रविवार देर शाम 'वॉशिंगटन पोस्ट' और समाचार वेबसाइट 'द वायर' की एक साझा रिपोर्ट ने दावा किया कि दुनियाभर के कई पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के फोन इजरायल बेस्ड एक टेक कंपनी के पेगासस स्पायवेयर (Pegasus Spyware) की मदद से हैक किए गए हैं। इस खबर के बाहर आते ही भारत में एक नई बहस पैदा हो गई है।
'द वायर' और 16 मीडिया सहयोगियों की एक पड़ताल के मुताबिक, इजराइल की एक कंपनी की मदद से दुनियाभर की कई सरकारों ने अपने ही रसूखदार नागरिकों, कार्यकर्ताओं, राजनीतिक हस्तियों और पत्रकारों की जासूसी की है। दावा किया जा रहा है कि लीक हुई एक सूची में 300 सत्यापित भारतीय नंबर हैं, जिनमें दो केन्द्रीय मंत्रियों समेत विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, न्यायपालिका से जुड़े लोगों, कारोबारियों, सरकारी अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया है।
'द वायर' ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है- 'इस प्रोजेक्ट के हिस्से के तौर पर इन नंबरों से जुड़े फोन के एक छोटे-से वर्ग पर की गई फॉरेंसिक जांच दिखाती है कि पेगासस स्पायवेयर के जरिये 37 फोन को निशाना बनाया गया था, जिनमें से 10 भारतीय हैं। फोन का तकनीकी विश्लेषण किए बिना निर्णायक रूप से यह बताना संभव नहीं है कि इस पर सिर्फ हमले का प्रयास हुआ या सफल तौर पर इससे छेड़छाड़ की गई है।'
वायर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सूची में पहचान किए गए नंबरों का अधिकांश हिस्सा भौगोलिक तौर पर 10 देशों के समूहों- भारत, अजरबैजान, बहरीन, कजाकिस्तान, मेक्सिको, मोरक्को, रवांडा, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में केंद्रित था। यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में आधारित डिजिटल सर्विलांस शोध संगठन सिटिजन लैब, जिसने 2019 में एनएसओ ग्रुप के खिलाफ वॉट्सऐप के कानूनी मुकदमे की जमीन तैयार की थी, के विशेषज्ञों का कहना है कि इन सभी देशों में 2018 में पेगासस के सक्रिय ऑपरेटर्स थे।
भारत के मामले में साल 2017 के मध्य से जुलाई 2019 के बीच बड़ी संख्या में पत्रकारों और राजनेताओं के फोन हैक किये गये थे। 'द वायर' ने दावा किया है कि वो अगले कुछ दिनों में अपने सहयोगियों के साथ एक-एक करके उन नामों को उजागर करने जा रहा है, जिसकी पुष्टि कर पाने में वो कामयाब रहे हैं। साफ है कि आने वाले दिनों में 'पेगासस' से जुड़ी हुई कई अन्य कहानियां सामने आ सकती हैं, जो भारतीय राजनीति में नया तूफान पैदा कर सकती हैं।
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निशाना बनाने के लिए चुने गए नामों में 40 से ज्यादा पत्रकार, तीन प्रमुख विपक्षी नेताओं, एक संवैधानिक प्राधिकारी, नरेंद्र मोदी सरकार में दो पदासीन मंत्री, सुरक्षा संगठनों के वर्तमान और पूर्व प्रमुख एवं अधिकारी और बड़ी संख्या में कारोबारियों के नाम शामिल हैं। लीक किया हुआ डेटा दिखाता है कि भारत में इस संभावित हैकिंग के निशाने पर बड़े मीडिया संस्थानों के पत्रकार, मसलन हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक शिशिर गुप्ता समेत इंडिया टुडे, नेटवर्क 18, द हिंदू और इंडियन एक्सप्रेस के कई नाम शामिल हैं।
निशाने पर कौन!
लिस्ट में शामिल अधिकतर पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी के हैं और बड़े संस्थानों से जुड़े हुए हैं। मसलन, लीक डेटा दिखाता है कि भारत में पेगासस के 'क्लाइंट' की नजर हिंदुस्तान टाइम्स समूह के कार्यकारी संपादक शिशिर गुप्ता, संपादकीय पेज के संपादक और पूर्व ब्यूरो चीफ प्रशांत झा, रक्षा संवाददाता राहुल सिंह, कांग्रेस कवर करने वाले पूर्व राजनीतिक संवाददाता औरंगजेब नक्शबंदी और इसी समूह के अख़बार मिंट के एक रिपोर्टर पर थी।
अन्य प्रमुख मीडिया घरानों में भी कम से कम एक पत्रकार तो ऐसा था, जिसका फोन नंबर लीक हुए रिकॉर्ड में दिखाई देता है। इनमें इंडियन एक्सप्रेस की ऋतिका चोपड़ा (बीट: शिक्षा और चुनाव आयोग), इंडिया टुडे के संदीप उन्नीथन (बीट: रक्षा और सेना), टीवी 18 के मनोज गुप्ता (इन्वेस्टिगेशन और सुरक्षा मामलों के संपादक), द हिंदू की विजेता सिंह (बीट: गृह मंत्रालय) शामिल हैं। इन सभी के फोन में पेगासस डालने की कोशिशों के प्रमाण मिले हैं। न्यूज वेबसाइट 'द वायर' में जिन्हें निशाना बनाया गया, उनमें संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और एमके वेणु शामिल हैं। इनके फोन की फॉरेंसिक जांच में पेगासस के होने के सबूत मिले हैं। 'द वायर' की देवीरूपा मित्रा और रोहिणी सिंह को भी निशाना बनाया गया है।
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'द वायर' के लिए नियमित तौर पर राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा का नंबर भी रिकॉर्ड्स में मिला है। इसी तरह स्वतंत्र पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी को भी तब निशाना बनाया गया था, जब वे वायर के लिए लिख रही थीं। सूची में द पायनियर के इनवेस्टिगेटिव रिपोर्टर जे. गोपीकृष्णन का भी नाम है, जिन्होंने 2जी टेलीकॉम घोटाला का खुलासा किया था। ऐसे लोगों में पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा रिपोर्टर सैकत दत्ता, ईपीडब्ल्यू के पूर्व संपादक परंजॉय गुहा ठाकुरता, जो अब नियमित तौर पर न्यूज़क्लिक वेबसाइट के लिए लिखते हैं, टीवी 18 की पूर्व एंकर और द ट्रिब्यून की डिप्लोमैटिक रिपोर्टर स्मिता शर्मा, आउटलुक के पूर्व पत्रकार एसएनएम अब्दी और पूर्व डीएनए रिपोर्टर इफ्तिखार गिलानी का नाम शामिल है।
कब बने निशाना
दावा किया गया है कि रोहिणी सिंह पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह के कारोबार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी कारोबारी निखिल मर्चेंट को लेकर रिपोर्ट्स लिखने के बाद नजर रखी गई थी। इतना ही नहीं यह भी कहा गया है कि केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के बिजनेसमैन अजय पिरामल के साथ हुए सौदों की पड़ताल के दौरान भी रोहिणी निशाने पर रही।
इंडियन एक्सप्रेस में डिप्टी एडिटर पत्रकार सुशांत सिंह को जुलाई 2018 में तब निशाना बनाया गया, जब वे अन्य रिपोर्ट्स के साथ फ्रांस के साथ हुई विवादित रफ़ाल सौदे को लेकर पड़ताल कर रहे थे। झारखंड के रामगढ़ के रूपेश कुमार सिंह से जुड़े तीन फोन नंबर भी लीक हुए डेटा में मिले हैं। रूपेश ने वायर को दिये अपने बयान में कहा- ‘मुझे हमेशा से लगता था कि मुझ पर नजर रखी जा रही है, खासकर 2017 में झारखंड पुलिस द्वारा एक निर्दोष आदिवासी की हत्या को लेकर की गई रिपोर्ट के बाद से।’
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कंपनी और सरकार, दोनों ने किया इनकार
पेगासस नाम के जिस स्पाई वेयर से फ़ोन हैक करने की बात सामने आ रही है उसे तैयार करने वाली कंपनी एनएसओ ने तमाम आरोपों से इनकार किया है। कंपनी का दावा है कि वो इस प्रोग्राम को केवल मान्यता प्राप्त सरकारी एजेंसियों को बेचती है और इसका उद्देश्य 'आतंकवाद और अपराध के खिलाफ लड़ना' है। लीक सूची में शामिल पत्रकारों और नेताओं के नंबर के बाद इस दावे की बखिया उधड़ जाती है और इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के महत्वपूर्ण हस्तियों को 'राजनीतिक नफे-नुकसान' के लिये निशाना बनाया गया है। एक आशंका यह भी जताई जा रही है कि भारत समेत दुनियाभर की कई सरकारें भयावहता की हद तक सर्विलांस के तरीकों का इस्तेमाल इस तरह से कर रही हैं, जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। बता दें कि भारत में किसी व्यक्ति- निजी या सरकारी, द्वारा हैकिंग करके किसी सर्विलांस स्पायवेयर का इस्तेमाल करना आईटी एक्ट के तहत एक अपराध है।
न्यूज एजेंसी एएनआई ने इस खबर के तुरंत बाद भारत सरकार की ओर से प्रतिक्रिया का दावा करते हुये दो पेज जारी किये हैं, जिसमें जासूसी करने के आरोपों का खंडन किया गया है। हालांकि, इस प्रतिक्रिया को किसकी ओर से जारी किया गया है, यह भी साफ नहीं हो सका है।
क्या है पेगासस
2010 में स्थापित एनएसओ ग्रुप ने पेगासस स्पायवेयर डेवलप किया है। पेगासस इजराइल के तेल अवीव स्थित फर्म का नामी प्रोडक्ट है। पेगासस इसके ऑपरेटर को यूजर की इजाजत के बिना उसके मोबाइल पर अनाधिकृत पहुंच देता है। पेगासस एक ऐसा स्पायवेयर है, जो इसे संचालित करने वालों को दूर से ही किसी स्मार्टफोन को हैक करने के साथ ही उसके माइक्रोफोन और कैमरा सहित, इसके कंटेंट और इस्तेमाल तक पहुंच देता है। साइबर सुरक्षा कंपनी कैस्परस्काई की एक रिपोर्ट के अनुसार, पेगासस आपको एन्क्रिप्टेड ऑडियो सुनने और एन्क्रिप्टेड संदेशों को पढ़ने लायक बना देता है। एन्क्रिप्टेड ऐसे संदेश होते हैं, जिसकी जानकारी सिर्फ मेसेज भेजने और रिसीव करने वाले को ही होती है। दावा किया जाता है कि जिस कंपनी के प्लेटफ़ॉर्म पर मेसेज भेजा जा रहा, वो भी उसे देख या सुन नहीं सकती।
I hope they don’t buckle under the pressure of ModiShah duo. I was the first person in Parliament who raised the issue of Pegasus being used by ModiShah to spy on important people in Govt including Judiciary. All the Bhima Koregaon accused are victims of Pegasus. https://t.co/TGnKYWRSzq
— digvijaya singh (@digvijaya_28) July 18, 2021
बहरहाल, भारत सरकार ने अब तक स्पष्ट रूप से पेगासस के आधिकारिक तौर पर इस्तेमाल से इनकार नहीं किया है, पर उन आरोपों को जरूर खारिज किया गया है जिसमें भारत में कुछ लोगों की अवैध निगरानी के लिए पेगासस के इस्तेमाल की बात सामने आ रही है। वायर की रिपोर्ट के मुताबिक शनिवार को पेगासस प्रोजेक्ट के सदस्यों द्वारा इस बारे में भेजे गए सवालों के जवाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसी बात को दोहराया है। पेगासस लीक के बाद सोशल मीडिया पर भारत सरकार की खूब लानत-मलामत हो रही है। इससे पहले संसद में भी पेगासस के जरिये जासूसी का मामला उठ चुका है, लेकिन तब सरकार ने इससे इनकार किया था। अगर यह साबित हो जाता है कि इस स्पायवेयर का इस्तेमाल कर राजनीतिक विरोधियों और आलोचकों की जासूसी के लिये किया गया, तब यह भारतीय राजनीति पर बहुत बड़ा धब्बा साबित होने वाला है।
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