बंगाल या फिर केरल के गांवों में आप घूमेंगे तो आपको वहां पब्लिक लायब्रेरी आसानी से दिख जाएंगी। बंगाल ने उस धरोहर को पीढ़ी दर पीढ़ी न केवल आगे बढ़ाया है, बल्कि निखारा भी है। पब्लिक लायब्रेरी का अब यह प्रयोग उत्तराखंड में भी हो रहा है। सुदूर गांवों में लोग खुद की पहल से लायब्रेरी स्थापित कर रहे हैं। इस कड़ी में पौड़ी के एक ग्राम प्रधान ने दो कदम आगे बढ़कर अपने साथियों की मदद से गांव की इकॉनमी को डेवलप करने के उद्देश्य से परफॉर्मिंग आर्ट से गांव को जोड़ने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
एक नवंबर को पौड़ी जिले के केबर्स गांव में ग्राम प्रधान कैलाश सिंह रावत ने अपने साथियों की मदद से एक लायब्रेरी की स्थापना की हैं खास बात यह है कि इस लायब्रेरी में हैंडपिक्ड वल्र्ड लिटरेचर के साथ ही हिंदी में उपलब्ध मशहूर कृतियों का संकलन बनाया गया है। बाल साहित्य को खास तौर पर लायब्रेरी में तवज्जो दी गई है। लायब्रेरी के उद्घाटन के मौके पर बड़ी संख्या में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। यह अपने किस्म का पहला आयोजन था। 'प्रगतिशील पुस्तक केंद्र' और 'मुस्कान उत्तराखंड' ने गांव की लायब्रेरी तैयार करने के लिए अपनी टीम उपलब्ध करवाई।
('वीर चंद्र सिंह गढ़वाली लायब्रेरी' की स्थापना के अवसर पर बच्चों के साथ कैलाश रावत।)
इस दौरान पीढ़ी दर पीढ़ी 'रामलीला' का मंचन देखते आ रहे ग्रामीणों को पहली मर्तबा मशहूर रशियन कथाकार अन्तोन चेखव की कहानी पर आधारित नील सिमोन के नाट्य रूपांतरण के अडॉप्टेशन कॉमेडी म्यूजिकल प्ले 'ये क्या मजाक है!' का मंचन भी किया गया। 'संवाद आर्ट ग्रुप' की ओर से गांवों में परफॉर्मिंग आर्ट को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस नाटक को प्रस्तुत किया गया था।
परफॉर्मेंस को मिले लोगों के प्यार से शो के मुख्य किरदार अनूप गुंसाई भी खासे उत्साहित नजर आए। शो को लेकर उन्होंने कहा- 'ये एक प्रयोग था। प्ले को लेकर शहर की तैयार और वेल डेवलप्ड आॅडियंस के मुकाबले हमारे सामने रॉ आडियंस थी, जो पहली मर्तबा किसी नाटक की गवाह बन रही थी। ये शानदार क्षण था। हमें दिन के उजाले में ये प्ले करना था, जिसका सीधा सा मतलब था आधा जादू जो लाइट पैदा करती है, वो विकल्प हमारे पास था ही नहीं। बावजूद इसके जहां बतौर एक्टर हमें ऑडियंस का रिएक्शन चाहिए था, वहां वो खुलकर रिएक्ट कर रहे थे। खासकर बच्चे.. उनके नैसर्गिक भाव उत्साहित करने वाले थे।' अनूप गुंसाई इससे पहले भारत के कई शहरों में 'ये क्या मजाक है!' के 80 से भी ज्यादा शोज कर चुके हैं। अनूप मशहूर वेब सीरीज 'पाताललोक' समेत मेघना गुलजार की चर्चित फिल्म 'तलवार' और 'बेवकूफियां' में भी नजर आ चुके हैं।
('ये क्या मजाक है!' के एक सीन के दौरान बैंक मैनेजर की भूमिका में रंगकर्मी अनूप गुंसाई और अभिनेत्री काजल मेहरा।)
केबर्स में लायब्रेरी को 'वीर चंद्र सिंह गढ़वाली पुस्तकालय'नाम दिया गया है। लायब्रेरी खेलने के फैसले को लेकर ग्राम प्रधान दो टूक कहते हैं- 'हम व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी के जरिए फैल रहे झूठ से परेशान हैं। गांव के लोग तथ्यों के साथ अपनी समझदारी विकसित कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि वो किताबों के करीब जाएं। आने वाला दौर इंटलेक्ट और डेटा का है। हम अपने इतिहास से वर्तमान को जोड़कर टूरिज्म का एक सस्टेनबल मॉडल भी तैयार कर रहे हैं। इसके लिए हम लॉकडाउन के बाद खाली हुए नौजवानों के साथ मिलकर परफॉर्मिंग आर्ट को गांव से कनेक्ट कर रहे हैं, ताकि हम 'विलेज टूरिज्म' के जरिए अपनी लोकल इकॉनमी को मजबूत कर सकें।' वो कहते हैं जब प्रशासन बेरोजगारों की फौज को लेकर नहीं सोच रहा, तब हमें खुद ही आगे बढ़कर अपनी इस पीढ़ी को सपोर्ट करना होगा।
बहरहाल, गांव में हुए इस अनोखे आयोजन और किताबों की आवक से लोग उत्साहित नजर आ रहे हैं। गांव वालों के इस कदम की न केवल तारीफ हो रही है, बल्कि आस-पास के गांवों में चर्चा भी शुरू हो गई है।
पर्यावरण और खेती किसानी की किताबों पर जोर
'प्रगतिशील पुस्तक केंद्र' की टीम से गांव पहुंचे कुलदीप ने बतााया कि लायब्रेरी के लिए किताबों के चयन के दौरान पर्यावरण और खेती-किसानी की किताबों के संकलन का भी ख्याल रखा गया हे, ताकि ग्रामीण अपने पारिस्थितिक तंत्र को भी समझ सकें। सस्टेनबल टूरिज्म की जब हम बात करते हैं, तब पर्यावरण की सुरक्षा पहली शर्त बन जाती है। उन्होंने कहा कि बचचों के लिए ज्ञान-विज्ञान समिति की पुस्तकों को शामिल किया गया है, जबकि अलग-अलग देशों का लोक साहित्य और उत्कृष्ट संकलन शामिल किया गया है।
क्या है प्लान
- गांव के खाली पड़े हुए घरों को रहने लायक बनाकर 'विलेज टूरिज्म' की दिशा में बढ़ना
- साइटसीइंग, बर्ड वॉचिंग और फॉरेस्ट वॉक के साथ ही परफॉर्मिंग आर्ट को आय के साधन के रूप में विकसित करना
- लंबे प्रवास के लिए लायब्रेरी समेत दुनिया के मशहूर नाटकों का मंचन समेत अन्य लोक कलाओं का प्रदर्शन
- पढ़ने-लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देना
- इकॉनमी का सस्टेनेबल मॉडल तैयार करना, जिससे गांव में ही रोजगार सृजित हो सके
('ये क्या मजाक है!' के एक सीन के दौरान मशहूर रंगकर्मी अनूप गुसांई और पारिजात।)
क्या है मौजूदा स्थिति
कोरोना के बाद बिगड़ी भारतीय अर्थव्यवस्था के चलते 18 से 25 साल तक के करीब 55 लड़के घर पर हैं। इनमें से कई लॉकडाउन से पहले शहरों में काम करते थे, लेकिन अब वो खाली हैं। परफॉर्मिंग आर्ट के जरिए यदि गांव में टूरिस्ट पहुंचते हैं, तो इनमें से आधे युवाओं का रोजगार स्थानीय स्तर पर सृजन किया जा सकता है।
बहरहाल, जिस तरह से कैलाश रावत ने अपने गांव की इकॉनमी दुरुस्त करने के साथ ही शिक्षित और सही सूचना से लोगों को जागरुक करने का जो काम किया है, लोग उसकी सराहना कर रहे हैं।
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