उमेश तिवारी व्यंग्यकार, रंगकर्मी और मान्यताप्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। अपनी शर्तों पर जीने के ख़तरे उठाते हुए उन्होंने रंगकर्म, पत्रकारिता, लेखन, अध्यापन, राजनीति से होकर गुज़रती ज़िंदगी के रोमांच को जिया है। रंगकर्म के लेखे-जोखे पर 2019 में 'थिएटर इन नैनीताल' नाम से किताब छप चुकी है।
टाउन हॉल के बुर्ज़ पर लगी घड़ी बिगड़ी पड़ी है। उसका घंटा अब नहीं बजता, समय भी वह नहीं बताती, अगरचे लोग उसे देखते ज़रूर हैं। देखने में ठीक ही लगती है, जैसी घड़ियां अमूमन होती हैं। आकार गोल, एक से बारह तक की दुरुस्त गिनती और तीर जैसी सुइयां। हक़ीक़त ये है कि घड़ी चाहे जिस अवस्था में हो, चालू-ठप्प, आम लोग उसे घड़ी ही बुलाते हैं। इस पुरानी घड़ी को भद्रजन सुंदर धरोहर मानते हैं, तो कुछ मसख़रे टाइप लोग घड़ियाल। अधिकांश नागरिक उसकी दशा पर चार-छह टसुवे बहाते, समय किसी अन्य घड़ी में देख लेते हैं, आवश्यक हुआ तो!
इधर अपनी इस बिगड़ी घड़ी का प्रयोग शहर के एक लैंडमार्क की तरह होने लगा है, लेकिन घंटाघर नाम से नहीं! गुम्बदों पर अन्यत्र जड़ी ऐसी घड़ियां, जो अपना नीरस काम ठीक से कर रही हैं, घंटाघर के रूप में पहचाने जाने का पहला हक़ रखती हैं। इस स्थल को लोग 'बिगड़ी घड़ी' कहने लगे हैं, 'कल ऑफिस के बाद ‘बिगड़ी घड़ी’ पर मिल जइयो..।' ऐसे ये संवाद का हिस्सा भी बन गई।
घड़ी के घंटे और मिनट की सुइयां साढ़े छह पर अटक गई हैं। हालांकि, ठप अवस्था में कुछ भी बजाये क्या फ़र्क पड़ता है, परन्तु बड़ी सुई के नीचे छोटी सुई ऐसे छुप गई है, मानो पीएम के नीचे सीएम हो। इस अवस्था से जुड़ा कार्यालय का एक स्कैम चर्चा में रहा है, जिसमें घड़ी का 15 किलो का पेंडुलम और एक 9 इंच की सुई ग़ायब पायी गई। अनुशासनात्मक कार्यवाही हुई तो स्टोर इंचार्ज बाबू सस्पेंड हो गया। ख़ैर साल भर बाद हरिश्चन्द्र की औलाद श्रेणी के एक जांचकर्ता ने स्टोर के कबाड़ से घड़ी का घंटा और बड़ी सुई के नीचे छुपी छोटी सुई ढूंढ निकाली और स्टोर बाबू को क्लीन चिट मिल गई।
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सस्पेंशन काल में बाबू नौकरी से कहीं बेहतर लाइफ़ एंजॉय कर रहा था, पर ‘सत्यमेव जयते’ की लाज रखने को वापस अपने विभाग में री-इंस्टेट हो गया है। अपनी सीट पर पुनः विराजमान हो 'दौर-ए-धर्मयुद्ध' के अनुभव बांट रहा है कि कैसे आपदा को अवसर में बदलते हुए उसने पत्नी को पार्षद बनवा दिया। ओपन सीक्रेट उद्घाटित करता फिर रहा है कि घड़ी का घंटा बेचने वाला चौकीदार आजकल अकाउंटेंट के साथ रोज़ पौव्वा पी रहा है।
इस दौरान कोर्ट के संज्ञान में लाए गए भ्रष्टाचार का वाद अधिवक्ता की गति से तालमेल बिठा कर आठ हफ़्ते में एक पेशी की दर से चलता हुआ कहीं नहीं पहुंचा, मगर सुना है ये चलता रहेगा। विदा होते जस्टिस अपना अंतिम फ़ैसला दे जाएं तो बात और है। जहां तक घड़ी की मरम्मत का प्रश्न है, घड़ीसाज़ संज्ञान के नाम पर गाहे-बगाहे घड़ी को आंख मारते हुए निकल जाते हैं। कोई कम्पलेंट करता तो बिगड़ी घड़ी सुधारने का प्रयास वो कर सकते थे। सुनने में आया है बड़ी घड़ियों का एक विशेषज्ञ पिछले साल यहां घूमने आया था। उसने भद्रजनों की रिक्वेस्ट पर घड़ी का मुआयना करके 15-20 हज़ार का ख़र्चा बताया। प्रशासन ने उससे तीन कोटेशन मांगे तो वो चलता बना।
मेरा मानना है कि स्वतः संज्ञान कोई नहीं लेता। मैंने भी इसलिए लिया कि मुझे कलम घसीटने को मुद्दा चाहिये था। अगर घड़ी बैटरी से चलती होती तो बैटरी के व्यापारी इसमें रुचि दिखाते। चाभी से चलती, तो चाभी भरने को नियुक्त संविदाकर्मी अपनी नौकरी की ख़ातिर संज्ञान लेता। स्वतः संज्ञान तो बड़े-बड़े नहीं ले रहे। जानकार परेशान हैं, सुप्रीम कोर्ट की स्वतः संज्ञान लेने वाली इंद्री निष्क्रिय क्यों हो गई ? उनको हर मुद्दे पर पीआईएल लगानी पड़ रही हैगी।
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मीलार्ड को सरकारी वक़ील अवमानना का संज्ञान दिला रहे हेंगे। वैसे संज्ञान ले ही लिया तो क्या भद्रजन उनको राज्यसभा या राजभवन भेज देंगे ? पालिका के अपने चुनावों में घड़ी कोई मुद्दा नहीं थी। जनता को क्या पड़ी है बिगड़ी घड़ी का संज्ञान लेकर सड़कों पर आने की। घड़ी चुनाव चिन्ह पर अध्यक्ष पद के लिये लड़ने वाला उम्मीदवार भी तीसरे नंबर पर रहा। उसका विचार है कि बंद घड़ी के भंचक से नगर के अच्छे दिन आते-आते रह गए। उसको चित करने वाले फूल का मानना है कि
घड़ी की अब कोई आवश्यकता नहीं रही।
समय स्वतः संज्ञान लेकर अच्छे दिनों पर रुक गया है, जो जीत गया वो परमानेंट हो गया है। दुष्प्रचार करने वाले सेमी-अर्बन नक्षल हेंगे जिनका संज्ञान उचित समय पर गुरुघंटाल द्वारा लिया जाएगा।
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