यूक्रेन के साथ युद्ध में मरा रूस का हर सैनिक जांबाज नहीं!

यूक्रेन के साथ युद्ध में मरा रूस का हर सैनिक जांबाज नहीं!

NEWSMAN DESK

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  • सेना के अफ़सर अपने ही सैनिकों को यातना दे रहे हैं और मार रहे हैं जो यूक्रेन में लड़ने से इनकार करते हैं — रिपोर्ट
  • जांच में 101 अफसरों के नाम आए; जो सैनिक पीछे हटते हैं, उन पर ड्रोन से हमला करने या “मौत मिशन” पर भेजने जैसे तरीके अपनाए जा रहे हैं.

एक हालिया जांच के मुताबिक, रूसी सेना के कमांडर उन सैनिकों को या तो मार रहे हैं या जानबूझकर मौत के मुँह में भेज रहे हैं, जो यूक्रेन में लड़ने से इनकार कर रहे हैं. स्वतंत्र रूसी न्यूज़ पोर्टल 'Verstka' की जांच में सेना के भीतर फैली क्रूरता और आंतरिक हिंसा की भयावह तस्वीर सामने आई है. दुनिया भर की मीडिया में अब इसकी चर्चा हो रही है.

'Verstka' ने सेना के सक्रिय सैनिकों, मारे गए सैनिकों के परिजनों, लीक हुए वीडियो और आधिकारिक शिकायत रिकॉर्ड्स के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. रिपोर्ट में 101 रूसी सैनिक-अधिकारियों पर अपने ही साथियों को मारने, यातना देने या घातक सज़ा देने का आरोप लगाया गया है. कम से कम 150 मौतों की पुष्टि की गई है, लेकिन जांचकर्ताओं का कहना है कि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है.

रूस के यूक्रेन पर हमले की शुरुआत से ही ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि अपने ही सैनिकों को “ब्लॉकिंग यूनिट्स” द्वारा मारा जा रहा है. यानी जो सैनिक पीछे हटते हैं, उन्हें अपनी ही सेना रोककर खत्म कर देती है. हालांकि क्रेमलिन ने हमेशा की तरह इन आरोपों का भी खंडन कर दिया है. क्रेमलिन यह भी स्वीकर रहा है कि “अनुशासनहीनता यूक्रेनी सेना में ज़्यादा है.” लेकिन Verstka की यह रिपोर्ट अब तक की सबसे व्यापक जांच के आधार पर तैयार मानी जा रही है.

"एक्सीक्यूशन शूटर" और ड्रोन से अपने सैनिकों पर हमले
कई सैनिकों ने बताया कि कमांडरों ने “एक्सीक्यूशन शूटर” नियुक्त किए थे, जिनका काम था — आदेश न मानने वालों पर गोली चलाना और बाद में उनके शवों को नदी या उथली कब्रों में फेंक देना. उन्हें आधिकारिक रिकॉर्ड में “लड़ाई में मारे गए” के रूप में दर्ज किया जाता था. कई मामलों में, कमांडरों ने ड्रोन या विस्फोटक का इस्तेमाल करके घायल या भाग रहे सैनिकों को “खत्म” करने के आदेश दिए. कुछ ड्रोन ऑपरेटरों को अपने ही सैनिकों पर ग्रेनेड गिराने को कहा गया ताकि ऐसा लगे कि वे दुश्मन की गोली से मारे गए.

यातना, “ग्लैडिएटर” लड़ाइयां और फिरौती

रिपोर्ट में ऐसे कई मामले दर्ज हैं जहां सैनिकों को यातना देकर मारा गया. आदेश न मानने वालों को धातु की जालीदार गड्ढों में फेंककर, पानी डालकर और घंटों तक पीटा जाता था. कभी-कभी उन्हें एक-दूसरे से “ग्लैडिएटर-स्टाइल लड़ाई” करने को मजबूर किया जाता था, जिसमें जो जीतता, वही जिंदा निकलता.

एक ऐसा ही वीडियो मई 2025 में सामने आया था जिसमें दो बिना कपड़ों के सैनिक गड्ढे में लड़ रहे थे और पीछे से आवाज़ आ रही थी — “कमांडर कामा ने कहा है, जो दूसरे को मार देगा, वही बाहर निकलेगा.” कुछ ही देर में एक सैनिक गिर जाता है और हिलना बंद कर देता है.

Verstka ने ऐसे कई वसूली के मामले भी दर्ज किए, जिनमें अफसरों ने सैनिकों से “सुरक्षित मिशन” के बदले पैसे मांगे. जो भुगतान नहीं कर सके, उन्हें “ज़ीरो कर दिया गया” — यानी मौत के घाट उतार दिया गया.

“मौत मिशन” और सैनिकों को चारा बनाना
रिपोर्ट में बताया गया कि सैनिकों को जानबूझकर “मायाचकी” की तरह इस्तेमाल किया गया. यानी उन्हें बिना उपकरण के आगे भेज दिया गया ताकि दुश्मन की गोलीबारी उनकी दिशा में हो और बाकी दस्ते को रास्ता साफ़ दिखे.

शुरू में ये घटनाएं जेलों से भर्ती किए गए अपराधियों की इकाइयों में दिखीं, लेकिन अब यह प्रथा नियमित सेना तक फैल चुकी है. जांच के मुताबिक, “सजा से मुक्ति की संस्कृति” और जेल से आए अपराधियों का असर मिलकर हिंसा को सामान्य बना चुके हैं.

कौन हैं आरोपी?
ज्यादातर आरोपी मध्यम रैंक के अधिकारी हैं. 30 से 40 वर्ष की उम्र के, पहले के युद्धों के अनुभवी या दंड बटालियनों से स्थानांतरित. 60 से अधिक अधिकारियों की नाम, रैंक, यूनिट और बायोग्राफ़िक जानकारी Verstka ने जुटाई, लेकिन लगभग किसी पर कार्रवाई नहीं हुई.

हज़ारों शिकायतें, पर कोई जवाबदेही नहीं
Verstka को मिली आधिकारिक जानकारी के अनुसार, 2025 की पहली छमाही में रूस के मुख्य सैन्य अभियोजक कार्यालय को 29,000 शिकायतें मिलीं, जिनमें से 12,000 से अधिक अपने ही अफसरों द्वारा दी गई सज़ाओं से संबंधित थीं. एक अभियोजक के सूत्र ने बताया कि “लड़ाई वाले इलाक़ों में तैनात अफसरों पर जांच खोलने की अनौपचारिक मनाही” है. उसने कहा, “वे कहते हैं — अगर हम ये मामला खोलेंगे तो ऑपरेशन पर असर पड़ेगा. इसका मतलब है कि इन अफसरों को पूरी छूट मिली हुई है.”

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