गिरते बाजार  को बचाने के लिए जरूरी है इंडो-पाक फ्रेंडशिप

गिरते बाजार को बचाने के लिए जरूरी है इंडो-पाक फ्रेंडशिप

मोईन अयान

मोईन अयान सवाईमाधोपुर के छोटे से शहर गंगापुर सिटी से 2014 में राजस्थान की राजधानी जयपुर पहुंच गये। राजस्थान यूनिवर्सिटी से स्नातक किया। बकौल मोईन जयपुर ने उसे चलना सिखाया, जीना सिखाया, कठिन परिस्थितियों में भी तटस्थ रहना सिखाया। मोईन नाटककार हैं और पिछले 4 साल से रंगकर्म के क्षेत्र में अभिनय की दुनिया से जुड़ा हुए हैं। 

पिछले कुछ दिनों से भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ताना संबंधों को बढ़ाने की खबरें लगातार सामने आ रही हैं। ये उस वक्त हो रहा है, जब केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार अपने पड़ोसियों से तल्ख रिश्तों और गैर जिम्मेदाराना बयानों को लेकर चौतरफा आलोचना झेल रही है। 2014 में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भाजपा ने जिस ढंग से पाकिस्तान को राजनीति में जिंदा रखने की कोशिशें की हैं, उनसे हालात बदत्तर ही हुए। इसे भारत की नाकामयाब विदेश नीति के तौर पर शायद भविष्य में विद्यार्थी पढ़ें। खैर, अब जबकि दोनों मुल्कों के बीच तल्खी की बर्फ पिघल रही है, तब एक वर्ग भारत-पाक के बेहतर हो रहे रिश्तों की आलोचना भी कर रहा है।

ये आलोचना इसलिए भी जायज है कि पाकिस्तान के साथ पिछली सरकारों ने जो रिश्ते सुधारने की कवायद शुरू की थी, उसे नरेन्द्र मोदी सरकार ने एक झटके में बेपटरी कर दिया। इसके बाद बालाकोट जैसा वाकया हुआ, जिसने भारत की छवि को इंटरनेशनल मीडिया के सामने धूमिल करने का ही कार्य किया। बालाकोट एयर स्टाइक और बाद में नाटकीय ढंग से आतंकियों को दिल्ली ले जा रहे दविंदर सिंह की गिरफ्तारी ने कई सवाल पैदा कर दिये। ये सवाल इसलिए भी उठे कि ठीक इसी दौरान पाकिस्तान सरकार लगातार शांति की ओर कदम बढ़ाती हुई दुनिया के सामने नजर आ रही थी। पाकिस्तान ने बालाकोट एयर स्टाइक के तुरंत कुछ रोज बाद न केवल विदेशी मीडिया को मौके का दौरा करवाकर भारत के लिए शर्मनाक स्थितियां पैदा कर दी। फिर चाहे वह विंग कमांडर अभिनंनद की रिहाई का मसला रहा हो या फिर इमरान की ओर से लगातार आए सकारात्मक बयान, दो मुल्कों की सियासी बर्फ को ही पिघला रहे थे। 

भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधि सिंधु जल बंटवारे के मसले को सुलझाने के लिए आजकल दिल्ली में बैठकें कर रहे हैं। पिछले दो-ढाई वर्ष में दोनों देशों के बीच तनाव का जो माहौल रहा है, उसके बावजूद इस बैठक का होना यही संकेत दे रहा है कि दोनों देश के नेता डूबती अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए संबंधों को सुधार रहे हैं। हाल ही में पीएम मोदी और इमरान के बीच पत्र व्यवहार की खबरें भी इसी ओर इशारा करती हैं।

यह संकेत इसलिए भी पुष्ट होता है कि प्रधानमंत्री इमरान खान और सेनापति क़मर जावेद बाजवा, दोनों ने ही भारत के साथ बातचीत के बयान दिए हैं। इसके पहले दोनों देशों के फौजी अफसरों ने सीमा पर शांति बनाए रखने की भी घोषणा की थी। हमें समझना चाहिए कि पड़ोसी देशों के बीच संबंध जितने बेहतर होंगे, बाजार और सरहद दोनों के लिए उतना ही बेहतर होगा। वैसे भी बाजार की लड़ाई के दौर में सीमा पर गोला-बारूद फूंकना अपना ही नुकसान करने जैसे है।

शांति और सुक़ून की और बढ़ रहे इन दोनों देशों में ही इस वक्त अति राष्ट्रवाद के झुनझुने वाली सरकार है। ऐसे में भारत-पाक संबंधों में सुधार भविष्य में लाभदायक ही होगा। पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के मामले में मनमोहन सरकार से भी आगे अटल बिहारी बाजपेयी नजर आते हैं, हालांकि वो रिश्तों को लंबा नहीं खींच सके थे।

आपको याद होगा एक मौका आया था मार्च 2013 में, जब पाकिस्तान के वज़ीर-ए-आज़म परवेज अशरफ अपने परिवार के साथ अजमेर शरीफ की निजी यात्रा पर थे। तब तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने उनका स्वागत किया था। तब उस स्वागत के लिए कांग्रेस सरकार को तीखी आलोचना झेलनी पड़ी थी। खैर अब जब तब का विपक्ष खुद सत्ता में है तो उसे अपनी भूल सुधार लेनी चाहिए। कम से कम डगमगाते बाजार को देखते हुए दोनों मुल्कों के लिए ये डील जरूरी हो जाती है। दोनो देशों के साथ आने से न केवल दोनों ओर की अर्थव्यवस्था बेहतर होगी बल्कि आपसी निवेश बढ़ेगा, पर्यटन बढ़ेगा, उद्योग बढ़ेंगे, रोजगार बढ़ेंगे।

भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार का असर सिर्फ व्यापारिक लहजे से ही लाभादायक नहीं है, बल्कि सीमाओं पर भी इसका असर दिखेगा। देश की सीमाओं पर होने वाला खर्च सबसे बड़ा होता है और यह साल दर साल चीन की विस्तारवादी नीति की तरह बढ़ता ही जा रहा है। भारत के 2021 के रक्षा बजट की बात करें, तो यह कुल बजट का 15.49% है, जो कि 4.78 लाख करोड़ है। इसी तरह 2020 का 3.37 लाख करोड़ और 2019 का 3.18 लाख करोड़ रहा है।

देश के कुल बजट का एक बहुत बड़ा हिस्सा सिर्फ हम रक्षा पर खर्च कर दे रहे हैं, जबकि देश के भीतर ही एक बड़ा तबका दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रहा है। ऐसे ही शिक्षा बजट का प्रतिशत कुल खर्च का 3.2% और हेल्थकेयर का प्रतिशत कुल खर्च का 2.5% ही रहा है! इन नतीजों से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विश्वगुरू होने का दंभ भरने वाला भारत असल में अपने नागरिकों को लेकर कितना सचेत है या उसे वाकई में विश्वगुरू बनने में दिलचस्पी भी है!

शिक्षा और स्वास्थ्य पर हम कुल जितना खर्च कर रहे हैं उससे तकरीबन तीन गुना हम सुरक्षा पर उड़ा रहे हैं? ये बेहद महंगा सौदा है। ऐसा ही हाल कमोबेश पाकिस्तान का भी है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ सियाचिन में ही दोनो देशों ने 5000 सैनिक तैनात किए हुए हैं।

इसे खर्च के हिसाब से देखें तो भारत सियाचिन में प्रतिदिन 5 करोड़ रुपये और सालभर में 7500 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। इसके उलट 1984 से लेकर आजतक भारत के 869 सैनिक सियाचिन में अपनी जान गंवा चुके हैं, जिनमे से 97% फीसदी सैनिक सिर्फ मौसम की वजह से दुनिया से अलविदा कह गए, ना कि दुश्मन की किसी गोली या फिर युद्ध की वजह से।

ऐसे में अगर दोनों देश तनाव खत्म कर समझौतों और शांति की ओर बढ़ रहे हैं, तब दोनों मुल्कों का स्वागत होना चाहिए। 

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