पांच राज्यों के चुनाव नतीजे आने से पहले केरल से होकर पूरे भारत में पहुंची दो तस्वीरों ने लोगों का ध्यान बड़े पैमाने पर अपनी ओर खींचा। ये दो तस्वीरें कोरोना महामारी की रोकथाम के लिये और कोरोना की दूसरी लहर में लोगों को मदद पहुंचाने के लिये केरल में जिला स्तर पर बने वॉर रूम की थी। इन दो तस्वीरों में दिख रहा था कि कैसे केरल सरकार ने जिला स्तर पर वॉर रूम गठित कर बेड, ऑक्सीजन और अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की लाइव मॉनीटरिंग शुरू कर दी है। ये उस राज्य से समाने आई तस्वीरें हैं जहां उत्तर प्रदेश के बड़बोले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जाकर यह नसीहत दे रहे थे कि कोरोना की रोकथाम कैसे की जाए, यह केरल को यूपी से सीखना चाहिये! जाहिर है उत्तर प्रदेश की मौजूदा हालत देखकर मुख्यमंत्री का ये बयान, उनका उपहास उड़ाने के ही ज्यादा काम आ रहा है, क्योंकि उनकी पार्टी को केरल की जनता ने घर बिठा दिया है।
इन वॉर रूम के जरिये न केवल राज्य सरकार केरल में नागरिकों की मदद कर रही है, बल्कि सटीक जानकारियां भी मरीजों को मिल पा रही हैं। इससे राज्य में बाकी राज्यों की तरह अफरा-तफरी के हालात नहीं है। कुछ ऐसे ही केरल कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। केरल में पिनराई विजयन के नेतृत्व में सीपीएम की अगुवाई वाले वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चे (एलडीएफ़) की जीत का अंदेशा बहुत पहले से था, लेकिन ये जीत इतनी धमाकेदार होगी इतने आगे का अंदेशा लगाने में नेशनल मीडिया तक चूक गई। पिनराई के नेतृत्व में राज्य में सरकार लगातार दूसरी दफा चुन ली गई और ये अपने आप में इमतहास बन गया। 40 साल बाद केरल में ऐसा करिश्मा हुआ है। इससे पहले राज्य में जनता पांच-पांच साल में सरकारें बदलती आई थी।
इस असामान्य जीत ने पिनराई की कल्ट इमेज को मजबूती से खड़ा किया है और उनकी तुलना असाधारण रूप से शक्तिशाली राजनेताओं से की जा रही है। पिनराई विजयन के आलोचक ही नहीं, उनके ज़बरदस्त प्रशंसक भी उन्हें, 'केरल का स्टालिन' कहते हैं। विजयन की तुलना पूर्व सोवियत संघ के बेहद ताक़तवर नेता जोसेफ़ स्टालिन से होना, दिखाता है कि उनकी अपने वोटरों में कितनी गहरी पैठ है। पिनराई सरकार की लोकप्रियता के पीछे सरकार के जमीनी स्तर पर किये गये काम हैं। पिनाराई के नेतृत्व में केरल ने न केवल बाढ़ से अपने नागरिकों को बाहर निकाला, बल्कि कोरोना में भी राज्य की स्वास्थ्य मंत्री टीचर शैलजा के करिश्माई कार्यशैली के चलते अफरा-तफरी के हालात पर काबू पाया है। इसके उलट बीजेपी का न केवल केरल में वोट शेयर 15 फीसदी से खिसककर 11 फीसदी ही रह गया है, बल्कि पार्टी के सबसे बड़े चेहरे 'मेट्रोमैन' ईश्रीधरन को भी बुरी तरह से राज्य की जनता ने नकार दिया है।
केरल में एक दौर में जब विपक्षियों के पास पिनराई के खिलाफ आरोप लगाने के लिये कुछ नहीं रह गया था, तब विरोधियों ने यह कहकर विजयन को बदनाम करने की कोशिश की थी कि वो एक ताड़ी निकालने वाले के बेटे हैं! ये बेहद हास्यास्पद बात थी कि एक सीएम के खिलाफ विरोधियों को इतने नीचे गिरना पड़ रहा था। पिनराई विजयन केरल में जिस एल्वा समुदाय से आते हैं, वो ताड़ी निकालने का काम करता है। ऐसे में क समुदाय के काम को निशाना बनाना विरोधियों के दिवालियेपन को ही ज्यादा उजागर कर रहा था।
ऐसे ही एक अन्य मामले में विरोधियो ने हवा उड़ा दी कि पिनराई अपनी पत्नी के नाम पर सिंगापुर में एक कंपनी चला रहे हैं। असल में सिंगापुर में कमला इंटरप्राइजेज नाम से एक कंपनी रजिस्टर्ड थी। पिनराई की पत्नी का नाम भी कमला है। ऐसे में विरोधियो ने इस कंपनी का मालिकाना हक पिनराई विजयन से जोउ़ना शुरू कर दिया। बाद में इस झूठे मामले में भी विरोधियों को मुंह की खानी पड़ी। कई मौकों पर पिनराई ने अपने विरोधियों का मखौल उड़ाते हुये मीडियाकर्मियों से ही पूछ लिया कि 'पता तो कमला इंटरप्राइज ठीक से चल रही है या नहीं!' जाहिर है पिनराई अपने विरोधियों को जवाब दे रहे थे।
पिनराई विजयन के प्रशंसक हों या आलोचक, दोनों ही ये बात बताने में नहीं हिचकते कि उन्होंने केरल की जनता की भलाई के लिए कई कल्याणकारी उपाय किए हैं। पिनराई ने अपने नागरिकों को पेंशन और मुफ़्त राशन दिया है। केरल में पिनराई विजयन को पहली दफा फेरी का किराया बढ़ाने के ख़िलाफ छात्रों की एक हड़ताल आयोजित करने के बाद पहचान मिली थी। तब विजयन केरल स्टूडेंट फेडरेशन के सदस्य हुआ करते थे, जो कम्युनिस्ट पार्टी के विघटन के बाद स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में तब्दील हो गई थी। अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल करने के बाद पिनराई विजयन हथकरघा मजदूर का काम करने लगे और यहां उन्होंने अपनी जिंदगी के सबसे अहम पाठ पढ़े।
युवावस्था में ही पिनराई विजयन और सीपीएम के कई अन्य कार्यकर्ताओं पर केरल में एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य के राजनीतिक कत्ल का आरोप लगा और उन्हें भी बाकी लोगों के साथ हत्या में अभियुक्त बनाया गया। हालांकि, इस मामले के इकलौते गवाह ने साल 1969 में अपना बयान बदल दिया और विजयन को अदालत ने बरी कर दिया। ये विजयन की दूसरी जीत थी। 1975 में जब इमरजेंसी लगी, तो विजयन को कैद कर लिया गया था। इस दौरान विजयन को कई यातनाएं झेलनी पड़ी और जब विजयन पहली दफा चुनकर केरल विधानसभा पहुंचे तो उनकी मुलाकात यातना देने वाले उसी पुलिसकर्मी से हुई। जानते हैं उस मुलाकात में क्या हुआ? विजयन मुस्कुरा कर आगे बढ़ गये थे, जो उस पुलिस अधिकारी के लिये सुकून की बात थी। ये घटना विजयन के व्यक्तित्व पर लगने वाले उन आरोपों को खारिज करने के लिये काफी है, जिसमें लोग उन्हें 'मुंडू पहनने वाला मोदी' यानी कि धोती पहनने वाला मोदी कहकर तानाशाह बताते हैं।
विजयन ने अपनी पार्टी के लिए फंड जुटाने के लिए बेहद कुशलता से बाजार में कदम रखे। कैराली टीवी चैनल इसका बेहतरीन उदाहरण है। इसे केवल एक साल में परिकल्पना से हकीकत में तब्दील कर दिया गया था और इसके लिए खाड़ी देशों में रहने वाले मलयाली लोगों की मदद ली गई थी। विजयन ने उस वक्त क्राउड फंडिंग के जरिये फंड्स जुटाये, जब भारत के उद्योग जगत में इस ओर कोई सोच भी नहीं रहा था। चीन की समाजवादी बाजारवादी अर्थव्यवस्था की तरह ही विजयन ने भी अपनी 'हिंदू पार्टी' की छवि को बदलकर एक समाजवादी बाजारवादी पार्टी की बना दी।
2016 के विधानसभा चुनाव के बाद सीपीएम के केंद्रीय नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद के लिए विजयन को तरजीह दी थी और इस वक्त पार्टी के दूसरे सीनियर लीडर अच्युतानंदन को किनारे बिठा दिया गया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद विजयन ने खुद को एक कुशल प्रशासक के तौर पर स्थापित कर लिया। जिन लोगों को शुरुआत में ऐसा लगता था कि वो, मुख्यमंत्री के बजाय पार्टी के सचिव जैसा बर्ताव कर रहे हैं, उन लोगों ने भी विजयन के बारे में अपनी राय बहुत जल्द बदल ली। पिनराई तानाशाह हैं या जननेता इस सवाल का जवाब पिनराई के ही पूर्व संगठन एसएफआई का एक वरिष्ठ कार्यकर्ता देतते हुये कहता है- 'हर किसी का काम करने का अपना अंदाज होता है और जिस ढंग से पिनराई ने पार्टी को केरल में न केवल संभाला है, बल्कि आगे बढ़ाया है... उसके आगे सारे आरोप गौण हो जाते हैं।'
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पिनराई विजयन को भी अपनी जीत का अंदेशा पहले से था, शायद इसीलिये उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को पहले ही जीत के जश्न या रैलियां आयोजित न करने के लिये कह दिया था। पार्टी इस वक्त कोरोना से जूझ रहे केरल के लोगों की मदद में जुटी हुई है और पिनराई जीत के शोर से दूर चुपचाप लगातार एक बड़े प्रभावशाली नेता की तरह अपनी टीम की अगुवाई कर रहे हैं। बहरहाल योगी आदित्यनाथ को जरूर अब अपनी एक टीम केरल भेजकर, वहां से उन्हें जमीनी स्तर पर काम करने की सीख लेने के लिये पहली फुर्सत में रवाना कर देना चाहिए।
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