नंदीग्राम की जमीन पर रचे गये चक्रव्यूह में उलझ गई बीजेपी, लंगडाते हुए ही टाइग्रेस ने जीता बंगाल! 

नंदीग्राम की जमीन पर रचे गये चक्रव्यूह में उलझ गई बीजेपी, लंगडाते हुए ही टाइग्रेस ने जीता बंगाल! 

गौरव नौड़ियाल

गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।  

एक वीडियो इधर तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो में दिख रहा है कि एक अकेली महिला एक सुनसान सड़क पर चली आ रही है। ठीक उसी समय दो 'लफंगे' उस सुनसान गली में आकर अपनी बाइक रोकते हैं और उस महिला की ओर लूट के इरादे से बढ़ते हैं। बस यहीं महिला होशियारी दिखाती है और अपने हाथ में पकड़े हुए थैले को फेंक देती है। 'लफंगे' उस बैग के पीछे दौड़ते हैं और वो महिला उनकी महंगी बाइक लेकर फरार हो जाती है। ये झोला नंदीग्राम है और वो महिला ममता बनर्जी, जैसा कि इस मीम में चुटकी ली जा रही है। ये महज एक मजाक है.. लेकिन बेहद मारक मजाक है। ऐसा लग रहा है कि भारी-भरकम चुनावी विश्लेषणों का काम अकेले इस एक मीम ने ही अच्छे से कर दिया है।

ममता भले ही नंदीग्राम को अधिकारी बंधुओं के जबड़े से बाहर नहीं खींच सकी हो, लेकिन ममता ने बड़ी चालाकी से पूरी बीजेपी और बंगाल में बीजेपी के सबसे मजबूत चेहरे शुबेंदु अधिकारी को नंदीग्राम में ही घेरकर पूरा बंगाल जीत लिया। अब बीजेपी के हैवी वेट नेता 'नंदीग्राम' को 'लॉलीपॉप' समझकर उतनी ही देर का सुख ले सकते हैं, जितना कोई बच्चा पार्क के किसी कोने में चुपचाप लॉलीपॉप को चूसकर और बार-बार उसे खत्म होता हुआ देखकर लेता रहता है। 

सोशल मीडिया से लेकर निजी चैट ग्रुप्स तक 2 मई को सबसे ज्यादा 'मखौल' का विषय देश के वो दो सबसे बड़े धुरंधर नेता बने हैं, जिन्होंने बंगाल को जीतने के लिये देश में बढ़ती महामारी को दरकिनार कर गैरजिम्मेदारी का झंड़ा बुलंद किया हुआ था। पीएम और गृहमंत्री ने ही अकेले बंगाल में 50 से ज्यादा रैलियां और रोड शो किये। पार्टी ने बंगाल में पीएम मोदी की 20 से ज्यादा रैलियों और गृहमंत्री के 50 से ज्यादा कार्यक्रमों के साथ ही 1500 कार्यक्रमों का खाका तैयार किया था। इनमें से काफी रैलियों और कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका था, लेकिन आखिरी दौर में कोरोना के चलते बिगड़ी देश की स्थिति से उपजे दबाव ने बीजेपी को बैकफुट पर धकेल दिया और उन्हें मजबूरन बंगाल में सार्वजनिक रैलियों से बचना पड़ा।

इस बीच गृहमंत्री गली मोहल्लों तक में प्रचार करते हुए अपनी चप्पलें घिसते रहे और दलित कार्यकर्ताओं के घरों में भोज में शामिल होते रहे। गृहमंत्री शाह ने जिस ढंग से बंगाल में अपनी ताकत झोंकी थी, उसके मुकाबले बढ़ी हुई सीटें नगण्य ही हैं। भारत जैसे बड़े देश का गृहमंत्री महामारी को छोड़कर गली मुहल्लों में पार्षदी के चुनावों की तरह घूमकर वोट मांग रहा है, तब आप अंदाजा लगा ​लीजिये कि बंगाल जीतना बीजेपी के लिये भविष्य के चुनावों को देखते हुए क्यों बेहद जरूरी था।  

पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा और पार्टी महासचिव कैलाश विजय वर्गीय तो इस दौरान बंगाल में ही डेरा डाले रहे। खासकर कैलाश विजयवर्गीय, जिनके जिम्मे पश्चिम बंगाल चुनावों की जिम्मेदारी थी और जो बीजेपी की मौजूदा राजनीति की आक्रामकता का प्रसार करने में अव्वल हैं। हिंदुत्व के सबसे आक्रामक चेहरे बन रहे योगी आदित्यनाथ की बातों का भी बंगाल की जनता ने बंडल बांधकर मानो उत्तर प्रदेश वापस फेंक दिया हो।

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बीजेपी आईटी सेल का मुखिया अमित मालवीय अपनी पूरी फौज के साथ बंगाल पर ही नजर बनाए हुये था। बेतहाशा फंड केवल सोशल मीडिया कैंपेन और सोशल मीडिया टीमों को हायर करने में ही फूंक दिया गया, लेकिन बावजूद नतीजे शर्मनाक रहे। इसके उलट टीएमसी की कैम्पेन संभाल रहे प्रशांत किशोर जरूर इस दौरान एक 'विश्वसनीय हीरो' की तरह उभरे हैं, जिन्होंने दिसंबर में ही बीजेपी की सीटों का आंकलन कर डंके की चोट पर नतीजे सार्वजनिक तौर पर बता दिये थे। प्रशांत किशोर का आंकलन न केवल सही साबित हुआ, बल्कि एक बार फिर से अमित शाह की मजबूत चुनावी रणनीति, जैसा कि भारतीय मीडिया बताता नहीं थकता है, उस छवि की भी धज्जियां उड़ गई हैं।

नतीजों के बाद तो कम से कम अब टीवी वालों को अमित शाह को 'चाणक्य' बताकर झूठा प्रचार करने के बजाय साफ कहना शुरू कर देना चाहिये कि खाली 'पीआर' के दम पर ही अब और चुनाव नहीं जीते जा सकेंगे। सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाओं को देखकर ऐसा लग रहा था कि बंगाल में भले ही टीएमसी जीती हो, लेकिन जश्न पूरे भारत में बीजेपी की नीतियों से परेशान नागरिकों ने मनाया। यहां तक कि दिल्ली में धरने पर बैठे किसानों ने भी मिठाइयां बांटकर इस जीत का जश्न मनाया है।

राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र के दर्जनों नेताओं ने इस दौरान बंगाल के अलग-अलग इलाकों का दौरा किया, लेकिन बावजूद इसके बीजेपी को बुरी शिकस्त मिली है। बंगाल की जनता ने ब्रांड की राजनीति को कुचलकर अस्मिता के झंडे को बुलंद किया।  पार्टी ने जितना पैसा और ताकत इस चुनाव को जीतने में झोंकी, उसके मुकाबले नतीजे बुरे साबित हुये हैं। बीजेपी ने बंगाल में ध्रुवीकरण करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी, लेकिन नतीजे बताते हैं कि इससे बंगाल जीतने में पार्टी को कोई खास लाभ नहीं मिला। आठ चरणों में बंगाल चुनाव को डिजाइन करने का फॉर्मूला ने भी कुछ सीटों पर जरूर कमाल दिखाया हो, लेकिन इसने चुनाव आयोग की बची-खुची विश्वसनीयता को भी धो दिया है। रही-सही कसर हाईकोर्ट की फटकार ने निकाल दी।

ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ने जिस ढंग से बीजेपी के आक्रामक और 'धार्मिक' कैम्पेन का करारा जवाब दिया है, वो दिलचस्प है। आपको याद होगा कि कैसे चुनाव के दूसरे चरण के बाद ही बड़बोले गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने 200 पार सीटों का शिगूफा छोड़ना शुरू कर दिया था, लेकिन टीएमसी अपनी कैम्पेन पर टिकी रही। कुल मिलाकर टीएमसी ने भारतीय राजनीति में ऐसा 'खेला' दिखाया है, जिसे लंबे वक्त तक याद रखा जाएगा। संभव हो कि अमित शाह इस इलेक्शन से जुड़ी हुई हर याद को तबाह कर देना चाहें। मोदी शायद ही इस जीत के बाद चैन से 7 रेस कोर्स के अपने आलीशान घर में 2 मई की रात चैन से करवट ले सके हों।

पीएम ने मतुवा वोटरों को रिझाने के लिये बांग्लादेश तक की यात्रा इस बीच की, लेकिन इसका कितना लाभ मिला अब यह साफ हो चुका है। बीजेपी को उम्मीद थी कि फुरफुरा शरीफ वाली पार्टी इंडियन सेक्यूलर फ्रंट शायद अल्पसंख्यक वोट बैंक में सेंध लगाएगी, लेकिन न तो वह कोई छाप छोड़ सकी और न ही असदउद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने इस दफा बीजेपी की सजाई बिसात को बचाने का काम किया। ममता ने बीजेपी का मज़बूत गढ़ समझे जाने वाले जंगलमहल इलाके में भी बड़ी सेंधबाजी की है।

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'कन्याश्री' और 'रूपश्री' जैसी लोकप्रिय योजनाओं की वजह से बंगाल में महिलाओं ने ममता का साथ नहीं छोड़ा। बाकी रही-सही कसर प्रधानमंत्री की मखौल उड़ाने की शैली ने पूरी कर दी। प्रधानमंत्री जिस तरह दीदी-ओ-दीदी कह कर ममता बनर्जी की खिल्ली उड़ाते रहे, उससे महिलाओं का एक बड़ा तबक़ा ममता के साथ हो गया। पीएम के इस बयान की जितनी चर्चा हुई, उतना ही बीजेपी के पक्ष में महिला वोटरों का गुस्सा बढ़ता चला गया। मोदी जिस ढंग से मंच से एक महिला का मखौल उड़ा रहे थे, उससे बंगाल की महिलाओं में बेहद बुरा संदेश गया और उन्होंने प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी को सत्ता के करीब भी नहीं फटकने दिया। इस चुनाव में कांग्रेस और लेफ्ट वाले संयुक्त मोर्चा की दुर्गति की चलते इन दोनों दलों के वोटों का बड़ा हिस्सा भी टीएमसी को मिला।

बीजेपी की शिकस्त ने टीवी के बनाये हुए 'चाणक्य' की न केवल बखिया उधेड़ दी है, बल्कि मोदी की 'नकली महामानव' की छवि को भी भयानक नुकसान पहुंचा दिया है। पीएम की ताबड़तोड़ रैलियां और विरोधियों का 'मजाक उड़ाने' वाली शैली ने यहां उन्हीं पर पलटवार किया है। बंगाल पर बन रहे मीम की बाढ़ ने समर्थकों को अंधेरी गुफा में वापस धकेल दिया है और उनके मनोबल को गहरा धक्का लगा है। मोदी की 'जादुई' और 'महामानव' की जो छवि भारतीय मीडिया रोज बनाता है, वो बंगाल की जमीन पर लगातार हांफती हुई आखिर बेदम होकर गिर गई है।

2021 के बंगाल विधानसभा चुनावों में भले ही पार्टी ने सीटों में बढ़ोतरी की हो, लेकिन इसके उलट अगर इसे टीएमसी के ही पुराने चेहरों की जीत के बतौर देखेंगे, तो पार्टी की असल जमीनी स्थिति भी साफ हो जाती है। आदिवासी बहुल इलाकों में जहां पार्टी को मजबूत माना जा रहा था, वहां जमीनी स्थिति कितनी अलग थी यह भी चुनाव परिणामों ने बता दिया है। आदिवासी और मुस्लिम बहुल इलाकों ने सिरे से बंगाल में बीजेपी को नकार दिया है। बंगाल में लोकसभा में मिली करिश्माई जीत अब धुंधली पड़ चुकी है ।

बीजेपी के लिये ये बुरी शिकस्त इस मामले में भी है क्योंकि पार्टी साल 2014 के बाद से ही लगातार बंगाल में जमीनी स्तर पर संगठन को खड़ा करने में जुटी हुई थी। इस दौरान बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के साथ उनकी भारी-भरकम टीम लगातार हिंदू अस्मिता के सवाल पर यह संदेश फैला रहे थे कि ममता दोबारा लौटी तो बंगाल में हिंदू खतरे में पड़ जाएगा। इसकी बानगी रिजल्ट आने के बाद बीजेपी समर्थकों के द्वारा ट्विटर पर चलाये गए ट्रेंड 'दुर्गा पूजा बैन' हैशटैग के जरिये खीझ की तरह निकल कर दिखी भी है।। बीजेपी लगातार राज्य में यह संदेश दे रही थी कि बंगाल में टीएमसी की जीत का मतलब मुस्लिमों की मजबूती है, जाहिर है इस बात को बेहद सीमित संख्या में कुंठित वोटरों ने ही हाथों-हाथ लिया है। बंगाल की जीत धार्मिक कट्टरता पर भी चोट है। ये एक अकेला चुनाव कई गुत्थियों को सुलझाने वाला साबित हुआ है।

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इस दौरान पार्टी की करतूतों से भारत कितनी मुश्किलों के भंवर में डूबा है, इसकी तस्दीक कोरोना से रोज हो रही मौतें और श्मसान में लाशों की भीड़ को देखकर हो जा रहा है। गृहमंत्री ने एक टीवी के प्रायोजित साक्षात्कार में यह तक कह दिया था कि दिल्ली और मुंबई में तो कोई इलेक्शन नहीं है, फिर वहां क्यों संक्रमित लोगो की संख्या इतनी ज्यादा है? ये बयान देश का गृहमंत्री दे रहा था, जो कि असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा का प्रतीक है। देश में राष्ट्रपति के बाद दो सर्वोच्च पदों पर आसीन मोदी और शाह ने जितनी ताकत बंगाल को जीतने में झोंकी, उसके उलट नतीजे पार्टी के लिये करारे तमाचे मारने जैसे हैं। टीवी चैनल पर बैठे हुए भाजपा के अघोषित प्रवक्ता भले ही यह कह रहे हों कि पार्टी ने सीटों में बेहिसाब इजाफा किया है, लेकिन अंत में सिर्फ जीत के ही मायने रह जाते हैं। आखिर पार्टी ने सीटों में इजाफा करने के लिये ही तो केवल ताकत नहीं झोंकी होगी!

मुझे इस वक्त सतीश आचार्य का वो कार्टून याद आ रहा है, जिसमें गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर मोदी को रेजर थमा रहे हैं! बंगाल आगे किस करवट बैठेगा इसका अभी अंदाजा नहीं है, लेकिन बीजेपी के खेमे में जो सन्नाटा पसरा हुआ है, उसका अंदाजा पूरे देश को अच्छे से है। बीजेपी की सरकारें जितने बेलगाम ढंग से देशभर में सरकारें चला रही हैं, उसको देखते हुए इस जीत से कितने बड़े हिस्से में नागरिकों को नैतिक संबल मिला है, उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर 'क्रिस्टल क्लियर' ढंग से दिख रही है।

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