मीडिया के पुराने पेशेवर बुड्ढों के बीच एक कहावत बड़ी मशहूर है। मैं तब से इसे सुनता हुआ आ रहा हूं, जब मैंने पेशेवर तौर पर मीडिया में कदम रखा। ये कहावत है- 'पत्रकार दुनिया का दुख:डा सामने रख सकता है, खुद का नहीं!' असल में कुछ समय पहले तक ऐसा ही था, लेकिन बदलते मीडिया ने अब इस कहावत को भी पलटकर रख दिया। खैर, मसला इस दफा रिपब्लिक नेटवर्क से जुड़ा हुआ है, जहां संस्थान अपने कर्मियों को एक नए अनुबंध पर साइन करने का दबाव बना रहा है। इस नये अनुबंध की शर्तें इतनी भयानक हैं कि ये बंधुआ मजदूरी का अहसास करवाती हैं। नये अनुबंध के मुताबिक ऐसी कई शर्तें कर्मियों पर थोप दी गई हैं, जो शोषण के खतरनाक स्तर को प्रदर्शित करती हैं।
रिपब्लिक भारत की लॉन्चिंग के दौरान से जुड़े एक कर्मचारी ने नए अनुबंध के चलते नौकरी छोड़ दी है। वो कहते हैं- ‘मेरे पास दो ऑप्शन थे या तो अनुबंध पर हस्ताक्षर कर बंधुआ मज़दूर बन जाऊं या फिर नौकरी छोड़कर नया ठिकाना तलाश करूं। मैंने नौकरी छोड़ने का फैसला किया। नए अनुबंध में जो शर्तें हैं उस पर हस्ताक्षर करना कुल्हाड़ी पर पांव रखने जैसा है!’
हमने जब उनसे जानना चाहा कि आखिर नये अनुबंध में ऐसा क्या है, जिससे कर्मी पशोपेश की स्थिति में आ गये हैं? इस पर उन्होंने कहा- 'अनुबंध में अजीब शर्ते हैं, जो पेशेवर तौर पर स्वीकार नहीं की जा सकती। नए अनुबंध के मुताबिक कई कर्मियों को छह महीने का नोटिस पीरियड सर्व करना होगा, जबकि पहले नोटिस पीरियड 45 दिनों का हुआ करता था। इसके अलावा एक शर्त यह भी है कि रिपब्लिक छोड़ने के बाद किसी भी कर्मी का जिस दिन नोटिस पीरियड खत्म होगा, उसके अगले दिन से एक साल तक वह कर्मी किसी भी ऐसे चैनल, डिजिटल या ऐसे संस्थान में काम नहीं कर सकता, जिसकी रिपब्लिक से सीधी स्पर्धा हो। तीसरी शर्त सबसे हैरान करने वाली थी। अगर किसी खबर के कारण आप पर एफआईआर दर्ज होती है तो क़ानूनी खर्च आपको खुद उठाना होगा।' साफ है कि अर्णब गोस्वामी का रिपब्लिक नेटवर्क अपने एजेंडे के लिये पत्रकारों का गला घोंटने पर उतारू है।
न्यूजलॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के मुताबिक मैनेजमेंट नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करवाने के लिये बेचैन है। यहां तक कि कोरोना के कारण घर से काम कर रहे कर्मचारियों के पास कुरियर के जरिए नए अनुबंध की कॉपी भेजी गई और हाथ के हाथ हस्ताक्षर कर उसे वापस करने को कहा गया। नए अनुबंध में अजीब-अजीब शर्ते हैं, जिसके कारण कई लोग हस्ताक्षर करने से हिचक रहे हैं। इतना ही नहीं जिन लोगों ने नए अनुबंध पर दस्तखत नहीं किए उनकी मई महीने की सेलेरी रोक दी गई है।
न्यूजलॉन्ड्री के मुताबिक अब तक करीब दस से ज़्यादा कर्मचारी नए अनुबंध को गलत मानकर नौकरी छोड़ चुके हैं। इसमें चार एंकर, कुछ रिपोर्टर और कुछ पीसीआर के तकनीशियन हैं। रिपब्लिक के नए अनुबंध के कारण प्राइम टाइम (शाम छह बजे से रात 11 बजे तक) के कार्यक्रम बनाने वाले चार लोगों ने नौकरी छोड़ दी। छोड़ने वाले ज़्यादातर लोग चैनल की लॉन्चिंग टीम के सदस्य हैं।
रिपब्लिक मैनेजमेंट ने अनुबंध में साफ लिखा है- ‘कंपनी छोड़ने के 12 महीने बाद तक भारत या भारत के बाहर रिपब्लिक के प्रतिद्वंदी, चाहें वो डिजिटल में हों या ब्रॉडकास्ट, आप उसमें सलाहकार, फुल टाइम या पार्ट टाइम, निदेशक, ट्रस्टी, प्रबंधक या अन्य किसी तरह से नहीं जुड़ सकते हैं।’ यह बात ही कर्मियों को सबसे ज्यादा हैरान कर रही है। सामान्यत: मीडिया संस्थानों में 45 से 60 दिन का नोटिस पीरियड सर्व करना होता है, जबकि मैनेजमेंट के पदों पर यही नोटिस पीरियड 90 दिनों तक का रहता है, लेकिन 6 महीने का नोटिस पीरियड एक किस्म से पत्रकारों को कहीं और काम करने से रोकने जैसा है।
अनुबंध में काम के समय का भी जिक्र है। काम के घंटे को लेकर अनुबंध में लिखा गया है कि कंपनी द्वारा कर्मचारी को सौंपे गए कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के लिए पर्याप्त समय, ध्यान और ऊर्जा देनी होगी। साथ ही कर्मचारी इस बात पर सहमत हैं और स्वीकार करते हैं कि जरुरत पड़ने पर तय समय और दिन के बाद भी वे काम करने के लिए उपलब्ध रहेंगे! ऐसे में उन्हें किसी भी तरह का अतिरिक्त पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा। इतना ही नहीं शोषण के लिये खुला हाथ देते हुए नए अनुबंध में यह भी लिखा गया है कि काम के घंटे मैनेजर द्वारा तय किए जाएंगे, जो कि कर्मियों के हित पर सीधे कुठाराघात करने जैसा मामला है। इसके अलावा नए अनुबंध के मुताबिक कर्मचारी अपने सोशल मीडिया पर कुछ भी नहीं लिख सकते हैं।
कुल मिलाकर चिल्ला-चिल्लाकर झूठ को सच बताने वाली रिपोर्ट्स के दम पर टीआरपी बटोरने वाले रिपब्लिक नेटवर्क ने इस नए अनुबंध से सीधे अपने कर्मियों का गला घोंट दिया है। कई कर्मियों ने इस अनुबंध पर दस्तखत भी किये हैं, ऐसे में इन पत्रकारों से आप उम्मीद करेंगे कि वो भारत को सच दिखाने का जोखिम भी उठा सकेंगे, बेमानी बात होगी।
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