L.SIKORUK की 'फिजिक्स फॉर किड्स' साल 1979 में मॉस्को के मीर प्रकाशन से मूलत: रूसी भाषा में छपकर आई थी। 'हिलांश' के लिए भौतिकी की इस महत्वपूर्ण सीरीज को बच्चों के लिए अमित नौड़ियाल ने रीक्रिएट किया है। किताब के इलेस्ट्रेशन मूलत: ए.गोलवाचेनको ने किए थे, 'हिलांश' के लिए इन्हें हमने रीक्रिएट किया है। हम इस महत्वपूर्ण कृति को भारत के हिंदी भाषी बच्चों के लिए मुफ्त में साभार पब्लिश कर रहे हैं।
(Episode: 2 - आज 'हिलांश' की महत्वपूर्ण सीरीज 'फिजिक्स फॉर किड्स' के दूसरे एडिशन में हम 'माचिस का टेलीफोन' बनाना सीखेंगे। ये प्रयोग न केवल दिलचस्प है बल्कि इससे बच्चे ध्वनि के बारीक रहस्य को जान सकेंगे।
एक दिन एक मैकेनिक घर में टेलीफोन लगाने आया। जब वह काम खत्म करके जाने लगा तो इब्बू ने नये टेलीफोन की ओर देखते हुए कहा :-
- काश हमारे पास भी ऐसा टेलीफोन होता !
- यह टेलीफोन मैंने किसके लिये लगाया है? आज से यह तुम लोगों का ही तो है।
- हमें ऐसा फोन नहीं चाहिये। हमें तो अपना अलग फोन चाहिये जिसमें मैं कारखाने
से गुलमोहर को अस्पताल में फोन कर सकूं।
- यह तुम्हारा अस्पताल और कारखाना कहां पर है? मैकेनिक ने पूछा।
- अस्पताल बड़े कमरे में सोफे पर है और कारखाना हमारे कमरें में है, इब्बू ने उत्तर दिया।
- समझ गया, मैकेनिक कुछ सोचता हुआ बोला - तुम्हारे पास माचिस है?
-है
- ...और धागा ?
- धागा भी है।
-तो लाओ !
मैकेनिक ने एक डिब्बी में से तीलियां निकालकर उसके तले में सुई से धागा पिरो दिया। धागा निकल न जाये, इसके लिये उसने धागे के इस सिरे पर एक तीली बांध दी। मैकेनिक ने इसी तरह धागे के दूसरे सिरे को माचिस की एक और डिब्बी से जोड़ दिया। उसने दोनों बच्चों को डिब्बियां पकड़ा दी और कहा - गुलमोहर, तुम यहीं खड़ी रहो और इब्बू तुम अपने कारखाने में जाओ।
- गुलमोहर अपनी डिब्बी पकड़कर खड़ी हो गयी और इब्बू दौड़कर अपने कमरे में चला गया। इस समय दोनों डिब्बियों के बीच धागा एक तार की तरह सीधा खींचा गया था। इब्बू अपनी डिब्बी को मुंह के पास लाया और गुलमोहर कान के पास।
- गुलमोहर, तुम्हें मेरी आवाज सुनाई दे रही है?
- मुझे तो तुम्हारी आवाज बिना टेलीफोन के भी अच्छी तरह सुनाई दे रही है।
- तुम दूसरे कान का हाथ से बंद कर - मैकेनिक बोला।
गुलमोहर ने हथेली से अपना दूसरा कान ढक लिया।
- गुलमोहर! इब्बू फिर से चिल्लाया!
- अब मुझे फोन पर बड़ी साफ आवाज सुनाई दे रही है, गुलमोहर बोली और वह अपनी डिब्बी को मुंह के पास लाई।
- इब्बू! .... अरे!
- क्या हुआ? मैकेनिक ने पूछा।
- उंगली में गुदगुदी हो रही है, गुलमोहर ने जवाब दिया।
- कौन गुदगुदी कर रहा है?
- डिब्बी का तला, गुलमोहर ने कहा।
- इसका मतलब, वह कांप रहा है? मैकेनिक ने पूछा।
- जी हां, गुलमोहर मान गयी।
- देखो डिब्बी का तला खुद भी कांप रहा है और धागे में भी कंपन पैदा कर रहा है, मैकेनिक ने समझाया।
- मैं अब समझ गया, इब्बू बड़े जोर से बोल पड़ा।
- क्या समझ गये? - मैकेनिक ने पूछा।
- कंपन धागे के रास्ते मेरी डिब्बी तक पहुंचता है और उसके तले को कंपा देता है, जिससे फिर आवाज पैदा हो जाती है।
- बिल्कुल ठीक कह रहे हो। अच्छा अब यह बताओ जब हम माचिस के टेलीफोन के बिना बात कर रहे होते हैं तो मेरी आवाज तुम्हारे कान तक कैसे पहुंचती है? धागा तो है नहीं, फिर कौन सी चीज कांपती है?
बच्चे सोचने लगे थोड़ी देर बाद गुलमोहर बोली :-
- अरे, हां। वह तो हवा कांपती है। आप अपनी उंगलियां गले पर रख दीजिये न।
- मैकेनिक ने ऐसा किया।
- अब आप बोलिये - ‘‘आ-आ’’।
- ''आ..आ..आ..'' - मैकेनिक बोला।
- देखा, कैसे गला कांप रहा है?
- हां
- बस यही बात है। जब बोलते हैं हमारा गला कांपता है, उससे आस-पास की हवा कांपने लगती है। इसके कारण हवा में वैसी ही लहरें उठती है, जैसी कि पानी में। अन्तर केवल इतना है कि यह लहरें दिखाई नहीं देती, पर सुनाई जरूर देती है।
- शाबाश ! मैकेनिक बोला और हंसते हुए बच्चों से विदा ली।
तुम भी इस प्रकार धागे तथा माचिस की डिब्बियों से टेलीफोन बना सकते हो-
बच्चों को समझाना चाहिये कि यह खेल खेलते समय दोनों डिब्बियों के बीच खिंचा धागा किसी भी चीज को, यहां तक कि उंगलियों को भी न छुये क्योंकि धागा जब किसी चीज को छूता है तो उसका कंपन उस चीज पर पहुंचकर उसमें केन्द्रित होता है और आगे नहीं बढ़ता है। इसी कारण दूसरी डिब्बी तक आवाज नहीं पहुंच पाती है।
अगर आपके पास माचिस की डिब्बी न हो तो किसी भी दूसरी छोटी डिब्बी से काम चल सकता है, मसलन - पाउडर, दांत मंजन, आलपीन की डिब्बी आदि से भी काम चलाया जा सकता है। एक लड़के ने मुझे लिखा कि उसने धागे के बजाय 40 कदम लम्बी बारीक नंगी तार का इस्तेमाल किया। ऐसा प्रयोग उसने अपने दोस्त के साथ मिलकर सड़क पर किया था और उसे बहुत साफ आवाज सुनाई दे रही थी।
बच्चों को दिखाया जा सकता है कि ध्वनि केवल धागे द्वारा ही नहीं, बल्कि दूसरी चीजों द्वारा भी फैलती है। नदी में नहाते समय अगर सिर को पानी में इस प्रकार डुबोया जाय कि कान भी पानी के अंदर रहे तो पास में नहाते हुए लोगों की आवाज या दूर कहीं जाती बोट की मोटर की आवाज सुनी जा सकती है। ध्वनि धातुओं में बहुत अच्छी तरह फैलती है।
इस तथ्य की पुष्टि करने के लिये नल के पाइप में ठकठक करके देखें। पडोसी के फ्लैट में यह आवाज बहुत अच्छी तरह सुनाई देगी। ऐसा प्रयोग करते समय इस बात का जरूर ध्यान रखें कि इससे दूसरी की शांति भंग न हो क्योकिं पाइप से आवाज केवल उस फ्लैट तक ही नहीं पहुंचेगी, जहां आप चाहते हैं, बल्कि आस-पास के सभी फ्लैटों में सुनाई देगी।
एक बच्चे ने अपने पत्र में मजेदार वर्णन किया है। उसकी मां पानी से भरे टब में कंकड फेंकती और बच्ची अपना कान टब की दीवार से लगाकर यह सुनती कि किस प्रकार घेरे बनाकर फैलती हुई लहरें टब के किनारे से टकराकर छपछप करती है। ध्वनि-तरंगों के फैलने और कान तक पहुंचने की रीति इस प्रयोग से पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है।
यहां इस बात का ध्यान रखें कि इस प्रयोग के दौरान बच्चे को पानी में फेंके गये कंकड की आवाज दो बार सुनाई देगी। पहली बार जो आवाज सुनाई देती है वह ध्वनि-तरंगो से पहुंचायी जाती है। ये तरंगे पानी में भी वैसे ही दिखाई नहीं देती है, जैसे कि हवा में और ये बड़ी तेजी से फैलती हैं। इसके बाद बच्चे को पानी की सतह पर साधारण लहरें दिखाई देती है, जो जहां कंकड गिरता है, उस जगह के चारों ओर घेरे बनाकर फैल जाती है।
अंत में, जब यह लहर टब की दीवार पर पहुंचती है तो बच्चे को दूसरी बार उनकी आवाज सुनाई देती है। यहां बच्चे को यह समझाना आवश्यक है कि हवा की ही भांति पानी में भी वास्तविक ध्वनि तरंगे दिखाई नहीं देती है। पानी की सतह पर लहरों को दिखाकर यह प्रयोग इसलिये किया जाता है कि बच्चे को अच्छी तरह समझ में आ जाये कि ध्वनि, हवा, पानी और दूसरे पदार्थो में किस प्रकार चारों ओर फैलती है।
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