बड़े दिन बाद मैं चौधरी के मुहल्ले से गुजरा और मैंने देखा कि वो अब भी अपनी खिड़की से जहर उगल रहा है, हालांकि इस दफा नजारे जरा बदले हुए थे। सुधीर दूर से चलकर नहीं आया बल्कि वो खिड़की के पास ही धंसा हुआ बैठा था, मानों सबकुछ लुट गया हो। सुधीर ने एक उदास मुस्कुराहट के साथ बुलेटिन की शुरुआत की। सुधीर के लिए जनता 'उपद्रवी' है, जैसा कि वो और उसका ब्रांड लगातार किसानों को बदनाम करता आया है!
असल में इस मुल्क के लिए दु:ख की कई वजहों का कारण बने नरेंद्र मोदी ने जब कृषि कानूनों को आखिरकार वापस लेने की बात कहते हुए मुल्क से क्षमा याचना की, तो इस फैसले से बुझे हुए सुधीर चौधरी ने अपने दु:ख को परे रखकर जनता के सुख की चर्चा, अमिताभ बच्चन की साल 1975 में आई फिल्म 'दीवार' के उस कालजयी डायलॉग से की, जिसमें गुस्से में नायक कह रहा है- 'आज खुश तो बहुत होंगे तुम!'
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सुधीर ने अपने शो को शुरू करते हुए कहा- 'हमारे देश में भी एक वर्ग ऐसा है, जो आज खुश तो बहुत होगा क्योंकि उसने हमारी देश की राजनीति को बैलगाड़ी के युग में धकेलने की कोशिस की है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 418 दिनों के बाद देश की संसद द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। बहुत सारे लोग इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक कह रहे हैं। बहुत सारे लोग इसे किसानों की जीत मान रहे हैं। विपक्षी इसे अपनी जीत मान रहे हैं। खालिस्तानी इसे अपनी जीत मान रहे हैं और देश का टुकड़े-टुकड़े गैंग भी आज खुशियों में तालियां बजा रहा है। तो आखिर ये ये किसकी जीत है और किसकी हार! क्या मोदी इस विरोध प्रदर्शन से डर गए या उन्होंने यह फैसला सोच समझकर लिया है, जिसके बाद इन तमाम आंदोलनजीवियों की दुकानें हमेशा के लिए बंद हो जाएंगी। कई नेताओं का करियर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाएगा। विपक्ष के हाथों से एक बहुत बड़ा मुद्दा अब फिसल जाएगा।' सुधीर अपने शो में इस पूरे आंदोलन को अब भी बदनाम करने से बाज नहीं आए।
सुधीर इस शुरुआती झिझक को तोड़ते हुए अपने दर्शकों से रूबरू होते हैं और कहते हैं- 'हम जानते हैं कि आज पूरा देश जी न्यूज देख रहा है। ये जानने के लिए कि जी न्यूज का इस पूरे मसले पर आज क्या विश्लेषण रहेगा। आज पूरे देश को जी न्यूज ही देखना चाहिए।' ये एक किस्म की झूठी गर्वोक्ति और यकीन था कि पूरा देश आज जी न्यूज देख रहा है। असल में सुधीर उस तबके को पूरा देश समझते हैं, जिनकी श्रेणी आज 'भक्त' दर्ज होती है।
फिर वो अपने शो को आगे बढ़ाते हुए कहते हैं- 'तो हमारा विश्लेषण ये है कि अब आंदोलनजीवी आज के बाद से बेरोजगार हो जाएंगे। हमारा विश्लेषण ये है कि ये आंदोलन कृषि कानूनों के खिलाफ था ही नहीं! ये आंदोलन मोदी के खिलाफ था। इसलिए ये आंदोलन अब भी ऐसे ही चलता रहेगा क्योंकि आंदोलनकारियों को कृष्सा कानूनों से मतलब था ही नहीं। हमारा विश्लेषण ये है कि कृषि कानूों को वापस लेने से कहीं भी यह साबित नहीं होता है कि इस आंदोलन में खालिस्तानियों का हाथ नहीं था या टुकड़े-टुकड़े गैंग इसमें शामिल नहीं था। बल्कि अब होगा ये कि खालिस्तानी इस आंदोलन का दुरुपयोग देश के खिलाफ कर ही नहीं पाएंगे। इसलिए प्रधानमंत्री के फैसले को अपनी जीत मानने वाले तमाम लोगों को अगले एक घंटे तक जी न्यूज देखना चाहिए और इसके बाद उन्हें अपने भविष्य की चिंता होने लगेगी।' सुधीर चौधरी को ऐतिहासिक किसान आंदोलन को नकारने की इतनी जल्दी थी कि वो ये भी भूल गया कि इस देश का इतिहासऐसे ही अंहिसक आंदोलनों से भरा हुआ है और आंदोलनकारियों के भविष्य के बजाय भारत के गोदी मीडिया को अपने भविष्य की चिंता सतानी चाहिए।
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असल में मोदी के फैसले को किसानों के सामने झुकने के बजाय 'गोदी मीडिया' ने इस ढंग से पेश किया, जैसे कि ये फैसला मुल्क में खालिस्तानियों को रोकने के लिए लिया गया है। सुधीर अपने पूरे शो में इसे मोदी का मास्टरस्ट्रोक साबित करने में तुले रहे। उन्होंने इस बीच अपने शो में कई दफा लिबरल्स और एक्टिविस्ट के प्रति अपना गुस्सा और कुंठा टीवी पर प्रदर्शित की। शो में सुधीर ने कहा कि आंदोलनकारियों का मकसद भारत को तोड़ने का था, लेकिन आज के बाद से ये गेम बदल जाएगा।
सुधीर ने बड़ी अजीब तुलना करते हुए अपने शो में कृषि कानूनों की तुलना उस भारत के उस एप्पल सेटेलाइट से कर दी जिसे बैलगाड़ी पर लादकर लाया गया। फिर सुधीर चुनावों में हार का जिक्र करने लगे और फिर वो काफी देर तक इसी बात को सेट करने में लगे रहे कि हमारे देश के विपक्षी दल कभी नहीं चाहते कि नागरिक गरीबी से बाहर निकलें। सुधीर ने कृषि कानूनों को इस ढंग से ग्लोरीफाई किया मानों वह कोई चमत्कारी अस्त्र रहा हो समृद्धि का और इसके अलावा और कोई बड़ा काम हो ही नहीं सकता था।
सुधीर लगातार आंदोलन को डिसक्रेडिट करते रहे और फिर टीवी स्क्रीन पर 26 जनवरी को दिल्ली में हुई किसान परेड के दौरान हुई हिंसा के फुटेज तैरने लगे। इसे इस तरह पेश किया गया, मानो सारे आंदोलनकारी लाल किले पर रहे हों, जबकि उस रोज चंद आंदोलनकारियों को प्रायोजित ढंग से लाल किला पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं। सुधीर आगे भी अपने शो में हमेशा की तरह सरकार के पक्ष में माहौल बनाते रहे। इस एक घंटे के कार्यक्रम को मिनट तक देखने के बाद मैंने वापस टीवी बंद कर दिया। मैंने खुद किसान आंदोलन में कई मर्तबा रिपोर्टिंग की है, लिहाजा इस मसले पर लंबे समय तक झूठ को सुनना मुश्किल था। सुधीर बाजार की भी अपने हिसाब से ही तोड़-मरोड़कर झूठी परिभाषा पेश कर रहे थे, जिसे टीवी के जरिए उनके कूपमंडूक दर्शक सच समझ रहे होंगे।
सुधीर तो फिर भी संयमित होकर अपने पाले में ही खेल रहे थे, लेकिन टाइम्स नाउ नवभारत के एंकर सुशांत सिन्हा तो मोदी के फैसले पर बिफर ही पड़े। सुशांत ने पाले से बाहर निकलकर इसे मोदी की कमजोरी के बतौर पेश किया, हालांकि वो बीच-बीच में अपना भरोसा मोदी के प्रति जाहिर भी करता रहा। सुशांत के निशाने पर भी आंदोलनकारी ही थी। रिपब्लिक भारत ने तो अपनी पूरी बहस ही इसी पर केंद्रित कर दी थी कि कृषि कानूनों को रद्द करने का फैसला इसलिए लिया गया, क्योंकि देश में दंगों की साजिश रची जा रही थी।
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रिपब्लिक टीवी के अर्णव गोस्वामी ने अपने शो में कहा- 'कृषि कानूनों को रद्द कर दिया गया है। अब विरोध के नाम पर कुछ नहीं रह गया है, लेकिन किसी तरह से कुछ लोग रुकना नहीं चाहते। कुछ लोगों को राज्यों में चुनाव से पहले मुद्दा चाहिए।' एक जगह अर्णव गोस्वामी अपने शो में शामिल अपने पैनलिस्ट से पूछते हैं- 'क्या राष्ट्रीय सुरक्षा कंसर्न का विषय नहीं है! क्या खालिस्तानी समूहों ने इसमें घुसने की कोशिश नहीं की।' एक जगह वो कहते हैं- 'अब वो तत्व जो कृषि कानूनों की आड़ में देश को जलाने की साजिश कर रहे थे, जो आपकी सड़कों को बंद कर बैठे हुए थे, वो जो देश को जलाने की तैयारी कर चुके थे, वो आज रात फ्रस्टेड हैं। वो अब क्या करेंगे.. उनके पास आपकी सड़कों को बंद करने का कोई कारण नहीं है, अब उनके पास पाकिस्तान और खालिस्तानियों से सपोर्ट लेने की वजह नहीं बची है... उनके पास यूपी और पंजाब चुनाव में भुनाने के लिए अब मुद्दा नहीं रह गया है।' ऐसा लग रहा था जैसे गोदी मीडिया ने मिलकर देश को जलने से बचा लिया हो। ड्रैमेटिक म्यूजिक के साथ अर्णव देश को किसान आंदोलन के खत्म होने और उससे देश को सुरक्षित बचे रहने की कहानियां बांच रहे थे।
गोदी मीडिया मोदी के फैसले के बाद पस्त नजर आ रहा था। ...और ऐसा हो भी क्यों ना, आखिर उन्होंने किसानों को आंतकवादी सााबित करने में कोई कसर भी कहां छोड़ी थी! मोदी के फैसले से एक समस्या उनके सामने अपने ही पिछले वक्तव्यों को निगल जाने की भी है। ये वैसा ही कि आपने आसमान की ओर मुंह कर थूक को उछाला और वो वापस आपके ही चेहरे पर पड़ गया हो। असल समस्या मानों लिब्रान्उुओं की खुशी से हो... असल समस्या मानों इस बात से हो कि हम तो सही थे फिर ये फैसला आखिर वापस क्यों लिया!
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