किसी भी मुल्क में सेलिब्रिटी होने के अपने जोखिम होते हैं। भारत में भी ऐसा ही है। जब तक सेलिब्रिटी पर्दे के पीछे है, उसके सिर्फ चाहने वाले नजर आते हैं, लेकिन ये पर्दा कभी गलती से हिल जाए तो तमाशा खड़ा कर देता है। खासकर क्रिकेटर और फिल्म स्टार्स दोनों ही भारत में 'भगवान' की तरह पूजे जाते हैं, लेकिन उन पर दाग लग जाए तो इस 'तमाशे' की फिर अपनी कीमत है। मीडिया के लिए सेलेब्स की कीमत इसी वक्त बढ़ती है और जब बात सचिन तेंदुलकर या फिर शाहरुख खान की हो, तब आप इन दोनों शख्सियतों से जुड़ी हुई खबरों की अहमियत को महसूस कर सकते हैं।
भारत का एक बड़ा दर्शक वर्ग जो सालों से इन दोनों शख्सियत से जुड़ा हुआ है, इनके बारे में आने वाली किसी भी खबर को लपक कर एक बड़ा बाजार भी तैयार कर देता है। पिछले कुछ घंटों से ये दोनों शख्सियत भारतभर में चर्चाओं का केंद्र बनी हुई हैं। हालांकि, मीडिया में सचिन तेंदुलकर के मुकाबले फजीहत शाहरुख खान की ही ज्यादा हो रही है। गोयाकि शाहरुख खान के बेटे का 'नशेड़ी' होना टीवी और अखबारों में तो कम से कम राष्टीय समस्या बन ही गई है, जबकि सचिन का मामला वित्तीय चोरी से जुड़ा हुआ है, जिसे भारतीयों ने चोरी मानना ही छोड़ दिया है।
शाहरुख खान का जिक्र उनके बेटे आर्यन के ड्रग्स के साथ गिरफ्तारी के चलते उछल रहा है। ये अपनेआप में दर्शकों को परोसने के लिए परफेक्ट 'सस्ता मसाला' है, जबकि सचिन तेंदुलकर से जुड़ी खबर के लिए पत्रकारों को मेहनत ज्यादा करनी होगी, साथ ही इस बड़े वित्तीय घपले के सिरों को जोड़कर अंजाम तक पहुंचाने में जोखिम की भी पर्याप्त गुंजाइश है।
इसमें अकेले सचिन तेंदुलकर का नाम ही सामने नहीं आया है बल्कि कई मशहूर कारोबारियों और फिल्म जगत की हस्तियों का नाम भी है। एक मसला यह भी है कि अधिकांश भारतीयों के लिए वित्तीय चोरी से ज्यादा मसालेदार खबर एक सुपरस्टार के बेटे के ड्रग्स की कहानी है, लिहाजा बिक भी वही रही है। इसी से विज्ञापन का बाजार भी तैयार होना है। टीवी चैनल इस वक्त जितनी टीआरपी बटोरेंगे, उतना विज्ञापन उनपर बरसेगा।
टीवी पत्रकार समीर वर्मा कहते हैं- ''आए दिन न जाने कितने भारतीय ड्रग्स का सेवन करते हुए गिरफ्तार होते हैं और तय काननूी प्रक्रिया का पालन कर बरी भी हो जाते हैं, लेकिन यहां मसला टीआरपी का है। मामला शाहरुख खान से जुड़ा है, इसलिए भी टीवी पर शोर ज्यादा है। इसके उलट हाल ही में अडानी के मुंद्रा पोर्ट पर पकड़ी गई 21000 करोड़ की ड्रग्स के मामले में मुख्यधारा की रिपोर्टिंग सतही थी। ये मीडिया की प्राथमिकता कैसे तय की जा रही है, इसे समझने के लिए अच्छा उदाहरण है। एक सुपरस्टार के खिलाफ मीडिया ट्रायल करना जितना आसान है, प्रधानमंत्री के ताकतवर दोस्त के खिलाफ इस तरह के मीडिया ट्रायल की गुंजाइश खत्म हो जाती है।''
खैर, शाहरुख के बेटे आर्यन का ड्रग्स के साथ एक क्रूज पर गिरफ्तार होना यकीनन अपराध की श्रेणी में ही आता है। ये आरोप सचिन तेंदुलकर पर लगे आरोपों के मुकाबले कहीं से भी कमतर नहीं हैं, लेकिन मीडिया कवरेज में जो सनसनी आर्यन खान की गिरफ्तारी से लेकर उसके कोर्ट में हाजिर होने और फिर जमानत रद्द होने तक बनाई गई वह सचिन तेंदुलकर के मामले में गायब नजर आती है। ऐसा लगता है जैसे अमीरों को अथाह सुरक्षा मुहैया करवाने वाले इस मुल्क में 'गॉड ऑफ क्रिकेट' की चोरी कोई मायने ही नहीं रखती है।
सचिन तेंदुलकर ही नहीं बल्कि पैंडोरा पेपर्स में कारोबारी अनिल अंबानी का नाम भी चौंकाता है। कुछ ही वक्त गुजरा है जब भारत के अखबार और टीवी चैनलों पर अनिल अंबानी ने अपनी कंपनियों को दिवालिया घोषित कर उधार लौटाने के बजाय बैंकों के सामने हाथ खड़े कर दिए थे, लेकिन यहां नजर आ रही उनकी अकूत संपत्ति यही बताती है कि टैक्स हैवेंस में पैसा छिपाने, ऑफशोर कंपनियां खोलने और कुल संपत्तियों का खुलासा न करने में ये कारोबारी भी शामिल है।
पैंडोरा पेपर्स ही नहीं, आर्यन ड्रग केस ने निगली 5 बड़ी खबरें
पैंडोरा पेपर्स ही नहीं बल्कि आर्यन ने पेट्रोल और डीजल में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के साथ ही लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री के बेटे के किसानों पर गाड़ी चढ़ाने जैसी पांच बड़ी महत्वपूर्ण खबरों को एक तरह से पॉपुलर मीडिया में निगल लिया है। टीवी और न्यूज वेबसाइट्स पर जितने पैकेज बॉलीवुड, शाहरुख खान और ड्रग्स केस के तैर रहे हैं, सचिन तेंदुलकर और अनिल अंबानी जैसी शख्सियत के टैक्स चोरी पर एक भी ठीक रिपोर्ट नजर नहीं आती है।
भारत के न्यूज चैनल्स में मुंबई में 107 रुपये लीटर पहुंच चुके पेट्रोल के दाम पर चर्चा के बजाय 25 ग्राम चरस की कहानी में ट्विस्ट और सस्पेंस ढूंढना एक बड़े मुल्क के भीतर पॉपुलर मीडिया के मानसिक दिवालियेपन और सहूलियत को बयां करता है। ऐसे ही उत्तरप्रदेश के लखीमपुर में हुई घटना के बाद किसानों से मिलने जा रही प्रियंका गांधी की गिरफ्तारी और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के किसानों को लेकर उकसावा देने वाले बयान को भी जगह नहीं मिल सकी।
इस वक्त जब देश की राजनीति में भाजपा सरकारों की चारों ओर आलोचना हो रही है, पॉपुलर मीडिया के खबरों का चयन साफ कर देता है कि ये पहले से तय है कि उन्हें क्या परोसना है। बॉलीवुड की खबरें वैसे भी न्यूज पोर्टल्स को हिट्स और टीवी को टीआरपी परोसने में अव्वल रहती हैं और यहां तो मामला 'बादशाह के बेटे' के चरस फूंकने का है। ये टीआरपी बटोरने का वक्त है, जिसके सीधे से मायने हैं और अधिक विज्ञापन!
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