हिमांशु जोशी पत्रकारिता शोध छात्र हैं और स्वतंत्र पत्रकारिता करते हैं।
भारत में 11 जून तक पूरी तरह से मात्र 3.4 प्रतिशत जनों का टीकाकरण हुआ है। कुछ बड़े देशों, कुछ छोटे और पिछले साल कोरोना के शीर्ष पर होकर सर्वोच्च संक्रमित देश साबित हुये इटली के टीकाकरण आंकड़ों पर नज़र दौड़ाएं, तब अमरीका में यह आंकड़ा 43.1 प्रतिशत, ब्राज़ील में 11.1 प्रतिशत, पाकिस्तान में 1.2 प्रतिशत और इटली में 22.6 प्रतिशत नागरिकों को अब तक वैक्सीन लगा चुका है। जाहिर है भारत के प्रधानमंत्री सिवाय हवा में शोर मचा रहे हैं, वह भी उस उपलब्धि का जिससे भारत अभी कई मील दूर खड़ा है। एक बड़ी आबादी को देखते हुये भारत में टीकाकरण की रफ्तार तेज होनी चाहिये थी, लेकिन यहां इसका उल्टा हो रहा है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना टीकाकरण पर पंजीकरण की अनिवार्य आवश्यकता पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। सुप्रीम कोर्ट की चिंता उन आंकड़ों को लेकर रही जहां भारत की आबादी के एक बड़े वर्ग के पास स्मार्टफोन और इंटरनेट की पहुंच नजर नहीं आती है। यह एक गंभीर समस्या भी है। देश में "डिजिटल डिवाइस" पर प्रकाश डालते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा,"आप डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं, लेकिन आप जमीनी हकीकत से अवगत नहीं हैं।"
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न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने पूछा "आप निश्चित रूप से रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं, लेकिन आप डिजिटल डिवाइस का जवाब कैसे देंगे? आप उन प्रवासी मजदूरों के सवाल का जवाब कैसे देते हैं, जिन्हें एक राज्य से दूसरे राज्य जाना है? झारखंड के एक गरीब कार्यकर्ता को एक आम केंद्र में जाना पड़ता है।" न्यायिक मामलों पर काम करने वाले पोर्टल लाइव लॉ के अनुसार सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि किसी व्यक्ति को दी जाने वाली खुराक की संख्या, टीके के प्रकार और व्यक्ति की पात्रता मानदंड पर नज़र रखने के लिए राष्ट्रीय पोर्टल में पंजीकरण करवाना आवश्यक है। केंद्र ने यह भी कहा है कि बिना डिजिटल पहुंच वाले लोग टीके के पंजीकरण के लिए गांव के कॉमन सेंटर, दोस्तों, परिवार या गैर सरकारी संगठनों की मदद ले सकते हैं।
टीकाकरण पर ज़मीनी हकीकत
दिल्ली में सरकार द्वारा कहे इस वक्तव्य की जांच के लिए हमने वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर उत्तराखंड में जमीनी स्तर पर कुछ सच्चाई परखी, जिससे हमें इतने हो-हल्ले के बीच चल रहे इस टीकाकरण के बारे में कुछ ज़मीनी हकीकत की जानकारी मिल सके। देहरादून के चकराता ब्लॉक स्थित गांव मशक के मातवर सिंह बताते हैं कि अभी तक गांव से छह-सात किलोमीटर दूर कोटी कनासर में टीकाकरण कैम्प लग रहा था, जहां खुद पंजीकरण न करा सकने वालों के लिए पंजीकरण की व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि यहां दिन में महज 100-150 लोगों का ही टीकाकरण सम्भव हो पा रहा था, जबकि 300-350 लोग टीकाकरण के लिए रोज आ रहे थे। अब आशा कार्यकर्ताओं की ओर से बताया जा रहा है कि हर ग्राम सभा में प्रतिदिन 100 लोगों का टीकाकरण होगा, जिसमें टीकाकरण केंद्र में ही पंजीकरण की सुविधा मिल सकेगी।
काम न मिलने की वज़ह से खीरी, उत्तर प्रदेश के छोटूराम अपने दो साथियों के साथ हरिद्वार से वापस घर लौटते दिखते हैं। टीके और उसके लिए अनिवार्य पंजीकरण के बारे में सवाल करने पर वह अपना फोन दिखाते हुए कहते हैं कि वह सब टीका लगाना तो चाहते हैं, पर उनके लिए इसकी ऑनलाईन प्रक्रिया समझनी उनके लिये मुश्किल है। इसके अलावा एक बड़ी समस्या सीमित वैक्सीन के बरक्स खड़ी एक बड़ी भीड़ की भी है। सरकार बड़े पैमाने पर वैक्सीन मुहैया करवाने में बहुत दूर खड़ी है।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र रोशनाबाद अभी कोरोना परीक्षण से आगे ही नही बढ़ पाया है, वहां कम्पनियों से आए श्रमिक कड़ी धूप में कोरोना परीक्षण के लिए पंक्तिबद्ध दिखे। सामुदायिक केंद्र रोशनाबाद जाने पर पता लगा कि टीकाकरण कैम्प राजकीय प्राथमिक विद्यालय रोशनाबाद में लगा है, वहां पहुंचने पर उत्तर प्रदेश बुलंदशहर के राजेंद्र प्रसाद अपने साथी दलवीर सिंह के साथ विद्यालय के मुख्यद्वार पर ही मिल गए। वह दोनों टीका लगवाने आए थे। अपनी प्राइवेट कंपनी के ज़ोर देने पर दोनों टीकाकरण के लिए आए तो थे, पर दोनों के मन में टीकाकरण को लेकर कई शंका भरे सवाल थे। दोनों ने अपना टीका पंजीकरण कैम्प में ही उपलब्ध लैपटॉप पर करवाया था।
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इन इलाकों में टीके को लेकर कई किस्म की अफवाहें तैर रही हैं। आस-पास पूछने पर पता चला कि बहुत कम लोग टीकाकरण के लिए खुद से सामने आ रहे हैं। ऐसे ही उत्तराखंड के भवाली में भी टीकाकरण की स्थिति बेहद उत्साह जगाने वाली नहीं है। संजीव भगत बताते हैं कि पंजीकरण की प्रक्रिया इतनी मुश्किल है कि शिक्षित व्यक्ति को भी परेशानी हो रही है। लोगों को टीके के स्लॉट बुक करने में खासी दिक्कतें सामने आ रही हैं।
टीके की उपलब्धता
मेरी सरकार वेबसाइट पर हरिद्वार में अपने पिनकोड पर 18+ के लिए भुगतान हो या मुफ़्त विकल्प दोनों पर को-वैक्सिन टीका उपलब्ध नहीं था। वहीं कोविशील्ड टीका मुफ़्त में तो उपलब्ध नहीं था, पर भुगतान पर इसके 1428 टीके उपलब्ध थे। जनता को मुफ्त टीके दिए जाने का दावा ठोकने वाली सरकार के ऐसे अदृश्य मुफ़्त टीके जनता के लिए कितने उपयोगी हैं, यह तो सरकार ही बेहतर बता सकती है।
बिना पंजीकरण भी टीकाकरण शुरू करने की मांग
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिना पंजीकरण के टीकाकरण शुरू करवाने की मांग हाल ही में की है। गावों में इंटरनेट की स्थिति और लोगों तक मोबाइल की कम पंहुच को देखते हुये राहुल गांधी की यह सलाह जमीनी तौर पर ज्यादा व्यावहारिक नजर आती है।
क्या ये डिजिटल भारत की असफलता है!
रेलवे ने टिकटघर पर भीड़ कम करने के लिए 'यूटीएस' एप लांच किया था, बावजूद इसके मुंबई लोकल ट्रेन के स्टेशन में टिकटघर के सामने भीड़ जस की तस बनी रही। देश के अग्रणी बैंक 'स्टेट बैंक ऑफ इंडिया' ने योनो एप लांच कर यह उम्मीद लगाई थी कि ग्राहक बैंक का आधा काम घर से ही निपटाएंगे, पर स्थिति यहां भी पुरानी वाली ही रही। ऐसे ही पिछले साल सरकार द्वारा कोरोना से जंग में क्रांतिकारी कदम की तरह पेश किए गए 'आरोग्य सेतु' एप की असफलता का जिक्र किये बिना डिजिटल इंडिया की बात अधूरी सी लगेगी।
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जिस आरोग्य सेतु एप को मोदी सरकार ने जोर-शोर से शुरू किया था, वह अब सिर्फ़ एयरपोर्ट के अंदर जाने का पास और टीकाकरण का प्रमाणपत्र मात्र रह गया है। वैसे भी भारत में स्मार्टफोन रखने वालों के आंकड़ों पर भी गौर करें तो न्युजू की 'ग्लोबल मोबाइल मार्केट' रिपोर्ट के अनुसार भारत की सिर्फ़ 31.8 प्रतिशत आबादी के पास स्मार्टफोन है। लैपटॉप व डेस्कटॉप के आंकड़े तो पूछिये ही नहीं।
बहरहाल, फिलवक्त केंद्र सरकार को डिजिटल भारत के 'वहम' से बाहर निकल कर जमीनी सच्चाई को देखते हुये टीकाकरण के अनिवार्य पंजीकरण को समाप्त कर नये विकल्पों पर ध्यान देना होगा। भारत के सुदूरवर्ती गांवों में डिजिटल इंडिया अभी अंतिम पंक्ति से बहुत दूर खड़ा है। हेपेटाइटिस बी, पोलियो जैसी बीमारियों को इंटरनेट युग से पहले वृहद स्तर पर टीकाकरण अभियान चला कर भारत में मोदी सरकार से पूर्ववर्ती सरकारों ने समाप्त किया है, इसलिये ऐसा मौजूदा केंद्र सरकार भी आराम से कर सकती है।
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