आपने उस गीदड़ की कहानी सुनी है, जो शेर की खाल ओढ़कर रौब जमाने की फिराक में मध्य एशिया के किसी अतिधार्मिक रूढ़ियों से भरे एक पहाड़ी गांव में पहुंचा। एकबारगी तो सभी घबरा गये, लेकिन जैसे ही गीदड़ ने दहाड़ने की कोशिश की लोग उसकी असलियत भांप गये। लोगों ने गीदड़ को दौड़ा दिया। रौब के चक्कर में गीदड़ का नाटक उसी पर भारी पड़ गया.. अब गीदड़ आगे-आगे और जनता पीछ़े-पीछे। यह कहानी आज मुझे बाबा रामदेव को लेकर आ रही एक खबर के साथ अनायस ही याद हो आई।
असल में कुछ रोज पहले एक वीड़ियो वायरल हुआ था, जिसमें रामदेव एलोपैथी का मजाक उड़ाते हुये नजर आ रहे थे। जिस वक्त भारत में लोग सरकार जनित अव्यवस्थाओं, आॅक्सीजन और इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे थे, रामदेव ने डॉक्टरों का मजाक उड़ाते हुये महामारी से मरने की वजह एलौपैथी को बता दिया था। इस बयान के बाद लोगों का गुस्सा सरकाकर से तो हट गया, लेकिन रामदेव के खिलाफ लोगों ने मोर्चा खोल दिया। खासकर देशभर की डॉक्टर बिरादरी ने इस अपमान के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया।
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खूब बवाल हुआ और आईएमए समेत देशभर के कई लोगों ने डॉक्टरों का समर्थन करते हुये रामदेव की गिरफ्तारी की मांग कर दी। जगही-जगह, शहर दर शहर रामदेव के एक के बाद एक आये वीडियोज को लेकर डॉक्टरों का गुस्सा बढ़ता रहा और उन पर मुकदमे दायर होने लगे। बाकायदा कई घंटों तक सोशल मीडिया पर रामदेव की गिरफ्तारी की मांग को लेकर ट्रेंड भी चला।
रामदेव ने अपनी गिरफ्तारी की मांग का मजाक उड़ाते हुये यह तक कह दिया कि 'अरेस्ट तो उनका बाप भी नहीं कर सकता स्वामी रामदेव को, लेकिन शोर मचा रहे हैं कि क्विक अरेस्ट रामदेव।'... लेकिन अब नई रिपोट्र्स के मुताबिक रामदेव ने बुधवार को सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए एलोपैथी पर अपनी कथित टिप्पणियों को लेकर विभिन्न राज्यों में उनके खिलाफ दर्ज मुकदमों में दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने की गुहार लगाई है। साथ ही उन्होंने इस मामले में दर्ज सभी एफआईआर को दिल्ली की एक अदालत में स्थानांतरित करने की मांग की है। रामदेव ने संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत रिट याचिका दायर कर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की विभिन्न इकाइयों द्वारा दर्ज एफआईआर में कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है।
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आईएमए की पटना और रायपुर इकाइयों ने रामदेव के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। आईएमए की छत्तीसगढ़ इकाई द्वारा दी गई शिकायत पर भी रामदेव के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए थे। वहां, रामदेव पर आईपीसी की धारा-188, 269, 504 सहित आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। आईएमए के अनुसार, पिछले एक साल से योग गुरु रामदेव एलोपैथी चिकित्सा बिरादरी, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), भारत सरकार और अन्य फ्रंट लाइन संगठनों द्वारा कोरोना संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल ही रही दवाओं के खिलाफ सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं का प्रचार कर रहे हैं। शिकायत में सोशल मीडिया पर रामदेव के कई वीडियो का भी हवाला दिया गया है।
बहरहाल, मामले में घिरता देख अब रामेदव को शायद कानून का खौफ भी सताने लगा है और बयानों के चलते जो फजीहत हुई सो अलग। अच्छा शुरुआत में जो मैंने आपको गीदड़ के मध्य एशिया के पहाड़ी गांव जाने की कहानी सुनाई थी न, वो ऐसे ही बुन ली थी। गीदड़ ने पता नहीं कहां ये कारनामा किस्सों में किया था, लेकिन कहानी एकदम बाबा के मौजूदा कारनामे से मेल खाती हुई है। बाबा की इस बोरिंग खबर में उस कहानी के सिवाय गरीब और लौकी दाल के इंतजार में बैठे भारतीयों के लिये और है भी क्या दिलचस्प? तब भला क्या फर्क पड़ता है गीदड़ ने ये कारनामा कहां किया था, पढ़ने में मजा न आया हो... तब बात अलग है। खैर, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या होगा, यह देखने वाली बात है।
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