दिल्ली में तिहाड़ जेल के बाहर गुरुवार की शाम को अलग मंजर था। भारत की अलग-अलग यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले उन तीन बच्चों के स्वागत के लिये लोग जुटे हुये थे, जिन्हें सरकार आतंकवादियों जितना खतरनाक मानती है। वो बच्चे जब बाहर निकले तो उनकी आंखों में चमक थी, उन्हें विश्वास था कि एक दिन उनका सच सामने होगा। वो अपने साथियों और नामी कार्यकर्ताओं के साथ 'जुल्म' के खिलाफ नारे लगा रहे थे और मीडिया उनकी बातें सुनने को आतुर थी। उनकी मुट्ठियां भिंची हुई थी और वो कल के भारत की नई तस्वीर बना रहे थे। सोशल मीडिया से लेकर अखबार और टीवी तक देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा की चर्चा थी।
लंबे इंतजार के बाद आखिरकार उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा साजिश के आरोपों में जेल में बंद जेएनयू की छात्र देवांगना कलिता व नताशा नरवाल और जामिया यूनिवर्सिटी के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को जेल से रिहा कर दिया गया। दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली दंगों में तीनों को ज़मानत देते हुए यूएपीए के दुरुपयोग पर चिंता जताई। कोर्ट ने सरकारों से कहा कि किसी पर भी 'आतंकवादी' होने का ठप्पा लगाए जाने से पहले गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
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अदालत ने अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा- 'हमें यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि ऐसा लगता है कि असहमति दबाने की बेचैनी में, सरकार के ज़हन में संविधान से सुनिश्चित विरोध प्रदर्शन के अधिकार और आतंकी गतिविधियों के बीच की रेखा धुंधली सी हो रही है। अगर ऐसी धारणा मज़बूत हुई तो यह लोकतंत्र के लिए दुखद होगा।'
जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भंबानी की हाईकोर्ट की बेंच के फैसलों को चुनौती देने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की देखरेख में एडवोकेट रजत नायर के नेतृत्व में वकीलों की एक टीम ने रातों-रात तीन बड़ी अपीलें तैयार की। इनमें से प्रत्येक लगभग 300 पन्नों की हैं। दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और तीनों छात्रों के दोस्तों ने जमानत मिलने पर नताशा, देवांगना और आसिफ का जोरदार स्वागत किया है।
तीनो को जब जेल से रिहा किया जा रहा था, तब उनकी अगुवाई करने के लिये जेल के बाहर कई नामी सामाजिक कार्यकर्ता और मीडियाकर्मियों का हुजूम भी मौजूद था। जाहिर सी बात है जिन छात्रों पर यूएपीए के तहत कार्रवाई की गई, उनका स्वागत करने के लिये समाज के वो लोग खड़े थे, जो इस कानून के गैर जिम्मेदार ढंग से इस्तेमाल का विरोध करते आये हैं। तीनों ही छात्रों को नागरिकता विरोधी कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन करने और दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में आतंकवाद विरोधी कानून UAPA के तहत गिरफ्तार किया गया था। इन तीनों में नताशा नरवाल पिछले दिनों उस वक्त चर्चा में आ गई थी जब उनके पिता ने अपनी बेटी के समर्थन में एक इंटरव्यू दिया था। इसके बाद नताशा हाल ही में पैरोल पर अपने पिता के अंतिम संस्कार में शिरकत करने भी जेल से बाहर आई थी और आम लोगों ने नताशा की हौसला-अफजाई की थी।
Natasha Narwal Devangana Kalita & Asif Iqbal Tanha are finally out of jail, after more than a year of illegal incarceration in a bogus case. Natasha's brave father died during this time. She couldn't see him. Will the police officers be made to pay for the damage & lost time? pic.twitter.com/YxLrnU4gFN
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) June 17, 2021
देवांगना और नताशा तिहाड़ के जेल नंबर छह में बंद थीं, जबकि आसिफ जेल नंबर चार में बंद था। जेल के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक कलिता और नरवाल को शाम करीब सात बजे और तन्हा को शाम करीब साढ़े सात बजे रिहा किया गया। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने इन तीनों की जमानत को रद्द करने के लिये रातों-रात 900 पेज की अपील तैयार कर ली।
रिपोर्ट्स के मुताबिक जमानत का आदेश आने के समय आसिफ दक्षिण दिल्ली में पुलिस की निगरानी में परीक्षा के सिलसिले में गया हुआ था। रिहाई की प्रक्रिया को पूरी करने के लिए आसिफ को वापस जेल में बुलाया गया और फिर सारी प्रक्रिया को करने के बाद तीनों को छोड़ दिया गया। जेल के बाहर इनके कुछ समर्थक भी आए हुए थे। तीन छात्र कार्यकर्ताओं को उनके पते और जमानत की पुष्टि में देरी के कारण समय पर जेल से रिहा नहीं किया गया था। इनकी रिहाई तकरीबन एक साल तक जेल में बिताने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट के आदेश पर हुई है।
जेल से बाहर आने के बाद एक टीवी चैनल को दिये साक्षात्कार में नताशा नरवाल ने कहा- 'जेल से बाहर आने पर इतनी मीडिया देखकर मुझे फिलहाल बहुत अच्छा लग रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में मामला अब भी पेंडिंग है। मैं उसके लिए दुआ मांग रही हूं। जिस तरह का फैसला दिल्ली हाई कोर्ट ने सुनाया है, वह भारतीय न्याय व्यवस्था में भरोसा पैदा करता है। कोर्ट का फैसला हमें उम्मीद और ताकत देता है कि हम लोगों के विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार के लिए खड़े हो सकते हैं।'
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इस दौरान उन्होंने हाल ही में अपने पिता के निधन पर प्रतिक्रिया देते हुये कहा- 'अपने पिता को खोने का मुझे गुस्सा और दुख है। मुझे नहीं लगता कि इस साल इससे ज्यादा कठिन कुछ रहा हो। उनकी कोविड 19 से मौत हो गई, लेकिन मेरा जेल जाना भी उन्हें जरूर परेशान कर रहा था। मुझे इस महामारी में फेल हो चुकी स्वास्थ्य व्यवस्था की वजह से गई हर जान को लेकर गुस्सा है। मुझे उन सभी के लिए दुख है जिनके किसी करीबी की इस महामारी में जान गई है। अगर आज पिताजी जीवित होते तो बहुत खुश होते।' नताशा ने यह भी कहा कि उन्हें CAA विरोधी प्रोटेस्ट में शामिल होने को लेकर कोई पछतावा नहीं है।
नताशा ने कहा- 'मुझे इस मूवमेंट में विरोध के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने, और सरकार से जवाब मांगने का पछतावा नहीं है। सबसे बड़ा दुख यही है कि हम इस विरोध प्रदर्शन को आगे नहीं ले जा सके। इसे बुरी तरह से कुचल दिया गया। मुझे लगता है कि दूसरे तरीकों से संघर्ष जारी रहेगा, और हमें न्याय मिलेगा।'
जेल के हालात पर बात करते हुय नताशा नरवाल ने कहा- 'मुझे नहीं पता कि जेल में बिताए वक्त ने मुझे कितना बदला है. यह बदलाव जानने और समझने में हमें अभी थोड़ा वक्त लगेगा। इस बात का अहसास जरूर हुआ है कि कैद में डाल देने की व्यवस्था कैसे काम करती है। यह कैसे उन सभी लोगों का अमानवीयकरण कर देती है, जो जेल के दरवाजों के अंदर हैं। जैसे कि वो अब इंसान नहीं हैं। उनके पास अब कोई अधिकार नहीं है। जेल में उन बच्चों को देखना बहुत दुखद लगा जिन्होंने कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी। जब कोई कैदी सुनता है कि रिहाई हो रही है तो वो अपने बैग पैक करना शुरू कर देता है। यह बहुत भावुक दृश्य होता हैं इस बात को लेकर हमें बहुत नाराजगी है कि जो हमने पिछले एक साल में जेल में रहने के दौरान खोया है, मुझे नहीं लगता कि उसकी कुछ भी भरपाई कोई कर सकता है। खासतौर पर मेरे पिता की मौत। इस नुकसान की भरपाई कभी नहीं की जा सकती। मैं ऐसा सिर्फ अपने बारे में नहीं कह रही, जैसा कि मैं पहले भी कह चुकी हूं कि बहुत से लोगों के साथ ऐसा हुआ है, जैसा हमारे साथ हुआ है। कम से कम मुझे पिता की मौत के बाद बाहर जाने की इजाज़त मिली, लेकिन बहुत से ऐसे हैं, जिन्हें ऐसी सुविधा नहीं मिली। वो सब भी इंसान हैं।'
नताशा के साथ ही रिहा हुई देवांगना कलिता ने जेल से बाहर आने पर मशहूर पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बात करते हुये कहा- 'इस बात पर अब भी भरोसा नहीं हो रहा कि हम जेल से बाहर आ गए हैं। इस मायने में कि हमारे बेल ऑर्डर 2 दिन पहले ही आ गए थे लेकिन फिर भी हमें जेल के भीतर रखा गया। यह सब अभी खत्म नहीं हुआ है। हम अब भी इस इंतजार में हैं कि सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा, लेकिन फिलहाल तो हम खुले आसमान के नीचे आजाद खड़े होकर अच्छा महूसस कर रहे हैं। अपनी मां के अडिग समर्थन के बिना जेल का वक्त बिताना नामुमकिन था। उन्होंने मेरा हौसला बढ़ाने के लिए जेल में चिट्ठियां लिखीं। शायद मैं उन्हीं के दिए मूल्यों की वजह से इस तरह जेल के गेट के बाहर एक स्वतंत्र महिला की तरह मजबूती से खड़ी हूं। उन्होंने सिखाया है कि किसी के सामने झुकना नहीं है।'
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कलिता ने कहा- 'मुझे लगता है कि राजनीतिक कैदी होने की वजह से हमारे केस को तवज्जो मिली, लेकिन बहुत से लोग जेल में हैं, जिनके ट्रायल लंबे वक्त से चल रहे हैं। जब कोर्ट नहीं चलते तो लोगों की जिंदगी अधर में लटकी रहती है। अपने आसपास के लोगों की लाचारी देखना बहुत दुखद अनुभव रहा। वही लोग जेल में हैं, जिनके पास कोई कानूनी मदद नहीं है और वो पुलिस को रिश्वत देकर बच नहीं सके। अकथनीय दर्द और लाचारी। हमने जितना हो सका, उतना किया। उन लोगों के साथ दुख बांटा, जिनका कोई मर गया था, लेकिन रोने की आवाज, वो लोगों का चिल्लाना कि खोल दो, बाहर जाने दो। ये अन्याय है। इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।' इस बातचीत के अंत में कलिता ने मुस्कुराते हुये कहा- 'सारे पिंजरों को तोड़ेंगे, इतिहास की धारा मोड़ेंगे…'
हाईकोर्ट ने कहा था- UAPA का मामला नहीं बनता
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि पहली नजर में यूएपीए की धारा-15, 17 और 18 के तहत अपराध नहीं बनता है। जो साक्ष्य पेश किए गए हैं उसके आधार पर इन तीनों के खिलाफ पहली नजर में गैरकानूनी गतिविधियों के तहत मामला नहीं बनता। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा था कि विरोध करना संवैधानिक अधिकार है और इसे गैरकानूनी गतिविधि यानी यूएपीए कानून के तहत आतंकी गतिविधि नहीं कहा जा सकता है। हाई कोर्ट का कहना था कि यूएपीए कानून के तहत आतंकी गतिविधि की परिभाषा स्पष्ट नहीं है। इसे लापरवाही से लागू नहीं किया जा सकता। इससे लोकतंत्र को खतरा होगा।
नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल - को दिल्ली हाई कोर्ट से मिली जमानत के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस स्टेज पर इन तीनों की रिहाई में दखल नहीं दिया जाएगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के कानूनी पहलुओं का आकलन करने को लेकर सहमति जताई है और कहा है कि इस मामले की सुनवाई अगले महीने की जाएगी।
बहरहाल यह भी कितनी अजीब बात है कि मौजूदा भारत सरकार जहां इन तीन छात्रों को मुल्क के लिये ही खतरनाक मानती है, वहीं इसी मुल्क का पूर्व गृहमंत्री तीनों छात्रों की रिहाई पर उनका स्वागत करते हुये लिखता है- 'गर्मजोशी से स्वागत'!
Warm welcome to Natasha Narwal, Devangana Kalita & Asif Iqbal Tanha and more power to you
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) June 18, 2021
You are an oasis of hope and inspiration in a desert of apathy and inertia
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