इस वक्त भारत में एक खबर बड़ी तेजी से फैल रही है कि सरकार ट्विटर और फेसबुक को बंद करने जा रही है, लेकिन यह महज अफवाह है। असल में ऐसा करने से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को ही होने जा रहा है। 2014 में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की बंपर सीटों के पीछे सोशल मीडिया ने भी बड़ी भूमिका अदा की है। हां, वो दीगर बात है कि इन दिनों सरकार और उसकी मशीनरी इसी सोशल मीडिया पर मुंह की खा रही है। सोशल मीडिया, खासकर ट्विटर और फेसबुक पर बीजेपी की फजीहत भले ही इन दिनों बढ़ गई है, लेकिन बावजूद इसके सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को बंद करना खुद के पांवों पर ही कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा।
भारत सरकार का बचाव जितना सोशल मीडिया के इन दो प्लेटफॉर्म की वजह से अब तक होता आया है, सरकार उसे ऐसे ही बंद नहीं कर देगी। हां, सरकार इन टेक जांइट्स पर नकेल जरूर कसने जा रही है, जिससे ये दोनों ही कंपनियां सरकार के इशारों पर काम करती रहें और अभिव्यक्ति का ढोंग भी बचा रहे। ट्विटर के दफ्तर पर दिल्ली पुलिस की धमक अैर बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा के ट्वीट पर मैनिपुलेटेड के ठप्पे ने इस बात को और हवा दी है कि सरकार ट्विटर और फेसबुक को बैन कर सकती है।
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असल में बीजेपी ने ट्रेडिशनल पॉलिटिक्स को 'ट्रेंडिंग पॉलिटिक्स' में बदल दिया है, जिसमें सबसे बड़े मददगार यही दो प्लेटफॉर्म बने हैं। बीजेपी का आईटी सेल तो बाकायदा इन्हीं दो प्लेटफॉर्म की बदौलत पार्टी और अपने नेताओं के पक्ष में माहौल तैयार करता है। अब आप हालिया टूलकिट मामले को ही ली लीजिए, जिसके बहाने सरकार ने देश में नई बहस को जन्म देकर कोरोना मिसमैनेजमेंट की फजीहत से कुछ हद तक देश का ध्यान भटका दिया है।
आज ही यूपी से खबर आई कि सरकार ने प्रयागराज में गंगा के घाटों पर दफ्न शवों से चुनरियां हटवा दी, जिससे कि लाशों के ढेर कैमरे में ना कैद हो सकें। ये कवायद हुई तो योगी सरकार की फजीहत को कम करने के लिये थी, लेकिन इससे केंद्र सरकार को भी फायदा मिलने वाला है। अब तक विपक्षी जो घाटों के किनारे लगे लाशों के ढ़ेर को सरकार की असफलता का पैमाना बता रहे थे, अचानक उन तमाम सवालों को ट्विटर और फेसबुक के बैन होने की ओर बड़ी खूबसूरती से मोड़ दिया गया है।
दोनों ही कंपनियों के लिये भी भारत कारोबार के लिहाज से बड़ा बाजार है। फेसबुक में तो भारतीय कारोबारी मुकेश अंबानी के शेयर तक हैं, ऐसे में सरकार एक झटके में इन कंपनियों को भारत से बाहर का रास्ता दिखाने से पहले 100 दफा सोचेगी, फिर भले ही झगड़े कितने ही बड़े स्तर पर क्यों न पहुंच जाएं। भारत सरकार अगर ट्विटर और फेसबुक पर हमले तेज करती है, तब यह भी संभावना है कि इससे देश में निवेश कर रही टेक कंपनियां एक झटके में अपने हाथ पीछे खींच लें। हालांकि, पूर्व में बाइट डांस जैसे बड़े ग्रुप को चीन के बहिष्कार के प्रतीक के तौर पर भारत से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था, लेकिन यहां मसला अमरीकी कंपनियों का है, जिनपर हाथ डालना इतना भी आसान नहीं। ये दोनों ही कंपनियों दुनियाभर में सोशल मीडिया के बड़े प्लेटफॉर्म उपलब्ध करवाती हैं।
अब आप भारत के उन अखबारों की खबरें देखिये, जिनके घुटने सरकार के सामने टिके हुये ही ज्यादा नजर आते हैं। ऐसे ही मीडिया हाउस बिना सिर-पैर फेसबुक और ट्विटर के बंद होने पर नये विकल्पों को पेश करती हुई खबरें परोस रहे हैं। दैनिक जागरण ने तो घोषणा करते हुये ही यह तक लिख दिया कि लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म Facebook, Twitter, WhatsApp और Instagram पर केंद्र सरकार की गाइडलाइन न पालन करने पर कल यानी 26 मई को प्रतिबंध लग सकता है! अब आप ही सोचिये जबकि बीजेपी अपने प्रचार के लिये बजट का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं प्लेटफॉर्म को ध्यान में रखकर तैयार कर रही है, तब इनके बंद होने की भरपाई वो चुनावों में कैसे करेगी! ये सवाल मेरे जेहन में गुदगुदी कर रहा है... आप खुद इस सवाल के इर्द-गिर्द सोचिये, आधी परेशानियां खत्म हो जाएंगी।
इस अफवाह की एक बड़ी वजह पिछले दिनों सोशल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिये लाए गये नए नियम भी बने हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए सरकार तीन महीने पहले नए नियम लेकर आई थी और यह नियम 26 मई से लागू हो रहे हैं। इसी को देखते हुए अब कहा जा रहा है कि, 26 मई से फेसबुक और ट्विटर काम करना बंद कर देंगे। किसी भी सोशल मीडिया कंपनी ने अगर इन नियमों को नहीं माना तो उन्हें फिर देश में ऑपरेट नहीं करने दिया जाएगा। असल में सोशल मीडिया कंपनियों को भारत में कंप्लायंस अधिकारी, नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करने के लिए कहा गया था और उन सभी का कार्यक्षेत्र भारत में होना जरूरी रखा गया था। सरकार के इन नियमों को टेक कंपनियां पूरा नहीं कर सकी हैं।
फेसबुक ने कहा है कि वह सरकार के साथ उन मुद्दों पर विचार जारी रखेगी, जिनपर अधिक संपर्क रखने की जरूरत है। फेसबुक के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा- 'हमारा लक्ष्य आईटी नियमों के प्रावधानों का पालन करना है और कुछ ऐसे मुद्दों पर चर्चा करना जारी रखना है जिनके लिए सरकार के साथ अधिक जुड़ाव की आवश्यकता है। आईटी नियमों के अनुसार, हम परिचालन प्रक्रियाओं को लागू करने और दक्षता में सुधार करने के लिए काम कर रहे हैं। फेसबुक हमारे प्लेटफॉर्म पर लोगों को स्वतंत्र रूप से और सुरक्षित रूप से खुद को व्यक्त करने की क्षमता के लिए प्रतिबद्ध है।'
बहरहाल, यूजर्स को घबराना नहीं चाहिये, ये वो टेक कंपनियां हैं जो अपने फायदे के लिये कुछ ना कुछ तोड़ निकाल ही लेंगी। इन टेक कंपनियों के भारत में रहने से सिर्फ इनका ही फायदा नहीं है, बल्कि भारत सरकार और खासकर राजनीतिक दलों को भी बेशुमार फायदा है। हां, इतना जरूर है कि इस वक्त बीजेपी के समर्थक और विरोधी दोनों ट्विटर पर इस प्लेटफॉर्म को बैन करने और समर्थन की लडाई में कूद पड़े हैं। यूपी और केंन्द्र दोनों ही सरकारें फिलहाल तो राहत में होंगी कि चलो कोरोना मिसमैनेजमेंट की खबरें आखिरकार मैनेज तो हुई! मूल सवाल सिर्फ इतना है कि इन पर नकेल लगाकर दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी ही लाभ उठाएगी या फिर बंदरबांट में सबके हिस्से लाभ आते रहेंगे।
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