उम्मीद के मुताबिक संसद के मानसून सत्र की शुरुआत हंगामेदार रही। नए सदस्यों की शपथ के बाद पीएम मोदी नए मंत्रियों का परिचय देने के लिये खड़े हुए, ठीक इसी वक्त विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया। सदन की कार्यवाही शुरू होने के 8 मिनट बाद ही विपक्ष के सांसद नारेबाजी करने लगे। इसके चलते पीएम अपने मिनिस्टर्स को सदन में इंट्रोड्यूज भी नहीं करवा सके। हंगामे के बीच ही अध्यक्ष ने कार्यवाही को मंगलवार सुबह तक के लिए स्थगित कर दिया। सबसे अहम रहा पेगासस स्पायवेयर के जरिए फोन टेपिंग की रिपोर्ट पर संसद में हुआ हंगामा। इस मामले में जहां सरकार बैकफुट पर नजर आई, वहीं विपक्ष ने स्वतंत्र जांच की मांग की है।
मानसून सत्र के दौरान मोदी सरकार की हवाईयां उड़ी हुई हैं और मंत्री बचाव की मुद्रा में ही ज्यादा नजर आ रहे हैं। कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर डटे हुये किसानों से लेकर पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोत्तरी के साथ ही अब जासूसी के आरोपों को झेल रही मोदी सरकार के लिये ये सत्र आसान नहीं रहने वाला है। लोकसभा के बाद प्रधानमंत्री राज्यसभा पहुंचे, लेकिन वहां भी उन्हें भाषण शुरू करते ही हंगामे का सामना करना पड़ा है। हंगामे के चलते राज्यसभा दो बार स्थगित करनी पड़ी और दोपहर 3.30 बजे इसे दिनभर के लिए स्थगित कर दिया गया।
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जासूसी मामले में स्वतंत्र जांच की मांग
संसद में कांग्रेस सांसदों ने पत्रकारों समेत दूसरी हस्तियों के फोन टेपिंग की स्वतंत्र जांच करवाने की मांग की है। इस पर सरकार ने मांग को खारिज करते हुए कहा कि रिपोर्ट में लीक हुए डेटा का जासूसी से कोई लेना-देना नहीं है। बता दें कि रविवार को 16 मीडिया समूहों की साझा पड़ताल के बाद जारी की गई रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए सरकार ने भारत के पत्रकारों समेत जानी-मानी हस्तियों की जासूसी करवाने की कोशिश की है। राफेल में दलाली के आरोपों के बाद यह दूसरा सबसे संगीन आरोप है, जिसमें मोदी सरकार घिरती हुई नजर आ रही है।
संसद में सरकार की ओर से संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा- 'रविवार की रात को एक वेब पोर्टल ने बेहद सनसनीखेज स्टोरी पब्लिश की। इसमें कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। संसद के मानसून सत्र की शुरुआत के एक दिन पहले इस स्टोरी को लाया गया। यह सब संयोग नहीं हो सकता। पहले भी वॉट्सऐप पर पेगासस के इस्तेमाल को लेकर इसी तरह के दावे किए गए थे। उन रिपोर्ट्स में भी कोई फैक्ट नहीं थे और उन्हें सभी ने नकार दिया था। 18 जुलाई को छपी रिपोर्ट भारत के लोकतंत्र और उसके संस्थानों की छवि खराब करने की कोशिश दिखाई देती है।'
वैष्णव ने आगे कहा- 'जासूसी और अवैध निगरानी के खिलाफ हमारे देश में सख्त कानून हैं। देश के अंदर प्रक्रिया के तहत ऐसा करने की व्यवस्था है। राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर किसी इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन को सर्विलांस करते समय नियम-कानून का पूरी तरह से पालन किया जाता है। ऐसा तब ही किया जाता है, जब कोई सक्षम अधिकारी इसका अनुमोदन करता है।' उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि किस फोन की कब निगरानी की जा रही थी या कब उसकी हैकिंग की कोशिश हुई।
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अश्विनी ने कहा- 'उन लोगों को दोष नहीं दिया जा सकता, जिन्होंने वह मीडिया रिपोर्ट विस्तार से नहीं पढ़ी। सदन के सभी सदस्यों से अनुरोध है कि वे तथ्य और तर्क के आधार पर इस मुद्दे पर चर्चा करें। रिपोर्ट एक कंसोर्टियम (समूह) को आधार बनाकर पब्लिश की गई है। इस ग्रुप की पहुंच लीक हुए 50,000 फोन नंबरों के डेटाबेस तक है। रिपोर्ट में ये तो कहा गया है कि फोन नंबर के जरिए कई लोगों की जासूसी की जा रही थी, लेकिन ये नहीं बताया गया कि किस समय फोन की पेगासस के जरिए निगरानी की गई या कब हैकिंग की कोशिश हुई।' हालांकि, 'द वायर' ने अपनी रिपोर्ट में कई जगह इस बात का जिक्र किया है कि 2017 से 2019 के बीच हैक करने की कोशिशें की गई हैं। इसके अलावा स्पष्ट तौर पर रिपोर्ट में निशाना बनाए गए पत्रकारों की उन रिपोर्ट्स का भी जिक्र है जिसके बाद संभावित हैकिंग की गई।
न्यूज वेबसाइट 'द वायर' की रिपोर्ट के मुताबिक करीब 40 पत्रकारों पर नजर रखी जा रही थी। वॉशिंगटन पोस्ट और द गार्जियन के अनुसार 3 प्रमुख विपक्षी नेताओं, 2 मंत्रियों और एक जज की भी जासूसी की पुष्टि हो चुकी है, हालांकि इनके नाम अभी सामने नहीं आये हैं।
पेगासस ने मीडिया रिपोर्ट को नकारा
पेगासस की पेरेंट कंपनी NSO ग्रुप ने फोन हैकिंग पर रविवार को जारी की गई रिपोर्ट को गलत बताया है। NSO ने अपने बयान में कहा है कि रिपोर्ट गलत अनुमानों और अपुष्ट थ्योरी से भरी हुई है। यह रिपोर्ट ठोस तथ्यों पर आधारित नहीं है। रिपोर्ट में दिया गया ब्योरा हकीकत से परे है। हालांकि, इस स्पायवेयर को किन सरकारों ने खरीदा है या कंपनी के क्लाइंट कौन हैं, इसके बारे में भी कंपनी की ओर से कोई सफाई नहीं दी गई है। नामी मीडिया हाउसेज की पड़ताल को सिरे से नकारा भी नहीं जा सकता है। इस मामले में आगे और भी खुलासे होने की बात सामने आ रही है।
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हंगामें की वजहों पर बात नहीं, शिगूफा छोड़ निकले पीएम
संसद में भारत की महत्वपूर्ण हस्तियों की जासूसी समेत किसान आंदोलन जैसे मसलों पर घिरी मोदी सरकार मानसून सत्र के दौरान भी शिगूफे छोड़ते हुये ही ज्यादा नजर आई। प्रधानमंत्री ने संसद में मचे घमासान को लेकर कहा कि कुछ लोग नहीं चाहते कि महिला, दलित और किसान मंत्री इंट्रोड्यूज हो सकें। पीएम मोदी ऐसे कह रहे हैं मानो इससे पहले न तो संसद में महिलाएं पहुंची हों, न किसानों के बेटे और न दलित।
बचाव में रविशंकर प्रसाद, कांग्रेस पर फोड़ा ठीकरा
सरकार के बचाव में संसद के बाहर पूर्व संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मोर्चा संभाला। उन्होंने पेगासस जासूसी मामले को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर केंद्र सरकार का बचाव करते हुये कहा कि कांग्रेस का तो इतिहास ही जासूसी का रहा है! यह देश विरोधी एजेंडा चलाने वालों की साजिश है। यहां यह समझ पाना मुश्किल है कि रविशंकर प्रसाद क्या कहना चाह रहे थे? वो पेगासस मामले में बजाय कि ठोस तथ्य रखने और मुल्क को एक स्वतंत्र जांच का आश्वासन देने के मीडिया हाउसेज की पड़ताल को कांग्रेस का बताकर पल्ला झाड़ते हुये ही ज्यादा नजर आये। उन्होंने इसे स्तरहीन आरोप बताया है, जबकि फोन टैपिंग भारतीय कानूनों के हिसाब से आपराधिक मामला है। पूरे प्रकरण को देखकर फिलवक्त तो यही लग रहा है कि इस मामले में सरकार की फजीहत आगे और बढ़ने वाली है।
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