ने आगे कहा- 'मुझे अपने परिवार की चिंता है। मुझे नहीं पता कि हमारा भविष्य क्या होगा, लेकिन इतना साफ है कि अफगानिस्तान में हम इस वक्त मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। यह एक अंधेरा दौर है और हमें नहीं पता कि हमारे लिए उम्मीद की नई किरणों का दिन कब और कितने समय बाद आएगा। हमारी जान को खतरा है और पिछले कुछ समय में जो हमें काम करने की आजादी हासिल हुई थी, उसे कुचल दिया गया है। अब वो छिन चुकी है। तालिबान के राज में अफगानिस्तान की फिजा बदलने लगी है। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि हमने एक दौर में मेहनत कर जो चीजें हासिल की थी, वो तबाह हो जाएं। उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि लड़कियां भी सपना देख सकती हैं.. वो काम पर जा सकती हैं और आजाद होकर सड़कों पर घूमकर अपना पेशा चुन सकती हैं। वो नहीं चाहते कि ऐसा हो... मैं भारी मन से अपने दफ्तर की बिल्डिंग को देख रही थी। मैं काफी देर तक वहां इस उम्मीद में रही कि शायद उन्हें कोई गलतफहमी हो गई हो और वो मुझे जाने दें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ वक्त बाद मैं चुपचाप वहां से अपने घर की ओर चल दी। मेरे पास सिवाय यह करने के और कोई दूसरा रास्ता नहीं था, लेकिन मैं अब भी वापस काम पर लौटना चाहूंगी। इसे मैंने चुना है। ये मेरी जिंदगी है और इसपर मेरे सिवाय कोई और फैसला कैसे ले सकता है।'
शबनम से जब हमने पूछा कि वो पंजशीर घाटी में बदलते घटनाक्रम और तालिबान के खिलाफ बन रहे माहौल को कैसे देखती हैं, तो इस पर उन्होंने कहा कि पंजशीर की घटनाओं और तालिबान के खिलाफ इकट्ठा हो रहे समूह को लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। फिलहाल तो तालिबान जल्द सरकार बनाने जा रहा है और वो पहले से मजबूत स्थिति में है। दुनिया की राजनीति अपने-अपने ढंग से काम कर रही है, जबकि इसका खामियाजा आम अफगानी नागरिकों को उठाना पड़ रहा है। पंजशीर में उठ रहा विद्रोह तालिबान के सामने अभी कमजोर स्थिति में है और वास्तव में कल क्या होगा, यह कहना अभी आसान नहीं है। अभी तो लोकतंत्र के समर्थक लोग अफगानिस्तान से बस भाग जाना चाहते हैं।
बता दें कि दुनियाभर में मीडिया के अधिकारों के लिए काम करने वाली अमेरिकी संस्था कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने भी तालिबान से मीडिया, विशेष रूप से महिला पत्रकारों को अपना काम बेरोक-टोक करने देने की अपील की है। शबनम खान दवरान के साथ हुए घटनाक्रम पर पूरी दुनिया से प्रतिक्रिया आ रही है। शबनम दवरान के अलावा आरटीए की ही एक अन्य महिला पत्रकार खदीजा को भी तालिबान ने दफ्तर से वापस लौटा दिया था। इस मसले पर हमने खदीजा से भी संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो सकी है।
बहरहाल, सीपीजे के एशिया समन्वयक स्टीवन बटलर ने महिला समाचार प्रस्तुतकर्ताओं को हटाने को अशुभ संकेत बताते हुए कहा कि तालिबान की यह कार्रवाई संकेत है कि अफगानिस्तान के तालिबान शासकों की महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करने के अपने वादे को पूरा करने की कोई इच्छा नहीं है। यह भी खबर है कि काबुल में पझवोक समाचार चैनल को भी महिला कर्मियों को लेकर तालिबान की ओर से फरमान जारी किया गया है। तालिबान के अधिकारियों ने पझवोक समाचार चैनल की 18 महिला पत्रकारों को घर से काम करने की सलाह दी है। उन्होंने ऐसा तब तक करने को कहा है जब तक कि महिलाओं के काम करने को लेकर नई सरकार के नियम तय नहीं हो जाते। बता दें कि 1996 से 2001 के बीच सत्ता में तालिबान के काबिज रहने तक मीडिया में महिलाओं के कामकाज पर प्रतिबंध लगा हुआ था।
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