गौरव नौड़ियाल ने लंबे समय तक कई नामी मीडिया हाउसेज के लिए काम किया है। खबरों की दुनिया में गोते लगाने के बाद फिलहाल गौरव फिल्में लिख रहे हैं। गौरव अखबार, रेडियो, टीवी और न्यूज वेबसाइट्स में काम करने का लंबा अनुभव रखते हैं।
हाल ही में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बीजेपी के पूर्व नेशनल जनरल सेक्रेटरी राम माधव और कांग्रेस नेता शशि थरूर एक डिबेट के दौरान आमने-सामने थे। ये एक कमाल की डिबेट थी, जिसके अंत तक भी राम माधव कशमशाते हुए ही नजर आए। बहस का विषय था 'आईडिया ऑफ न्यू इंडिया' ने पहला सवाल राम माधव से पूछते हुए कहा कि आपको क्यों लगता है कि आपकी पार्टी जो नया इंडिया बना रही है, वो देश को सही दिशा में ले जाएगा। इंटरनेशनल मीडिया में इस तरह की रिपोर्ट आ रही हैं कि इंडिया अधिनायकवाद की दिशा में बढ़ गया है, भारत बंटा हुआ है और सरकार अल्पसंख्यकों की सुरक्षा में नाकाम है। आप इस देश को आगे बढ़ाएंगे या गर्त में ले जाएंगे?
राम माधव ने कहा- 'न्यू इंडिया' का विचार हमारे लिए एक ऐसे भारत का निर्माण है जो मजबूत, यूनाइटेड संपन्न और सिक्योर है, जिसमें डिग्निटी हमारे लिए सर्वोच्च है। हर नागरिक की डिग्निटी की सुरक्षा और सम्मान न्यू इंडिया का विचार है। हां, कुछ दिक्कते हैं। विदेश से आलोचना करने वाले आलोचक भी यह तो मान ही रहे हैं कि भारत का पॉलिटिकल सिस्टम बहुत वायब्रेंट है। बहुत से दल हैं, जो स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं। इसके बाद राम माधव भारत की खूबियों का बखान करने लगे। मसलन इलेक्टोरल सिस्टम।
इसके बाद धीरे से राम माधव ने यह भी स्वीकार लिया कि 'हां, उन्हें कुछ मसलों पर दिक्कत है। उन्हें अल्प संख्यकों के अधिकार और सिविल राईट्स को लेकर परेशानी है। मुझे लगता है कि हमारी ओर से बहुत ज्यादा बड़बोलापन दिखाया गया है, कुछ खास धारणाओं को लेकर। ये केवल धारणाएं हैं और बतौर सरकार हमारे लिए यह पूरी तरह से ठीक नहीं है कि हम उन्हें सिरे से खारिज कर दें। मैंने ऐसी टेंडेंसी देखी है जो कहती है - 'तुम होते कौन हो हमें समन करने वाले। ये ठीक बात नहीं है। मैं इसे ठीक नहीं मानता।' ऐसा लग रहा था जैसे राम माधव अपनी ही सरकार पर निशाना साधने का ढोंग कर रहे हों, या हो सकता है कि संघ को भी भाजपा के दो महारथियों की जुगलबंदी रास ना आ रही हो! संघ को बीजेपी के कई फैसलों के चलते बड़े पैमाने पर फजीहत भी इधर खूब झेलनी पड़ रही है। हालिया समय में विपक्षी दलों के नेताओं, पत्रकार, एक्टिविस्ट और छात्रों पर बढ़े भाजपा के हमलों ने संघ और बीजेपी दोनों की फजीहत की है।
राम माधव की स्वीकारोक्ति कि 'कुछ लोगों की नकारने की टेंडेंसी' का इशारा मोदी-शाह की सत्ता की ओर था, ये मैं नहीं जानता, लेकिन यहीं से असल में शशि थरूर के सामने राम माधव ने घुटने टेकने शुरू कर दिए थे। हालांकि माधव ने फिर से अपनी बात संभालते हुए कहा- 'हमारे लिए ये बतौर पार्टी और सरकार महत्वपूर्ण है कि हम उन गलत धारणाओं को सुधारें न कि खारिज करते चले जाएं, क्योंकि धारणा गलत है। मैं इस बात पर यकीन नहीं करता हूं कि भारतीय न्याय व्यवस्था बायस्ड है। मुझे यकीन है इस बात पर तो शशि थरूर भी सहमत होंगे।' ...और इसी बात पर खेल हो गया। शशि थरूर को फुल बाउंसर मिला था, जिसपर उन्होंने छक्का जड़ा है, वो भी क्लासिक अंदाज में। एकदम टुक्क... और सिक्स!
राम माधव के बाद राहुल कंवर ने शशि थरूर का रुख किया और कहा कि बीजेपी उस बयान का खंडन कर रही है, जिसमें भारत के इलेक्टेड ऑटोक्रेसी बनने को लेकर आलोचना की गई है। राहुल ने अपनी ओर से भाजपा का बचाव करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। खैर वो इस डिबेट में उस कव्वे की भूमिका में ही ज्यादा नजर आए, जो मौके की तलाश में ताकता रहता है, लेकिन उसके हाथ कुछ नहीं लगता।
शशि थरूर ने इस डिबेट में राम माधव की बातों को यह कहकर हवा में उछाल दिया- 'राम ने कहा कि भारत के कई विचार हैं! हां सही बात है, इतने भारतीय हैं तो हर भारतीय का अपना विचार होगा ही, लेकिन भारत का जो मूल विचार है वो है भारत का संविधान। वो विचार क्या था! हमारे देश का स्वतंत्रता संग्राम मार्क्सवादी या पूंजिपति विचारधारा को लेकर नहीं बिखरा था न ही वो क्षेत्रीय पहचान के मुद्दे पर बिखरा था, बल्कि वो सिर्फ इस बात पर बिखर गया था कि क्य धर्म को देश का निर्धारण करने का अधिकार होना चाहिए। जिन्होंने धर्म के आधार पर देश की सत्ता को चलाने की वकालत की थी, उन्होंने जाकर पाकिस्तान बना लिया, लेकिन भारत के लोगों ने जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी थी इसे ठुकरा दिया।'
शशि यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने आगे कहा- 'हमने मिलकर आजादी की लड़ाई लड़ी और इस देश को सबके लिए बनाया गया। कुछ लोग कहते आए हैं कि जब पाकिस्तान मुस्लिम राष्ट हो सकता है तो भारत हिंदू राष्ट क्यों नहीं हो सकता! इस विचार को ही बोगस बताकर बहुत पहले ही हिन्दुस्तान ने कूड़ेदान में फेक दिया हैं। हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए लोगों ने आजादी की जंग नहीं लड़ी थी। हमारा संविधान हमें अपनी पसंद का धर्म चुनने का अधिकार देता है। इसलिए संविधान में सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया गया है।'
शशि थरूर ने इसके बाद मोहन भागवत के 'आईडिया ऑफ इंडिया' पर भी चुटकी लेते हुए कहा- 'मैं कहता आया हूं 'विविधता में ही एकता है'। मैं पहले भी यह कह चुका हूं कि भारत कोई पिघलने वाला बर्तन नहीं है बल्कि एक थाली है, जिसमें कई तरह के पकवान हैं, हर कटोरी में अलग-अलग पकवान हैं और उनके मिलने का भी खतरा नहीं, वो साथ में हैं। ये मेरी विविधता की परिभाषा है, लेकिन मोहन भागवत कहते हैं कि ''नहीं...नहीं। एकता में ही विविधता है।'' इसमें हमें सिर्फ भगवा खिचड़ी ही मिल सकती है न कि विविधता। इसे स्वीकार नहीं किया सकता। यही मूल सवाल आईडिया ऑफ इंडिया पर भी लागू होता है।'
इसके बाद शशि थरूर ने बांग्लादेश मुक्तियुद्ध में शहीद हुए भारतीयों का जिक्र करते हुए कहा- 'मैंने दीव में इंडियन नेवी की वॉर शिप पर देखा कि वहां सभी शहीदों के नाम हैं। ये वो लोग हैं जो भारत के हर क्षेत्र और धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जुइस, पारसी सब हैं। यही भारत है। ऐसा कैसे कह सकते हैं कि भारत के स्टेक सिर्फ एक खास धर्म के पास ही हैं। हिंदुत्व के नाम पर ये लोग दशकों से गलत ढंग से भारत की व्याख्या कर रहे हैं। जिन लोगों ने संविधान लिखा उन्होंने भारत के हर धर्म संप्रदाय के नागरिकों को एक समान अधिकार दिए।'
शशि थरूर ने राम माधव को संविधान सभा की बहसों के 3,000 पन्नों में आई किताब को पढ़ने का सुझााव भी इस दौरान दिया, जिसपर लगभग बच्चे की तरह उछलते हुए राम माधव ने कहा- 'मैंने ये किताब पढ़ी है।'! फिर राम माधव ने कहा- 'जब संविधान सभा की बहस चल रही थी, तब कुछ लोग चाहते थे कि ईश्वर का रेफरेंस हो और कुछ चाहते थे कि इसमें से सेक्युलर शब्द ना हो, लेकिन ये बातें ठुकरा दिए गए। नेहरू तक ने कहा था कि भारत विविधताओं का देश है। इसलिए हमें सभी संस्कृति, परंपराओं, रीति-रिवाजों और धर्मों का सम्मान करना चाहिए। हम इन सबसे दूर नहीं रह सकते इसलिए हमें संविधान में सेकुलर शब्द डालने की जरूरत नहीं है।' खैर... इसके बाद राम माधव ने शशि थरूर पर हमलावर होने की पूरी कोशिशें की लेकिन हर बार पटखनी ही मिलती रही। ऐसा लग रहा था मानो एक बड़ा खिलाड़ी छोटे खिलाड़ी को सिखा रहा हो कि- 'ज्यादा उछलो मत, अभी कच्चे हो!'
राम माधव ने कहा- 'सेकुलरिज्म की यह गलत बहस देश में 70 के दशक में शुरू की गई. जब देश में एक वैकल्पिक विचारधारा ने उदय होना शुरू किया। उस विचारधारा को दबाने के लिए यह बहस शुरू की गई की आप सेकुलर नहीं हो, बल्कि सांप्रदायिक हो।' इसके तुरंत बाद राहुल कंवल ने सवाल पूछ लिया- 'आपकी सरकार आलोचकों को बर्दाश्त क्यों नहीं करती। आप लोग तुरंत आलोचकों पर एंटी नेशनल का लेवल लगाने को क्यो उतावले दिखते हो?'
इसपर राम माधव ने कहा- 'मैं मानता हूं कि हमसे गलतियां हुई हैं। हमने जिम्मेदाराना रवैया नहीं दिखाया, लेकिन जितनी आजादी हमारी सरकार में नागरिको को मिली है, उतनी पहले कहां थी? मोदी को गाली देने के लिए वेबसाइट्स बनी हैं। हम भी तो इतने सालों से सुन रहे हैं कि तुम लोग सांप्रादायिक हो, मुसोलिनी के समर्थक हो.. हिटलर हो ... फासिस्ट हो... कभी तो चीजें पलटकर आएंगी ना! तो आप लोग भी तो थोड़ा टॉलरेंस दिखाओ।'
राहुल कंवल ने तुरंत इंदिरा गांधी की इमरजेंसी की याद दिलवाकर शशि को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश की, लेकिन यहां वो कव्वे की भूमिका से उपर नहीं उठ सके! वो ऐसे कि शशि थरूर ने तुरंत कह दिया- 'मैं ऑन रिकॉर्ड पहले भी आपातकाल की आलोचना कर चुका हूं, इसलिए इस बात को किनारे रखे! हम आज के हालात पर बात करने के लिए यहां हैं! जब भी वर्तमान पर बात करो ये लोग कहते हैं 40 साल पहले इन्होंने भी तो ऐसा ही किया था... कमाल है! ऐसे संवाद नहीं होता है। हम आज के भारत में रह रहे हैं। दिक्कत यह है कि हमारे पास फ्रीडम ऑफ स्पीच तो है लेकिन स्पीच के बाद 'फ्रीडम' की कोई गारंटी नहीं है।' बस यही वो मारक जवाब था, जिसने राम माधव के सारे जुटाए और पेले गए ज्ञान पर पानी फेर दिया! मन तो कर रहा है कि लिखूं- 'जियो शशि! पर वो बड़ा आदमी है... टाइम कहां होगा उसे ये दाद पढ़ने का।'
इसके बाद शशि थरूर ने फिर से राम माधव का रुख किया और कहा- 'जिस ढंग से एक के बाद एक लादे गए मुकदमों ने दुनिया का ध्यान खींचा है, बड़े पैमाने पर पत्रकारों पर मामूली वजहों से मुकदमे लादे गए हैं, खुद मुझ पर सिडीशन का केस लगाया गया है, जिस ढंग से आलोचना करने वालों को डराया जा रहा है, कॉमेडियंस को जेल भेजा रहा है, पत्रकारों को जेल भेजा जा रहा है और गणमान्य लोगों को निशाना बनाया जा रहा है, इसके बावजूद आप कैसे सोच सकते हैं कि दुनिया इस पर चुप रहे।'
इसके बाद शशि थरूर ने प्रेस फ्रीडम पर लताड़ लगा दी, लेकिन राहुल कंवल यहां खेल कर गया। राहुल ने कहा इंडिया टुडे दबाव महसूस नहीं करता। हमसे हर कोई नाराज रहता है। पूर्व में भी सरकारों ने मीडिया को कण्ट्रोल करने की कोशिश की है। ऐसा होता रहा है। हम सत्ता से सवाल करते रहेंगे! इसपर शशि थरूर ने कहा- 'आप सत्ता से ही तो सवाल नहीं कर रहे।' इसके बाद बहस फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट की ओर घूम गई और राम माधव इस रिपोर्ट की आड़ लेकर अपनी सरकार का बचाव करते रहे और लगे हाथ शशि थरूर के स्टाइल को कूल भी बता दिया। इसके बाद शशि थरूर ने मॉब लिंचिंग, गौ कानून और सरकारों के द्वारा लादे जा रहे मुकदमों पर अपनी बात रखी।
बहस के दौरान सिटिजन एमिडमेंट एक्ट पर भी बात हुई और बजाय कि तथ्यों के जवाब देने के राम माधव ने मजाक उड़ाना बेहत्तर समझा। राम माधव ने कांग्रेस के 23 बगावती नेताओं का जिक्र कर सवाल दागा कि आप देश के लोकतंत्र की तो बात कर रहे हैं, लेकिन अपनी पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर चुप्पी साधे बैठे हैं। इस पर शशि थरूर का जवाब था मुझे इस विषय पर बात करने के लिए नहीं बुलाया गया था... मैं इस पर अपनी बात रख सकता हूं, लेकिन मैं यहां इस मसले पर बात करने नहीं आया हूं। बहस मजेदार है और इसमें राम माधव की खिसियाहट सत्ता के दंभ के साथ आती हुई साफ नजर आती है।
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