भारत जैसे बड़े देश में नदियों की स्थिति और पारिस्थितिक तंत्र जहां भयावह स्तर तक बदहाल है, वहीं यह विषय कभी भारतीय नेताओं के विमर्श और कार्ययोजना में नजर नहीं आता है। गंगा की स्वच्छता के नाम पर जरूर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'नमामि गंगे' नाम से एक महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत की थी, लेकिन यह शुरुआत अपने अंजाम तक पहुंचने के बजाय सिर्फ राजनीतिक परिकल्पना तक ही सिमट कर रह गई। गंगा अब भी प्रदूषण के खतरनाक स्तर के पार बह रही है। ऐसा ही हाल देश की कई अन्य नदियों का भी है, जिनमें सीधे कारखानों से निकलने वाले कचरे के साथ ही आम नागरिकों के द्वारा बहाया गया हानिकारक कूड़ा नदियों की इकोलॉजी को तबाह कर रहा है। नदियों को लेकर अब केरल हाईकोर्ट ने चिंता जाहिर की है। केरल हाईकोर्ट का कहना है कि नदियों और अन्य जलस्रोतों का संरक्षण राज्य के साथ-साथ संबंधित स्थानीय निकायों का भी मौलिक कर्तव्य है। कोर्ट की ये टिप्पणी अपने-आप में बेहद शानदार पहल है, बशर्ते यह महज टिप्पणी बनकर ही न रह जाए और जमीनी स्तर पर इस दिशा में ठोस ढंग से काम हो सके।
केरल हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी राज्य सरकार और कोट्टायम की तीन नगरपालिकाओं को मीनाचिल नदी के पानी की शुद्धता को बनाए रखने और नदी के किनारे से अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देते हुए की है। चीफ जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी. चेली की पीठ ने कहा- ‘नदियों और अन्य जल स्रोतों का संरक्षण राज्य के साथ-साथ संबंधित स्थानीय निकायों का मौलिक दायित्व है।’
पीठ ने राज्य और स्थानीय निकायों को तीन महीने में एक बार निरीक्षण करने और कोट्टायम के जिलाधिकारी को रिपोर्ट सौंपने का निर्देश भी दिया। इन निर्देशों के साथ पीठ ने कुछ लोगों के संगठन द्वारा दायर याचिका का निपटान किया, जिनकी नदियों के संरक्षण और आसपास के जमींदारों द्वारा अतिक्रमण को रोकने में रुचि है। याचिकाकर्ताओं के मुताबिक, उन्होंने शुरुआत में जिलाधिकारी और सर्वेक्षण उपनिदेशक से सर्वेक्षण और मीनाचिल नदी की सीमाओं को फिर से निर्धारित करने और अगर किसी तरह का अतिक्रमण है तो उसे हटाने का आग्रह किया था। हालांकि, सर्वेक्षण उपनिदेशक ने याचिकाकर्ता संगठन को तालुक कार्यालयों से संपर्क करने और अपनी जेब से खर्च का भुगतान करके सर्वेक्षण पूरा करने का निर्देश दिया था।
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इस निर्देश को अवैध बताते हुए याचिकाकर्ता संगठन ने कहा कि सर्वेक्षण करना और नदियों की सीमाएं निर्धारित करना औऱ इसे हर तरह के अतिक्रमण से बचाना राज्य और स्थानीय अधिकारियों का कर्तव्य है। हालांकि, इस दौरान नगर निकायों ने अपने बचाव में पीठ से कहा था कि याचिका में उठाई गई समस्याओं के समाधान के लिए कदम उठाए गए हैं।
(उत्तर भारत में गंगा नदी का हाल)
नदियों की हालत हो गई है खराब
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में अगस्त 2018 को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एक रिपोर्ट दी, जिसमें कहा गया कि गंगा नदी की 70 निरीक्षण केंद्रों पर जांच की गई तो उसमें से केवल 5 केंद्रों पर गंगा का पानी पीने लायक स्थिति में था, जबकि केवल सात निरीक्षण केंद्र ऐसे थे, जहां का पानी नहाने के लिए उपयुक्त है। गंगा से सटे पांच राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक मई 2018 में गंगा बेसिन शहरों में मल कॉलिफॉर्म का स्तर 2,40000 प्रति 100 मिलीलीटर था, जबकि तय मानकों के मुताबिक 2,500 प्रति 100 मिलीलीटर होना चाहिए था।
गंगा और यमुना ही तबाह, बाकी नदियां भी बेहाल
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खुद माना है कि देश की तकरीबन 521 में से 323 नदियों की हालत इतनी बुरी है कि पेयजल तो छोड़िये इसके पानी में नहाया भी नहीं जा सकता। इन नदियों में ऑक्सीजन की मात्रा लगातार घटती जा रही है और बीओडी 3 मिग्रा प्रति लीटर से भी कहीं ज्यादा है। मानक के अनुसार पीने के पानी में अधिकतम बीओडी दो या उससे कम होनी चाहिए और नहाने के पानी में यह तीन से किसी भी कीमत पर अधिक नहीं होनी चाहिए, लेकिन यहां मानक काफी पहले ही ध्वस्त हो चुके हैं। सबसे अधिक प्रदूषित 33 नदियों में देश की सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा और यमुना भी शामिल हैं। अकेले महाराष्ट्र की तकरीबन 45 से अधिक नदियां बुरी तरह प्रदूषित हैं।
गंगा और यमुना के अलावा उत्तर प्रदेश की वरुणा, घाघरा, काली और हिंडन, गुजरात की अमलाखेड़ी, खारी, हरियाणा की मारकंडा, मध्य प्रदेश की खान, बेतवा, आंध्र की मुंसी, महाराष्ट्र की भीमा सर्वाधिक प्रदूषित नदियों की सूची में शीर्ष पर हैं। गोमती और पांडु जैसी नदियां तो असंख्य हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश की 198 नदियां स्वच्छ पायी गयी हैं। ये सभी दक्षिण-पूर्व भारत की हैं। बोर्ड का मानना है कि नदियों के किनारे बसे अधिकांश शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट न होने के चलते नदियों में प्रदूषण बढ़ रहा है। नदियों में प्रदूषण का अहम कारण सीवेज है।
बहरहाल, केरल हाईकोर्ट की इस टिप्पणी से उम्मीद तो जगती है, लेकिन अभी भारत में नदियों के साफ होने का सफर मीलों लंबा है। सैकडों टन कचरा लेकर रोज बह रही इन नदियों ने समुद्री जीवन के लिये भी संकट पैदा किया है और इंसानों के लिये भी नई बीमारियां पैदा की हैं।
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