डेढ़ सौ सेंटीमीटर कद वाली जुन्को, जिसने मर्दों को चुनौती देकर इतिहास बना लिया

डी/35 डेढ़ सौ सेंटीमीटर कद वाली जुन्को, जिसने मर्दों को चुनौती देकर इतिहास बना लिया

अशोक पांडे

अशोक पांडे साहब सोशल मीडिया पर बड़े चुटीले अंदाज में लिखते हैं और बेहद रोचक किस्से भी सरका देते हैं. किस्से इतने नायाब कि सहेजने की जरूरत महसूस होने लगे. हमारी कोशिश रहेगी हम हिलांश पर उनके किस्सों को बटोर कर ला सकें. उनके किस्सों की सीरीज को हिलांश डी/35 के नाम से ही छापेगा, जो हिमालय के फुटहिल्स पर 'अशोक दा' के घर का पता है.

दूसरे विश्वयुद्ध का दौर जापान की गरीबी का दौर था. बड़े पैमाने पर भुखमरी के चलते उस कालखंड में जन्मे और पले-बढ़े अधिकतर जापानी बच्चे दुबले और नाटे रह गए. फुकुशिमा में साल 1939 में जन्मी जुन्को ऐसी ही एक बच्ची थी. उसका कद कुल चार फीट नौ इंच तक बढ़ सका. जुन्को जब स्कूल में थी बाकी बच्चे उसका मजाक उड़ाया करते. उस कृशकाय के भीतर की ताकत का पहला अनुमान उसके सहपाठियों को तब लगा, जब दस साल की उम्र में उसने स्कूल की तरफ से आयोजित किये जा रहे एक साहसिक पर्वतारोहण अभियान में अपना नाम लिखवाया और उसे पूरा भी किया. इस घटना ने उसके सहपाठियों के बीच उसकी चर्चित छवि को तोड़ने का काम शुरू कर दिया था.

कॉलेज पहुंच कर उसने अंगरेजी और अमेरिकी साहित्य पढ़ा और अपनी पीढ़ी की बहुत सारी लड़कियों की तरह स्कूली अध्यापिका बनने का सपना तो देखा, लेकिन स्कूल के पहले पर्वतारोहण अभियान की याद और पहाड़ों का आकर्षण उसके दिल से कभी नहीं गया. उसे जब-जब मौका मिलता वह पहाड़ों पर चढ़ने चली जाया करती. वह अपने आस-पास के सारे पहाड़ों को फतह कर चुकी थी. उस ज़माने के जापान में ही नहीं समूचे संसार में एक औरत के पर्वतारोही बनने की कोई राह थी ही नहीं. पुरुषों द्वारा बनाए गए पर्वतारोहण के अघोषित नियम-क़ानून कहते थे औरत को अपने बच्चों और रसोई तक सीमित रहना चाहिए. जुन्को पुरुषों की अघोषित दुनिया में चुनौती की तरह उभरी.

23 साल की उम्र में कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद जुन्को ने तय किया कि कुछ भी हो जाय, अपने शौक को पूरा करना है. वह परिवार-समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख कर पर्वतारोहण अभियानों में जाने लगी. केवल पुरुषों वाले समूहों में वह अकेली औरत हुआ करती. एक अकेली और ठिगनी-दुबली औरत को देख कर ज्यादातर साथी पुरुष उसका मजाक उड़ाया करते. बहुत से पुरुष तो अभियान से नाम वापस ले लेते, क्योंकि उन्हें लगता था कि एक औरत के साथ जाने से उनकी साख पर बट्टा लग जाएगा. इसके बावजूद जुन्को ने छब्बीस-सत्ताईस की उम्र तक माउंट फूजी समेत जापान की सारी चोटियां फतह कर ली थीं.

इत्तफाक से माउंट तानीकावा अभियान के दौरान उसकी मुलाक़ात प्रतिष्ठित पर्वतारोही मासानोबू ताबेई से हुई. ताबेई और जुन्को पहले इश्क में डूबे और फिर दोनों ने शादी कर ली. उनके दो बच्चे हुए- बेटी नोरीको और बेटा शिन्या. मासानोबू ने जुन्को को हर कदम पर प्रोत्साहित किया और कई दफा उसके अभियान में गए होने पर घर में रहकर बच्चों की देखभाल करना भी स्वीकार किया.

पुरुषों के वर्चस्व से आजिज़ आकर जुन्को ने 1969 में जापान में स्त्रियों के लिए पहला पर्वतारोहण क्लब स्थापित किया जिसने अगले ही साल यानी 1970 में हिमालय की अन्नपूर्णा तीन चोटी का आरोहण कर दिखाया. जिस कैमरे से चोटी पर झंडा फहराए जाने की फोटो खींची जानी थी उसकी रील क्रैक हो गयी. अब माउंट एवरेस्ट को चुनौती दी जानी थी. उसकी उपलब्धियों को देखते हुए 1971 में परमिट तो मिल गया लेकिन एवरेस्ट-आरोहण का शेड्यूल पूरी तरह भरा होने के कारण उसकी बारी चार साल बाद आई. शुरू में इस महंगे अभियान को प्रायोजित करने के लिए लम्बे समय तक कोई आगे नहीं आया और जब एक मीडिया हाउस ने ऐसा करने के लिए हामी भरी भी तो इस शर्त पर कि वह अभियान में जाने वाली महिलाओं की फीस नहीं भरेगा.

जुन्को ने इस के बावजूद किसी तरह सारी व्यवस्थाएं कीं. फीस जमा करने के लिए उसने बच्चों को पियानो के ट्यूशन दिए, कार कवर से अपने लिए वाटरप्रूफ दस्ताने और पुराने परदों से ट्राउजर्स तक उसने अपने हाथों से सिले. मई 1975 में जुन्को की अगुवाई में उसके 15-सदस्यीय ऑल-वीमेन ट्रुप ने एवरेस्ट अभियान शुरू किया. छः शेरपाओं की मदद से उन्होंने उसी मार्ग का अनुसरण करने का फैसला किया जिस पर 1953 में एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे चले थे.

सत्ताईस हजार फीट की ऊंचाई पर उनका कैम्प लगा हुआ था जब भारी हिमस्खलन हुआ. जुन्को और उसकी चार साथिनों का टेंट बर्फ में दफ्न हो गया. बेहोश जुन्को और अन्य महिलाओं को शेरपाओं ने बड़ी मुश्किल से बाहर निकाला. बुरी तरह से चोटिल जुन्को को चलने तक में परेशानी हो रही थी.

मजबूरी में उसे दो दिन कैम्प में रहना पड़ा. ठीक महसूस करते ही उसने फिर से अभियान की कमान अपने हाथ में ले ली. इसके दस दिन बाद यानी 16 मई, 1975 को जब जुन्को ताबेई ने एवरेस्ट की चोटी पर अपने मुल्क का झंडा फहराया, ऐसा करने वाली वाली वह दुनिया की पहली औरत बन चुकी थी.  

जापान ही नहीं पूरे संसार में सेलेब्रिटी बन चुकी जुन्को को जब-जब इस उपलब्धि का भान कराया जाता वह बड़ी विनम्रता से कहती कि वह चाहती है उसे ऐसा करने वाले छत्तीसवें व्यक्ति के तौर पर जाना जाय. उसने अपनी विजय को अपने शेरपा आंग शेरिंग के साथ शेयर भी किया.

अपने क्षेत्र में सुपरस्टार बन जाने के बावजूद डेढ़ सौ सेंटीमीटर कद वाली, लोहे से बनी इस चैम्पियन स्त्री ने अपने पूरे जीवन में न किसी कॉर्पोरेट से स्पॉन्सरशिप ली, न पर्वतारोहण को कभी व्यवसाय बनाया. अपने तमाम आगामी अभियानों के लिए उसने भाषण देकर और बच्चों को पियानो और अंगरेजी सिखाकर धन जुटाया.  अगले सत्रह सालों में उसने सातों महाद्वीपों की सातों उच्चतम चोटियों को फतह करने वाली पहली स्त्री होने का गौरव भी हासिल किया. 

2012 में जुन्को को पेट का कैंसर हुआ. उनका इलाज चल रहा था, लेकिन उसने बीमारी के आगे घुटने टेकने से इनकार करते हुए जुलाई 2016 में युवा पर्वतारोहियों के एक दल का नेतृत्व करना मंजूर किया... जो माउंट फूजी के अभियान पर निकल रहा था. इस सफल अभियान के कोई तीन महीने बाद उसके शरीर की मौत हो गयी. उस समय तक छियत्तर की आयु तक पहुँच चुकी जुन्का का कद इतना ऊंचा हो चुका था कि दो साल बाद यानी नवम्बर 2019 में अन्तरिक्ष से दिखाई देने वाली प्लूटो ग्रह की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला का नाम वैज्ञानिकों ने उसके नाम पर जुन्का तोबेई मोन्तेस रखा.

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