त्रिपुरा के जिलाधिकारी का एक वीडियो सोशल मीडिया में सनसनी मचाए हुये है। जिलाधिकारी ने राजधानी अगरतला में एक विवाह समारोह में पहुंचकर दबंग स्टाइल में एंट्री ली और उसके बाद दुल्हन की मां के मुंह पर परमिशन के कागज फाड़कर दे मारे! डीएम ने मेजबान को तो अपमानित किया ही, वहां आये मेहमानों को भी लाठियों से पिटवा डाला। दूल्हा और पंडित के भी थप्पड़ रसीद कर डाले। डीएम साहब से जिसने सवाल पूछने की जहमत उठाई, उसके डीएम साहब ने गिरफ्तारी के हुक्म मौके पर ही मातहतों को सुना दिये।
ये वीडियो जैसे ही वायरल हुआ, देश के प्रमुख मीडिया हाउस के डिजिटल वीरों ने अपने मालिकों की नामी वेबसाइट पर डीएम साहब के तरीफों पर लंबे लेख लिख डाले। किसी ने डीएम को 'सिंघम' बताया तो किसी ने 'दबंग' अधिकारी, लेकिन सोशल मीडिया में जब पब्लिक के हत्थे ये वीडियो चढ़ा, तो पूरा खेल पलट गया। असल में आम राय यहां कुछ और बन पड़ी।
यह भी पढ़ें : मीडिया कितना नीचे गिर सकता है : ‘न्यूरेमबर्ग मुकदमा-एक रिपोर्ट’
वीडियो के सामने आते ही आम जनता इससे आक्रोशित हो गई। लोगों ने सोशल मीडिया में जमकर डीएम साहब की इस गैर जिम्मेदाराना हरकत को कोसना शुरू कर दिया और इस वीडियो को कई नामचीन हस्तियों तक दे टैग पर टैग मारकर पलभर में पहुंचा दिया। गायक सोनू निगम ने तो चार कदम आगे जाकर एक वीडियो ही जारी कर दिया, जिसमें वो कह रहे हैं- 'वैसे तो मैं अपनी पर्सनल लाइफ पर ही वीडियो बनाता हूं, लेकिन आज सोशल मीडिया में मैंने ऐसा वीडियो देखा, जिसमें मैं अंदर तक हिल गया।'
इसके बाद सोनू निगम ने वीडियो में जिलाधिकारी को जमकर लताड़ा और पीड़ित परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की। बाद में कई बड़े नेताओं ने भी डीएम साहब की इस घटना को अवांछित बताया। कुल मिलाकर डीएम साहब का अति उलावलापन जनता के गले नहीं उतरा और जनता ने डीएम की व्यवस्थाओं के नाम पर बदसलूकी को कतई 'डिसलाइक' मार दिया। एक दम निकृष्ट श्रेणी के उतावलेपन में इसे शुमार किया जा सकता है, गर पब्लिक ओपीनियन देखें तब!
यह भी पढ़ें : कलम शासक के जूते चूमने गई तो मोर्चे पर उतर आये मुल्क के कार्टूनिस्ट!
खैर, तीन घंटे बाद जब देश की नामभर की रह गई राष्ट्रीय मीडिया आम जनता के गुस्से से मुखातिब हुई, तब मजबूरन उन्हें अपने ही बैनरों के दिन के बयान से एकदम हटकर पलटी मारनी पड़ी। इस बीच शर्मिंदगी के चलते कई मीडिया हाउसेज ने तो अपनी रिपोर्ट ही यूट्यूब से गायब कर ली। अब डीएम साहब क्रूर और गैरजिम्मेदार अधिकारी में तरमीम हो गये। महज कुछ घंटे पहले 'सिंघम' बने डीएम साहब माफी मांगते हुये नजर आने लगे। इस बीच सरकार ने भी डीएम को सस्पेंड करने में देरी नहीं की।
बहरहाल, ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड में आज से चार साल पहले का है। जब जनता दरबार में एक शिक्षिका को सीएम साहब ने न केवल अपमानित किया, बल्कि उन्हें सस्पेंड करने के साथ ही गिरफ्तार करने के निर्देश भी दिये। शिक्षिका की गलती बस इतनी थी कि उन्होंने अपने पति की मौत के बाद अपने लिये ट्रांसफर की मांग कर ली थी। इस घटना के बाद मीडिया में खबर चली कि सीएम साहब से अभद्रता करने पर शिक्षिका के खिलाफ हुई कार्रवाई!
इसके उलट सोशल मीडिया में जनता शिक्षिका के साथ खड़ी हो गई। जनता ने शिक्षिका के पक्ष में मुहिम शुरू कर दी। इस घटना में भी कई नामचीन हस्तियों ने मोर्चा संभाल लिया। मामले में जूतमपैजार होने के बाद मीडिया ने धीरे से अपने पहले वाले स्टैंड को वहीं छोड़कर, झट से नया स्टैंड अख्तियार कर खुद को झाड़-पोंछकर जनता के पक्ष में दिखाने की पुरजोर कोशिश करनी शुरू कर दी।
इस मामले में बाद में सरकार बैकफुट में आई और शिक्षिका का निलंबन वापस हुआ। ऐसी ही एक और घटना उत्तराखंड में और हुई। असल में हल्द्वानी में एक डीएम साहब ने गरीब सब्जी बेचने वाले के ठेले पर लात मार दी। इसके लिये डीएम साहब ने अपनी कैमरा टीम पहले से ही तैनात कर रखी थी। ठेली में अजय देवगन स्टाइल में लात पड़ते ही खबर चली कि डीएम ने सिखाया अतिक्रमण करने वालों को सबक! बगल में ठेली नाली में गिरी पड़ी थी और नाली के एक ओर वो गरीब रो रहा था, जिसकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अब बेकार हो चुका था।
बाद में सोशल मीडिया में आम जनता सब्जी वाले के पक्ष में उठ खड़ी हुई, तो अगले दिन मीडिया का रूख ही बदल गया। बहरहाल, ऐसी कई घटनायें हैं जब सोशल मीडिया ने मुख्य धारा की मीडिया को आईना दिखाया है। बड़े-बड़े मीडिया हाउसेस चंद घटे भी अपनी रिपोर्ट पर टिके नहीं रहे पा रहे हैं! लगातार अपनी ही खबरों से पलटना और अपनी ही खबरों को खारिज करने का जो चलन इधर बढ़ा है, वो भारतीय मीडिया के लिये चिंता का विषय है। आखिर ऐसा क्या हो गया है कि मीडिया को अपना लेखा-जोखा महज कुछ घंटे में ही बदलना पड़ रहा है!
ऐसा असल में मीडिया से दो कदम आगे खड़े हो चुके सोशल मीडिया के चलते हो रहा है, जहां लोग सीधे मीडियाकर्मियों की एकतरफा और बायस्ड खबरों की बखिया उधेड़ दे रहे हैं। एक दौर था जब मीडिया पर लोगों का भरोसा इस कदर था कि रास्ते में अगर किसी नागरिक का एक्सीडेंट होते हुये दिख जाता, तब भी लोग इस घटना की पुष्टि करने के लिये अखबारों का रुख करते थे। फिर नब्बे के दशक के बाद प्राइवेट ब्राडकास्टर्स ने जिस ढंग से ब्रेकिंग खबरों के नाम पर भौंडेपन की शुरुआत की उसने पूरी न्यूज इंडस्ट्री को ही बदल कर रख दिया। मीडिया के कारोबार में ऐसे लोग भी आने लगे जिनमें सामाजिक और मानवीय समझ न के बराबर थी और वो इसे किसी भी दूसरे धंधे की ही तरह देखते थे। फील्ड रिपोर्टिंग से पत्रकारिता का अलगाव होने लगा और जब फील्ड रिपोर्टिंग से दूरी बनी तो समाज क्या सोचता है, क्या समझता है ये नेपथ्य में जाकर एक तय परिपाटी पर खबरों का उत्पादन होने लगा।
अब जबकि जनता ने अपने विक्ल्प ढूंढ लिये हैं, तब मीडिया लगातार अविश्वसनीयता की ओर बढ़ रहा है। भारत में ही मौजूदा मीडिया हिस्सेदारी को देखें तो इनमें उन अमीरों का कब्जा है, जिनके लिये भारत के नागरिक सिवाय आंकडों और बिजनेस डेटा के सिवाय कुछ और नहीं। मसलन मुकेश अंबानी की ही मीडिया में हिस्सेदारी को देखें तो आज उनकी कंपनी 56 चैनलों के स्वामित्व वाले न्यूज 18 ग्रुप के साथ मीडिया के एक बड़े हिस्से को नियंत्रित करती है। अब ये उम्मीद की जाये कि मीडिया मुकेश अंबानी के खिलाफ जाकर सवाल उठाएगी, सोचना ही मूर्खता होगी।
मौजूदा दौर में न्यूज इंडस्ट्री को असली चुनौती सोशल मीडिया से मिल रही है। सोशल मीडिया ने पत्रकारिता में पारदर्शिता की एक लंबी लकीर खींचनी शुरू कर दी है। इसमें आप यूट्यूबर की भूमिका को नहीं नकार सकते, जिन्होंने टीवी चैनलों की बखिया उधेड़ने का काम सबसे मारक अंदाज में किया है। ऐसे कई यूट्यूबर्स मौजूद हैं, जो इस वक्त विश्वसनियता की कसौटी पर किसी भी बड़े न्यूज चैनल से दसियों कदम आगे खड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे यूटयूब चैनल अपनी रिसर्च बेस्ड कंटेंट की बदौलत न केवल मीडिया की परत दर परत सच्चाई को खोल कर रख देते हैं, बल्कि कई मौकों पर तो वास्तविक खबरें भी आम लोगों को परोस रहे हैं।
इसी का नतीजा है कि अब मीडिया के दफ्तरों में सुबह होने वाली मीटिंग में सबसे पहले खबरों के प्रारूप में इस बात पर चर्चा होती है कि आखिर सोशल मीडिया में क्या रहा है। सोशल मीडिया के मुद्दे धीरे-धीरे मुख्य खबरों पर इधर हावी भी हुये हैं। हालत यह है कि अब मीडिया भी वो ही दिखा रहा है, जो जनता पहले से ही अपने स्तर पर कहीं दिखा चुकी होती है। अगरतला की घटना में स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया में डीएम साहब तो तीन घंटे में सिघंम बन ही गये थे, लेकिन जनता ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि डीएम को घुटनों के बल लाकर पटक दिया और यह बताया कि इस मुल्क में कानून ही अब भी सर्वोच्च है। बहरहाल, लोग लगातार ऐसे ही वैकल्पिक मीडिया को मजबूत करते रहे तो वह दिन भी दूर नहीं, जब प्रायोजित खबरों की दुकान चला रहे उद्योगपतियों को अपनी दुकान के शटर गिराने पड़ेंगे।
Leave your comment