महेंद्र जंतु विज्ञान से परास्नातक हैं और विज्ञान पत्रकारिता में डिप्लोमा ले चुके हैं। महेन्द्र विज्ञान की जादुई दुनिया के किस्से, कथा, रिपोर्ट नेचर बाॅक्स सीरीज के जरिए हिलांश के पाठकों के लिए लेकर हाजिर होते रहेंगे। वर्तमान में पिथौरागढ में ‘आरंभ’ की विभिन्न गतिविधियों में भी वो सक्रिय हैं।
दुनिया विज्ञान के बिना अधूरी है। आज जब हम विज्ञान के सबसे खूबसूरत युग में खड़े हैं, तब बेहद जरूरी हो जाता है कि इसे अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए एक सही और तार्किक शिक्षण प्रणाली मौजूद हो। विज्ञान शिक्षण की जब हम बात करते हैं, तब स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की वैज्ञानिक चेतना व तार्किक दृष्टिकोण विकसित करने में इसकी भूमिका का सही आंकलन कर पाते हैं। किसी मुल्क और उसके अलग-अलग रहवासियों को आगे ले जाने वाले वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और विचारकों समेत आम नागरिकों के निर्माण में भी विज्ञान शिक्षण की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है। गुजरते वक्त के साथ दुनियाभर के समाजों में जब कुरीतियों को चुनौती दी जा रही थी, उसका एक कारण समाज में वैज्ञानिक चेतना व शिक्षण के बढ़ते प्रभाव का नतीजा भी था। हालांकि, आज फिर से विज्ञान के सामने संकट खड़ा हो गया है।
आज जबकि पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही है, तब वो इस मुश्किल घडी में विज्ञान के नजदीक जाकर खड़ी हो गई है। विज्ञान के बिना दुनिया की कल्पना तक नहीं की जा सकती। इस बीच जब हम महामारी से निपट रहे हैं और कोरोना ने समाज के हर एक पहलू पर बुरा असर छोड़ा है, तब विज्ञान ही उम्मीद भी जगा रहा है। स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और जनजीवन जब सब प्रभावित थे, तब महामारी के चलते दुनियाभर के स्कूलों में विज्ञान शिक्षण बेहद प्रभावित हुआ।
एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर के 67 फीसदी शिक्षकों का मानना है कि कोरोना ने विज्ञान शिक्षण को बुरी तरह प्रभावित किया है और आने वाले समय में विज्ञान शिक्षण के सामने जलवायु परिवर्तन व फेक न्यूज सबसे बड़ी चुनौतियां हैं। कोरोना के दौरान विज्ञान शिक्षा व शिक्षण पर बेहद सीमित बहस देखने को मिली। इसके चलते शिक्षकों की चुनौतियां व महामारी के दौरान उनके विचार-विमर्श को नहीं सुना जा सका। पढ़ने-पढ़ाने के पारंपरिक तरीकों के पीछे छूटने से शिक्षण में नई चुनौतियां तो उभरी ही, साथ ही विज्ञान शिक्षा व शिक्षण में आने वाले समय की प्राथमिकताओं व चुनौतियों की तैयारी पर भी सवाल उठने लगे।
इस रिपोर्ट के मुताबिक कुछ ऐसे मसलों पर भी राय बनकर उभरी है, जो 'वर्तमान विज्ञान शिक्षण के नाम पर जो पढ़ाया जा रहा है, क्या वह प्रासंगिक भी रहा है कि नहीं?' ऐसे नतीजों तक पहुंचता है। क्या वर्तमान विज्ञान शिक्षण बच्चों को तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण दे पा रहा है? क्या पाठ्यक्रमों में मूलभूत बदलावों की जरूरत है? विज्ञान शिक्षण क्या इस सदी की समस्याओं को संबोधित कर पा रहा है? ऐसे ही कुछ प्रश्नों पर विश्व भर के शिक्षकों को आवाज़ देने के लिए 'Oxford University Press' व 'Organization for Economic Co-operation and Development' (OECD) द्वारा 22 देशों के 398 शिक्षकों के साथ एक सर्वे किया गया, जिसको रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित किया गया है। इस रिपोर्ट में इन प्रश्नों के जवाबों के साथ-साथ बेहतरी के सुझाव भी शामिल किए गए हैं।
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सर्वे में विज्ञान शिक्षण व शिक्षा के मूल लक्ष्य के बारे में शिक्षकों ने जवाब दिया कि- “विज्ञान शिक्षण व शिक्षा वह होनी चाहिए जो सीखने वाले के अंदर विज्ञान के प्रति ललक जगाए। जब यह ललक जागे तो चारों तरफ घट रही घटनाओं के पीछे के विज्ञान से परिचित कराये। सबसे अहम् बात सीखने वाले को परीक्षण व प्रयोग करने के काबिल बनाने की कोशिश विज्ञान शिक्षण करे, ताकि सीखने वाला खुद से परीक्षण कर विज्ञान सीख सके। सीखने वालों को यह सब हुनर व विज्ञान की समझदारी देकर विज्ञान व सम्बंधित क्षेत्रों में सफलता अर्जित करने में भी मदद करे।''
66% शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान विज्ञान शिक्षण सीखने वालों को दैनिक जीवन में प्रमाण व आंकड़ों पर आधारित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, साथ ही एक सजग नागरिक बनने में भी मदद करती है। इस दिशा में विज्ञान शिक्षा व शिक्षण सही दिशा में बढ़ रहा है।
विज्ञान शिक्षण व शिक्षा का काम छात्र-छात्राओं को वैज्ञानिक चेतना से लैस व सोच समझकर आंकड़ों व तर्कों के आधार पर निर्णय लेने की क्षमता विकसित करना है। मसलन पृथ्वी आने वाले समय में अनेकों मुसीबतों व विपदाओं का सामना करेगी जिसके लिए मानवता को तैयार रहने की जरूरत है। विज्ञान शिक्षा व शिक्षण की इस तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका है, विज्ञान की शिक्षा आने वाली विपदाओं को लेकर नए लोगों को सचेत तो कर ही सकती है, साथ ही उससे निपटने के तरीकों की दिशा में सोचने की ओर भी ध्यान खींच सकती है! ..लेकिन जब हम शिक्षकों से यह जानने की कोशिश करते हैं कि पढ़ाया जा रहा पाठ्यक्रम क्या ऐसा कर पा रहा है? इस पर 46% शिक्षकों ही ऐसा मानते हैं और बाकी पाट्यक्रम को व्यावहारिक नहीं मानते।
जब 50% से भी कम शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान पाठ्यक्रम विश्व के सामने आने वाले खतरों के लिए छात्र-छात्राओं को तैयार नहीं कर पा रहा, तब यह पाठ्यक्रम भविष्य के लिए कैसे सटीक हो सकता है? 45% शिक्षकों का मानना है कि वर्तमान विज्ञान पाठ्यक्रम भविष्य के लिए ठीक नहीं है। हालांकि, 31% शिक्षकों की इस पक्ष को लेकर सकारात्मक राय थी। विश्व भर से एकट्ठा किये गए ये सभी आंकड़े साफ़ दर्शाते हैं कि जिस तरह से वर्तमान में विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है व जो पढ़ाया जा रहा है, वह गहन समीक्षा की मांग करता है।
नतीजों को देखकर साफ हो जाता है कि आज के परिप्रेक्ष्य को देखकर विज्ञान शिक्षण के लक्ष्य दोबारा तय करने की आवश्यकता आ गई है। साथ ही कई नए सुधारों की भी गुंजाइश बढ़ गई है। शिक्षकों की तरफ से सबसे अधिक बार आया सबसे जरूरी सुझाव यह है कि विज्ञान की शिक्षा की कोशिश सीखने वाले में प्रयोग कर सीखने की ललक पैदा करना है, जिसके लिए कक्षा में ही परीक्षण व प्रयोग किये जाने चाहिए। सभी एकमत में वर्तमान विज्ञान पाठ्यक्रम की समीक्षा का सुझाव देते हैं, ताकि पाठ्यक्रम आज की बात कर सके व जिस दौर व परिस्थतियों में सीखने वाले जी रहे हैं, उस से खुद को जोड़ भी सके।
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शिक्षकों का कहना है कि पाठ्यक्रम का भार कम किया जाना चाहिए, ताकि सीखने वाले को गहरी समझ की ओर मोड़ा/प्रेरित किया जा सके। बहुत बार विज्ञान बेहद सैद्धांतिक (Theoretical) बन जाता है, जिससे सीखने वाला विषय से कटा-कटा महसूस करता है। प्रायोगिक (Practical) और सैद्धांतिक ज्ञान की दूरी पाटने की आवश्यकता की ओर भी शिक्षक ध्यान खींचते है। वर्तमान परीक्षा प्रणाली जो कि रटी-रटाई परिभाषाओं, भारी-भरकम तथ्यों व आंकड़ों पर आधारित है, सिद्धांतों को लागू करने के तरीकों को परीक्षा में नज़रअंदाज़ करता है। शिक्षकों का मानना है कि पुराने ढर्रे की परीक्षाओं को हटाने का समय आ गया है और परीक्षण व प्रयोगों को जगह देने वाले प्रोजेक्ट, असाइनमेंट को अधिक से अधिक परीक्षाओं में शामिल करना चाहिए। कोरोना महामारी के दौर में इस रिपोर्ट के जरिये शिक्षकों ने दो ऐसी चुनौतियां सामने रखी हैं, जिनका सामना पूरी मानवता व विज्ञान शिक्षा को करना है।
दुनिया के सबसे जरूरी मुद्दों के सवाल पर 25% शिक्षकों ने सबसे ऊपर व जरूरी मुद्दा जलवायु परिवर्तन को माना है, जिससे निपटना अस्तित्व को बचाये रखने के लिए जरूरी है। इसके बाद दूसरे बड़े मुद्दे के तौर पर चौंकाने वाला जवाब आता है। शिक्षकों का मानना है कि फर्जी खबरें (Fake News) वर्तमान और भविष्य के लिए भी बेहद गंभीर व बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।
फेक न्यूज बनी महामारी
शिक्षक मानते हैं कि कोरोना के साथ-साथ मानव फेक न्यूज़ फेक न्यूज की महामारी भी झेल रहे हैं। दुनियाभर में गलत जानकारियों का जाल बुनकर लोगों की जिंदगियों को तबाह किया गया है। झूठी खबरों ने दुनिया के कई मुल्कों को तबाह कर दिया है। इससे विभिन्न समुदायों के आपसी विश्वास में कमी आयी है व सामाजिक ताना-बाना कमजोर हुआ है। इसी षड्यंत्र का शिकार कोरोना के खिलाफ लड़ा जा रहा युद्ध भी हुआ है, जहां बेसिर पैर के फ़र्ज़ी दावों को वैज्ञानिक तथ्यों की तरह पेश कर पढ़े लिखे लोगों तक को गुमराह किया गया। इसका परिणाम एक बड़े तबके में देश में चल रहे टीकाकरण, डॉक्टरों पर अविश्वास के रूप में सामने आया। भारत में अनेकों राज्यों में डॉक्टर, नर्सों पर जानलेवा हमले तक हुए। मास्क पहनना तक बहुतों को नागवार गुज़रा जिसने भारत को कोरोना से संघर्ष में काफी हद तक पीछे किया।
दुनियाभर में कोरोना ने शिक्षा के पुराने माध्यम ध्वस्त कर दिए हैं, जिसके चलते मौजूदा शिक्षा ऑनलाइन रूप में आखिरकार स्थापित हो चुकी है, लेकिन एक तबके के सामने नए संकट भी खड़ें हुए हैं। कई विकाशील देशों व ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा पूरी तरह से ठप्प पड़ गई है, जिसमें विज्ञान शिक्षा भी शामिल है।
विज्ञान शिक्षण का ठप होना समाज के तार्किक रूप से सोचने की क्षमता को भी प्रभावित करेगा, जिससे समाज पिछड़ता चला जाएगा। 67% शिक्षकों का मानना है कि कोरोना ने जिस तरह विज्ञान पढ़ाया जाता है, उसको पूरी तरह बदल कर रख दिया है। कोरोना ने ही वर्तमान पाठ्यक्रमों की खामियों को भी उजागर करने का काम किया है। हालांकि, तमाम सरकारें खोये समय की भरपाई की कोशिशों में लगी हुई हैं, पर विज्ञान शिक्षा व शिक्षण की जो विशिष्ट भूमिका समाज निर्माण में है, फिलवक्त वह खास तवज्जो की दरकार रखती है।
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