पिछले कुछ घंटों में तीन घटनाएं बड़ी तेजी से चर्चाओं में आई हैं, जिसने एक बार फिर से इस भारत में मुसलमानों की स्थिति को लेकर चर्चा तेज कर दी है। याद कीजिए जब एनआरसी के विरोध में चल रहे आंदोलन के दौरान अचानक एक दिन शरजील इमाम नाम के एक शख्स का वीडियो वायरल हो जाता है, जो नॉर्थ ईस्ट को शेष भारत से इसलिए काट देने की बात करता है, ताकि उसकी अपनी ही सरकार 'उनकी' बात सुन ले! ये 'उनकी' ही असल में भारत के मुलसमान हैं, जो स्टेट के सामने पस्त नजर आ रहे हैं। बाद में पता चलता है कि ये जो नौजवान अपनी बात सुनवाने के लिए नॉर्थ ईस्ट को 'काटने' की बात कर रहा है, वो आईआईटियन होने के साथ ही जेएनयू से पीएचडी कर रहा है।
एक शख्स जिसने शिक्षा के ऊंचे मापदंड हासिल किए हों, क्या वो खुलेआम मंच से 'देशद्रोह' जैसा काम करेगा! क्या वो शख्स वाकई में इतना बेवकूफ होगा कि वो ये जानकर भी कि भारत की मौजूदा सत्ता भागीदारी में मुसलमान राजनीतिक तौर पर हाशिए में चला गया है, तब भी जोखिम लेगा! ...लेकिन मुकदमा हुआ और अब सुनवाई के बाद शनिवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजद्रोह मामले में छात्र शरजील इमाम को जमानत दे दी। इससे पहले भी बुहत कुछ हुआ। टीवी और अखबार ने एक आरोपी को जो सरकार की नजर में 'देशद्रोही' है, उसे अपराधियों की तरह पेश किया। उसे देश के सामने यूं दिखाया गया, जैसे कोई हिजबुल का कमांडर बड़ी साजिश करते हुए पकड़ा गया हो।
कितनी अजीब बात है कि लंबे वक्त तक सीलनभरी जेलों में सड़ने के बाद अब उस नौजवान को कोर्ट ने सुबूतों के आधार पर जमानत दे दी। क्या जांच अधिकारियों को ये नहीं मालूम था कि सुबूत के बिना कोर्ट में मामला टिक ही नहीं सकेगा! या फिर ये कवायद एक 'देशद्रोही' को सिर्फ कुछ वक्त तक जेल में रखने के लिए ही की गई थी?
शरजील पर साल 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान कथित रूप से भड़काऊ भाषण देने के आरोप में राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था। हालांकि, भारत के शिक्षाविदों, छात्रों और प्रबुद्ध नागरिकों के एक बड़े धड़े ने इसका खुलकर विरोध भी किया था। शरजील के खिलाफ दिल्ली, मणिपुर, असम और अरुणाचल प्रदेश में भी एफआईआर दर्ज की गई थी। उन्हें असम और अरुणाचल प्रदेश में दर्ज मामलों में पहले ही जमानत मिल गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला अलीगढ़ में आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह), 153ए (धर्म, नस्ल के आधार पर दुश्मनी बढ़ाना), 153बी (शांति भंग करने के इरादे से बयान देना) और 505(2) (सौहार्द बिगाड़ने की मंशा से बयान देना) के तहत दर्ज किया गया था।
बता दें कि अक्टूबर में दिल्ली की अदालत ने इमाम को उनके इसी भाषण के लिए जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि भड़काऊ भाषण का लहजा और विषयवस्तु का प्रभाव सार्वजनिक शांति और सामाजिक सद्भाव को कम करने वाला है। दिल्ली के जेएनयू के सेंटर फॉर हिस्टोरिकल स्टडीज के पीएचडी छात्र शरजील इमाम को 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था। इस मामले के अलावा इमाम पर फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों का ‘मास्टरमाइंड’ होने का भी आरोप है और इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत नामजद हैं।
दो नवंबर को एक अदालत ने इस मामले में इमाम की जमानत याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था। इमाम ने अपने वकील अहमद इब्राहिम के जरिये अदालत में कहा था कि वह शांतिप्रिय नागरिक हैं और उन्होंने विरोध के दौरान कभी हिंसा में हिस्सा नहीं लिया।
उन्होंने तर्क दिया था कि 13 दिसंबर 2019 को उनके किसी भी भाषण का उद्देश्य सरकार के खिलाफ किसी तरह के असंतोष को फैलाना, हिंसा के लिए उकसाना और किसी समुदाय के खिलाफ द्वेष भड़काना नहीं था। कई अधिकार समूहों ने यह बताया कि फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े दिल्ली पुलिस के मामलों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाया गया, जो दरअसल कई महीनों से शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन कर रहे थे जबकि दिल्ली पुलिस ने खुलेआम भड़काऊ और धमकी भरे भाषण दे रहे दक्षिणपंथी नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
यह भी पढ़ें: मीडिया, राजनीति और भारत का मुसलमान!
याद कीजिए कैसे टीवी से बौखलाए एंकर कैसे चीख-चीख कर पूछ रहे थे कि कहां है देशविरोधी शरजील इमाम! ये कुछ-कुछ वैसी ही प्रतिक्रिया थी, जैसे जाट आंदोलन के दौरान जाटों का रेल को रोक देना। हालांकि, यहां शरजील ने केवल विचार पेश किया था, जिससे सरकार उनकी बात सुन सके। ये उस दौर में कहा गया था, जब देश का मुसलमान केद्र की मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर रतजगा कर रहा था और बेहद डरा हुआ था। शरजील को तो लंबे वक्त के बाद जमानत मिल गई, लेकिन ऐसे ही राजनीतिक गतिविधियों में सक्रियता के चलते लंबे वक्त से भारत की जेल में बंद जेएनयू के ही पूर्व छात्र उमर खालिद के इंतजार का रास्ता अभी लंबा है।
जय श्रीराम... जय श्रीराम !
दूसरी घटना झारखंड के रांची के डोरंडा से सामने आई है, जहां शनिवार को कश्मीरी व्यापारियों के एक समूह पर कथित तौर पर हमला किया गया और उन्हें जबरन जय श्रीराम और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने को मजबूर किया गया। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस क्षेत्र में इसी तरह की एक घटना लगभग दो हफ्ते पहले भी हुई थी। पुलिस का कहना है कि मामले में संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया गया है और एफआईआर दर्ज की गई है। यह पूछने पर कि क्या इन हमलों के पीछ किसी संगठन का हाथ है तो इस पर रांची के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुरेंद्र झा ने बताया, ‘यह जांच का विषय है।’
मामला मूल रूप से जम्मू एवं कश्मीर के रहने वाले और झारखंड के डोरंडा में रह रहे रिजवान अहमद वानी (34) की शिकायत के बाद दर्ज किया गया है। रिजवान और उनके साथी गर्म कपड़े बेचने का काम करते हैं। उन्होंने पुलिस को बताया कि वह रांची के हरमू इलाके की ओर जा रहे थे कि तभी लगभग 25 लोगों के एक समूह ने उन्हें और उनके दो दोस्तों को घेर लिया। इन लोगों ने उनकी पिटाई की और सांप्रदायिक नारे लगाने को कहा।
उन्होंने कहा, ‘जैसे ही हम कडरु पुल पहुंचे तो 25 लोगों के एक समूह ने हमें घेर लिया और हमसे जय श्रीराम और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाने को कहा। मेरे सिर पर रॉड से हमला किया गया. मैंने हेलमेट पहना हुआ था, जो इस हमले में टूट गया। मेरे दोस्त भी घायल हुए हैं और मेरी बाइक भी क्षतिग्रस्त हुई है। भीड़ ने हमारा सामान भी लूट लिया।’
एसएसपी ने कहा, ‘हमने एक टीम का गठन किया है कि आखिर क्यों शहर में कश्मीरी लोगों के खिलाफ इस तरह की दो घटनाएं हुई हैं। मौजूदा मामले में तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है।’ वानी ने बताया, ‘यह इस महीने हुई दूसरी घटना है। हम उम्मीद करते हैं कि पुलिस दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें ताकि हम बिना डर अपना काम कर सकें। इससे व्यवस्था में विश्वास भी पैदा होगा।’ बता दें कि 11 नवंबर को डोरंडा में दो कश्मीरी व्यापारियों से मारपीट की गई थी और उन्हें जय श्रीराम और पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगाने को मजबूर किया गया था। यह कोई पहली या दूसरी घटना नहीं है बल्कि 2014 के बाद इस तरह की खबरों की बाढ़ सी आ गई हैं ऐसा लग रहा है जैसे अपराधियों में खौफ ही ना हो और लंपटों ने कानून व्यवस्था अपने हाथों में ले ली हों।
कॉमेडियन मुनव्वर फ़ारूक़ी का शो रद्द
दक्षिणपंथी समूहों और पुलिस के दबाव के बाद 30 दिनों के भीतर चौथी बार कॉमेडियन मुनव्वर फारूकी का शो रद्द कर दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, इस बार बेंगलुरु पुलिस ने शो के आयोजकों को पत्र लिखकर उनसे रविवार को गुड शेफर्ड सभागार में कार्यक्रम का आयोजन नहीं करने को कहा। फारूकी ने रविवार सुबह बयान जारी कर कहा कि यह बीते दो महीने में उनका 12वां शो है जिसे आयोजकों और दर्शकों को दी गई धमकियों के बाद रद्द किया गया है। अशोक नगर पुलिस ने शनिवार को कर्टन कॉल इवेंट्स के प्रमुख विशेष धुरिया को पत्र लिखकर फारूकी को ‘विवादास्पद शख्सियत’ बताते हुए कहा, ‘कई राज्यों में उनके (फारूकी) कॉमेडी शो पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है.’
हालांकि, पुलिस का यह दावा गलत है क्योंकि फारूकी के शो दक्षिणपंथी हिंदू समूहों की धमकियों, उनके विरोध और यहां तक कि हिंसा के बाद रद्द किए गए हैं, किसी राज्य ने उन पर प्रतिबंध नहीं लगाया है।
पुलिस ने जारी किए गए एक पत्र में कहा है - ‘यह विश्वसनीय जानकारी है कि कई संगठन मुनव्वर फारूकी के स्टैंडअप कॉमेडी शो का विरोध कर रहे हैं. इससे अराजकता पैदा हो सकती है और सार्वजनिक शांति और सद्भावना बाधित हो सकती है, जिससे आगे चलकर कानून एवं व्यवस्था की समस्याएं हो सकती हैं इसलिए आपको यह सुझाव दिया जाता है कि आपको मुनव्वर फारूकी का स्टैंडअप कॉमेडी शो रद्द कर देना चाहिए।’
यह भी पढ़ें: टीवी के 'चौधरियों' का दु:ख और जनता का सुख!
मुनव्वर पर इस साल की शुरुआत में भाजपा विधायक के बेटे की शिकायत के आधार पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगा था और कथित तौर पर आपत्तिजनक शो से पहले उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। भाजपा नेता के बेटे ने दावा किया था कि उन्होंने इंदौर में फारूकी को उनके शो की रिहर्सल के दौरान हिंदू देवताओं और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बारे में कथित तौर पर अभद्र बातें करते सुना था, लेकिन अपने इस दावे को लेकर वह कोई साक्ष्य पेश नहीं कर सके थे।
इस मामले में फारूकी और अन्य को एक महीने तक जेल में रहना पड़ा था और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी थी। इससे पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिकाएं दो बार यह कहकर खारिज कर दी थी कि इस तरह के लोगों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। फारूकी के जेल जाने को लेकर न्याय से भटकना, उनके बुनियादी अधिकारों का हनन और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रौंदने के तौर पर व्यापक निंदा की गई थी। फारूकी को जमानत दिए जाने पर दक्षिणपंथी समूहों ने यह सुनिश्चित किया था कि फारूकी के शो सुचारू ढंग से जारी नहीं रहें।
यह भी पढ़ें: 'दिल्ली की सड़कें अचानक डरावनी हो गई थी, मायूस किसान जत्थों में घर लौट रहे थे!'
नवंबर के मध्य में दक्षिणपंथी समूहों की धमकियों के बाद फारूकी के गोवा में होने वाले दो सोल्ड-आउट शो रद्द कर दिए गए थे। दरअसल इन दक्षिणपंथी समूहों ने धमकी दी थी कि अगर ये शो आयोजित किए जाते हैं तो वे खुद को आग लगा लेंगे। इससे एक हफ्ते पहले छत्तीसगढ़ में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल द्वारा स्थानीय प्रशासन को शो के लिए मंजूरी दिए जाने पर प्रदर्शन की धमकियों के बाद उनके शो रद्द कर दिए गए थे।
इन तीनों ही घटनाओं के केंद्र में देखें तो 'हिंदू अतिवाद' साफ नजर आता है। ये तीन घटनाएं तो केवल छोटी सी झलक मात्र है, देशभर के अखबारों और टीवी पर आए दिन मुस्लिमों का उत्पीड़न, उन्हें अपराधी साबित करने की हड़बड़ी और उनके एक्शन पर 'भावनाएं आहत' होने का नाटक बदस्तूर जारी है। नतीजतन देशभर में मुस्लिम राजनीतिक कार्यकर्ता, कॉमेडियन और एक्टर्स दक्षिणपंथी सूमहों के निशाने पर हैं। भारत में मुसलमानों की हालत देखकर ऐसा लग रहा है कि वो हैरान, पस्त और परेशान हो गए हैं।
Leave your comment