तिरंगे से 'तौलिये' तक गर्व से शर्म की कहानी का नाम है पहलवान सुशील कुमार

खलनायकतिरंगे से 'तौलिये' तक गर्व से शर्म की कहानी का नाम है पहलवान सुशील कुमार

NEWSMAN DESK

20 अगस्त साल 2008! छत्रसाल स्टेडियम में कुश्ती के दांव-पेंच सीखते नये-नये पहलवानों की आंखें बीजिंग ओलंपिक में होने वाले उस मुकाबले पर टिकी हुई थी, जिसमें उनके बीच से ही निकला एक लड़का ओलंपिक में इतिहास रचने के करीब था। कुश्ती की दुनिया में एक कोच इतिहास रचने जा रहा था और एक नया पहलवान भारत के अखबार की सुर्खियां बनने के करीब था। इस मुकाबले पर खिलाड़ियों की ही नहीं बल्कि ओलंपिक में पहुंची पूरी टीम की निगाहें लगी हुई थी।

66 किग्रा फ्रीस्टाइल रेसलिंग में भारत की ओर से सुशील कुमार अपने उस मुकाबले के लिये तैयार थे, जो उनकी किस्मत बदलने जा रहा था। मुकाबला शुरू हुआ तो सुशील कुमार ने अपने प्रतिद्वंदी लियोनिद स्पिरिडोनोव को मौका ही नहीं दिया और अपनी रणनीति और कुशल दांव-पेंच से लियोनिद को 3-1 से परास्त कर ब्रांज मेडल झटक नया इतिहास रच दिया। इस मुकाबले को देख रहे कोच सतपाल लगभग उछल पड़े। सुशील कंधे पर तिरंगा लिये हुए इस जीत से उत्साहित गर्व से चल रहे थे, लेकिन अब स्थितियां पलट गई हैं। इस पहलवान ने गर्व के क्षणों से शर्म तक का सफर पिछले कुछ दिनों में जिस तेजी से किया है, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। 

सुशील ने जब पहली मर्तबा पदक जीता था, तब अगले दिन भारत को कोई भी अखबार ऐसा नहीं था, जहां सुशील कुमार की तारीफ में शब्द न हों। उन पर पुरस्कारों की बौछार हो गई थी और देश के तमाम दिग्गज इस खिलाड़ी के हुनर और जीत के कायल हो गये थे। भारत ने सुशील कुमार की जीत के साथ वो कारनामा कर दिखाया था, जो अगले कुछ सालों में कुश्ती को 'हॉट गेम्स' में तब्दील करने जा रहा था।

दिल्ली के आस-पास अखाड़ों की डिमांड अचानक से बढ़ गई। अब कुश्ती सिर्फ देसी खेल न रहकर पहचान और शोहरत का टिकट भी बन गया था, जहां पैसा भी था और बेशुमार फेम भी। सुशील कुमार रातों रात हीरो बन गये थे और कई ब्रांड्स सुशील को हाथों-हाथ लेने के लिये उनके आगे-पीछे चक्कर लगा रहे थे।

इस नायक के खलनायक बनने की कहानी चार मई को सामने आई जब उत्तरी दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में हुए विवाद में 23 साल के पहलवान सागर राणा और उनके दो दोस्तों की कथित तौर पर कुछ अन्य पहलवानों ने बुरी तरह पिटाई की थी, जिसमें सागर की मौत हो गई थी। पीड़ितों का आरोप है कि झगड़े के समय ओलंपिक पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार भी वहां मौजूद थे। दिल्ली की एक अदालत ने आरोपों को गंभीर बताते हुए सुशील को अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद से ही सुशील फरार चल रहे थे।

सुशील ने कई उप​लब्धियां अपने नाम की और वो भारतीयों के लिये एक हीरो की तरह उभरकर सामने आये, खासकर कुश्ती में अपना करियर बनाने वाले युवाओं के लिये सुशील कुमार रोल मॉडल बन गये। दिल्ली का छत्रसाल स्टेडियम अपने हीरो का इंतजार कर रहा था और जब वह लौटा तो उसका स्वागत भव्यता से किया गया। नौजवान रेसलर सुशील से हाथ मिलाने और उनसे कुश्ती के गुर लेने को लालायित रहते थे। सुशील के दोस्तों का दायरा अचानक से बढ़ गया था और अब वह इस स्टेडियम की पहचान था। सुशील अकेले हीरो नहीं बने थे, बल्कि कोच सतपाल भी रातों-रात स्टार बन चुके थे। अब कोच सतपाल को भारत के कई हिस्सों में लोग सुशील कुमार के गुरू के बतौर पहचानने लगे थे।

यह भी पढ़ें : 'जिस इलाके से हम गुजर रहे थे, वो अपराध के लिए बदनाम है!'

मशहूर लिकर ब्रांड का ऐड करने से किया था इनकार

सुशील कुमार को पहलवानी के लिए उनके चचेरे भाई संदीप ने प्रोत्साहित किया था। इसके बाद 14 साल की उम्र में सुशील ने पहलवानी की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी। जब सुशील छत्रपाल स्टेडियम में कुश्ती की प्रैक्टिस करते थे, तब उनके घरवाले घर से घी, दूध और घर से बना खाना भेजते थे। सुशील शुरुआत में शर्मीले स्वभाव के रहे हैं और इसी व्यवहार के चलते 2010 में दिल्ली में हुए कॉमनवेल्थ गेम में इनको ‘मोस्ट पॉपुलर एथलीट’ चुना गया था। एक दौर वो भी जब इस पहलवान ने 2012 में एक मशहूर लिकर ब्रांड का ऐड करने से मना कर दिया था और यह बात अखबारों की सुर्खियां बनी थी। ये सुशील के उच्च आदर्श की कहानी बयां कर रही थी, लेकिन धीरे-धीरे सुशील पर शोहरत हावी होने लगी।

बीजिंग ओलंपिक 2008 में ब्रॉन्ज मेडल और इसके बाद लंदन ओलंपिक 2012 में सिल्वर मेडल जीतकर तो सुशील ने वो सब पा लिया था, जिसका कोई भी खिलाड़ी सपना देखता है। सुशील देश के सबसे बड़े खिलाड़ियों में शामिल हो गया और इसके बाद ये चमक कभी फीकी नहीं पड़ी। हालांकि, इस बीच कुछ विवाद भी सामने आये, लेकिन यह इतने बड़े नहीं थे कि सुशील कुमार की 'कमाई' को प्रभावित कर सके। वक्त गुजरा और आरोप लगे कि सुशील अपनी शोहरत की चमक में सामान्य खिलाड़ियों का व्यवहार भुलाकर गुंडों सरीखा बर्ताव करने लगा, जो मामूली कहासुनी पर भी सामने वाले पर बंदूक तान देता है।

सुशील के काफिले में चलने वाले लड़के बंदूक साथ लेकर चलते थे, जो किसी भी खिलाड़ी के लिये अच्छी बात नहीं कही जा सकती। फिर पिछले दिनों ऐसी खबरें भी आई, जिसने सुशील के समर्थकों को तो धक्का पहुंचाया ही, इस पहलवान को भी विलेन बना दिया।

चार मई तक किसी ने यह भी नहीं सोचा था कि देश के लिए दो ओलंपिक पदक जीतने वाला इकलौता खिलाड़ी और कभी युवाओं का रोल मॉडल रहा पहलवान प्रशंसकों से मुंह छिपाता हुआ गिरफ्तार होगा। पुलिस उसकी तलाश में ईनाम घोषित करेगी और कभी भारत का गर्व रहे इस शख्स को गिरफ्तारी से बचने के लिये शहर दर शहर छिपना होगा, लेकिन यही सबकुछ पिछले दिनों में हुआ है।

दो बार के ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार पहलवान सागर धनखड़ की हत्या के मामले में पहले फ़रार रहा और अब दिल्ली के मुंडका से पहलवान को गिरफ़्तार किया गया है। सुशील कुमार के ख़िलाफ़ पहलवान सागर धनखड़ हत्याकांड में अपहरण, हत्या, ग़ैर-इरादेतन हत्या समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज है। सुशील कुमार को खेलों में भारत का नाम रोशन करने के लिए 2005 में अर्जुन अवार्ड दिया गया था। इसके बाद उन्‍हें भारत में खेलों में दिया जाने वाला सर्वोच्‍च सम्‍मान राजीव गांधी खेल रत्‍न अवार्ड भी मिला और फिर 2011 में सुशील कुमार को पद्मश्री से नवाजा गया। इतने भारी-भरकम सम्मान सब धरे रह गये और पहलवान का अपराध इन सम्मानों पर भारी पड़ गया।

एसीपी अत्तर सिंह की निगरानी और इंस्पेक्टर शिवकुमार और इंस्पेक्टर करमबीर सिंह की अगुआई वाली दिल्ली पुलिस की स्पेशल टीम ने सुशील कुमार को रविवार को गिरफ़्तार किया है। 38 वर्षीय पहलवान सुनील कुमार के अलावा पुलिस ने 48 साल के अजय को भी गिरफ़्तार किया है। सुशील कुमार पर एक लाख रुपये और अजय पर 50 हज़ार रुपये का इनाम दिल्ली पुलिस ने रखा था।

यह भी पढ़ें : उड़ीसा का सत्यनारायण गंगा राम, जो राजीव गांधी के सपनों को जमीन पर उतारने भारत चला आया

ये दाग ताउम्र रहेगा
सुशील इससे पहले भी विवादों में रहे हैं। सुशील कुमार पहली बार तब विवादों में आए जब साल 2017 में वो साल 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए क्वालीफ़ाई कर गए थे, लेकिन इसी बीच उनका मुक़ाबला दिल्ली में प्रवीण राणा से हुआ। मुक़ाबले में सुशील कुमार जीत तो गये लेकिन उनके और प्रवीण राणा के समर्थकों में इस जीत के बाद जमकर मारपीट हुई। मामला पुलिस थाने तक जा पहुंचा, लेकिन इसे सुशील कुमार की लोकप्रियता और पहुंच कहें कि बाद में बात आई गई हो गई। इसके बाद साल 2016 में हुए रियो ओलंपिक से पहले सुशील तब विवाद में घिर गए, जब 74 किलो भार वर्ग में हिस्सा लेने वाले पहलवान नरसिंह यादव ने उन पर डोपिंग में ख़ुद को फंसवाने का आरोप जड़ा। अब पहलवान सागर धनखड़ हत्याकांड ने सुशील को अपराधी बना दिया है, जिसका दाग ताउम्र रहने वाला है।

अखाड़ों में पनप रहा अपराध
पिछले तीन-चार महीने में ये ऐसी दूसरी घटना है, जिसने अखाड़ों पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। इसी साल फरवरी में रोहतक के जाट कॉलेज स्थित अखाड़े में ताबड़तोड़ गोलियां चली थीं, जिसमें दो महिला पहलवानों सहित पांच लोगों की मौत हो गई थी। इनमें कोच और उनकी महिला पहलवान पत्नी भी शामिल थीं। इस घटना ने अखड़ों के भीतर चल रही सियासत को उजागर कर दिया था और अब छत्रसाल स्टेडियम की घटना ने सबको हिलाकर रख दिया है। एक दौर था जब खिलाड़ी रेलवे, पुलिस और दूसरे महकमों में नौकरियों के ख्वाब तले खेलों की दुनिया में आते थे, लेकिन अब ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि शोहरत और पैसा, खेल की दुनिया में अपराध भी साथ लेकर आया है। 

अखाड़ों की चुप्पी
बीबीसी ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि सुशील कुमार का नाम सागर घनखड़ हत्याकांड में लिए जाने के बाद अधिकतर अखाड़ों के 'खलीफ़ा' चुप्पी साधे बैठ गये हैं। अनौपचारिक बातचीत में हालांकि वो कहते हैं कि सुशील कुमार की वजह से कुश्ती का नाम रोशन हुआ है और वो कोई ऐसी बात नहीं करना चाहते जिससे पहलवान और पहलवानी की छवि ख़राब हो।

खिलाड़ी हैरान-परेशान

सुशील के साथ दो ओलंपिक खेलों में हिस्सा लेने वाले मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने पीटीआई से कहा, ‘भारतीय खेलों के लिए सुशील ने जो किया है उससे वह कभी नहीं छीना जा सकता। इस समय मैं बस यही कहना चाहता हूं। चीजें साफ होने दीजिए। मैं इससे अधिक टिप्पणी नहीं करना चाहता.’ बीजिंग 2008 ओलंपिक खेलों में विजेंदर और सुशील दोनों ने कांस्य पदक जीते थे।

आज तक को दिये अपने बयान में चौथी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने की तैयारी कर रहे अचंता शरत कमल ने स्वीकार किया कि इस घटना से भारतीय खेलों की छवि को नुकसान होगा। उन्होंने कहा, ‘अगर असल में ऐसा हुआ है तो यह दुर्भाग्यशाली है और सिर्फ कुश्ती नहीं, बल्कि भारतीय खेलों पर गलत असर डालेगा.’ शरत कमल ने कहा, ‘वह हमारे सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं। लोग उनसे प्रेरणा लेते हैं। इसलिए अगर उन्होंने ऐसा किया है, तो इसका सिर्फ पहलवानों की नहीं, बल्कि अन्य खेलों के खिलाड़ियों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।’

यह भी पढ़ें : 'हाइकोर्ट में जज ने सुंदर लाल बहुगुणा की मौजूदगी को बताया था सौभाग्य, खुद की थी पैरवी'

जांच को प्रभावित करवा सकता है सुशील

एक रिपोर्ट के मुताबिक सागर की मां सविता का कहना है कि सुशील को उसके अपराध की सजा के बतौर फांसी होनी चाहिए और जो भी मेडल मिले हैं वो भी वापस होने चाहिए। पुलिस जांच ठीक करेगी इसका यकीन तो है, लेकिन सुशील कुमार का राजनीतिक रसूख, जांच को प्रभावित करने की हर कोशिश करेगा। अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मरहूम सागर के पिता ने सुशील कुमार की गिरफ्तारी पर कहा है कि उन्हें अब इंसाफ की आस जगी है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाए कि सुशील कुमार के कई गैंगस्टर्स से संपर्क हैं, सुशील कुमार वसूली और अवैध कब्जे जैसी घटनाओं में भी शामिल है और पुलिस को उन सूत्रों की भी पड़ताल करनी चाहिये, जो अब तक सुशील को पनाह दे रहे थे।

बहरहाल सुशील कुमार की आगे की कहानी अब न्यायालय में लिखी जानी है, लेकिन 20 दिनों तक पुलिस से बचकर राज्य दर राज्य छिपते फिर रहे सुशील कुमार ने कई सारे सवाल और कई उंगलियों को खुद की तरफ मोड़ दिया है। यह भारतीय खेल जगत का शर्मनाक पल है, जिसे खुद उसके नायक ने पैदा किया है। 

Leave your comment

Leave a comment

The required fields have * symbols