जिस शख्स ने दुनिया को हाथ धोना सिखाया, उसे पागलखाने में डाल दिया गया!

Photo Credit: डॉ. इग्नाज सेमेल्विस

Medicalजिस शख्स ने दुनिया को हाथ धोना सिखाया, उसे पागलखाने में डाल दिया गया!

NEWSMAN DESK

कोरोना काल में जो नसीहत सबसे ज्यादा सुनाई दी और सरकार ने जिस नसीहत को लेकर सबसे ज्यादा ध्यान रखने की बात कही, वह थी हाथ धोना। अस्पतालों में ऑपरेशन थियेटर में डॉक्टर-नर्स हों या फिर रेस्टोरेंट के किचन में शेफ, नगर निगम के सफाई कर्मचारी हों या फिर सब्जी मंडी के व्यापारी, हर जगह काम करने से पहले और बाद में साबुन या हैंडवाॅश से हाथ जरूर धुले जाते हैं। अब कोरोना काल के बाद तो हाथ धोने के साथ ही सेनेटाइज करना भी जरूरी हो गया है, जबकि अस्पतालों में हर माह के आखिरी में ऑपरेशन थियेटर का 'कल्चर टेस्ट' किया जाता है। इससे पता चलता है कि थियेटर में रोगाणुओं का स्तर क्या है। फिर उस ऑपरेशन थिएटर की कैमिकल से सफाई की जाती है, उसके बाद ही ऑपरेशन शुरू होते हैं।

हालांकि, बहुत पहले एक वक्त ऐसा भी था, जब कोई हाथ नहीं धोता था। न घर में खाना खाने से पहले, न ऑपरेशन करने के बाद डॉक्टर ही हाथ धोते थे। ऐसा ही किचन में बावर्ची और न ही कोई सफाई कर्मी हाथ धोने को जरूरी समझते थे। यहां तक की मल विसर्जन के बाद भी हाथ नहीं धोये जाते थे! ..और ये अकेले भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में होता था। आपको विश्वास नहीं होगा कि हाथ धोने की आदत और जरूरत की शुरूआत कोई आदिकाल से शुरू नहीं हुई, बल्कि यह 19वीं सदी में एक डॉक्टर की पहल पर आदत का हिस्सा बनना शुरू हुई। इस आदत के बनने की अपनी ही अलग कहानी है।

इस आदत को इंसानों के बीच लाने वाले डॉक्टर को इंसानों ने पागल घोषित कर पागलखाने में भर्ती करा दिया था, लेकिन जब बाद में अक्ल आई तो ये जीवन की अनिवार्य जरूरत बन गया। ये डॉक्टर था हंगरी देश का डॉ. इग्नाज सेमेल्विस! तो कैसे डॉ. इग्नाज सेमेल्विस ने लोगों को बताया कि हाथ धोना जरूरी है और क्या कुछ हुआ था, जब उन्होंने अपने शोध को लोगों के सामने रखा, जानते हैं इस कहानी में..

क्या था हाथ धोने से पहले दुनिया का हाल
तब की दुनिया ऐसी नहीं थी, जैसे आज आप देखते हैं। अस्पतालों में डॉक्टर कोई ऑपरेशन करने के बाद खून से सने हाथों को महज कपड़े से साफ कर लिया करते थे। अस्पतालों में साफ-सफाई नहीं होती थी। टाॅयलेट जाने के बाद इंसान सीधे खाना खा लेता था। उस दौर में अस्पतालों में भर्ती मरीजों में से आधे ही घर लौट पाते थे, लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि जो मरीज मामूली बुखार के कारण अस्पताल में भर्ती हुआ, वो आखिर किस रोग के चलते मर गया। प्रसव केंद्रों में जच्चा और बच्चा बहुत कठिनाइयों से बच पाते थे। डॉक्टर हैरान और परेशान थे कि मामूली प्रसव के बाद भी आखिर मां और उसका बेटा क्यों मर गये। मृत्यु दर और जीवन का आकंड़ा आधा-आधा था। 

फिर हुई एक ऐसी खोज जिसने दुनिया बदल दी
1846 में हंगरी देश में वियना जनरल हाॅस्पिटल में डॉ. इग्नाज सेमेल्विस काम करते थे। डॉ. सेमेल्सिव अस्पताल में प्रो. जोहान क्लेन के सहायक थे। प्रो. क्लेन ने उन्हें काम दिया हुआ था कि वो हर दिन राउंड लगाने से पहले मरीजों का डाटा तैयार करें। इसके लिये डॉ. सेमेल्सिव को प्रो. क्लेन से पहले पूरे अस्पताल का राउंड लगाना होता था।

अस्पताल में हर जगह फैली गंदगी और दुर्गंध डॉ. सेमेल्सिव बड़े गौर से देखते। उनके दिमाग में कुछ न कुछ चल रहा होता था, लेकिन उस वक्त उन्होंने किसी को कुछ बताया नहीं। दुनिया को 19वीं सदी के मध्य तक रोगाणुओं के बारे में पता ही नहीं था। न उस पर कोई शोध हो रहा था। उस वक्त बच्चे के पैदा होने के बाद मांओं के संक्रमित होने का खतरा सबसे ज्यादा था।

एक तो अस्पताल पहले से गंदे थे, फिर जिन महिलाओं का प्रसव चीर-फाड़ कर यानी कि सर्जरी से होता था, उनके जख्मों पर बैक्टीरिया का खतरा काफी ज्यादा रहता था। अपने शोध के लिये डॉ. सेमेल्विस ने सबसे पहले वियना हॉस्पिटल के दो जच्चा-बच्चा वार्डों को अलग-अलग किया। नतीजे चैंकाने वाले आये। जिस वार्ड में मेडिकल के छात्रों की ड्यूटी होती थी, वहां पर डयूटी जूनियर पुरुष डॉक्टरों की होती थी। यहां पर मृत्यु दर 9:100 थी। यानी कि सौ महिलाओं में से करीब नौ महिलाओं की मौत हुई। इसके उलट दूसरे केंद्र में जहां दाइयों और नर्सों के हवाले महिलायें थी, वहां पर मृत्यु दर 3.6: 100 थी। 

अब इस अंतर की क्या वजह हो सकती है
डॉ. सेमेल्सिव के शोध में सामने आया कि पुरूष मेडिकल छात्रों के केंद्र में मृत्यु दर ज्यादा होने की वजह थी, प्रसव के बाद महिलाओं के साथ बेरूखी से पेश आना। उन्होंने शोध में पाया कि जूनियर डॉक्टरों के व्यवहार और रूखे तरीके से पेश आने के बाद महिलाओं को बुखार हो जाता है, जिससे उनके यूट्रस में इंफेक्शन हो रहा था।

डॉ. सेमेल्विस ने पाया कि यूट्रस का संक्रमण और बुखार मौत की मुख्य वजह बन रही थी। आखिर ये बुखार और संक्रमण मौत की मुख्य वजह क्यों बन रही थी! इसके पीछे के कारण ने दुनिया बदल कर रख दी। असल में, जिन जूनियर डॉक्टरों की ड्यूटी महिला वार्ड में लगती थी, उन्हीं डाक्टरों को पहले पोस्टमार्टम हाउस में भी ड्यूटी देनी होती थी। चार से पांच शवों की चीरफाड़ करने के बाद वो बिना हाथ धुले ही सीधे महिलाओं के वार्ड में ड्यूटी करने पहुंचते थे। इससे एक अदृश्य बीमारी इन महिलाओं को लग रही थी। इस बारे में जब डॉ. सेमेल्विस ने अपने समकक्ष डॉक्टरों को बताया, तो उन्होंने उसका मजाक बनाया। उनके अुनसार, मौत का कारण कुछ और है। 

अस्पतालों को कर दिया जाता था नष्ट
आपको ये बात थोड़ी अजीब लगेगी कि डॉ. सेमेल्विस से पहले बैक्टिरिया की खोज हो चुकी थी। डॉ. सेमेल्विस के समकक्ष डॉक्टर भी ये मानने के लिये तैयार थे कि इन महिलाओं की मौत बैक्टिरिया से हो रही होगी, लेकिन उस समय तक ये प्रमाणिक और अंतिम सत्य के रूप में मान लिया गया था कि बैक्टिरिया कभी नष्ट नहीं किये जा सकते। इसलिये उस वक्त अस्पतालों की समय सीमा एक तय समय तक होती थी। उसके बाद उन्हें नष्ट कर दिया जाता था। उस समय गर्भवती महिलाओं के डॉक्टर और इंसानों को बेहोश करने के लिये क्लोरोफार्म का सबसे पहले उपयोग करने वाले डॉ. जेम्स ने भी कहा कि अस्पताल से बैक्टिरिया खत्म नहीं हो सकते। इसलिए जब अस्पतालों में इनका प्रकोप बढ़ जाए, तो अस्पतालों को पूरी तरह से नष्ट कर देना चाहिए और उन्हें फिर नए सिरे से बनाना चाहिए। 

इसका भी तोड़ निकाला डॉ.सेमेल्विस ने, जिन्होंने अपना शोध इस दिशा में जारी रखा। उन्होंने अस्पतालों में हाथ धोने की व्यवस्था शुरू की और सफाई के लिये क्लोरिन और चूने का घोल का छिड़काव हर दिन करवाया। उनके साथी डॉक्टर उन्हें पागल कहते। उन्होंने इस पूरे विषय पर किताब भी लिखी। उन्होंने इस किताब में हाथ न धोने वाले डॉक्टरों को हत्यारा बताया। इससे विवाद बड़ा हो गया और सेमेल्विस लोगों के निशाने पर आ गये। उन्हें अस्पताल से निकाल दिया गया।

इस घटना से आहत होकर डॉ. सेमेल्विस अपने देश हंगरी लौट आये, जहां उन्होंने राजधानी बुडापेस्ट के एक छोटे से महिला अस्पताल में बिना पैसों के काम करना शुरू कर दिया। इस अस्पताल में भी गंदगी के चलते महिलाओं की मौत हो रही थी। लिहाजा, डॉ. सेमेल्विस ने यहां भी अपने शोध के आधार पर हाथ धोने और साफ सफाई का फॉर्मुला सामने रखा। नतीजे चौंकाने वाले रहे और महिलाओं की मौत रूकने लगी। हालांकि, यहां भी डॉक्टरों को उनकी बात रास नहीं आई और उन्होंने सेमेल्विस की बातों को अनसुना करना शुरू कर दिया।

पागलखाने की अंधेरी कोठरी में डाल दिया

जब यहां भी सेमेल्विस की बात नहीं मानी गई, तो वो बौखला गये। विवाद बढ़ते रहे और साथी डॉक्टरों ने उन्हें पागल करार दे दिया। लोगों को भी बार-बार हाथ धोने की बात रास नहीं आ रही थी, क्योंकि इससे पहले उनका काम बिना हाथ धोये ही चल रहा था। 1865 में उन्हें पागल खाने में डाल दिया गया। कुछ समय बाद उन्होंगे पागल खाने से भागने की कोशिश की, जहां वो पकड़े गये और गंभीर रूप से जख्मी हो गये। अफसोस कि दुनिया को सही राह दिखाने वाले सेमेल्विस को पागलखाने की अंधेरी कोठरी में डाल दिया गया, जहां महज 47 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।

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